अचानक शहरयार साहब के कलाम से नये सिरे से रूबरू होने का मौका मिला। समकालीन उर्दू शायरी में शहरयार एक बड़ा नाम हैं। हिंदी पाठकों में भी उनकी मुकम्मल पहचान है। वे अपनी शायरी में सामाजिक विसंगतियों को तो उभारते ही हैं, एक नये समाज का ख्वाब भी देखते हैं। सातवें दशक में उनकी गजलों ने उर्दू शायरी में नयेपन का अहसास कराया था। उनकी गजलें लोगों की जुबान पर आ गयीं थीं। उनका एक शेर आप को याद दिलाता हूं-
सीने में जलन आंखों में तूफान सा क्यूं है
इस शह्र में हर शख्स परीशान सा क्यूं है
पूरा पढ़ें बात-बेबात पर
2.5.10
आईने सब के सब धुंधले हुए
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
BAHUT BADHIYA JI
Post a Comment