सैनिक शिक्षा आखिर क्यों ?, सैनिक शिक्षा इस विचारधारा के साथ जुड़ी है कि देश के हर नागरिक को मिलिट्री ट्रेनिग अनिवार्य रूप से दी जाय. चाहे भले ही सबको हथियार और गोले बारूद इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग न जी जाय मगर कम से कम बेसिक चीजें अवश्य जुडी हो जैसे युद्ध , हवाई हमलों, आतंकवादी हमलों ,प्राकृतिक आपदाओं आदि में एक नागरिक को किस प्रकार सक्रिय होना चाहिए और उसकी क्या भूमिका हो सकती है ?
जरा संचिये , २६/११ जैसे मुंबई के आतंकवादी हमलों के बारे में और जो पहले भी हमले हो चुके है. सैनिक शिक्षा सिर्फ सीमा पर लड़ रहे जवानो से ही संबंधित नहीं हो सकती क्योंकि कई बार तो हालत देश के अंदर ही युद्ध जैसे भीषण हो जाते है. यह शांतिकाल में अपने नागरिकों की विपरीत परिस्थितियों में आत्म रक्षा से भी जुडी होनी चाहिए. सेना का जितना ही आक्रामक पहलू महत्वपूर्ण होता है उतना ही महत्वपर्ण अपना तथा अपने नागरिकों का बचाव भी होता है. ऐसे आतंकवादी हमलों के दौरान एक नागरिक का क्या कर्त्तव्य हो सकता है, मसलन वह कैसे अपने हो छिपा कर बचा सकता और फिर दूसरे फँसे लोंगों को कैसे बचाया जा सकता है. इसके अतिरिक्त आतंकवादियों से मोर्चा सम्हाले अपने जवानों की किस तरह से मदद की जा सकती है, यह सैनिक शिक्षा के माध्यम से हर नागरिक को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए.
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लड़ाई सीमा पर जवान लड़ता है मगर उसकी यह लड़ाई बहुत हद तक उसके बैक अप , सप्लाई लाइन और पीछे से मिल रहे सहयोग पर निर्भर करती है . ऐसे में आम जनता की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है. रसद , गोला बारूद और अन्य चीजों की सप्लाई में नागरिकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है. सेना अकेले ही यह सब त्वरित गति से नहीं कर पाती ऐसे में अगर एक प्रशिक्षित जनता का पूरा सहयोग मिले तो बेहतर हो सकता है.
युद्ध के समय सिर्फ जवान ही नहीं मरता है वरन दुश्मन के हमलों में आम नागरिक भी मारे जाते है. हर नागरिक को यह पाता होना चाहिए की दुश्मन के जमीनी , हवाई , नुक्लियर बायोलोजिकल व केमिकल (NBC) जैसे हमलों मे किस तरह से सरवाईव करना है. हवाई हमलों के दौरान बलैक आउट और गड्ढों व बंकरों में छिपना तथा रासायनिक और जैविक हमलों के असर से किस तरह से कम प्रभावित हुए बचा जा सकता है, यह हर नागरिक के लिये जानना महत्वपूर्ण होना चाहिए.
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भारत एक विशाल देश है यहाँ प्राकृत आपदाओं के दौरान शहरी इलाकों में तो सैनिक मदद जल्दी पहुँच सकती है मगर जब ये हादसे दूर दराज के ग्रामीण इलाके और कठिन रास्तों पर होते है तो सैनिक मदद पहुँचाने में काफी वक्त लग जाता है और सैनिक मदद उन तक पहुंचते पहुंचते जन धन की काफी हानी हो चुकी होती है. अगर इन ऐसी घटनाओं से निपटने के प्रक्षिक्षण आम जनता के पास भी रहे तो ऐसी घटनाओं से होने वाली क्षति को काफी हद तक कम किया जा सकता है.सेना और पैरा मिलिट्री का इंतजार किये बिना राहत कार्य हो उनके आने तक अंजाम दिया जा सकता है. इससे सेना पर निर्भरता भी कम होगी और हर आदमी कम से कम ऐसी घटनाओं से अपनी रक्षा करने में आत्मनिर्भर बन सकेगा .
सैनिक शिक्षा गुंडों , चेन स्निचरो और बदमाशों से निपटने में आम नागरिक के लिये लाभप्रद साबित हो सकती है. जो प्रशिक्षण ये गुंडे मवाली लेकर पब्लिक को डराने और लूटने आते है अगर वहीं आम नागरिक भी इन घटनाओं से निपटने में प्रशिक्षित हो तो उनका मुकाबला आसानी से किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त सैनिक शिक्षा नागरिकों को स्वयं को स्वस्थ और तंदरुस्त रखने की प्रेरणा देती है. यह त्वरित कार्यवाही और निर्णय लेने की क्षमता को भी मजबूत करती है.
रही बात तो, इतने बड़े विशाल राष्ट्र में यह मुश्किल तो जरुर है परन्तु असंभव नहीं . हम व्यवसायिक शिक्षा, सेक्स शिक्षा , शारीरिक और योग शिक्षा आदि पर तो बहस कर लेते है परन्तु सैनिक शिक्षा पर न के बराबर बहस हुई है. एक सार्थक प्रयास इस दिशा में होने चाहिए. पहले तो प्रारंभिक कक्षाओं से ही सैनिक शिक्षा एक अनिवार्य विषय करना चाहिए. इसके अतिरिक्त सैनिक शिक्षा के बारे में पत्राचार , सी डी , अख़बारों, टी वी इत्यादि के माध्यम से भी आम नागरिक को शिक्षित और जागरूक करना चाहिए. आज इजराईल का उदहारण हमारे सामने है जहाँ का हर नागरिक पहले देश का एक सैनिक है नागरिक बाद में.
2 comments:
bilkul sahi kaha hai aapne -sainik shiksha har nagrik ke liye jaroori hai .
सहमत .
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