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4.2.12

[भक्ति-अर्णव ]-मैया बार बार आ !




शेरावाली शेर पर सवार होकर आ ;
हाथों में शंख -तलवार लेकर आ;
दुष्टों का करने संहार माता आ ;
भक्तों के खाली भंडार भरने  आ ;
एक बार आ मैया बार बार आ !

दुर्गा रूप में दुर्गम संकट को हरने वाली ;
चंडी रूप में दुष्टों का मर्दन करने वाली ;
तू रमा ,उमा ,ब्रहमाणी  का रूप धर कर आ !
एक बार .......
अपनी माया से माता दुष्टों की प्रज्ञा हरती ;
ये देवी सब भक्तों की बुद्धि प्रकाशित करती ;
तू गौरी;काली;शर्वाणी का रूप धर कर  आ !
एक बार ........
हे ईशा !हम भक्तों को इस भव सागर से तार ;
सुन ले अब जगदम्बा हम सबकी करुण  पुकार;
तू शिवा,जया और भीमा का रूप धर कर आ !
एक बार आ .......................
                                            जय माता दी !
                                         शिखा कौशिक 
                            [भक्ति-अर्णव ]


3 comments:

Shri Sitaram Rasoi said...

मैया का भजन अच्छा है।

Shri Sitaram Rasoi said...

मैया का भजन अच्छा है।

Shri Sitaram Rasoi said...

मैया का भजन अच्छा है।