विवेक दत्त मथुरिया
रघुराम राजन को जिस तरह सनसनी स्वामी द्वारा जिस तरह आहत किया गया है, यह सरकार की असहिष्णुता का जीवंत प्रमाण है। वही देश के अकादमिक संस्थानों में नाख्वादा लोगों की नियुक्ति कर सरकार एक तरह से तानाशाही का परिचय दे रही है। सरकार और उसके मुंह लगे। लोग सिरफिरों जैसी हरकत कर अकादमिक संस्थानों का सत्यानाश करने पर आमादा हैं। मोदी सरकार का सत्तामद चरम पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह नहीं भूलना चाहिए कि यही सत्तामद कांग्रेस के सत्यानाश का कारण बना। एक अर्थशास्त्री के तौर पर रघुराम राजन ने अपनी योग्यता का परिचय दिया, वह उनकी गंभीरता और समझ को दर्शाता है।
अब देश की अर्थ व्यवस्था को लेकर खतरे का अंदेशा बढ़ गया है। क्योंकि सितंबर में आरबीआई गवर्नर के रूप में जिस आदमी को बैठाया जाएगा, निश्चित तौर पर वह देश की आर्थिक हकीकत को समझने की बजाय सरकार की कठपुतली से ज्यादा कुछ नहीं होगा। अपने मूल चरित्र में मोदी सरकार कॉरपोरेट जमात की हितैषी, हमदर्द और मुखर पैरोकार है। दूसरी बड़ी बात यह भी है कि मोदी सरकार अमेरिका से अपनी दोस्ती का फर्ज भी निभाना है और इस दोस्ती की फर्ज अदायगी के लिए यह जरूरी है कि अमेरिका निर्देशित आर्थिक सुधारों को 4जी स्पीड से लागू किया जा सके। इन सुधारों का सीधा लाभ जनता की बजाय बाजार को मिलेगा। और उसमें भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से जो लंबे समय से देश को लूट रही हैं। रघुराम राजन ने जिस भारी मन से दूसरे कार्यकाल के,लिए मना किया है, वह इस बात की भी तस्दीक हैं कि देश की जरूरतों के हिसाब से उसका येग्यता का कोई लेना देना नहीं है।
मानव संसाधन मंत्री के रूप में स्मृति ईरानी की नियुक्त हो या फिल्म इंस्टीट्यूट के चेयरमैन पद पर गजेंद्र चौहान की नियुक्ति, सेंसर बोर्ड के मुखिया के रूप पहलाज निहजाली और अब नेशनल फैशन इंस्टीटयूट के चेयरमैन के रूप में क्रिकेटर चेतन चौहान की नियुक्ति सरकार की हठधर्मिता के जीवंत प्रमाण हैं। रघुराम राजन प्रकरण पर नोबेल विजेता विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने भी गहरा अफसोस जाहिर किया है। सरकार ने सुब्रहमण्यम स्वामी को आगे कर पीछे से निशाना साधा है। रघुराम राजन के साथ टकराव की वजह देश की कॉरपोरेट जमात को माना जा रहा है। देखने और समझने वाली बात यह इस टकराव की शुरुआत विजय माल्या के भाग जाने के बाद शुरु हुई है। क्योंकि माल्या के जाने के बाद राजन ने कॉरपोरेट कर्जदारों को लेकर सख्त रुख अख्तियार कर लिया जो बड़े कर्जदारों को सुहा नहीं रहा और सरकार बेचैन हो उठी और स्वामी को मिशन पर लगा दिया। खैर, पर राजन के जाने के बाद यह आशंका बलवती हो रही है कि सरकार का कॉरपोरेट मोह कहीं,देश किसी बड़े आर्थिक संकट में न फंसा दे।
vivek dutt mathuriya
journalistvivekdutt74@gmail.com
19.6.16
सरकार की असहिष्णुता के शिकार हुए राजन
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