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6.3.11

उजाले की ख्वाहिश


रविकुमार बाबुल

आज हुयी फिर दस्तक ,
तुम नहीं थे दरीचे पर,
हवा सामने खड़ी थी मेरे,
तुम्हारी खुशबू लिये अंजुरी में अपने।

तुम्हारा होना अब,
सब कुछ हो चला है।
ख्याल तुम्हारा,
ख्वाब तुम्हारा,
और तुम्हें ही पा लेने की ख्वाहिश।

तुम्हें जुगनू बन चमकते देखूं,
तुम्हें ही तारे बन टिमटिमाते,
सच तो यह है,
मेरी जिंदगी के अंधेरे ने,
मान लिया है तुम्हें,
जुगनू या तारा,
अंजुरी भर उजाले की ख्वाहिश में।

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