जो ख़ुद कम खाता है , दूसरों को ज़्यादा खाने देता है , ख़ुद कम बोलता है , दूसरों को ज़्यादा बोलने देता है , वही ख़ुद कम बेवकूफ बनता है और दूसरों को ज़्यादा बेवकूफ बनाता है । कांग्रेस का राजनितिक चरित्र भी इसी तजुर्बे पर काम करता है । पंडित जवाहर लाल नेहरू से शुरू यह तजुर्बा इंदिरा गाँधी के कथित समाजवाद को झेलते हुए मनमोहन के आर्थिक उदारवाद तक पहुँच चुका है। बीच के वर्षों में बाजारवाद , जुगाड़वाद , और ना मालूम कितने नकारात्मक वाद के बीच भी यह तजुर्बा कायम रहा । जिस भाषा की शुरुवात हमने अपनी सुविधा के लिए किया था वही भाषा हमारी आपसी द्वन्द का कारण बनेगी , सोचा न था । अधिकांश राज्यों के नामकरण का आधार भी भाषा ही थी । महाराष्ट्र में चल रही भाषाई समस्या दिन ब दिन बढती जा रही है । इससे इंकार नही किया जा सकता यह रोमांटिक खेल कांग्रेस निर्यातित है । महाराष्ट्र में शिवसेना और राज का बढता राज , झारखण्ड में मधु कोड़ा का मधु खा जाना और जनता को कोड़े खाने के लिए छोड़ना भी इसी क्रम का हिस्सा है । लिब्रहान आयोग की लीक रिपोर्ट भी राजनीती से प्रेरित एक घटना हो सकती है ।
23.11.09
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