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25.11.09

आतंक के वे लमहे जब सारा देश दहल गया

-राजेश त्रिपाठी
आज से ठीक एक साल पहले समुद्र के रास्ते आये आतंकियों ने वह आफत बरपायी कि न सिर्फ मुंबई बल्कि सारा देश दहल गया। कई दिनों तक सारा देश जैसे सांसे थामे मौत का तांडव देख रहा था। पड़ोसी देश पाकिस्तान में प्रशिक्षणप्राप्त इन आंतकियों ने क्षत्रपति शिवाजी टर्मिनस, होटल ताजमहल, नरीमन हाउस व देश की व्यावसायिक व सांस्कृतिक राजधानी में मौत का यह नंगा नाच होता रहा और निर्दोष नागरिकों की जानें जाती रहीं। इन हमलों में हमने हेमंत करकरे, अशोक कामटे जैसे कई योग्य पुलिस अधिकारियों को हमने इन हमलों में हमने खो दिया। 166 निर्दोष नागरिकों को इन मौत के परकालों ने मौत के घाट उतार दिया। इनमें अमरीका और ब्रिटेन के नागरिक भी थे। इनके अलावा 304 लोग गंभीर लोग से घायल हुये थे। इनमें कई तो जिंदगी भर के लिए अपंग हो गये हैं। नरीमन हाउस और होटल ताजमहल तो जैसे रणक्षेत्र बन गये थे जहां पुलिस और सुरक्षा बलों को 10 आतंकवादियों से पार पाने में घंटों लग गये। जब आतंकियों से पार पाना मुश्किल होने लगा तो नेशनल कमांडोज को बुलाना पड़ा जिन्होंने अपनी जान पर खेल कर मुंबई को आतंकियों से मुक्त कराया। लेकिन आंतक के 60 से अधिक घंटों ने कई जानें ले ली थीं और तकरीबन 41 करोड़ 72 लाख रुपयों का नुकसान हुआ। होटल ताजमहल को उन लोगों ने कुछ इस तरह तहस-नहस किया कि उसका रूपरंग ही फीका पड़ गया। यह और बात है कि उसने अपना पुराना रूप और गौरव फिर प्राप्त कर लिया है और वे देशी-विदेशी अतिथि फिर वहां जुटने लगे हैं जो वहां ही ठहरना या अपनी कोई बिजनेस या अन्य मीटिंग करना पसंद करते रहे हैं।
हमलों के एक साल बाद मुंबई संभल गयी है लेकिन जिन लोगों ने अपनों को खोया है उनके दिलों में उनका दर्द, उन्हें खोने की टीस आज भी बाकी है। यह सच है कि किसी के जाने से दुनिया नहीं थम जाती लेकिन यह भी सच है कि उससे जुड़े लोगों की दुनिया बदल जाती है, उजड़ जाती है जिसे पहले जैसे संवरने में बरसों लग जाते हैं। ठीक उसी तरह जैसे नरीमन हाउस में रहनेवाले मोसे की दुनिया अब कभी पहले जैसी नहीं होगी। उसके माता-पिता नरीमन हाउस में मारे गये लेकिन मोसे बच गया उसे उसकी नैनी और कमांडो बचा कर निकाल ले गये। मोसे इसी 20 नवंबर को तीन साल का हुआ है और इसराइल में कहीं अपने रिश्तेदारों के यहां पल रहा है। मोसे की ही तरह कई बच्चों के सिर से उनके पिता का साया उठ गया, कई सुहागिनों का सिंदूर उजड़ गया, कई बहनों के भाई नहीं रहे, कई बूढ़े माता-पिता का जिंदगी का सहारा छिन गया। 60 घंटे चले आतंक के इस गंदे खेल ने जिसका खाका पाकिस्तान में खींचा गया और लगातार वहां से सैटेलाइट फोन से जिसके बारे में निर्देश मिलते रहे, खूबसूरत और गतिशील शहर मुंबई से बहुत कुछ छीन लिया। इन मुश्किल भरे घंटों में मुंबई की रफ्तार थम गयी। भला हो एक साहसी पुलिसवाले तुकाराम का जिसने मोहम्मद अजमल मोहम्मद आमिर कसाब को पकड़ लिया और भारत उसके जरिये पाकिस्तान की साजिश को बेनकाब करने में काफी हद तक कामयाब हुआ। उसके बाकी साथी मारे गये और उनके पास से ढेरों अत्याधुनिक हथियार और विस्फोटक बरामद किये गये।
देश को अस्थिर करने वाला यह हमला अब तक का सबसे बड़ा हमला था। इसे देश को अस्थिर करने और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के रूप में देखा गया। आज एक साल बाद अगर इसके बारे में सोचने बैठें तो पता चलता है कि आतंकियों के मंसूबे कामयाब होने के पीछे कई तरह की गलतियां थीं। कुछ लोग इसे खुफिया तंत्र की विफलता माने या कुछ और कहें पर आप इस तरह के तर्क देकर उन लोगों को तो नहीं समझा सकते जिनकी दुनिया ही इन हमलों ने अंधेरी कर दी। जब मुंबई का दिल गोलियों से छलनी हो रहा था, पता नहीं उस वक्त आज दहाड़ने वाले शिवसेना के शेर कहां थे। तथाकथित सेना के ये क्षत्रप कहां थे और कहां था उनका पराक्रम जो आज गरीब उत्तर भारतीयों या हिंदी बोलनेवालों पर टूट रहा है। तब तो इनका कोई सैनिक सुरक्षा बलों के साथ खड़ा नहीं नजर आया। आज मराठी मानुष का दंभ भरनेवाले ये लोग मराठी मानुषों को खामोशी से गोली से भुनता क्यों देख रहे थे। ये पंक्तियां किसी जाति या वर्ग के विरुद्ध नहीं बल्कि उस मानसिकता के खिलाफ हैं जो अपनी जाति, अपने वर्ग को भी कलंकित करती है। मराठी भाषा, मराठी मानुष आगे बढ़े प्रगति करें यह हर भारतवासी चाहेगा क्योंकि देशवासी होने के कारण मराठी भी उनके भाई हैं लेकिन इस अतिवादिता को कोई राष्ट्रवादी पसंद नहीं करेगा जो आज शिवसेना या ऐसे ही दूसरे संगठन महाराष्ट्र में चला रहे हैं। जब हमारे संविधान ने देश को एक माना है और जातियों या वर्ग में नहीं बांटा तो फिर यह कहां से आ गये स्वयंभू ठेकेदार देश की एकता और अखंडता को तोड़ने की नौटंकी रचाने। ये क्या कर रहे हैं मुंबई 26/11 के घावों के भरने के लिए। जिस मुंबई पर आज ये नाज कर रहे हैं उसे गढ़ने में देश के कोने-कोने के लोगों का खून-पसीना एक हुआ है। हमें जय महाराष्ट्र कहने में कोई आपत्ति नहीं लेकिन हम चाहेंगे कि जय भारत या जयहिंद भी उसके साथ चले। यही हमारे देश की सच्ची तस्वीर है जिसे बदरंग करने का किसी को हक नहीं। क्या उम्मीद की जाये कि स्मिता ठाकरे की तरह सभी सच्चे मराठी बेवजह की हिंसा और वैमनस्य फैलाने वाली हरकतों के खिलाफ मुखर होंगे और एक सच्चे देशवासी की भूमिका निभायेंगे। मुंबई क्या देश के जर्रे-जर्रे पर हर देशवासी का संवैधानिक हक है और इसे कोई नहीं छीन सकता। मुंबई हमले में जान गंवाने वालों के लिए देश भर की आंखें रोयी थी सिर्फ किसी खास वर्ग की नहीं। यही हमारे देश की विशेषता और गौरव है।
आज हम आतंक के उस खौफनाक मंजर को याद कर रहे हैं जिससे सारा देश कांप गया था। आज हम नमन करते हैं उन वीर जवानों को जिन्होंने अपनी जान दी ताकि मुंबई महफूज रहे, भारत महफूज रहे और महफूज रहे वह जज्बा जो भारत की एक अलग पहचान बनाता है। पूरे विश्व में एक भारत ही ऐसा देश है जहां विविधता में एकता है। जहां विविध जातियां और विविध धर्मों में सह अस्तित्व है। हमारी यह पहचान है जिसका हमें गर्व है और हम जिस पर गौरव भी करते हैं। मुश्किल की उस घड़ी में रक्षक बन कर आये कमांडोज की जांबाजी और हौसले को हम प्रणाम करते हैं। उन लोगों की वजह से ही आज मुंबई सही सलामत है, उसमें पहले जैसी रवानी आ गयी है लेकिन उससे जो कुछ छिन गया है वह कभी वापस न आयेगा। आज जरूरत इस बात की है कि हम अपने सुरक्षा तंत्र को और पुख्ता करें ताकि दुश्मनों के नापाक इरादे कामयाब न हो सकें और हमारा देश अटूट और अखंड रहे। इसके लिए जरूरी है कि देश में एका रहे और लोग जाति, वर्ग और संप्रदाय के खेमों में न बंटे।यह जान लेना भी जरूरी है कि आतंक की न कोई जाति होती है न संप्रदाय वह तो बस आतंक होता है। आतंक के खिलाफ लड़ाई किसी वर्ग या संप्रदाय के खिलाफ नहीं होना चाहिये। ऐसा हुआ तो सामाजिक समरसता का वह ताना-बाना ही बिखर जायेगा जो भारत, इंडिया , हिंदुस्तान या आप इस देश को जिस नाम से पुकारें, उसका आधार है। एक बार फिर उन वीर शहीदों को नमन जिन्होंने अपने देश के लिए जान न्यौछावर की। शाबाश मीडिया के उन लोगों को भी जिन्होंने जान हथेली में लेकर आतंक की इस कहानी को जन-जन तक पहुंचाया हालांकि उनमें से कुछ लोग उत्साह में अतिरेक करने से नहीं बच पाये। मुंबई तेरे जज्बे को सलाम। तूने दिखा दिया कि हौसले बुलंद हों तो आतंकी मंसूबों को भी मुंह की खानी पड़ती है।

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