देश में स्वाइन फ्लू के पाँव पसारते ही देश से साँय-साँय की आवाज़ निकल रही है। इस महामारी से लोग बचने के लिए उपाय ढूढ़ रहे हैं लेकिन महामारी में भी कालाबाजारी का दानव घुस गया है। हालत ये हो गए हैं कि एक तरफ़ स्वाइन फ्लू का कहर जारी है दूसरी तरफ़ कुछ लोग इस फ्लू में ही मजे काट रहे हैं। वैसे तो मुंबई में बरसात के मौसम में आमतौर पर स्टेशन के बाहर मोबाइल के कवर बेंचने का धंधा निकल पड़ता है। लेकिन इस बार मोबाइल कवर बेंचने वाला भी ३-४ रुपये के मास्क को २० रुपये में चिल्ला-चिल्ला कर बेंच रहा है और कह रहा है कि २० रुपये में स्वाइन फ्लू भगाओ। अब इसी को कहतें हैं कि विपत्ति में दुश्मन भी दोस्त बन जाता है लेकिन यहाँ तो मानवाता को तार -तार कराने वाले कालाबाजारियों को क्या कहें जो एक ख़ुद फ्लू के रूप में पैदा हो गए हैं। दरअसल मास्क की अचानक मांग के चलते बाज़ार में मास्क तीन की जगह तेरह रुपये में बेंचे जा रहे हैं। और लोगों को अपनी जान बचाने के लिए खरीदना पड़ रहा है। बाज़ार में सबसे अच्छी किस्म के मास्क एन -९५ हैं जिनकी कीमत २५० रुपये हैं लेकिन लोगों से ४०० से ६०० रुपये वसूला जा रहा है। और ५ से १० रुपये में बिकने वाले डिस्पोजल मास्क भी दोगुने चुगने दाम पर बिक रहे हैं। मास्क तीन प्रकार के होते हैं - --- १- पेपर मास्क २- सर्जिकल मास्क ३- एन - ९५ मास्क १० से बारह घटे के इस्तेमाल के बाद बदल देना चाहिए । कीमत २५० से ३०० रुपये। अब अगर बात की जाए एन - ९५ मास्क की तो एन-95 मास्क बनाने वाली कंपनी किंबर्ली-क्लार्क ने तो मौजूदा मांग पूरी करने में अपनी असमर्थता जता दी है। ये कंपनी हर महीने २००० मास्क बेंच पाती है । और अचानक लाखों में मांग बढ़ने के चलते फिलहाल कंपनी को मांग के अनुरूप मास्क बनाने में वक्त लगेगा। सामान्य स्थितियों में सर्जिकल मास्क का ही इस्तेमाल होता है। एन-95 प्रोटेक्टिव मास्क है। अमेरिका की किंबर्ली-क्लार्क और 3एम एन-95 मास्क के मुख्य उत्पादक हैं। किंबर्ली-क्लार्क के मास्क 70 रुपये में तो 3एम के 150 रुपये में मिलते हैं। लेकिन मुंबई में तो २० रुपये में स्वाइन फ्लू भगाने का डंका अस्पतालों में बजने के बजाय रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों में बज रहा है.
13.8.09
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1 comment:
मुखोटा तो इक बहाना है
हमें तो आपको चुप कराना है
अब सिर्फ इशारों में बात कीजिये
स्वाइन फ्लू से इतना भी मत डरिये
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