कविता -
काली ऑंखें
मेरी कालीदह आँखों में गेंद देख
कृष्ण उसमे कूद आये
मैंने गेंद उन्हें वापस कर दी
मेरी आँखों में
अब वे , एक पाँव खड़े
बांसुरी बजाते हैं
आँखों की गेंद
उनकी धुन पर
नाच रही है |
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for and on behalf of-
कृते - सुशीला पुरी
उनकी एक कविता के तर्ज़ पर
विनम्र सम्वैदानिक धृष्टता |
1 comment:
गागर में सागर । बधाई ।
rastogi.jagranjunction.com
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