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13.3.11

कहीं यह भाजपा नेता पलाड़ा को फंसाने की साजिश तो नहीं?

आखिर आशंका सही निकली। धूम-फिर कर किशनगढ़ के कांगे्रस विधायक नाथूराम सिनोदिया के पुत्र भंवर सिनोदिया की हत्या के मुख्य आरोपी बलवाराम को भाजपा का कार्यकर्ता बताए जाने के बाद भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा को फंसाये जाने की कोशिश के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। हत्या किसने करवाई और असली आरोपी कौन है, यह तो निश्चित रूप से कोर्ट तय करेगा। यहां तक कि पुलिस ने अभी तक जिन को आरोपी माना है, उनका आरोप भी कोर्ट में सिद्ध किया जाना है, लेकिन एकबारगी भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा का नाम उछाले जाने के बाद यह मामला अब व्यक्तिगत रंजिश की बजाय राजनीतिक रंजिश का रूप लेता दिखाई दे रहा है। ऐसे में यह मामला न केवल कांग्रेस वर्सेज भाजपा और बल्कि जाट वर्सेज राजपूत होता जा रहा है। राजपूत समाज के अनेक नेताओं ने तो बाकायदा आरोप को झूठा बता कर पलाड़ा को फंसाए जाने को बर्दाश्त न किए जाने की चेतावनी तक दे दी है।
हत्या के मामले की जांच कर रही एसओजी के लिए सबसे गुत्थी ये है कि हालांकि अंत्येष्टि के दिन राज्य के वन मंत्री रामलाल जाट ने पलाड़ा की ओर इशारा किया और तीसरे दिन मृतक भंवर सिनोदिया की पत्नी ने भी पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के सामने उन्हीं का नाम लिया, लेकिन अहम सवाल ये है कि यदि मृतक के परिजन को आशंका थी कि इस हत्या में पलाड़ा का हाथ है तो उन्होंने त्वरित दर्ज एफआईआर में उनके नाम पर आशंका जाहिर क्यों नहीं की? जहां तक जाट के बयान का सवाल है, उसकी अहमियत इसलिए ज्यादा नहीं है, क्योंकि एक तो वे कांग्रेस सरकार के प्रतिनिधि होते हुए भाजपा नेता पर आरोप लगा रहे हैं। दूसरा ये कि वे जाट समाज के हैं और आरोप राजपूत नेता पर लगाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त वे आरोपी पक्ष के परिजन नहीं हैं। सरकार के मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद होते हुए इस हाईप्रोफाइल मर्डर के बारे में अपने सूत्रों से अगर उनकी जानकारी में पलाड़ा के शामिल होने की बात आ चुकी थी तो उन्होंने एफआईआर दर्ज होते समय पलाड़ा का नाम भी दर्ज करवाने का सुझाव क्यों नहीं दिया? कदाचित इसी वजह से मीडिया ने उनके बयान को कोई महत्व नहीं दिया। रहा सवाल मृतक की पत्नी के बयान का तो वह यूं तो बहुत महत्व रखता है, उसे हल्का नहीं माना जा सकता, लेकिन उन्होंने वह घटना के तीसरे दिन विपक्ष की नेता श्रीमती वसुंधरा के सामने दिया। इससे पहले मृतक भंवर सिनोदिया व उनकी पत्नी ने अगर पलाड़ा द्वारा धमकी दिए जाने की जानकारी दे दी गई होती तो कदाचित यह वारदात होती ही नहीं। अगर हो भी गई तो मृतक की पत्नी कम से कम अपने ससुर विधायक नाथूराम सिनोदिया को तो धमकी वाली बात शेयर कर देतीं, ताकि वे उसे एफआईआर में दर्ज करवा देते। जाहिर तौर पर एसओजी उनके बयान को भी जांच का आधार बनाएगी, लेकिन बयान दिए जाने के अंतराल पर भी गौर किया जाएगा। बहरहाल, अगर मृतक की पत्नी का आरोप सही भी है तो वह धमकी दिए जाने के समय की काल डिटेल से साफ हो जाएगा।
किसके दबाव में पेरोल दिया प्रीता भार्गव ने?
जहां तक जेल अधीक्षक प्रीता भार्गव के इस मामले में निलंबन का सवाल है तो यह साफ है कि इस मामले के एक आरोपी सुपारी किलर शहजाद के पेरोल आवेदन को जब निचली अदालत और हाईकोर्ट खारिज कर चुके थे तो जेल उन्होंने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए उसका पेरोल मंजूर करने के कारण हुआ है। सरकार ने भले ही प्रीता भार्गव को निलंबित कर कड़ी कार्यवाही किए जाने का संदेश दिया है, लेकिन इससे केवल यही तो सिद्ध हो रहा है कि उन्हें ऐसे अपराधी के प्रति अतिरिक्त सहानुभूति रखने की गलती क्यों की? इससे यह तो सिद्ध नहीं हो रहा कि उन्होंने भंवर सिनोदिया की हत्या करने के लिए शहजाद को पेरोल पर छोड़ा। वैसे चर्चा ये है कि शहजाद को पेरोल पर छोडऩे की सिफारिश किसी कांग्रेस नेता ने की थी। एसओजी के लिए यह जांच का गहन विषय है। अगर जांच में यह तथ्य सामने आ जाता है कि पेरोल दिलवाने में किसी कांग्रेसी नेता का हाथ था तो यह मामला कुछ और रंग ले आएगा।
भाजपाइयों की सिट्टी-पिट्टी गुम
जैसे ही पलाड़ा का नाम हत्या के मामले में उछला है, भाजपाइयों की तो सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो गई है। सबसे ज्यादा ऑक्वर्ड पोजीशन तो पूर्व मुख्यमंत्री वसुुधरा राजे की हुई, जिनके मुंह पर ही मृतक की पत्नी ने पलाड़ा पर आरोप लगा दिया। वो तो गनीमत है कि विधानसभा में भाजपा विधायकों ने इस मामले को लेकर पुलिस की नाकामी पर हंगामा कर दिया था, इस कारण उन्हें यह कहने का मौका मिल गया कि वे तो शुरू से उनके साथ हैं। रहा सवाल स्थानीय भाजपाइयों का, उन्होंने भी एकजुट हो कर हत्यारों को गिरफ्तार करने की मांग कर डाली, लेकिन जैसे ही तस्वीर का रुख थोड़ा बदलता दिखा, वे चुप्पी साध गए हैं। वैसे भी स्थानीय भाजपा नेता पलाड़ा का कितना साथ दे रहे हैं, यह सबको पता है। प्रदेश में कांग्रेस सरकार व ब्यूरोक्रेसी के बोलबाले से काफी लंबे समय से पलाड़ा अकेले भिड़ रहे हैं, बाकी सारे भाजपाई तो अजमेरीलाल ही बने बैठे हैं। सभी भाजपाई मिट्टी के माधो बन कर ऐसे तमाशा देखते रहे हैं, मानो उनका पलाड़ा और जिला प्रमुख सुशील कंवर पलाड़ा से कोई लेना-देना ही नहीं है। वे शिक्षा मंत्री व जिला परिषद की सीईओ शिल्पा से चल रही खींचतान को एक तमाशे के रूप में देखते रहे हैं। हर छोटे-मोटे मुद्दे पर अखबारों में विज्ञप्तियां छपवाने वाले शहर व देहात जिला इकाई के पदाधिकारियों के मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला कि प्रदेश की कांगे्रस सरकार राजनीतिक द्वेषता की वजह से जिला प्रमुख के कामकाज में टांग अड़ा रही है। ऐसे में भला पलाड़ा यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि भाजपाई साथ देंगे।
.गिरधर तेजवानी, अजमेर

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