बात 29 दिसंबर 2011
की है...देहरादून से रात को काठगोदाम जाने वाली काठगोदाम-देहरादून एक्सप्रेस 12
घंटे लेट थी तो ट्रेन सुबह करीब साढ़े 11 बजे देहारादून से काठगोदाम के लिए चली।
बाहर कोहरा था तो ट्रेन धीरे धीरे रूकते रुकाते अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही थी। ट्रेन
में पेंट्री नहीं थी ऐसे में जहां जहां ट्रेन रुकती वहां वहां यात्रियों को
चाय-नाश्ता बेचने के लिए कुछ लोग ट्रेन में चढ़ जाते और ट्रेन चलते ही उतर रहे थे।
मैं ट्रेन के बी-1 कोच में अपने भांजे के साथ यात्रा कर रहा था।
ट्रेन रामपुर
स्टेशन से बस चली ही थी कि हाथ में गर्म चाय की केतली लिए एक युवक जिसकी उम्र करीब
30 वर्ष रही होगी हमारी बोगी से बड़ी तेजी से बाहर निकल रहा था उसके चेहरे पर डर
साफ दिखाई दे रहा था। युवक के पीछे एक पुलिसकर्मी जिसकी उम्र भी करीब 30 वर्ष के
आस पास होगी भी तेजी से हमारी बोगी से बाहर निकला। चाय वाले को देखकर
चाय लेने मैं भी बोगी से बाहर निकला था तो वहां का नजारा कुछ इस तरह था। ट्रेन के दरवाजे
के पास पुलिसकर्मी चाय वाले युवक को ट्रेन में चढ़ने पर डपट रहा था और युवक से
पूछताछ कर रहा था और उसने उसका परिचय पत्र मांगा। मैंने इसे नजरअंदाज करते हुए
युवक से दो ग्लास चाय की मांगी तो वो युवक पुलिसकर्मी के सामने चाय देने से घबराने
लगा। हालांकि उसने मुझे दो ग्लास चाय दे दी लेकिन इतने में वो पुलिसकर्मी उस युवक
का परिचय पत्र लेकर युवक से ये कहते हुए आगे निकल गया कि तू मुझे आगे आकर मिल। कुल
मिलाकर पुलिसकर्मी को चाय वाले युवक से पैसे ऐंठने का बहाना मिल गया था।
खैर मैं चाय लेकर अपनी
सीट पर पहुंच गया। करीब 5 मिनट बाद वो चाय वाला युवक वापस हमारी बोगी में आया और
चाय बेचने लगा इस बार उसके चेहरे पर कोई डर नहीं था और वो बड़े इत्मीनान से
यात्रियों को चाय देने लगा। इस 5 मिनट में चाय वाले युवक के साथ क्या हुआ होगा ये
सारा माजरा मेरे समझ में आ गया था लेकिन फिर भी मैं युवक से पूछे बिना नहीं रह
पाया। मैंने युवक को आवाज देकर बुलाया और उससे पूछा कि वह पुलिसकर्मी उससे क्या
बोल रहा था तो वो पुलिसकर्मी को गाली देते हुए बोला कि साहब- ये तो हमारे साथ रोज
ट्रेन में होता है हम दो पैसे कमाने के लिए ट्रेन में चाय बेचने के लिए आते हैं
लेकिन मौका मिलते ही ये पुलिस वाले हमें परेशान करते हैं और पैसे वसूलते हैं। आज
भी वही हुआ और वो हमसे पैसे मांगने लगा...हम भी क्या करते पैसे देने पड़े। वो बोला
कि पुलिसकर्मी को पैसे दिए बगैर चाय बेचेंगे तो पुलिस वाला कहता है कि ये गलत है लेकिन
उसको पैसे दे दिए तो सब सही हो जाता है। मैंने पूछा कि ये कितने पैसे मांगते हैं
तो उसने जो बोला वो चौंकाने वाला था। वो बोला साहब- ये लोग तो पांच सौ रूपए तक
मांगते हैं लेकिन 20-30 रूपए में भी मान जाते हैं। इतनी देर में किसी ने चाय के
लिए आवाज दी तो वो चाय देने चला गया।
मैं काफी देर तक
बैठकर इस बारे में सोचता रहा वाकई में पुलिस वालों के लिए जो कहा जाता है कि ये
सिर्फ कमाई करना जानते हैं और कुछ नहीं(सभी पुलिसकर्मी नहीं)। ट्रेन में हैं तो ये
यात्रियों की सुरक्षा के लिए तैनात लेकिन इनकी नजर ऐसे ही चाय वालों पर या लोगों
पर रहती है जिनसे मौका मिलते ही ये वसूली शुरु कर देते हैं। मैंने एक हिसाब लगाया कि
देहरादून से काठगोदाम तक 336 किलोमीटर के सफर में ट्रेन करीब डेढ़ दर्जन स्टेशनों
पर रूकती है। यानि की अगर इस दौरान एक पुलिसकर्मी के हाथ ऐसे 20 चाय वाले भी लग गए
और हर चाय वाले से वो कम से कम 30 रूपए भी लेता है तो पुलिसकर्मी करीब 600 रूपए
कमा लेता है यानि कि 18 हजार रूपए महीना। हर माह सरकार जो तन्खवाह देगी वो अलग। जब
एक पुलिसकर्मी को सैलरी के अलावा करीब 15 से 20 हजार रूपए महीने इस तरह कमाई हो
रही हो तो वो भला क्यों ये काम नहीं करेगा(सभी पुलिसकर्मी शामिल नहीं)। अब ट्रेन
में यात्रियों का सामान चोरी हो रहा है तो हो जाए...लेकिन इन पुलिसकर्मियों को इससे
कोई सरोकार नहीं। खैर ये तो एक छोटा सी घटना थी जो मेरे सामने घटी...इस तरह की
हजारों वाक्ये रोज होते हैं जो शायद आपने भी अनुभव किए होंगे।
अंदाजा लगाया जा
सकता है कि पुलिसकर्मी कितनी ईमानदारी से अपनी ड्यूटी को अंजाम देते हैं...माना कि
चाय वाला भी गलत तरीके से चाय बेच रहा था लेकिन अगर पुलिसकर्मी उसके खिलाफ
कार्रवाई करें तो मजाल है कि आगे से कोई चाय वाला इस चरह बगैर लायसेंस के ट्रेन
में चाय बेचने के लिए घुसे लेकिन अगर चाय वाले कि हर बार इतनी हिम्मत होती है तो
वो इन पुलिसकर्मियों की वजह से ही क्योंकि वे जानते हैं कि 20-30 रूपए में ये
पुलिसवाले मान जाएंगे और वे आसानी से बिना रोकटोक ट्रेन में चाय बेच पाएंगे...लेकिन
अफसोस हमारे देश में ऐसा होता नहीं है। यहां चोरी करने वाले को पकड़े जाने का डर
नहीं क्योंकि उसे मालूम है कि पहले तो पकड़ने वाला ही उसे चंद पैसों पर उसे छोड़
देगा। ये पुलिसकर्मी अगर इमानदारी से अपनी ड्यूटी करें तो क्या नहीं कम होंगे
हमारे देश में अपराध..? जाहिर है पूरी तरह अपराधों पर
अंकुश नहीं भी लग पाएगा तो कुछ हद तक अपराध और अपराधियों पर लगाम तो कसेगी लेकिन
हमारे देश में जहां नीचे से ऊपर तक सब भ्रष्टाचार में लिप्त हैं वहां ये मुमकिन
नहीं लगता।
deepaktiwari555@gmail.com
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