-----
बात तो, कभी भी
कुछ भी ना थी,
मैं तो बस यूँ ही
मुस्कुराता रहा,
अपनों को खुश
रखने के लिए
अपने गम
छिपाता रहा।
-----
मेरे अन्दर झांकने वाले
गुम हो गए दो नैन,
कौन सुनेगा,किसको सुनाऊं
कैसे मिले अब चैन।
12.3.10
बात तो कुछ भी ना थी
Posted by गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर
Labels: बात तो कुछ भी ना थी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment