- राजेश त्रिपाठी
रंजो गम मुफलिसी की गज़ल जिंदगी।
कैसे कह दें खुदा का फज़ल जिंदगी।।
भूख की आग में तपता बचपन जहां है।
नशे में गयी डूब जिसकी जवानी ।।
फुटपाथ पर लोग करते बसर हैं।
राज रावण का सीता की आंखों में पानी।।
किस कदर हो भला फिर बसर जिंदगी।
कैसे कह दें.....
चोर नेता हैं, शासक गिरहकट जहां के।
पूछो मत हाल कैसे हैं यारों वहां के ।।
कहीं पर घोटाला, कहीं पर हवाला।
निकालेंगे ये मुल्क का अब दिवाला ।।
इनके लिए बस इक शगल जिंदगी।
कैसे कह दें....
राज अंधेरों का उजालों को वनवास है।
ये तो गांधी के सपनों का उपहास है।।
कोई हर रोज करता है फांकाकशी ।
किसी की दीवाली तो हर रात है ।।
मुश्किलों की भंवर जब बनी जिंदगी।
कैसे कह दें....
जहां सच्चे इंसा का अपमान हो।
खो गया आदमी का ईमान हो ।।
योग्यता हाशिए पर जहां हो खड़ी।
पद से होती जहां सबकी पहचान हो।।
उस जहां में हो कैसे गुजर जिंदगी।
कैसे कह दें...
सियासत की चालों का ऐसा असर है।
मुसीबत का पर्याय अब हर शहर है।।
कहीं पर है दंगा, कहीं पर कहर है।
खून से रंग गयी मुल्क की हर डगर है।।
किस कदर बेजार हो गयी जिंदगी।
कैसे कह दें खुदा का फज़ल जिंदगी।
12.8.09
रंजो गम मुफलिसी की गज़ल जिंदगी
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2 comments:
sundar rachna hai....
RACHNA to sundar hogi hi.
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