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13.2.20

केजरीवाल की सादगी के सामने फेल हुए भाजपा के सभी हथकंडे

चरण सिंह राजपूत

नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा में वही हुआ जिसकी संभावना व्यक्त की जा रही थी। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का जादू दिल्लीवासियों के सिर चढ़कर बोला। 70 में से 62 सीटें जीतकर केजरीवाल ने साबित कर दिया कि वह ही दिल्ली के बादशाह हैं। केजरीवाल के सामने भाजपा का कोई भी हथकंडा उसके काम न सका। केजरीवाल की हर बात को दिल्ली के लोगों ने सर माथे लिया।


केजरीवाल की सादगी के सामने भाजपा नेताओं का शानो-शौकत की एक न चली। वह भी तब जब भाजपा ने करीब पांच हजार कार्यक्रमों का आयोजन किया, जिनमें रैलियां, नुक्कड़ सभाएं और रोड शो के साथ डोर-टू-डोर कैंपेन भी शामिल थे। इसमें दो राय नहीं कि भाजपा ने दिल्ली के चुनाव में प्रतिष्ठा का विषय बना लिया था। यही वजह थी कि भाजपा ने जहां 270 सांसदों को चुनाव प्रचार में लगाया था वहीं वहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ तीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ललकार रहे थे।

खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने चुनाव प्रचार का मोर्चा संभाल रखा था। केंद्रीय मंत्री अलग से अपना राग अलाप रहे थे। इन सबके बावजूद भाजपा की एक न चली। सीएए और एनआरसी के विरोध में चल रहे महिलाओं के आंदोलन शाहीन बाग को भी भाजपा ने साम्प्रदायिक रूप देने की कोशिश की। आंदोलन से दिल्ली के लोगों को होने वाली असुविधा का लेकर मामला कोर्ट तक पहुंचा।

जामिया और शाहीन बाग में फायरिंग भी की गई केजरीवाल की सधी राजनीति के सामने भाजपा के धुरंधर खिलाड़ियों का कोई दांव काम न आ सका। शाहीन बाग आंदोलन में को आप के फंडिंग करने का आरोप भी भाजपा के कोई काम न आया। केजरीवाल को नक्सली और आतंकवादी कहकर उनकी छवि बिगाड़ने की कोशिश की गई पर केजरीवाल की आम आदमी वाली राजनीति भाजपा के हर दांव को ध्वस्त करती रही। दरअसल केजरीवाल ने चिकित्सा और शिक्षा के क्षेत्र में अप्रत्याशित सुधार कर लोगों की दिल जीता है। जो लोग महंगे अस्पतालों और महंगे स्कूलों के खर्चे वहन नहीं कर सकते थे उन्हें केजरीवाल ने बड़ी राहत दी। यहां तक कि लोग दूसरे राज्योंं को भी दिल्ली का उदाहरण देकर चिकित्सा और शिक्षा में सुधार करने की बात करने लगे।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने तो दिल्ली में चिकित्सा और शिक्षा के क्षेत्र में हुए सुधार से सीख लेते हुए दूसरे राज्यों को भी उसका अनुपालन करने की बात कही। केजरीवाल का महिलाओं को डीटीसी में फ्री में यात्रा करने की सुविधा देने का फार्मूला भी बहुत काम आया। महिलाओं का वोट उन्हें एकतरफा मिला। इन सब के बावजूद कैग रिपोर्ट में उनकी सरकार फायदा में दिखाई गई। देश में कैग की रिपोर्ट में पहला राज्य रहा, जिसमें कोई घोटाला न दिखाते हुए काम की सराहना की गई है। वह भी तब जब आप सरकार लगातार केंद्र पर सहयोग न देने का आरोप लगा रही थी।

इन चुनाव में केजरीवाल ने भाजपा से हनुमान भी छीन लिये। वह जहां मतदान के समापन पर हनुमान की शरण में गये वहीं चुनाव जीतने के बाद भी हनुमान की शरण में पहुंचे। अन्ना आंदोलन को भुनाकर दिल्ली कब्जाने का आरोप झेलने वाले अरविंद केजरीवाल ने तीसरी बार अपने को साबित किया है। भले ही उन पर आंदोलनों को नुकसान करने वाला नेता का आरोप लगता रहा हो, भले ही उन पर राजनीति बदलने के नाम पर लोगों की भावनाओं से खेलने का आरोप लगता हो, भले ही उन पर योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास, आसुतोष, साजिया इल्मी जैसे नेताओं को पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर करने का आरोप लगा हो, भले ही राज्यसभा में कुमार विश्वास और आसुतोष की उपेक्षा कर पैसे लेकर स्वजातीय बंधुओं को राज्यसभा में भेजने का आरोप लगा हो पर उन्होंने केंद्र के साथ कई राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के उनको हराने के लिए पूरी जान झोंकने के बावजूद फिर से दिल्ली को फतह कर राजनीतिक पंडितों को सोचने के लिए मजबूर किया है।

सिंगल हड्डी के आदमी अरविंद केजरवाल के सामने देश पर राज कर रहे नरेन्द्र मोदी और अमित शाह का कोई दांव न चल सका।  हां इस चुनाव से कांग्रेस के प्रति अच्छा संदेश नहीं गया है। भले ही भाजपा को फाइट से बाहर करने के लिए उसने अरविंद केजरीवाल के लिए दंगल छोड़ा हो पर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में पार्टी के बड़े नेताओं की बेरुखी ने निराशा जरूर पैदा की है।

राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र पर काबिज भाजपा से टकराने वाली कांग्रेस का दिल्ली में इस तरह से मैदान छोड़ना कहीं न कहीं कांग्रेस को पीछे धकेल रहा है। दिल्ली का चुनाव परिणाम बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए खतरा और पश्चिम बंगाल की मुख्यरमंत्री ममता बनर्जी के लिए वरदान साबित हो सकता है।

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