क्या तीज-दीवाली-ईद और होली,
ज़िंदगी तो ऐसे ही चलती है...
खुशी के ये चंद बहानें ही क्यों,
मैं जब-जब हंसता हूं तो दीवाली मनती है....
ख़ुदा क्या, ख़ुदा के सातों दिन क्या
रोटी की तलब तो हर दिन पेट में पलती है
भूख की तासीर वही, पेट की फ़ितरत वही
इसी सोच से सुबह होती है,
इसी फ़्रिक़्र में सांझ ढलती है....
हर धर्म की जात, हर जात की बात
हमाम में सबकी एक सी औकात
मैं हिन्दू, वो मुसलमां...
ग़र लफ़्ज़ बदल दो तो कहां ज़िंदगी बदलती है...
ज़िंदगी तो ऐसे ही चलती है...
खुशी के ये चंद बहानें ही क्यों,
मैं जब-जब हंसता हूं तो दीवाली मनती है....
ख़ुदा क्या, ख़ुदा के सातों दिन क्या
रोटी की तलब तो हर दिन पेट में पलती है
भूख की तासीर वही, पेट की फ़ितरत वही
इसी सोच से सुबह होती है,
इसी फ़्रिक़्र में सांझ ढलती है....
हर धर्म की जात, हर जात की बात
हमाम में सबकी एक सी औकात
मैं हिन्दू, वो मुसलमां...
ग़र लफ़्ज़ बदल दो तो कहां ज़िंदगी बदलती है...
उजालों की दीवाली में खुशी के रॉकेट छोड़ तू
खुशी की उस रोशनी में अपना अक़्स खोज तू
वो अक़्स जो मुस्कुराहट की चांदनी से बना हो
वो अक़्स जो खिलखिलाहट की दीवानगी से बना हो
उससे आंखें मिलाने सीख ले,ज़िंदगी की घड़ी-दो-घड़ी में हंसना-हंसाना सीख ले..
- पुनीत भारद्वाज
1 comment:
एक ही शब्द ...........गज़ब !
आपको और आपके परिवारजन को
दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयां
एवं मंगल कामनायें.......
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