सपने में भी रोकती है बेटियाँ....!!
एक बिटिया दस वर्ष की हो गयी है मेरी
और दूसरी भी पांच के करीब....
कभी-कभी तो सपने में ब्याह देता हूँ उन्हें
और सपने में ही जब
जाता हूँ अपनी किसी भी बेटी के घर....
तो मेरे सीने से कसकर लिपट कर
खूब-खूब-खूब रोती हैं बेटियाँ....
मुझसे करती हैं वो
खूब-खूब-खूब सारी बातें....
अपने घर के बारे में
माँ के बारे में और
मोहल्ले के बारे में...
और तो और कभी-कभी तो
ऐसी-ऐसी बातें पूछ डालती हैं
कि छलछला जाती हैं अनायास ही आँखे
और जीभ चुप हो जाती है बेचारी...
पता नहीं कितने तो प्यार से
और पता नहीं कितना तो.....
खाना खिलाये जाती हैं वो मुझे....
और जब चलने लगता हूँ मैं
वापस उनके यहाँ से....
तो एक बार फिर-फिर से...
खूब-खूब-खूब रोने लगती हैं बेटियाँ
कहती हैं पापा रुक जाओ ना....
थोड़ी देर और रुक जाते ना पापा....
कुछ दिन रुक जाते ना पापा....
पापा रुक जाओ ना प्लीज़...
हालांकि जानती हैं हैं वो
कि नहीं रुक सकते हैं पापा.....
मगर उनकी आँखे रोये चली जाती हैं....
और पापा की आँख सपने से खुल जाती है....
देखता हूँ....बगल में सोयी हुई बेटियों को....
छलछला जाता हूँ भीतर कहीं गहरे तक...
चूम लेता हूँ उनका मस्तक....
देखता हूँ....सोचता हूँ...बहता हूँ....
2 comments:
aapki kavita itni sachchi lagi ki aakh me aasu aagye
bahut hi achchi rachna hai
behad khoobsoorat kavita
dil ki gahraiyon tak chho gayee
bahut khoob aapke fan ho gaye aaj se
likhte rahiye
waaaaah......waaaaah
taimur
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