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5.8.10

चीन से तुलना करते हैं आप अपनी....हा...हा....हा....हा....!!


मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
                                                 चीन से तुलना करते हैं आप अपनी....हा...हा....हा....हा....!!
                     इधर देख रहा हूं कि चीन को लेकर बहुत गहमा-गहमी है विचार-जगत में......यानी कि मीडिया जगत में और भारत तो विचार-जगत की दृष्टि से सदा ही सर्वोपरी रहा है...विचार-जगत की इसकी तमाम नदियां सदा-नीरा हैं,सनातन काल से बहती आयी हैं और शायद अनन्त-काल तक बहने वाली हैं...!!हो सकता है,भले उनका जल गंदला गया हो,भले वो एक नाले के रूप में परिणत हों गयीं हों,भले ही उनमें तमाम तरह की गंदगी समा चुकीं  हों,भले ही वो एक सडे हुए नाले की तरह हो चुकीं हों,जिसमें कीचड ही कीचड हो,पानी का कहीं नामो-निशान ही ना दिखायी दे आपको....और यह भी हो सकता है कि ये नदियां आपको धरती पर न भी दिखायी दें मगर आप अगर उसके बहने वाली जगह या उसके आस-पास कई किलोमीटर तक खोदेंगे तो वहीं कहीं बहती हुई पायी जा सकती हैं लेकिन आपको मिलेगी अवश्य....!!
                        असल में हम दार्शनिक भारतीय लोग,जो नहीं है उसका होना साबित करने में उस्ताद हैं.....इसका अर्थ यह भी हुआ कि हम जो हैं,उसे इसे इसी वक्त झूठा साबित करने में भी उस्ताद हुए....सो चीन के मामले में भी हमने यही शुतुर्मुर्गी रवैया अपना रखा है,तो इसमें आश्चर्य ही कैसा...!!!
                     चीन ही क्या,जब हम किसी भी विकसित देश की बात करते हैं तो हमें यह अवश्य ही देखना होता है कि वहां की आम जनता अपने देश के प्रति कैसी है या कितनी होनहार है,क्युंकि सच तो यह है कि नेता भी तो उसी जनता से चुन कर आते हैं....तो नेता का जो चरित्र है वो दर असल जनता का ही चरित्र है और आम जनता से मेरा तात्पर्य सिर्फ़ भूखी-नंगी निम्न-वर्गीय जनता से नहीं है.....जनता का मतलब डाक्टर,इंजीनियर,वकील ,ठेकेदार , अफ़सर,व्यापारी,व्यवसायी,कलाकार....सब ही हैं....और मेरा तात्पर्य अन्तत: इस बात से है कि हम अपने देश के लिये क्या करना चाहते हैं, शब्दों की मौखिक खाना-पूर्ति,जो कि करने में हम उस्ताद हैं ही,या कि सचमुच ही ऐसे कार्य जिससे वाकई हमारी और हमारे देश की कद्र बढे....??चीन ने जो किया है या कोई भी देश जो भी करता है,वह ना सिर्फ़ वहां के शासकों का कच्चा चिठ्ठा होता है बल्कि वहां की जनता का भी रोजनामचा होता है और मुझे यह कहते हुए बडा दुख: होता है कि नेता तो नेता,हम सब भी अपने देश के प्रति ना सिर्फ़ ईमानदार भी नहीं हैं बल्कि रहमदिल भी नहीं हैं....!!
                      हम सब ऐसे हरामी लोग हैं जो अपनी हरामीपन्ती छिपाने के लिए सदा दूसरों की हरामीपन्ती को उघाडते रहते हैं और ना सिर्फ़ इतना ही बल्कि दूसरों को नंगा करने में तुले हुए हम लोग कभी यह सोचते तक नहीं कि हमारे द्वारा नंगा किये जाने वाले व्यक्ति की बिल्कुल एक कापी हैं हम....सो भी गंदी और घटिया नकल....हमें लगता है कि हम बडे अच्छे लोग हैं,किस बिना पर यह मुझे पता नहीं...मगर भ्रष्टाचार करते और उसे बढावा देते हुए हम...बेइमानी करते और चोरों के साथ गलबहियां करते हम....कामचोरी-निठल्लापन करते और औरों को ऐसा करने को उकसावा देते हम...इस प्रकार हर तरह के एकल और सामुहिक कुकर्म-दुष्कर्म करते और दिन-रात ऐसे ही लोगों की संगति में उठते-बैठते हुए हम....मतलब हम तरह-तरह के लोग अपने-आप में एक ऐसी चांडाल-चौकडी हैं,जिन्हे अपने हित,अपने स्वार्थ और अपना-अपना और अपना के सिवा कुछ दिखायी भी नहीं देता...कुछ लोग जो ऐसे नहीं हैं वे बेशक स्तुत्य हैं...मगर समाज उन्हें किनारे किये हुए है,क्योंकि उनकी नज़र समाज को बौना साबित करती है,और समाज के ”हितों" में बाधा भी आती है,सो कुछ करने वाले भले लोगों को तो समाज ने खुद ही सेन्ट्रिंग में डाल रखा है....बाकि के भले लोग ऐसे लोगों का हश्र देख कर खुद का मुंह सिए बैठे हैं...!!
              इस प्रकार समाज अपनी मनमानी करने में व्यस्त है....और इसी समाज से निकले नेता-अफ़सर यानि के समाज के राजनैतिक-सामाजिक नुमाईंदे अपनी मनमानी करने में....यह अव्यक्त पैकेज-डील बरसों से चली जा रही है....और तब तक चलती ही रहेगी....जब तक भारत का तमाम समाज यह ठान नहीं लेता कि उसे अब अपने लिए नहीं बल्कि देश के लिए जीना है....और ऐसा कुछ करते हुए जीते जाना है...जिससे सिर्फ़ अपना खुद का ही लाभ ना हो बल्कि देश का भी हित सधे....बाकि अगर सबके लिए सारा जीवन व्यापार ही है तब तो कुछ किया भी नहीं जा सकता है...तब आने वाले दिनों में यह देश खुद-ब-खुद अपनी मौत मर जायेगा....मगर अगर इसे जिलाये रखना है तो इसे अपनी देश-भक्ति की खुराक तो देनी ही पडेगी...वो भी सुबह-शाम भर नहीं बल्कि हर वक्त....चौबीसों घंटे....!!
                      बोलने में बडा आसान लगता है कि किसी ने यह कर लिया-वह कर लिया....कर तो हम भी सकते हैं मगर अगर सिर्फ़ मूंह खोलने-भर से सब कुछ हो जाया करता तो भारत आज निस्संदेह विश्व का सिरमौर होता.... क्योंकि इसके तो ग्रंथ-पर-ग्रंथ भरे पडे हैं विचारों के,ऐसे सनातन और शाश्वत ग्रन्थ,जिनकी दुहाईयां देते हमारे बुद्धिजीवी अघाते ही नहीं...बिना यह देखे और महसूस किए हुए कि ऐसे पठन-पाठन-श्रव्यन का क्या लाभ...जब आप अपने समाज-राज्य-देश के प्रति नैतिक ही नहीं हो सके....क्योंकि बरसों-बरस भारत की इस ज्ञान-संपदा के बारे में पढता आया हूँ...और इस ज्ञान-संपदा का एक-आध अंश का पठन-पाठन-वाचन श्रवण मैंने भी किया है....मगर उसका वास्तविक परिणाम मुझे भारत के घरातल पर दिखाई ही नहीं देता....जाति-परंपरा जिसका इतना गुणगान किया जाता है...उसका वास्तविक परिणाम सदियों की हमारी गुलामी के रूप में फलीभूत दिखाई देती है...मगर इसका इससे भी विकट परिणाम करोड़ों-करोड़ लोगों द्वारा अपना आत्माभिमान-स्वाभिमान और यहाँ तक कि अपने-अपने चरित्र के "ओरिजिनल''गुणों तक को खो देने में दृष्टिगोचर दिखाई देता है...करोड़ों लोगों द्वारा अपने वास्तविक चरित्र को खो देना अंततः भारत के चरित्र का भी पराभव है,दुखद तो यह है कि यह स्थिति आज तक कायम है...और जब तक ऐसा है भारत का वास्तविक उत्थान दूर-दूर तक संभव नहीं...हाँ सपने अवश्य देखें जा सकते हैं और मीडिया के द्वारा उसे भारत पर प्रत्यारोपित भी किया जा सकता है मगर असल भारत तो आज भी भूखा-नंगा-बदहाल भारत है....और जिनकी तरक्की को लेकर हम इतने उत्फुल्ल हैं...उसके पीछे के सच को सच में ही कोई उजागर कर दे तो......शायद बहुत से बड़े-महान और वैभवशाली लोगों की कलई एकदम से खुल जायेगी....यह है तथ्य....या सच्चाई या जो कहिये..!!
                     तो प्रश्न वहीँ आकर अपने जवाब ढूँढने लगाता है...कि चरित्र के बगैर कैसे आप महाशक्ति बन सकते हो...और चरित्र के बगैर आपकी गरदन सिर्फ ऐंठ के बल पर कितने दिनों तक ऊँची रह सकती है...एक महाशक्ति बनाने जा रहे देश के लाखों-लाख किसान आत्महत्या कर सकते हैं??करोड़ों लोग बेरोजगार...और करोड़ों लोग बीस रुपये पर बेगार खट सकते हैं...??करोड़ों लोग निरक्षर...स्वास्थ्यहीन...गरीबतम...अधिकारविहीन...दो जून का भोजन तक नसीब ना हो पाने वाली स्थिति में मर-मरकर जीने वाले हो सकते हैं....अगर यह सच होने जा रहा है,जैसा कि मीडिया सोचता है...जैसा कि सब्जबाग यह विश्व को दिखता है...तो धरती पर कभी गौरवशाली रह चुके राष्ट्र(????)के लिए इससे ज्यादा भद्दा मज़ाक कोई हो भी सकता है.....???    

5 comments:

K.P.Chauhan said...

priy bandhu aapne bharatvarsh or bhaaratwaasiyon ko jo aainaa dikhaane kaa kaary kiyaa hai wah prshansneey hai ,kyonki ham nithalle ,bhrshtaachaari ,vyaabhichaari ,baatooni ,no,1 ke jhoothee ,ahankaari ,yaani ke koi word or aisaa ho jo ki hamaare ko sushobhit naa kartaa ho to bataao main likh dungaa ,uske baawjood bhi ha swaym ko suparb ki shreni me rakh rahe hai ,apne munh miyaan mitthu bante rahte hain ,kyaa faaydaa ,kabi cheen kaa to kabhi jaapaan ,amerikaa kaa mukaablaa karnaa hamaare naashte me shaamil ho gyaa hai

Unknown said...

Excellent write-up...
Congrats

Aruna Kapoor said...

आपने सच्चाई पर से परदा उठाया है भूतनाथजी!.... कह सकतें है कि किसी जमाने में भारत एक आदर्श राष्ट्र था; लेकिन आज नहीं है!...और फिर चीन से तुलना किसलिए?... सार्थक लेख!

Anonymous said...

gandmare isi desh me bahot se aise deshbhakt haen jo desh ko apna jiwan samarpit kar dete hain par tum sab media walo wo rakhi sawant k scandals se matlab hota hae, aglee bar haramee k sath hum word mat use kareo

Anonymous said...

gandmare isi desh me bahot se aise deshbhakt haen jo desh ko apna jiwan samarpit kar dete hain par tum sab media walo wo rakhi sawant k scandals se matlab hota hae, aglee bar haramee k sath hum word mat use kareo