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13.3.10

परिंदों को आपकी याद आने लगी

एसएमएस वाली संवेदना घर-आंगन में दिखलाने का वक्त आ गया
कीर्ति राणा.
मित्रों के एसएमएस आना शुरू हो गए हैं। मोबाइल की संवेदना हमारे मन, घर-आंगन में दिखाने का वक्त आ गया है। आपको भी याद है न घर की छत और मुंडेर पर पिछले साल अपने बच्चों के हाथों से आपने परिंडे रखवाए थे। कई बार तो घर के बड़े भूल जाते थे तब ये बच्चे ही याद दिलाते थे आपने आज पानी नहीं डाला परिंडों में।
मार्च अभी आधा बीता है लेकिन पारा तेवर दिखाने लगा है। घरों मेें पंखें, कार्यालयों में एसी चल पड़े हैं, गर्मी जब हमें सताने लगी है तो परिंदों के लिए पानी की तलाश भी गंभीर होगी ही। पेयजल-सिंचाई पानी का संकट तो रहता ही है, लेकिन हालात इतने बद्तर भी नहीं हैं कि परिंदों के लिए एक लोटा पानी नहीं जुटा सकें।
कई परिवारों ने परिंडों के साथ ही एक बर्तन में परिंदों के लिए दाने की भी व्यवस्था की थी बीते साल। बचा हुआ भोजन भी परिंदों के लिए पकवान से कम नहीं होता। इस बार भी दाने और पानी के लिए दो बर्तन रखें। ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी है, सुबह अपनी दिनचर्या की शुरुआत ही इन बर्तनों में दाना-पानी डालने से करें। पहले दिन डरते-सहमते गिलहरी आएगी, कुछ कौवे मंडराएंगे, चींटियां तो कतारबद्ध होकर आएंगी ही। थोड़ा सा शक्कर मिला आटा, मटर के दाने, ज्वार-बाजरा, रोटी-बिस्कुट के टुकड़े डाल दें।
कुछ देर बाद ही कौवों का झुंड आ जाएगा, दावत उड़ाने वाले कुछ परिंदों को मीठा पसंद है तो ज्यादातर रोटी के टुकड़ों को पानी वाले बर्तन में डालकर नर्म करते हैं। जितनी देर रोटी नर्म होती है, उतनी देर कांव-कांव, चींची, गुटर-गूं करते हुए आपस में सुख-दुख की बातें करते रहते हैं। पेट भर जाने के बाद परिंदों का एक झुंड उड़ता है तो दूसरा आ जाता है। जो मिल जाए उसी में संतुष्ट हो जाना कोई इनसे सीखे।
परिंदों की भाषा हमें तो समझ आती नहीं, लेकिन कभी जब कौवों-कबूतरों-तोतों का झुंड परिंडों के पास गु्रप डिस्कशन के लिए जुटा हो तो कुछ देर दूर खड़े होकर इनकी हरकतें तो देखिए, कोई चोंच में पानी भरकर उसे गटकने के लिए गर्दन इस तरह ऊंची करेगा, जैसे आपके पुण्य कार्य के बदले ऊपर वाले से आपके लिए दुआ मांग रहा हो। हम परिंदों की भाषा भले ही न समझें, लेकिन पशु-पक्षी हमारे भाव समझते हैं। आपकी छत और मुंडेर पर जब पक्षियों के झुंड मंडराएंगे, तब आप भी इनकी भाषा समझ जाएंगे।
अपने बच्चों में अच्छे संस्कारों का विकास उनके हाथों परिंदों को दाना-पानी डालकर भी किया जा सकता है। परिवार के सभी सदस्य एक-एक दिन आपस में बांट लें कि कल कौन डालेगा परिंडों में दाना-पानी। आपकी यह छोटी सी पहल न जाने कितने परिंदों की आत्मा तृप्त करेगी, तब घर के बुजुर्ग याद दिलाएंगे अपने पित्तर आए हैं परिंदों के रूप में!

2 comments:

Dr.R.Ramkumar said...

एसएमएस वाली संवेदना घर-आंगन में दिखलाने का वक्त आ गया


बंधुवर ठीक समय पर बेहद सटीक मसला आपने उठाया है। हर घर में एक छोटा बड़ा उपवन हो और जिसे परिंडा आपने कहा , चिरैया के लिए परैया हम कहते हैं 'रखनी चाहिए
इस जलपात्र के लिए साधुवाद तृप्तिभरा

kunwarji's said...

" आपकी यह छोटी सी पहल न जाने कितने परिंदों की आत्मा तृप्त करेगी, तब घर के बुजुर्ग याद दिलाएंगे अपने पित्तर आए हैं परिंदों के रूप में!"


अति सुन्दर भावनाए,कितनी आसानी से आपने इसे हमारे वयक्तिगत धार्मिक उद्देश्य से जोड़ दिया जो सही भी है!

पिछली गर्मियों में मेरे पास एक सन्देश आया था इस बारे में,मोबाइल पर,तब मैंने ये किया भी था,कभी-कभी!

मैंने तब ही निर्णय कर लिया था की अगली बार भी ऐसा गर्मियों की शुरुआत से ही करूँगा!लेकिन रात को पंखा चला कर सोने और सर्दियों के सारे कपडे वापस संदूक में रखने के बावजूद भी मुझे अभी तक स्मरण नही आया था के गर्मिया आ चुकी है!धन्यवाद है जी याद दिलाने के लिए!

कुंवर जी,