प्रजातन्त्र में आ रहे बिगड़ाव को रोकने के लिये संकल्प लेकर अमल करने का समय आ गया हैं
15 अगस्त 2010। याने देश की आजादी की 63 वीं वर्षगांठ। जिसे हम हर साल की तरह हषोZल्लास और पूरे उत्साह के साथ मनायेंगें। आज के दिन हमारे द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधि या हमारी सरकार द्वारा नियुक्त किये गये प्रतिनिधि ध्वजारोहण करते हैं। कल और आज में क्या फर्क आया हैं इस पर विचार करना भी समय की मांग हैं। देश के आजाद होने के बाद ध्वजारोहण करने के लिये खींचीं जाने वाली रस्सी की डोर उन पाक साफ हाथों में हुआ करती थी जिनके दिलों में देश के लिये कुछ कर गुजरने की तमन्ना रहा करती थी। जिन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में बहुत कुछ करके दिखाया था। लेकिन हम धीरे धीरे यह देख रहें कि प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के बदलाव या उन्हें बिगड़ाव कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ,के कारण आज हमसे हमारे प्रतिनिधियों के चुनने में कहीं ना कहीं चूक हो रही हैं। आज सिद्धान्तों और नीतियों पर चलने वाले व्यक्तित्व दर किनार हो जाते हैं और धन बल और बाहुबल के जरिये नेता सत्ता की डोर थाम लेते हैं। जिन हाथों में सत्ता की डोर आ जाती हैं आज उन्हीं हाथों में हमारे राष्ट्रध्वज को फहराने के खींचीं जाने वाली रस्सी की डोर भी उन्हीं हाथों में आ जाती हैं।उन पाक साफ हाथों की तुलना में आज हम कहां आकर खड़े हो गये हैं?इस पर विचार करें तो हमें शर्मसार ही होना पड़ेगा। क्या हमेशा ऐसा ही होता रहेगा? तो इसका जवाब यही है कि नियति का चक्र चलता रहता हैं और बदलाव भी समय के साथ होते रहते हैं। एक बात जरूर हैं कि अच्छे बदलाव के लिये प्रयास करने पड़ते हैं। राजनैतिक दलों के भटकाव, नेताओं की सत्ता के लिये की जाने वाली उछलकूद, चुनावों में धनबल और बाहुबल का जोर और कर बल छल से चुनाव जीतने की लालसा ये ही सभी वो कारण हैं जिनसे प्रजातन्त्र में बिगड़ाव आ रहा हैं और जो थमने का नाम ही नहीं ले रहा हैं। लेकिन इस सब की जड़ में सेाचा जाये तो अन्त में हम ही हैं जो इस सब ताम झाम के प्रभाव में आकर ऐसे लोगों को चुनने की गलती कर बैठते हैं।ृ ृतो आइये अच्छे बदलाव की प्रत्याशा में आज आजादी की 63 वीं वर्षगांठ पर हम यह संकल्प लें कि हम भविष्य में कम से कम ऐसे जनप्रतिनिध चुनने की भूल तो नहीं करेंगें जिनसे ध्वजारोहण ना कराये जाने की ही मांग उठने लगे। साथ ही हमें सत्ता के लिये दिशाहीन हो चुके राजनेताओं को नकारना होगा। यदि हम यह सब कुछ नहीं कर सकते तो फिर बिगड़ाव के लिये किसी दूसरे को दोष देने का अधिकार भी हमें नहीं हैं।
आशुतोष वर्मा
अंबिका सदन16 शास्त्री वार्ड
सिवनी म.प्र.
09425174640
15 अगस्त 2010। याने देश की आजादी की 63 वीं वर्षगांठ। जिसे हम हर साल की तरह हषोZल्लास और पूरे उत्साह के साथ मनायेंगें। आज के दिन हमारे द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधि या हमारी सरकार द्वारा नियुक्त किये गये प्रतिनिधि ध्वजारोहण करते हैं। कल और आज में क्या फर्क आया हैं इस पर विचार करना भी समय की मांग हैं। देश के आजाद होने के बाद ध्वजारोहण करने के लिये खींचीं जाने वाली रस्सी की डोर उन पाक साफ हाथों में हुआ करती थी जिनके दिलों में देश के लिये कुछ कर गुजरने की तमन्ना रहा करती थी। जिन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में बहुत कुछ करके दिखाया था। लेकिन हम धीरे धीरे यह देख रहें कि प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के बदलाव या उन्हें बिगड़ाव कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ,के कारण आज हमसे हमारे प्रतिनिधियों के चुनने में कहीं ना कहीं चूक हो रही हैं। आज सिद्धान्तों और नीतियों पर चलने वाले व्यक्तित्व दर किनार हो जाते हैं और धन बल और बाहुबल के जरिये नेता सत्ता की डोर थाम लेते हैं। जिन हाथों में सत्ता की डोर आ जाती हैं आज उन्हीं हाथों में हमारे राष्ट्रध्वज को फहराने के खींचीं जाने वाली रस्सी की डोर भी उन्हीं हाथों में आ जाती हैं।उन पाक साफ हाथों की तुलना में आज हम कहां आकर खड़े हो गये हैं?इस पर विचार करें तो हमें शर्मसार ही होना पड़ेगा। क्या हमेशा ऐसा ही होता रहेगा? तो इसका जवाब यही है कि नियति का चक्र चलता रहता हैं और बदलाव भी समय के साथ होते रहते हैं। एक बात जरूर हैं कि अच्छे बदलाव के लिये प्रयास करने पड़ते हैं। राजनैतिक दलों के भटकाव, नेताओं की सत्ता के लिये की जाने वाली उछलकूद, चुनावों में धनबल और बाहुबल का जोर और कर बल छल से चुनाव जीतने की लालसा ये ही सभी वो कारण हैं जिनसे प्रजातन्त्र में बिगड़ाव आ रहा हैं और जो थमने का नाम ही नहीं ले रहा हैं। लेकिन इस सब की जड़ में सेाचा जाये तो अन्त में हम ही हैं जो इस सब ताम झाम के प्रभाव में आकर ऐसे लोगों को चुनने की गलती कर बैठते हैं।ृ ृतो आइये अच्छे बदलाव की प्रत्याशा में आज आजादी की 63 वीं वर्षगांठ पर हम यह संकल्प लें कि हम भविष्य में कम से कम ऐसे जनप्रतिनिध चुनने की भूल तो नहीं करेंगें जिनसे ध्वजारोहण ना कराये जाने की ही मांग उठने लगे। साथ ही हमें सत्ता के लिये दिशाहीन हो चुके राजनेताओं को नकारना होगा। यदि हम यह सब कुछ नहीं कर सकते तो फिर बिगड़ाव के लिये किसी दूसरे को दोष देने का अधिकार भी हमें नहीं हैं।
आशुतोष वर्मा
अंबिका सदन16 शास्त्री वार्ड
सिवनी म.प्र.
09425174640
No comments:
Post a Comment