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मित्रों,यह शायद आपको भी पता होगा कि बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश
कुमार को बिहारी राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। क्यों कहा जाता है
कहनेवाले जानें लेकिन फिलहाल तो राजग से अलग होने के बाद श्रीमान् चाणक्य
जी की हालत उस मकड़ी वाली हो गई है जो कभी अपने ही बुने जाल में फँस जाती
है। विडंबना यह है कि नीतीश कुमार ने भाजपा के सभी हटाए गए मंत्रियों के
विभाग गठबंधन टूटने के 26 दिनों के बाद भी अपने ही पास रखे हैं और
मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं कर पा रहे हैं। परिणाम यह हुआ है कि बिहार में
पूरे शासन-प्रशासन में अव्यवस्था और अराजकता व्याप्त होने लगी है,कामकाज
ठप्प पड़ने लगा है।
मित्रों,कदाचित् नीतीश कुमार को यह
भ्रम या घमंड हो गया है कि राज्य में राजनीति सिर्फ उनको ही आती है।
उन्होंने सोंचा था कि राजग से अलग होने के बाद देशबेचवा कांग्रेस उनको
हाथोंहाथ लेगी और राज्य में वही करेगी जो वे कहेंगे लेकिन ऐसा होता दिख
नहीं रहा। कांग्रेस ने राजद और लोजपा से दूरी तो नहीं ही बनाई उल्टे झारखंड
में राजद की मदद से महाभ्रष्ट हेमंत सोरेन की सरकार भी बनवा दी और नीतीश
गुब्बार देखते रह गए। नीतीश भूल गए थे कि कांग्रेस उनसे भी बड़ी,सबसे बड़ी
अवसरवादी है और उसको सिर्फ सत्ता से मतलब है धर्मनिरपेक्षता वगैरह तो जनता
को फुसलाने और भरमाने के साधनभर हैं।
मित्रों,कांग्रेस पर भरोसा करके नीतीश न घर के रह गए हैं और न घाट के।
भाजपा जैसा भरोसेमंद,सुख-दुःख में हमेशा साथ निभानेवाला साथी छूटा और नया
साथी सौतन को छोड़ नहीं रहा है। ऐसे में बिहार में आगामी चुनावों में
त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति अर्थात् भाजपा,कांग्रेस-राजद-लोजपा और जदयू के
बीच हो सकती है जो किसी भी तरह नीतीश जी के लिए शुभ नहीं होगा। वैसे भी अब
जनता के बीच लगातार बढ़ते सत्ता-विरोधी आक्रोश को भी उनको अकेले ही झेलना
होगा। इस समय यह बताना संभव नहीं है कि नीतीश जी के मन में चल क्या रहा है
लेकिन इतना तो निश्चित है कि भाजपा के हटने का शासन-प्रशासन पर बहुत-ही
बुरा प्रभाव पड़ा है। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा के मंत्री काफी योग्य थे
और सुधार भी सिर्फ उन्हीं विभागों में देखने को मिल रहा था जिसके मंत्री
भाजपाई थे।
मित्रों,पिछले 26 दिनों से नीतीश कुमार एक साथ एक दर्जन से अधिक विभागों के
मंत्री हैं (क्योंकि भाजपाई मंत्रियों के सारे विभाग अभी उनके पास ही हैं)
और मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने अभी तक
विभिन्न आयोगों और निगमों में काबिज भाजपा नेताओं को भी उनके पदों से नहीं
हटाया है जिससे प्रदेश के राजनैतिक हलकों में कई सवाल उठने लगे हैं। क्या
वे फिर से राजग में वापसी करने जा रहे हैं या उनको मंत्रिमंडल-विस्तार से
पार्टी में विद्रोह का भय सता रहा है? उनको जो भी करना है जल्दी में करें
तो अच्छा होगा उनके लिए भी और राज्य के लिए भी क्योंकि देरी करने से
शासन-प्रशासन में सन्निपात की स्थिति और भी ज्यादा गहरी होती जाएगी जिसके
दुष्परिणाम सीधे-सीधे चुनाव-परिणामों में परिलक्षित होंगे।
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