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4.3.11

साधुत्व को राजनीतिज्ञ सन्यासी की चुनौती?

रविकुमार बाबुल
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कह लें या फिर कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह जो जी चाहे। दिग्विजय सिंह जिन्होनें सूबे में मिली कांग्रेस पार्टी को करारी हार के बाद सक्रिय राजनीति से दस साला संन्यास, चुनाव न लडऩे के निर्णय के साथ लिया था, लेकिन राजनीति कहते हैं किस परिन्दे को, इसे राजगढ़ के राजा दिग्विजय सिंह बखूबी जानते भी हैं और समझते भी? अगर ऐसा नहीं होता तो फिर समय-समय पर भ्रष्टाचार, महंगाई और कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठाने या सवाल बन जाने वालों को खुद अपने ही सवालों से नहीं घेरने का दुस्साहस जुटा पाते राजा दिग्विजय सिंह?
जी... जनाब, बहुत मुश्किल है, पार्टी का खासों को आमों के सवालों से बचाये रखना, जबाब देकर नहीं बल्कि उठ रहे सवालों पर ही एक नया सवाल खड़ा करके, जी... आप ही नहीं उनके इस हुनर का कोई भी लोहा मान सकता है? आजकल वह बाबा को व्याकुल किये हुये है, बस बाबा का दुस्साहस इतना भर है कि वह योग और साधुत्व के साथ-साथ चीखने चिल्लाने का वह काम भी करने लग गये हैं, अभी तक जिसका कॉपीराइट मात्र पक्ष-विपक्ष की राजनीतिक पार्टियों के पास ही रहा है? जी... भ्रष्टाचार और काले धन को लेकर जो काम विपक्ष का (सरकार को घेरने का) था और सत्तारूढ़ दल को (अपने तरीके और सहूलियतों के मुताबिक) इससे बचने का। यह काम देखे-बिचारे बगैर बाबा कर बैठे, तब जब राजनीति के इस खेल को मंजे हुये राजनीतिज्ञ खेल रहे है मुट्ठी भर नचनियों-बजनियों को साथ लेकर। ऐसे में अब अधनंगे बाबा भी लंगोट कस चुके हंै, भ्रष्टाचारियों और कालाधन जुटाने और उन पर अय्याशी करने वालों को नंगा करने के लिये, तब सवाल तो खड़ा होना ही था? जी... यही असल वजह है कि जब मतदाता उंगली पर तिलक लगा कर ठेठ राम के नाम पर सरकार बना बैठने का दुस्साहस जुटा लेता है, तब फिर भगवा धारण किये बाबा भ्रष्टाचार और काला धन के मामले में जो गुना-भाग, योग के बहाने लगा रहे है, उसका योग सत्ता को मनमुताबिक चलने की हैसियत देने से भी गुरेज नहीं करेगा, तब ऐसे में एक देश में दो देश की-सी अवधारणा भी बनी रहे और कमजोर नहीं मजबूर प्रधानमंत्री कांग्रेस के नेतृत्व में मजबूती के साथ सरकार चलाते भी रहे इसके लिये किसी को तो आगे आना ही था, और यह साहस जुटाया दिग्विजय ने बाबा को घेरकर?
जी..., दस साल के राजनीतिक सन्यास के बावजूद उन्होंने अपने अन्दर के राजनीतिज्ञ को सदैव हवा दे रखा है, उन्होंने बाटला मुठभेड़ को ही फर्जी करार दिया, क्राइम एक्सपर्ट की तर्ज पर गोली कहां और क्यों लगी, जैसे सवाल उठा कर? इसके बाद नक्सल ऑपरेशन का ऑपरेशन भी पी. चिदम्बरम को उनकी हैसियत का एहसास करवाकर कर दिया। उन्होंने पाक के नापाक साजिश में मुम्बई में शहीद हुये करकरे को सवालों में ला खड़ा किया तो आर.एस.एस. को मुम्बई घटना के साजिश से जोडऩे के तथाकथित दावे वाली पुस्तक के बहाने मुल्क को एक नई तालीम देने का दुस्साहस भी जुटाया? जी... कुछ ऐसी ही है दिग्विजय सिंह की राजनीतिक तस्वीर। राजा के बयानों पर बाबा जितनी भी कोफ्त करें लेकिन मदाम ने आज ऐलान की गई अपनी पार्टी की वर्किंग कमेटी में राजा का ओहदा और रुतबा बरकरार रखा है।
जी... जनाब दिग्विजय सिंह ने बाबा को घेर कर, भले ही भ्रष्टाचार और कालाधन पर दिन-प्रतिदिन उनके मुखर हो रहे स्वर को दबाने का साहस जुटा लिया है, लेकिन उनके इस कार्यवाही के बाद कांग्रेस के भीतर भी एक धड़ा नाखुश दिख रहा है, वह इस जुर्रत को कांग्रेस के लिये ही आत्मघाती बतला रहा है? इसी धड़े का मानना है कि बाबा योग के बहाने बयानी तीर ही तरकश से निकाल रहे थे, न वह सक्रिय राजनीति में आये है और न ही उन्होंनें कोई पार्टी बनायी है, ऐसे में अगर योग गुरु गुरूमूर्ति की राह चल पड़ते है तो मुश्किले कांग्रेस के सामने खड़ी होना तय है।
जी... जनाब होशियारी और तैयारी के साथ राजनैतिक हमले करने में पारंगत दिग्विजय सिंह ने न सिर्फ बाबा रामदेव से उनकी सम्पति का ब्यौरा मांगा बल्कि ब्यौरा सामने आने पर उन्होंने कालाधन दान में न लेने की बात कहने की चुनौती भी दे डाली। ऐसे में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने राष्ट्रपति से लेकर सी.बी.आई तक से बाबा की सम्पत्ति की जांच की मांग उठा दी। यह संयोग उतना मामूली नहीं है जितनी आसानी से मुल्क के बजीर-ए-खजाना के लिये आयकर में मामूली रियायत देकर उससे कई गुणा अधिक जेब काटने की तैयारी की घोषणा मजबूर प्रधानमंत्री के हाथों मिले पानी भरे गिलास के दो घूंट हलक में उतार कर दी?
जी... जनाब, पांच राज्यों के मतदाता प्रणव दा ही नहीं दिग्विजय सिंह को दिखला देगें कि उनकी हैसियत है आखिर क्या, इस मुल्क में ? हमारा नेता कैसा हो... जैसे नारे के थमने का इंतजार तो कीजिये बाबू मोशाय?

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