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13.5.10

देश की 196 भाषाओं के साथ कुमाउनीं व गढ़वाली भी खतरे की जद में


भाषाओं को न केवल संवाद का माध्यम वरन संस्कृतियों का संवाहक भी माना जाता है। किसी देश की शक्ति उसकी भाषा की प्राचीनता के साथ ही उसके बोलने वाले लोगों की संख्या से भी आंकी जाती है, लेकिन `ग्लोबलाइजेशन´ के दौर में दुनिया भर की भाषाऐं स्वयं को खोकर अन्य में समाती जा रही हैं। इसमें भी भारत के लिए अधिक चिंताजनक यह है कि गंग...

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2 comments:

अरुणेश मिश्र said...

नवीन भाई ! यह चिन्ता सामयिक है , निराकरण की दिशा मे वातावरण बनाने की आवश्यकता है ।

डॉ. नवीन जोशी said...

धन्यवाद अरुणेश जी,