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5.9.09

अब भाजपा का अन्तिम संस्कार हो ही जाना चाहिए

सलीम अख्तर सिद्दीक़ी
लोकसभा चुनाव में हार के बाद से ही भाजपा में घमासान मचा हुआ है। जसवंत सिंह की किताब आने के बाद तो भाजपा की जंग कौरव और पांडव सरीखी लड़ाई में तब्दील हो गयी है। लेकिन यहां कौरव और पांडव की शिनाख्त करना मुश्किल है। सब के सब दुर्योधन नजर आ रहे हैं। युधिठिर का कहीं अता-पता नहीं है। ऐसा लग रहा है मानो भगवान राम को बेचने वाली भाजपा में रावण की आत्मा प्रवेश कर गयी है। उसके दस चेहरे हो गए हैं। यही पता नहीं चल पा रहा है कि कौनसा चेहरा क्या और क्यों कह रहा है। एक दूसरे पर इतनी कीचड़ उछाली जा रही है कि 'कमल' भी कीचड़ से बदसूरत हो गया है। भाजपा की चाल बदल गयी है। चरित्र तो उसका कभी था ही नहीं। चेहरा कई चेहरों में बदल गया है। बात यहां तक पहुंच चुकी है कि घमासान रोकने के लिए भाजपा के मातृ संगठन आरएसएस को आगे आना पड़ा है। हालांकि संध यह कहता रहा है कि भाजपा के आंतरिक मसलों से संघ को कुछ लेना-देना नहीं है। सवाल किया जा सकता है कि जब कुछ लेना-देना नहीं है तो संघ प्रमुख मोहन भागवत क्यों भाजपा नेताओं से मुलाकातें करते घूम रहे हैं ?
भाजपा में मची घमासान ने 1977 की जनता पार्टी की याद दिला दी है। लेकिन इतनी कीचड़ तो 1977 की जनता पार्टी के नेताओं ने तब भी एक-दूसरे पर नहीं उछाली थी, जब जनता पार्टी मे विभिन्न विचारधाराओं की पार्टियां और नेता शामिल थे। हां इतना जरुर था कि जनता पार्टी में फूट तब की जनसंघ की वजह से ही पड़ी थी। जनसंघ का विलय जनता पार्टी में तो जरुर हो गया था लेकिन जनसंघियों ने खाकी नेकर को नहीं त्यागा था। झगड़ा इसी दोहरी सदस्यता लेकर था। गैरसंघियों का कहना था कि जनता पार्टी में हैं तो आरएसएस से नाता तोड़ें। लेकिन जनसंघी खाकी निकर उतारना नहीं चाहते थे। जनता पार्टी टूटने के बाद जनसंघ ने 1980 में अपना चोला बदला और दीनदयाल उपाध्याय के एकात्मक मानववाद को अपना कर भारतीय जनता पार्टी का चोला पहन लिया। तमाम तरह की कोशिशों के बाद भी भाजपा एक धर्मनिपेक्ष दल नहीं बन पाया। और न वह कभी एक स्वतन्त्र रुप से राजनैतिक दल ही बन सका।
भाजपा का एजेण्डा नागपुर से ही तय होता रहा है। गौहत्या, अनुच्छेद 370 और समान सिविल कोड उसके एजेण्डे में शुरु से ही बने रहे। जब 1981 में तमिलनाडू के मीनाक्षीपुरम में बड़े पैमाने पर दलितों ने धर्मपरिवर्तन करके इस्लाम अपनाया तो भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों ने धर्मपरिवर्तन को भी अपने एजेण्डे में शामिल कर लिया था। तब भाजपा ने प्रचारित किया था कि धर्मपरिर्वतन के लिए खाड़ी के देशों से 'पैट्रो डालर' आ रहा है। यहां उल्लेखनीय है कि संघ परिवार शुरु से ही नए-नए शब्द घड़ने में माहिर रहा है। क्योंकि खाड़ी के देश पैट्रोल बेचकर ही पैसा कमाते हैं, इसलिए खाड़ी के देशों में जो भारतीय काम करते थे और अपनी कमाई का जो पैसा भारत भेजते थे, उस पैसे को 'पैट्रो डालर' की संज्ञा दी गयी थी। बहुत दिनों तक लोगों के यही समझ में नहीं आया था कि 'पैट्रोडालर' नाम की यह करंसी कब आयी और किस देश की है। तमाम तरह के हथकंडों के बाद भी भाजपा जनता में अपनी विश्वसनीयता नहीं बना सकी। 1984 में इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में भी उसके दो ही सांसद जीते थे। कुल मिलाकर भाजपा एक ऐसी पार्टी थी, जिसका कोई वजूद नहीं था। तब भी आज की तरह उसके पास सिकन्दर बख्त और आरिफ बेग नाम के दो मुस्लिम चेहरे हुआ करते थे।
1985 में जब सुप्रीम कोर्ट ने एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला शाहबानो के शौहर को गुजारा भत्ता देने का फैसला सुनाया तो हिन्दुस्तान की राजनीति में तूफान आ गया था। मुसलमानों ने इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखलअंदाजी मानते हुए इस फैसले का जबरदस्त विरोध किया था। कहीं मुस्लिम नाराज न हो जाएं, इसे देखते हुए राजीव सरकार ने संसद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रद्द करा दिया था। मुसलमान तो संतुष्ट हो गए, लेकिन अब कांग्रेस को हिन्दुओं का डर सताने लगा। राजीव गांधी की अपरिपक्व मंडली ने हिन्दुओं को खुश करने के लिए फरवरी 1986 को 1949 से बन्द पड़ी बाबरी मस्जिद का ताला अदालत के जरिए रातों-रात खुलवा दिया। अदालत ने यह मान लिया कि यह बाबरी मस्जिद नहीं राम मंदिर है। कांग्रेस का यह ऐसा आत्मघाती कदम था, जिसने भारतीय राजनीति की दशा और दिशा बदल कर रख दी। हाशिए से मैदान पर आने को छटपटा रही भाजपा और पूरे संघ परिवार को जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गयी। राममंदिर मुद्दे पर पूरा संघ परिवार मैदान में आ डटा। भयंकर खून-खराबे, नफरतों और साम्प्रदायिक दंगों का ऐसा सिलसिला चला कि हजारों बेगुनाह लोग मारे गए। हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच की खाई चौड़ी और चौड़ी होती चली गयी। भारत में यह पहला अवसर था, जब अपने ही देश में लोग विस्थापित हुए। संघ परिवार ने जितनी नफरत बढ़ायी लोकसभा में उसकी सीटें भी बढ़ती रहीं। वह वक्त भी आया कि 1999 में केन्द्र में भाजपा ने सरकार बनायी। सरकार में आते ही भाजपा राम को भूल गयी। अनुच्छेद 370 को तिलांजली देदी। समान सिविल कोड को भुला दिया। यानि राम को भी धोखा दिया और अपने वोटरों को भी।
'सबको देखा बार-बार हमको भी देखो एक बार' का नारा लगाने वाली भाजपा का जनता ने ऐसा चेहरा देखा, जिसको देखकर जनता सन्न रह गयी। देश ने भाजपा अध्यक्ष बंगारु लक्ष्मण को टीवी पर रिश्वत लेते देखा। भाजपा नेता जूदेव को नोटों की गड्डियों को माथे लगाते यह कहते सुना कि 'खुदा की कसम पैसा खुदा तो नहीं, लेकिन खुदा से कम नहीं।' संसद पर आतंकवादियों का हमला देखा। खूंखार पाकिस्तानी आतंकवादियों को सुरक्षित कंधार तक छोड़ते देखा। रक्षा सौदों में दलाली खाते देखा। यह सब देखा तो जनता ने लगातार दो बार भाजपा को हराकर प्रायश्चित किया। अब भाजपा फिर से एक मरती हुई पार्टी बन गयी है। इससे पहले कि फिर से संजीवनी के रुप में राममंदिर जैसा मुद्दा भाजपा के हाथ आ जाए, इसका अन्तिम संस्कार हो ही जाना चाहिए।

4 comments:

Anonymous said...

jis din BJP ka antim sansakar ho jayega us din samajho aam nagrik ka jeena mushkil ho jayega.tum musal mano ke saath bjp ne aisa kya kiya.godhra men shuruaat musalmanon ne ki thi to ant hinduo dwara hua........

सर्वत एम० said...

हम यानी इस देश की जनता भूल जाने और माफ़ करने में माहिर है. अभी कांग्रेस के जाह-ओ-जलाल से जो कीमतों में परवान चढ़ रहा है, कालाबाजारी हो रही है, सूखे पर राजनीति की जा रही है, गैस उपभोक्ता लाठियां खा रहे हैं, किसान दाने-दाने को मुहताज है और सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाहें बढ़कर आम आदमी पर मंहगाई थोपी जा रही है, इसके इंतिकाम में जनता किधर जायेगी? मेरे भाई, यहाँ सारा दोष सिस्टम का है. सिस्टम दुरुस्त हो तो संविधान से खिलवाड़ करने की हैसियत न भाजपा की होगी, न शिवसेना की और न ही मनसे की. भाजपा को मरना नहीं है, उसे तो कांग्रेस ही ओक्सीजन दे रही है.

Anonymous said...

saleem bhai kamal ka lekhte hain aap.

narayan pargain said...

aap ki soch kafi had tak hindustan kay kelaf hai is liya muslim kabhi bhi india ki tarikii nahi soch saktay is tarah kay lakh hi desh mai hindu muslim ki aag ko bharka rahay hai jo desh kay liya thik nahi hai bjp hi is desh ko thik dish dai sakti hai