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18.8.22

छत्तीसगढ़ के कर्मचारियों की पाती मुख्यमंत्री के नाम

आदरणीय मुख्यमंत्री जी..

सवाल डीए एचआरए का नहीं है, सवाल है जनतांत्रिक मूल्यों का। आप जिस तरह से सरकार चलाने की कोशिश कर रहे हैं यह लोकतंत्र में चिंताजनक है आप अकेले नहीं हैं इस व्यवस्था में बल्कि विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका मिलकर आप पूर्ण होते हैं और किसी भी जनतांत्रिक व्यवस्था में अंतिम अधिकार जनता के पास ही सुरक्षित है।वर्तमान परिदृश्य में अगर बात करें तो आप मनमानी करने की कोशिश कर रहे हैं जो कहीं से भी लोकतांत्रिक नहीं है मैं नहीं जानता कि आपके सलाहकार कौन हैं पर संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को इतना तो अवश्य पता होना चाहिए कि संविधान की आत्मा "हम भारत के लोग'' आत्मार्पित और अंगीकृत किए हुए हैं वहाँ मनमानी करने की गुँजाइश नहीं है।


पहली बात तो ये कि कि आप छत्तीसगढ़ प्रांत में चार प्रकार का डीए दे रहे हैं,एनपीएस में अप्रैल से 14% आपको देना नहीं पड़ रहा है।एनपीएस में जमा पैसे को हासिल करने के बारे में कोई तैयारी नहीं है।आपने जीपीएफ को भी सीजीजीपीएफ बनाया तब भी कर्मचारियों को विश्वास में नहीं लिया शिक्षाकर्मी से संविलियन हुए लोगों के पुरानी पेंशन पर भी कोई स्पष्टता नहीं है। आप सिस्टम से हटकर कोई व्यवस्था लाना चाहते हैं तब विशेषज्ञों की टीम बनाकर संबंधितों को विश्वास में लेकर संवैधानिक मूल्यों को ध्यान में रखकर निर्णय लेते तो अच्छा होता।

आपने तो तब चकित किया था जब कर्मचारियों ने पुरानी पेंशन के लिए आपका सम्मान करने बुलाया और आपने कहा मैं का जानों डीए का ला कथें इंक्रीमेंट का ला कथें मोर घर परिवार में कोई कभों नौकरी करेच नी है अधिकारी मन से बात करहूँ जो होही देहूँ  आप भूल गये कि जनता द्वारा चुनी हुयी  पूर्ण बहुमत की
सरकार के आप मुखिया हैं। इतनी हल्की बात कोई मुख्यमंत्री कैसे कर सकता है ?

बेशक आप कुछ अच्छा करना चाह रहे होंगे छत्तीसगढ़ की परंपरा का सम्मान करते हुए योजनाएँ बना रहे होंगे पर जिनके लिए आप योजनाएँ बना रहे हैं उन्हें भी विश्वास में लेना ज़रूरी है यही लोकतांत्रिक तरीका भी है मेरे मन को भाया....वाली बात से सरकारें नहीं  चलतीं चल भी जाएँ तो सफल नहीं होतीं।
जहाँ की जनता घुटन महसूस करे वहाँ बेहतरी की बात सोचना बेमानी है।कर्मचारी अधिकारी होने भर से नागरिक अधिकार खतम तो नहीं हो जाते ?
जब कर्मचारी अधिकारी आपको अपनी माँग बताते हैं तो उस पर बातचीत न करके उल्टा उन्हीं को दोषी ठहराते हैं 2006 के पड़े हुए किसी आदेश का आप सहारा लेते हैं जो आदेश कभी लागू ही नहीं हुआ उनके द्वारा जिन्होंने इसे बनाया था।

अभी भी समय है समझदारी दिखाईये सिस्टम के सबसे बड़े धड़े कार्यपालिका का सम्मान कीजिए सबकी गरिमा का अधिकार हमारे संविधान ने दिया है उसे छीनने का प्रयास मत कीजिए सरकार का मतलब चुनाव से चुनाव मत कीजिए।

पहली बार न्यायपालिका के लोग विवश हुए हैं और उन्होंने हड़ताल की मंशा ज़ाहिर की है माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से क्या अब भी समझ में नहीं आ रहा कि कहीं कुछ गड़बड़ी आपसे हो रही है ? विशेषज्ञों की टीम बनाईये सभी मुद्दों पर चर्चा कीजिए त्वरित निराकरण कीजिए।लरिक हुरहुर में सरकारें नहीं चलती हैं।

लोकतंत्र में विभिन्न दबाव समूहों को अपनी बात रखने का संवैधानिक हक़ है उसे छीनने का प्रयास मत कीजिए।

तानाशाही तरीके से नहीं बल्कि लोकतांत्रिक तरीके से निर्णय लीजिए किसी को कम करके सिस्टम नहीं चल सकता विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका सभी मिलकर साथ चलेंगे तभी लोकतंत्र मजबूत होगा।

आशा है आप समय रहते  सचेत हो जाएँगे और लोकतंत्र जीत जाएगा।

धन्यवाद

कमलेश सिंह
kpspna@gmail.com

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