एक दैनिक अखबार के वरिष्ठ संपादक जो कि अखबार के इंटरनेट संस्करण को देखते हैं, अपने ही लिखे ब्लाग पर पाठको के कमेंट से इतना घबरा गये कि खुले आम भाजपा और संघ को निकरधारी, शिकारी कुत्ता, काक्रोच और गीदड जैसे शब्दो से संबोधित करने लगे.. पाठको के दिये गये तर्क का जब उत्तर नही मिला सभी पाठको को निकर धारी और भाजपा का समर्थक कह कर जम कर भडास निकाली.. पत्रकारिता मे २६ वर्ष का अनुभव लेने के बाद भी वो सामान्य पाठको के प्रश्नो से बौखला गये.. भारतीय पत्रकारिता मे आया दंभ और गिरावट का एक अति उत्तम उदाहरण फेस बुक पर उनका एकाउंट है.. जिस मे वो किसी को स्क्रेप लिख कर कह रहे हैं कि " मेरा काम तो घर से भी हो जाता है.. सामने टीवी खुला है, टेबल पर लेपटाप है और सारी दुनिया मेरी उंगलियों पर.. हम तो दुनिया का तमाशा देखते हैं और फिर उसे नमक मिर्च लगा कर दुनिया को ही बेचते हैं" . किसी पत्रकार द्वारा की गयी ये पहली छुपी हुई स्वीकरोक्ति है जो उनके इंटरनेट के कम ज्ञान की वजह से पता चल गयी.. वैसे पता चलते ही उन्होने उसको अपने फेसबुक एकाउंट से हटा दिया लेकिन फिर भी उसकी एक पुरानी नकल यहां ऊपर प्रकाशित की गयी है..
अपने एक ब्लाग मे तो ये घोषणा भी कर दी है कि सारी भाजपा जानती है कि सोह्रबुद्दीन का कत्ल अमित शाह ने किया है.. और अमित शाह से अच्छा लादेन् है..ये हमारे देश के राष्ट्रीय दैनिक के वरिष्ठ पत्रकार की भाषा है कि एक आतंकवादी एक चुने हुए मंत्री से ज्यादा अच्छा है.. और एक राष्ट्रीय पार्टी काक्रोच और गीदड है..
ये ब्लाग और ऊपर का चित्र सिर्फ उनके सही रूप को बताने के लिये यहां लिखा गया है.. आशा है सभी लोग इस प्रकार के छद्म पत्रकारो का असली रूप सबके सामने लायेंगे..
धन्यवाद.
12.8.10
छद्म पत्रकारिता
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8 comments:
Genial dispatch and this enter helped me alot in my college assignement. Thank you on your information.
very well said. this is a bitter truth that such kind of journalism is prevailing and becoming rife in our country. Shame....shame.
I am completely agree with you because I have seen his few blogs and most of them favor one political party.
Nice work dude... lage raho
ये नागर बहुत ही दुष्ट और धूर्त है इस समय
इनका जो नया ब्लॉग “काश कि इस देश में ऐसे
करोड़ों दोगले होते..”
लिखा है वो मेरे द्वारा किये कमेन्ट का प्रतिउत्तर है
जो कि मुझे बदनाम करने के लिए है| असल में
मै इनके बचकाने और बेहूदा तर्कों की धज्जियाँ
उड़ा देता हूँ और तब इनकी लाल हो जाती है ,
जिसका उदाहरण इनका ताजा ब्लॉग है,
और मेरे द्वारा लिखे गए स्पष्टीकरण वाले कमेंट्स
को पब्लिश नहीं करते लेकिन बाकी मेरे वो सारे
कमेंट्स पब्लिश करते हैं जो मुझे बदनाम कर
सकते हैं | ये सभी उन पाठकों के साथ होता है
जो इनकी हाँ में हाँ नहीं मिलाते |
इनके ताजा ब्लॉग के लिए मैंने निम्नलिखित
कमेन्ट दिया है जो इन्होने प्रकाशित नहीं किया ...
नागर जी !
मैंने कांग्रेसियों के खून का
विश्लेषण करके इनके बेहद घटिया, गिरे हुए और
स्तरहीन चरित्र के बारे में बताया,
मैंने ये कभी नहीं कहा कि किसी जाति विशेष का
खून शुद्ध और पवित्र होता है और किसी का
अशुद्ध ? ये आपने अपने आप बना लिया ,
और आपका ये कथन लहू का रंग एक है..
कुदरत ने सभी लोगों का खून एक जैसा ही
बनाया.....इंसान ने उसको अलग अलग
बाँट दिया ...वगैरह वगैरह ..
ऐसे डायलाग सिर्फ फिल्मों में ही अच्छे
लगते हैं |
ऐसे डायलाग से न तो खून की संरचना बदल
जायेगी और न ही वैज्ञानिकों की रिसर्च
और उनका द्रष्टिकोण,
और ये कहाँ लिखा है कि सर्व धर्म प्रेम को
साबित करने के लिए अपनी बहू बेटियों की
शादी दूसरे दूसरे मजहब के लड़कों के साथ
करना जरूरी है ?
चारित्रिक और नैतिकता जैसे गंभीर मुद्दे पर
आपने अपना खुद का और "फ़िल्मी दुनिया"
के लोगों का उदाहरण दिया जो
काबिले हास्य है,
रही बात लोहिया जी के कथन की तो माफ़
कीजियेगा नागर साहब !
अभी आप इतने काबिल नहीं हैं कि लोहिया जी
जैसे लोगों के कथन का विश्लेषण कर सकें |
और सच तो ये है कि इंदिरा गांधी ने फ़िरोज़
के साथ रंगरेलियां मनाईं (किसी ओहदे और
वर्ग की नुमाइंदगी करने वाले को ऐसी छिछोरी
हरकत शोभा नहीं देती है ?)
फिर शादी की वो भी नेहरू के खिलाफ,
तो क्या नेहरू सर्व धर्म के खिलाफ थे ?
लेकिन इन कांग्रेसियों के गंदे और बदबूदार
खून को भाई चारा और सर्व धर्म का
अदभुत उदाहरण बताकर इनका महिमामंडन
करने से यहाँ भी आप बाज नहीं आये
और ऊपर से आप ये भी कह रहे हैं कि
आप कांग्रेस को वोट नहीं देते ?
मैंने लोगों को सफ़ेद झूठ बोलते सुना है
लेकिन ये "रंगीन" और "उभारदार" झूठ
जिसे अंधा व्यक्ति भी
टटोलकर जान जाय ऐसा झूठ पहली बार
सुन रहा हूँ ,
वाह नागर साहब वाह !
आपने क्या सोचा कि ये पब्लिक या पाठक
बेवकूफ हैं ?
जो आपके कह देने भर से ये बात मान
लेंगे कि आप कांग्रेस को वोट और सपोर्ट
नहीं करते ?
लेकिन इसमें आपकी भी कोई गलती नहीं,
ये पापी पेट पैसे के लिए जो न करवाए ?
लेकिन एक बात है कांग्रेसियों का दोगलापन
सर्व धर्म का अदभुत उदाहरण हो या न हो ?
लेकिन भांडगीरी का एक अदम्य और अदभुत
उदाहरण पेश करके आपने एक और
हैट्रिक जरूर जमा दिया |
मेरे ऊपर ब्लॉग लिखकर मुझे "हीरो" बनाने के लिए
धन्यवाद |
जाते जाते एक बात और,
नागर साहब आप भूल रहे हैं ये प्रजातंत्र है
जहां वोट और समर्थन को आधार बनाकर
निर्णय लिए जाते हैं ,
और मुझे समर्थन देने वालों का प्रतिशत
एक सौ सत्तर फीसदी है,
इसलिए अगर जनमानस मेरे सपोर्ट में है
तो आपके पेट में दर्द नहीं होना चाहिए ?
...और सच तो ये है कि इंदिरा गांधी ने फ़िरोज़
के साथ रंगरेलियां मनाईं (किसी ओहदे और
वर्ग की नुमाइंदगी करने वाले को ऐसी छिछोरी
हरकत शोभा नहीं देती है ?)
फिर शादी की वो भी नेहरू के खिलाफ,
तो क्या नेहरू सर्व धर्म के खिलाफ थे ?
लेकिन इन कांग्रेसियों के गंदे और बदबूदार
खून को भाई चारा और सर्व धर्म का
अदभुत उदाहरण बताकर इनका महिमामंडन
करने से यहाँ भी आप बाज नहीं आये
और ऊपर से आप ये भी कह रहे हैं कि
आप कांग्रेस को वोट नहीं देते ?
मैंने लोगों को सफ़ेद झूठ बोलते सुना है
लेकिन ये "रंगीन" और "उभारदार" झूठ
जिसे अंधा व्यक्ति भी
टटोलकर जान जाय ऐसा झूठ पहली बार
सुन रहा हूँ ,
वाह नागर साहब वाह !
आपने क्या सोचा कि ये पब्लिक या पाठक
बेवकूफ हैं ?
जो आपके कह देने भर से ये बात मान
लेंगे कि आप कांग्रेस को वोट और सपोर्ट
नहीं करते ?
लेकिन इसमें आपकी भी कोई गलती नहीं,
ये पापी पेट पैसे के लिए जो न करवाए ?
लेकिन एक बात है कांग्रेसियों का दोगलापन
सर्व धर्म का अदभुत उदाहरण हो या न हो ?
लेकिन भांडगीरी का एक अदम्य और अदभुत
उदाहरण पेश करके आपने एक और
हैट्रिक जरूर जमा दिया |
मेरे ऊपर ब्लॉग लिखकर मुझे "हीरो" बनाने के लिए
धन्यवाद |
जाते जाते एक बात और,
नागर साहब आप भूल रहे हैं ये प्रजातंत्र है
जहां वोट और समर्थन को आधार बनाकर
निर्णय लिए जाते हैं ,
और मुझे समर्थन देने वालों का प्रतिशत
एक सौ सत्तर फीसदी है,
इसलिए अगर जनमानस मेरे सपोर्ट में है
तो आपके पेट में दर्द नहीं होना चाहिए ?
रुद्र प्रताप जी,
इनकी सच मे लाल हो गयी है, वैसे जो भी हो आप तो हीरो बन ही गये है, बेचारे कि इत्नी जल गयी है कि अब उससे बर्दश्त नही होत है । उन्को अपने ब्लोग को हित करवाअने से काम है,
वैसे मजा आ गया पुरा ब्लोग पद्कर.
लगे रहो
शैलेन्द्र सिह तौमर
अभी अयोध्या का फ़ैसला आनेपर इन तथाकथित संपादक को देशवासियों द्वारा रखी गई शांति हजम नहीं हुई तो मनगढ़ंत बातें लिखकर (देखें http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/ekla-chalo/entry/%E0%A4%95-%E0%A4%AF-%E0%A4%AE%E0%A4%B8-%E0%A4%9C-%E0%A4%A6 ) इन्होंने देश में अशांति फ़ैलाने की कोशिश की. कुछ अराजक तत्वों ने इसका समर्थन भी किया और ऑनलाईन ही एक-दूसरे से भिड़ने लगे. ये जनाब वो सारे लड़ाई-झगड़े वाले कमेंट उदारतापूर्वक प्रकाशित भी करते रहे (क्योंकि इनका तो उद्देश्य ही यही था.) लेकिन जब मैंने झगड़ा शांत करने के लिये एक कॉमेंट लिखा तो ये महाशय उसे "आपत्तिजनक" कहकर खा गये. मेरा वो कॉमेंट इस तरह था:
"उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने के आदेश आप जैसे दंगाई पत्रकारो पर भी लागू होना चाहिये. पूरे देश में शांति है पर नागर साहब आपने तो नभाटा पर ही दंगा करवा दिया. आप जैसे लोगों को जहन्नुम में भी जगह नहीं मिलेगी, ईश्वर-अल्ला दोनों मिलकर आपको इतने जूते मारेंगे कि एक बार फ़िर मर जाओगे. वेश्यावृत्ति (ये मैं नहीं कह रहा,आप खुद स्वीकार कर चुके हैं) करने के अलावा कुछ अच्छा काम भी कर लो, जिंदगी सफ़ल हो जायेगी. जाकिर, चुन्नू, रवि, रोहन, बॉबी, शमीम, केके, हक साहब, बेहतर है आप सब लोग सिर्फ़ इस ’नेताछाप’ पत्रकार नागर की धुलाई करें, एक-दूसरे की नहीं. नागरजी के नापाक इरादों को समझें. ये सिर्फ़ लड़ाना जानते हैं. मुलायम सिंह के अलावा किसी नेता या धार्मिक संगठन ने फ़ैसले का विरोध नहीं किया है तो इन्हें मिर्ची लग रही है और मनगढ़ंत बातें लिख रहे हैं."
(खुद इन्हें शायद ईश्वर-अल्ला से भी जूते खाने में ऐतराज था. सो मेरा कॉमेंट तो नहीं छापा लेकिन रीडर्स के एक-दूसरे को लात-जूता करते कॉमेंट्स छापने में इन्हें कोई ऐतराज न हुआ...!! वाह रे नीरेंद्र नागर की पत्रकारिता!!)
अभी अयोध्या का फ़ैसला आनेपर इन तथाकथित संपादक को देशवासियों द्वारा रखी गई शांति हजम नहीं हुई तो मनगढ़ंत बातें लिखकर (देखें http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/ekla-chalo/entry/%E0%A4%95-%E0%A4%AF-%E0%A4%AE%E0%A4%B8-%E0%A4%9C-%E0%A4%A6 ) इन्होंने देश में अशांति फ़ैलाने की कोशिश की. कुछ अराजक तत्वों ने इसका समर्थन भी किया और ऑनलाईन ही एक-दूसरे से भिड़ने लगे. ये जनाब वो सारे लड़ाई-झगड़े वाले कमेंट उदारतापूर्वक प्रकाशित भी करते रहे (क्योंकि इनका तो उद्देश्य ही यही था.) लेकिन जब मैंने झगड़ा शांत करने के लिये एक कॉमेंट लिखा तो ये महाशय उसे "आपत्तिजनक" कहकर खा गये. मेरा वो कॉमेंट इस तरह था:
"उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने के आदेश आप जैसे दंगाई पत्रकारो पर भी लागू होना चाहिये. पूरे देश में शांति है पर नागर साहब आपने तो नभाटा पर ही दंगा करवा दिया. आप जैसे लोगों को जहन्नुम में भी जगह नहीं मिलेगी, ईश्वर-अल्ला दोनों मिलकर आपको इतने जूते मारेंगे कि एक बार फ़िर मर जाओगे. वेश्यावृत्ति (ये मैं नहीं कह रहा,आप खुद स्वीकार कर चुके हैं) करने के अलावा कुछ अच्छा काम भी कर लो, जिंदगी सफ़ल हो जायेगी. जाकिर, चुन्नू, रवि, रोहन, बॉबी, शमीम, केके, हक साहब, बेहतर है आप सब लोग सिर्फ़ इस ’नेताछाप’ पत्रकार नागर की धुलाई करें, एक-दूसरे की नहीं. नागरजी के नापाक इरादों को समझें. ये सिर्फ़ लड़ाना जानते हैं. मुलायम सिंह के अलावा किसी नेता या धार्मिक संगठन ने फ़ैसले का विरोध नहीं किया है तो इन्हें मिर्ची लग रही है और मनगढ़ंत बातें लिख रहे हैं."
(खुद इन्हें शायद ईश्वर-अल्ला से भी जूते खाने में ऐतराज था. सो मेरा कॉमेंट तो नहीं छापा लेकिन रीडर्स के एक-दूसरे को लात-जूता करते कॉमेंट्स छापने में इन्हें कोई ऐतराज न हुआ...!! वाह रे नीरेंद्र नागर की पत्रकारिता!!)
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