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4.3.11

ये शाम मस्तानी...




कुछ ज्यादा नहीं कहना हैबस यूँ ही सोच रहा था कि ....

सुबह
होती है शाम होती है,
ज़िन्दगी यूँ ही तमाम होती है

दुआओं का तलबगार...
एम अफसर खान सागर

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