देश भर के न्यूज़ चैनलों पर आजकल 'टुंटपुंजिया' ब्रेकिंग न्यूज की बाढ़ सी आने लगी है। कब-कौन-सी खबर, किस चैनल के लिए ब्रेकिंग न्यूज हो जाए, यह कहना मुश्किल है। शुरुआती दौर में ब्रेकिंग न्यूज शब्द का इस्तेमाल न्यूज चैनलों में अति महत्वपूर्ण खबरों के लिए किया जाता था और ऐसी खबरें बहुत कम हुआ करती थी। पर, अब ब्रेकिंग न्यूज की संख्या हिन्दी के खबरिया चैनलों पर इतनी ज्यादा होती है कि यह शब्द अपना मायने ही खोने लगा है। एक चैनल ने तो अपने कार्यक्रम का नाम ही ब्रेकिंग न्यूज रख दिया है, जिसमें हर खबर ब्रेकिंग न्यूज होती है। ब्रेकिंग न्यूज के नाम पर आजकल तमाम खबरें लगभग हर चैनल खूब धड़ल्ले से दिखा रहा है। इस मामले में कोई भी चैनल पीछे नही है। कई बार तो ब्रेकिंग न्यूज जल्दी दिखाने के चक्कर में तथ्यों की जांच-पड़ताल किए बिना उसे दिखा दिया जाता है और बाद में खबर गलत होने पर खेद-प्रकाश तक नहीं किया जाता है। दुःखद है कि ऐसा तथाकथित बड़े चैनल कर रहे हैं।
बात करते हैं, बीते लोकसभा चुनाव के दौरान इटावा जिले में अपने गाँव सैफई के एक मतदान केंद्र पर समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव के एक पर्यबेक्षक निलय मीतास से झड़प का प्रकरण। उस समय देश भर के न्यूज़ चैनल रिपोर्टर सैफई में कवरेज करने आये थे। उन सबको न्यूज़ रूम से इस बात पर लताड़ लगायी जा रही थी कि एक बड़ा नेता चुनाव आयोग के अफसर को लताड़ रहा है और खबर को रोका किस आधार पर जा रहा है। दरअसल, इस खबर को रोका ही नहीं गया था, बल्कि तकनीकी खामी से प्रसारण रुक गया था। इसी बीच एक अंग्रेजी न्यूज़ चैनल जैसे ही इस खबर को ब्रेक किया, देश भर के न्यूज़ चैनलों में हड़कंप मच गया। न्यूज़ रूम में काम करने वाले हर डेस्क इंचार्ज ने सैफई में कवरेज कर रहे अपने रिपोर्टर की क्लास लगा डाली। जिस आधार पर अंग्रेजी न्यूज़ चैनल खबर को दिखा रहा था, उसी तर्ज़ पर देश भर के न्यूज़ चैनल खबर को दिखाने लगे। इस खबर का सबसे दुखद पहलु यह रहा की न तो मुलायम सिंह और न ही निलय मिताश ने झड़प के बारे में बयान जारी किया था। बस, न्यूज़ चैनल वालों को चुनाव वाले दिन कोई खबर मिलनी थी सो मिल गयी।
इतना ही नहीं, उस चुनाव के दौरान ही री-पोलिंग के समय परासना केंद्र पर बबाल को लेकर मुलायम सिंह यादव के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं कराया गया था, लेकिन लखनऊ के न्यूज़ चैनलों ने मुलायम समेत डेढ़ सौ लोगों पर न केवल मामला दर्ज होने की खबर प्रसारित कर दी बल्कि मुलायम सिंह यादव को सजा भी तय करने की खबरे ठोंक डालीं। ये हालात बने कैसे, आइए अब यह भी जान लेते हैं। असल में इस खबर को सबसे पहले स्टार न्यूज़ ने प्रसारित किया। बाद में इटावा के डीएम, एसएसपी के रिपोर्ट से इनकार के बाद भी इस खबर को रोका नहीं गया। ऐसे में लगता है कि न्यूज़ ब्रेक करने के चक्कर में न्यूज़ चैनल वाले लोगों को ही ब्रेक करने में लग गए हैं। सबसे पहले स्टार न्यूज़ ने ही जल्दीबाजी के चक्कर में यह न्यूज़ ब्रेक कर दी थी। भला दूसरे न्यूज़ चैनल पीछे कैसे रह जाते। वे भी उसी तर्ज़ पर खबर को दिखा डाले। लेकिन इटावा में काम कर रहे तमाम न्यूज़ चैनलों के फील्ड रिपोर्टर्स की न्यूज़ रूम में काम करने वाले कुछ भी सुनने के लिये तैयार नहीं। तमाम सफाई के बाबजूद हर न्यूज़ चैनल वाला स्टार न्यूज़ की खबर को सही मानता रहा। इतना ही नहीं, जब मुलायम सिंह यादव मैनपुरी में अपना प्रमाण पत्र लेने आये, तब मुलायम की तरफ से पता नहीं सरकार में शामिल होने को लेकर भी एक खबर चला दी गयी जिस पर मुलायम ने साफ़ शब्दों में मना कर दिया कि उनके द्वारा ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया।
दरअसल, ब्रेकिंग न्यूज शब्द को फ्लैश कर ज्यादातर चैनल सिर्फ सनसनी फैलाने की कोशिश करते हैं। सबसे पहले, सबसे तेज के चक्कर में चैनल बिना छानबीन के ही खबरों को दिखा रहे हैं और इस मामले में अपनी गलती भी मानने को तैयार नही हैं। हमसे पहले दूसरा चैनल वाला कहीं दिखा न दे, यह भय तमाम चैनलों को घेरे रहता है। सनसनी फैलाने के लिए चैनल समाचारों को बढ़ा-चढा कर पेश करते हैं और कई बार छोटे मामले को भी इतना बढ़ा-चढा देते हैं, जैसे कि कितना बड़ा मामला हो गया हो। कई बार दूसरों की देखा-देखी चैनल ऐसी खबरों को दिखाने में या उसे ब्रेकिंग न्यूज बनाने में लग जाते हैं जो शायद खबर बनने के काबिल भी नहीं होती। नकल की यह प्रवृति चैनलों के बीच लगातार बढ़ रही है। नए चैनलों का भी यही हाल है। हर चैनल सबसे अलग होने का दावा तो करता है, लेकिन ज्यादातर चैनल एक दूसरे की नकल मात्र ही होते हैं। नकल करने में सब एक-दूसरे से प्रतिद्वंद्विता कर रहे हैं। टीआरपी के हिसाब से देश के तीन शीर्ष चैनलों 'आजतक', 'इंडिया टीवी' और 'स्टार न्यूज' को देखें तो यह बात ज्यादा स्पष्टता से समझ में आ जायेगी।
एक जमाना था, जब टीवी स्किन पर ब्रेकिंग न्यूज की सूचना देखकर लोग काम छोड़ वही नजरें गड़ा लेते थे। उस वक्त कभी- कभार ब्रेकिंग न्यूज टेलीविजन की पट्टी पर दिखाई देती थी और जो भी खबर ब्रेक की जाती थी, बहुत ही महत्वपूर्ण होती थी। लेकिन, अब हालात पूरी तरह से बदल चुके हैं। चैनलों को जब खबर नहीं मिलती तो मामूली सूचनाओं को तिल का ताड़ बना दिया जाता है। खबरों को पेश करने का तरीका भी ऐसा, जैसे कोई जंग छिड़ गई हो। एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में चैनल सब कुछ भूलते जा रहे हैं। इस दौर में न उन्हें खबरों की गरिमा का ख्याल है, न मीडिया के मूल्यों का। ब्रेकिंग न्यूज महज मजाक बनकर रह गई हैं। कोई भी खबर ब्रेक कर दी जाती है और उसे जोरदार ढंग से टेलीविजन की पट्टी पर चमका दिया जाता है। सवाल उठने लगे हैं कि क्या दर्शक वाकई इतने बेवकूफ हैं या फिर उन्हें खबरों की समझ नही है? यदि कोई यह सोचता है कि दर्शकों को इस तरह बहकाकर उसे अपना चैनल देखने पर मजबूर कर देंगे तो यह खुद को भ्रम में रखने के अलावा और कुछ नहीं। ऐसे में एक दिन ऐसा भी हो सकता है, जबकि दर्शक सिरे से नकारने लगे।
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