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6.9.09

हम हा हम कहा हैं मंदी की चपेट में, स्वाइन फ्लू की मर मैं, सूखे के दुख मैं, या .... कही घूम हो गय हैं


स्वइन फ्लू नाम सुनते हीं हर shaks के चहरे पर खोफ छा जता हैं, क्योकि इस बीमारी का जिस तरह प्रचार प्रसार किया गया| उससे तो किसी मल्टी नेशनल कम्पनी को भी सबक लेना चाहिय की सस्ते दाम मैं विज्ञापन केसे किया जाता हे |
देश के हर बड़े छोटे राजनेता इस मुद्दे को छोड़ना नहीं चाहते थे तभी तो सभी ने बड चड़कर हिस्सा लिया मिशन को पोसिबल बनाने में | दोड़ में शामिल हर शक्श आप को संक्रमण से बचने की हिदायते देता रहा तो कोई जाबरदस्ती आप को N-1,H-1 टेस्ट करना की सलहा देता रहा | इस गुत्थम गुत्था के माहोल में आम आदमी एक दुसरे आम आदमी को शक की निगाह से देखता रहा और हिदायत के नाम पर दूसरा आम आदमी सब सहता रहा आम आदमी की मन में कई सवाल थे जेसे मेरा बेटा पुणे में हे कही उसे तो ........... अरे उसे यहाँ भी बुलवाया तब भी परेशनी खडी हो सकती हे ........... और ना- जाने ऐसे कई सवाल लिए वो टकटकी लगाय शेलाब के थमने का इंतजार करता रहा |
विश्व स्वास्थ संगठन ने भी कुछ अहम् कदम उठाय और सिर्फ और सिर्फ अहतियात बरतने के बिगुल बजाए पर भारत ने आपने रव्वये के मुताबिक इसे गंभीरता से लिया और सिर्फ और सिर्फ इसे गंभीर बीमारी का नाम दिया | अहतियत से दूर दूर तक कुछ लेना देना नहीं रहा आलम इस कदर मचा की स्वइन फ्लू ने भारत में विकराल रूप ले लिया प्रशासन में भी हड़कंप मच गया और एक के बाद एक जाने जाती रही
स्वइन फ्लू ने मक्सिको से सुरुआत की और बड़ते बड़ते संपूर्ण विश्व को आपने चपेट में ले लिया | और आज दिनांक तक भी खोफ बनकर हर एक दिल में बैठा हे बात बीमारी की गंभीरता की नहीं बात खोफ की हे क्या विज्ञानं के इस आधुनिक ज़माने में हम किसी बीमारी या महामारी को इस तरह स्वीकार कर सकते हे ?
क्या सारा लोकतंत्र इस बीमारी से निपटने के लिए प्रयसरत था या हमने हमारे प्रयसों में कोई कमी रखी हे हम तो सुरु से ही अंग्रेजो को फालो करते रहे हैं बात सविधान की हो या बात चिकित्सा की हम अंग्रजो के अनुयाई बनाने में आपनी शान समजते रहे हे क्या स्वइन फ्लू ही देश में बीमारी हे और कोई बीमारी नहीं हे ?
प्रतिदिन सेकडॉ मरते हे डेंगू ,हजे, मलेरिया, पोलियो से जिसका हमारे पास इलाज हे पर इलाज मरीज की पहुच से बहार हे या मरीज की जानकारी में नहीं हैं सारकार ने इस और क्या कदम उठाय | सिर्फ विज्ञापन भर दे देना से और किसी कैम्पेन के नाम से मुहीम चला देना से ये बीमारी नहीं थमेगी | ये सारकार भी भालीभाती जानती हे फिर भी जागरूकता अभियान समय समय पर आयोजित कर कर करोडो रूपया फुके जाते हे नतीजे सिर्फ कागज पर दर्शा दिए जाते हैं और अंत की टैग लाइन जागो इंडिया जागो सब को जगा दिया पर सारकार पता नहीं कब जागेगी|
सच्चाई अभी और भी बाकि हे जानने के लिय पदिये वास्तविक इंडिया का आगामी अंक



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