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31.8.19

अडानी का नाम आते ही कहां चला जाता है मोदी का राष्ट्रवाद?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में ऐसा मायाजाल फैला रखा है कि लोग सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने घूम रहे हैं। देश में रोजी-रोटी का बड़ा संकट पैदा हो गया है। अर्थव्यवस्था पूरी तरह से गड़बड़ा गई है। बेरोजगारी के मामले में मोदी सरकार ने पिछली सभी सरकारों को पीछे छोड़ दिया है। नौबत यहां तक आ गई है कि सरकार ने रिजर्व बैंक का रिजर्व पैसा 1.76 हजार करोड़ रुपये भी निकाल लिया है। निजीकरण के नाम पर देश के संसाधनों को लूटवाने की तैयारी सरकार ने पूरी कर ली है। रेलवे यहां तक रक्षा विभाग भी संकट में है। आर्डिनेस फैक्टरी में 45 हजार कर्मचारियों ने आंदोलन छेड़ रखा है। निजी कंपनियों में बड़े स्तर पर छंटनी का दौर चल रहा है। प्रधानमंत्री ने लोगों को भावनात्मक मुद्दों में उलझा रखा है। गिने-चुने विरोधियों पर शिकंजा कसकर भ्रष्टाचार को मिटाने की बात की जा रही है। जबकि न केवल सरकार में शामिल बल्कि दूसरी पार्टियों से आकर मोदी और शाह के सामने आत्मसमर्पण करने वाले नेताओं को संरक्षण दे दिया जा रहा है। जनता को देशभक्ति का उपदेश दिया जा रहा है और अपने करीबियों को सरकारी संसाधनों को दोनों हाथों से लूटवाया जा रहा है। वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी अपने हर करीबी को संरक्षण दे रहे पर अडानी ग्रुप पर तो जैसे सब कुछ लुटाने को तैयार हैं।

यही कारण है कि अडानी ग्रुप को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आंख मंूदकर साथ देना का आरोप समय-समय पर लगता रहा है। वह भी तब जब यह ग्रीप 100 फीसद लाभ में जा रहा है। मोदी सरकार ने रिजर्व बैंक के रिजर्व 1.76 लाख करोड़ रुपये भी ले लियें। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब अडानी ग्रुप 100 फीसद मुनाफा कमा रहा है और उनके मित्र के प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए देश आर्थिक संकट में है तो फिर बैंकों से लिया हुआ कर्ज वापस क्यों नहीं करता ? या फिर दूसरे उद्योगपतियों पर जो 5 लाख करोड़ का कर्ज है वह क्यों नहीं लिया जा रहा है। या फिर जो 2 लाख करोड़ का कर्ज एनपीए में डाल दिया गया है उसको लेने के प्रयास क्यों नहीं हो रहा है। इसका मतलब है कि ये सब लोग मोदी सरकार के करीबी हैं। इनके कारोबार फलते-फूलते रहें देश जाए भाड़ में ?

बात यहां ही आकर नहीं रुक जाती है। प्रधानमंत्री के प्रभाव के चलते अडानी ग्रुप का टैक्स चोरी और हेराफेरी के मामले में बड़ा बचाव किया गया है। दरअसल खबरें आ रही हैं कि राजस्व विभाग ने अडानी ग्रुप द्वारा की गई टैक्स चोरी और हेराफेरी पर रोक लगा दी है।  तो यह माना जाए कि अडानी ग्रुप ने चुनाव प्रचार में मोदी का खर्चा उठाकर जो मेहरबानी उन पर की थी मोदी उसकी बदला उतार रहे हैं। तो क्या यह बदला देशहित को ताक पर रखकर उतारा जाएगा ?

कर चोरी के मामले में अडानी ग्रुप के खिलाफ चल रही कार्यवाही पर यह रोक राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने लगाई है। डीआरआई के अतिरिक्त महानिदेशक के वी एस सिंह ने इससे संबंधित एक आदेश जारी कर अडाणी ग्रुप के खिलाफ चल रही जांच को रोकने का बाकायदा निर्देश जारी किया है।

दरअसल अडाणी के फर्मांे पर कथित रूप से आयात किए गए वस्तुओं के मूल्य में हेराफेरी करने और कम टैक्स अदा कर सरकारी खजाने को राजस्व नुकसान पहुंचाने का आरोप है। एक ओर मोदी सरकार आर्थिक संकट का रोना रो रही है वहीं दूसरी ओर अडानी के कालेकार नामों पर पर्दा डाकर सरकारी राजस्व को पलीता लगाया जा रहा है। अडानी ग्रुप पर राजस्व चोरी का गंभीर आरोप है। इस ग्रुप पर बिजली और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए आयात किए गए सामानों का कुल मूल्य बढ़ाकर 3974.12 करोड़ रुपये घोषित करने और उस पर शून्य या कम 5 फीसद से कम टैक्स देने के आरोप हैं।

राजस्व खुफिया निदेशालय के मुंबई क्षेत्राधिकार के एडीजी के वी एस सिंह ने 280 पन्नों की अपनी रिपोर्ट में 22 अगस्त को लिखा है, मैं विभाग के उस मामले से सहमत नहीं हूं, जिसमें कहा गया है कि एपीएमएल (अडानी पावर महाराष्ट्र लिमिटेड) और एपीआरएल (अडानी पावर राजस्थान लिमिटेड) ने अपनी संबंधित इकाई यानी ईआईएफ (इलेक्ट्रॉजन इन्फ्रा होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड) को कथित विवादित सामान आयातित मूल्य से अधिक अधिक मूल्य पर दिया है।

सूत्रों के मुताबिक, सिंह ने जो आदेश पास किया है उसकी समीक्षा 30 दिनों के अंदर मुंबई और अहमदाबाद के चीफ कस्टम कमिश्नर्स की एक कमेटी के करने की बातें सामने आ रही हैं। इस प्रक्रिया में राजस्व खुफिया निदेशालय की कोई भूमिका नहीं होगी। अगर इनकी जांच डीआरआई के खिलाफ जाती है तो डीआरआई उस फैसले के खिलाफ सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज एंड कस्टम्स के लीगल मेंबर का दरवाजा खट-खटा सकती है।

ऐसा प्रश्न उठता है कि जब केंद्र सरकार ने देश की लगभग सभी संवैधानिक संस्थाओं को पंगू बनाकर रखा हुआ है। जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को लालच देकर या डराकर मनमुताबिक काम कराया जा रहा है तो ऐसे में अडानी के खिलाफ निष्पक्ष जांच कैसे हो पाएगी ?

ज्ञात हो कि वर्ष 2014 में ही इंडियन एक्सप्रेस में एक खबर छपी थी कि आयातित वस्तुओं का मूल्य अधिक दिखाने और कर चोरी के मामले में डीआरआई ने अडानी ग्रुप को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। इसके बाद ब्रिटिश अखबार 'द गॉर्डियनÓ ने भी छापा था कि भारतीय कस्टम विभाग के डॉयरेक्टरेट ऑफ रेवन्यू इंटलीजेंस (डीआरआई) ने मशहूर कारोबारी घराने अडानी समूह पर फर्जी बिल बनाकर करीब 1500 करोड़ रुपये टैक्स हैवेन (टैक्स चोरों के स्वर्ग) देश में भेजने का आरोप लगाया है। गॉर्डियन के पास मौजूद डीआरआई के दस्तावेज के अनुसार अडानी समूह ने महाराष्ट्र की एक बिजली परियोजना के लिए शून्य या बहुत कम ड्यूटी वाले सामानों का निर्यात किया और उनका दाम वास्तविक मूल्य से कई गुना बढ़ाकर दिखाया ताकि बैंकों से कर्ज में लिया गया पैसा विदेश भेजा जा सके।

आस्था के नाम पर प्रोपगेंडा करने वाले तथा हमेशा गरीब और कमजोर के नाम पर सहानुभूति बटोरने वाले प्रधानमंत्री ने अपने मित्र अडानी को दंतेवाड़ा की बैलाडीला पहाड़ी पर स्थित डिपॉजिट नंबर 13  खनन के लिए दे दिया। वह भी तब जब आदिवासी इस पहाड़ी को अपना देवता मानते हैं। प्रकृति को पूजने वाले इन आदिवासियों ने बड़े स्तर पर आंदोलन किया। हजारों की संख्या में पहुंचे आदिवासियो 7 दिन और 6 रातों तक किरंदुल और बचेली खदान के सामने डटकर इस अत्याचार का मुकाबला किया और चल रहे काम को पूरी तरह से ठप कर दिया। भारी बरसात के बीच कई आदिवासी बीमार भी हुए पर  उन्होंने हार नहीं मानी। आदिवासियों की मांग सिर्फ ये थी कि बैलाडीला की डिपॉजिट नंबर 13 की खदान में उनके देवता हैं, नंदराज पर्वत उनकी आस्था का केंद्र है, लिहाजा यहां खनन न हो और ठेका निरस्त किया जाए। आदिवासियों के आंदोलन को लेकर जब देश में हड़कंप मच गया तब जकर आंदोलन के 7वें दिन प्रशासन की टीम ने मौके पर पहुंचकर अडानी ग्रुप को खदान दिए जाने के संबंध में सहमति देने वाली ग्राम सभा की जांच और खदान पर काम बंद कराने का लिखित में आश्वसान दिया।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि आस्था के नाम पर हिंदुओं के वोटबैंक पर देश की सत्ता पर काबिज मोदी को आदिवासियों की आस्था का ख्याल नहीं आया ? एक तो वह उस पहाड़ी का अपना देवता मानते हैं दूसरा वह प्रकृति के भी भक्त हैं। प्रधानमंत्री मोदी पर्यावरण और प्रकृति के लिए तरह-तरह की योजनाएं चलाकर देश और जनता के बड़े हितैषी बनने का ढकोसला तो करते हैं पर अपने मित्र की पहाड़ों पर खनन की योजना पर सहमति जताते हुए उन्हें प्रकृति और पर्यावरण का ख्याल नहीं आता है ? बताया जा रहा है कि देश में चल रहे निजीकरण के खेल में भी सबसे अधिक फायदा अडानी ग्रुप को ही होने वाला है। उत्तर प्रदेश में तो हवाई अड्डों के रखरखाव का ठेका अडानी ग्रुप को दे दिया गया बताया जा रहा है।

प्रधानमंत्री के सरकारी खर्चे पर लगातार विदेशी दौरों पर ऊंगली उठने पर उनके समर्थकों में बड़ी बेचैनी पैदा हो जाती है। उनको समझ लेना चाहिए कि काफी दौरे तो मोदी के अपने करीबियों को फायदा कराने के लिए होते हैं। जैसे रफाल का मामला पहले ही उठ चुका है। मोदी ने अपने मित्र अडानी को आस्ट्रेलिया में कारोबार जमाने के लिए जो मदद सरकारी दौरे पर की है वह भी अब जगजाहिर हो चुकी है। आस्ट्रेलिया में अपने मित्र अडानी के कारोबार को बढ़ाने के लिए मोदी ने जनता के पैसे किये गये दौरे का ही सहारा लिया था। अडानी समूह की कंपनी अडाणी ऑस्ट्रेलिया ने खुद बताया है कि उसे ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड स्थित कारमिकेल खदान पर काम शुरू करने के लिए पर्यावरण संबंधी अंतिम मंजूरी मिल गई है। यह करार किसने कराया है। उनके मित्र नरेन्द्र मोदी ने। अडानी की कंपनी वहां पर कोयला खदान पर काम करेगी।  एक ओर तो प्रधानमंत्री प्रकृति बचाने के लिए तरह-तरह की नौटंकी करते देखे जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर प्रकृति की ऐसी की तैसी करने के लिए पहाड़ों पर अपने मित्र अडानी को खनन का कारोबार करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि अडानी के इस कारोबार का आस्ट्रेलिया में विरोध न हुआ हो। वहां पर भी उनके प्रोजेक्ट को लेकर ऑस्ट्रेलिया के पर्यावरणविद लगातार विरोध कर रहे थे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रभाव में आखिरकार अडानी ग्रुन ने वह बाजी मार ही ली। 

चरण सिंह राजपूत
charansraj12@gmail.com

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