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11.2.10

अपनी बात

कम्प्यूटर टीवी ओर मोबाईल से हर जमात में अन्दरूनी तब्दीली का ऐसा दौर चला कि जिनके कभी मुंह भी ढंग- ढांग के नहीं थे उनमे कई लोग आजकल बहुमुखिं प्रतिभाओं के धनी हो गए । कुछ बरसों पहले तक जिनकी जिन्दगी का कोई स्पेशल परपज नहीं था ,उनमें कितने ही मल्टीपरपज हो कर 'अधजल गगरी छलकत जाय’’ वाली उक्ति को पूर्ण चरितार्थ करने में लग गए ।

भूल- भूलैया नुमा इस दुनिया की उबड़-खाबड़ पथरीली अंधेरी घाटियों में भटकते-भटकते अनगिनत पत्थरों से अनगिनत ठोकरे खाते-खाते इन लहूलूहानी कदमों को कुदरती तजुर्बे के कुछ किमती हीरे मिल ही गए ।

मां शारदा की खास मेहरबानी से कलम और ख्याली ओजारों से वक्त के खाते में से वक्त बेवक्त कुछ-कुछ वक्त निकाल कर उन तमाम हीरों को जहां तक मुनासिब हुआ तराशने की मैं मेरी ओर से लाजवाब कोशिसे करता रहा हूं । तराशते -तराशते अल्फाजी अक्ष जिस-जिस सूरत पर आकर ठहर गया मैं वही उसकी मुक्कमल मंजिल मान कर रूहानी कामयाबी के उन नूरानी पैमानों को दिल से आखिरी सलाम अर्ज कर छोटी सी जिंदगानी के सफरनामें की मेरी छोटीसी किताब के पन्ने पलटता गया ।

मेरी वेब साईट मेरे निजी ख्यालों का यानि कि जिंदगी से जुड़े हुए रूहानी नजरियों का वो कागजी पुलिंदा है जो ठसाठस भरे हुए बैंक लोकर्स से भी लाखों गुना ज्यादा अपनी जाईन्दा औलादों की तरहां बेहद अजीज है।

मेरी नज्में मेरी तहरीर के ये मीठे खंजर आपके जिगर के आजू-बाजू होकर निकल जावेंगे या किसी मुसाफिर की तरहां कुछ पल ठहर सकेंगे ।

बेशक यह भी मुनासिब है कि मेरे ख्याल आपके दिलों दिमाक में मकान मालिक की
तरहां जम जाए और आपके पुश्तेनी सोच को भटकता हुआ राहगीर बनादे । मेरे तोहफों का आखिरी अंजाम किसकिश्म का होगा इस मुतालिक इस वक्त मैं आपसे कोई वादा इसलिए भी नहीं करना चाहूंगा कि मैं वादा खिलाफीको कतई पसंद नहीं करता हूं ।

मुझे तो बस इतनीसी बात परी ही बेहद नाज है कि ये नुश्के , नज्म ,शायरी ,मुक्तक और रूबाइयां ये तमाम अक्ष मेरे रूहानी अल्फाज हैं ।

मेरे जजबात जमाने के जिगर के वास्ते किस हद तक मरहम का काम करने में कामयाब होंगे या कितनी माकूलन सीहत ,कितना शुकुन ,कितनी तसल्ली ,कितनी खुशी दे सकेंगे ये फैसलें भी आने वाले वक्त की आम जबान से हीसुन सकेंगे । इनके वास्ते आज मैं मेरी ओर से कोई भी वक्त मुकर्रर नहीं करने की गुस्तखी नहीं कर सकता हूं ।

मेरी कलम कभी स्ट्रीम कभी डीजल तो कभी इलेक्ट्र्कि टे्र्नों की माफिक अपनी ही बिछाई हुई पटरियों पर वक्त बेवक्त अक्सर चलती ही रही । कभी पटरियों पर ट्रेन तो कभी ट्रेन पर पटरी माजरा कैसा भी रहा हो मगर रफ्तारे सफर बरकरार रही ।

मुनाफे की उम्मीदों में हर रोज घाटा खा-खा कर भी आज दिन तक लगातार चलते रहने का कुदरती मादा इन कदमों में अब तलक कैसे बरकरार है यह होंसला और यह राज बेशक काबिले तारीफ है।

मेरी नज्म की नब्ज देख-देख कर जमाने की बदलती तश्वीरों का अंदाजा मामूली समझदार शख्स की बड़ी आसानीसे लगा सकेंगे । मसलन मेरी कलम कभी मजहबी ईबादत में झुकी रही तो कभी वतन को , कभी खुद के दिल को कामयाबी हासिल कराने में अक्सर मददगार रही ।

मंच के कई फनकारों की निजी डायरियों के किसी न किसी कोने में राजस्थानी हास्य कवि अमृतवाणी के नाम से मेरे फोन नं. व पता आसानी से पढ़ने में आ जाए इस तरह कई डायरियों में उतारे गए हैं ।

राजस्थानी जबान में कई चालीसा काव्य हास्य व्यंग्य रचनाएं एक खण्ड काव्य ;राजस्थानी सुंदर काण्ड.,हिन्दी में कुछ व्यंग्य कविताएं उर्दू में मुक्तक गजल, शायरी, अंग्रेजी में कविताएं और अनमोल वचन आदि कई प्रकार की रचनाओं की रचना करते रहना और उन्हे एक से एक खूबसूरत शक्ल देते रहना मेरा वह पैदाईशी हूनर है जो ताजिंदगी मेरी पीढ़ियों की जिंदगी नवाजता रहेगा ।

मेरा मेहनतकश दिल वो अजिब गुलदस्ता है जिसका एक-एक गुल अपने आपमें जन्नती गुलशन है ।

आइए! आइए! जनाब आप रोज-रोज आते रहिए मेरी इस वेब साईट पर । मुझे पूरा-पूरा यकीन है कि जब-जब भी आप इस चमन में दाखिल होंगे हर बार एक से एक नई खुशबू आपका ऐसा साया बन कर साथ चलेगी कि जिंदगी के मुरझाए हुए तमाम फूलों को कई बरसों तलक तरो ताजा रख सकेंगी ।



अमृत
वाणी








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