CHARAN SINGH RAJPUT
राष्ट्रीय सहारा में आंदोलन करने पर जब हम लोग टर्मिनेट कर दिये गये तो नोएडा स्थित राष्ट्रीय सहारा के गेट पर हक की लड़ाई लड़ रहे थे तो मेरे मित्र महंत तिवारी का फोन आया। उन्होंने मुझसे कहा कि सोशल एक्टिविस्ट और बंधुआ मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी अग्निवेश को लेख और बयान लिखने के लिए राजनीतिक सोच रखने वाले व्यक्ति की जरूरत है। इसके लिए वह मानदेय भी देने को तैयार हैं। राजनीति में दिलचस्पी होने की वजह से मेरे अंदर राजनीतिक सोच भी है और लेख लिखने का शौक भी।
यह मेरे लिए एक अच्छा अवसर था। हां मुझे तब पता चला कि जितने भी बड़े-बड़े लोगों के लेख विभिन्न समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित होते हैं उनमें से अधिकतर किसी और के लिखे होते हैं। यानी कि वह सोच किसी और व्यक्ति की होती है। मैंने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इसके पीछे वजह यह भी थी कि स्वामी अग्निवेश का नाम मैंने बहुत सुना था। मुझे लगता था कि उनके साथ काम करने पर मुझे सुखने को बहुत मिलेगा। निश्चित रूप से स्वामी अग्निवेश को बहुत जानकारी है। किसी भी मुद्दे पर उनसे चर्चा की जा सकती है। चर्चा में करने में वह दिलचस्पी भी लेते हैं।
मैंने नई दिल्ली जंतर-मंतर स्थित बंधुआ मुक्ति मोर्चा कार्यालय पर लगातार स्वामी अग्निवेश के लेख और बयान लिखे। काफी लेख और बयान प्रकाशित भी हुए। तब मैंने देखा यदि वह लेख मैं अपने नाम से लिखता तो कोई समाचार पत्र नहीं छापता। स्वामी अग्निवेश के नाम से जनसत्ता, अमर उजाला समेत कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों में लेख और बयान प्रकाशित हुए। स्वामी अग्निवेश को मेरी लेखनी और भाषाशैली दोनों पसंद थी। हां वह यह चाहते थे कि लिखने के साथ ही मैं उनके लेख और बयान छपवाऊं भी।
दरअसल राष्ट्रीय सहारा से टर्मिनेट होने से पहले ही मैंने मीडिया में व्याप्त शोषण और दमन के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी थी तो विभिन्न प्रिंट मीडिया हाउस में अधिकतर पत्रकार मुझसे बात करने से कटते थे, उन्हें अंदेशा था कि मुझसे बात करने पर उनकी नौकरी पर संकट आ सकता है। यही वजह थी कि मैंने स्वामी अग्निवेश से लेख और बयान प्रकाशित करवाने में अनभिज्ञता जाहिर की। हां इसी बीच मुझे जंतर-मंतर पर होने वाले विभिन्न आंदोलन में भागीदारी करने का भरपूर मौका मिला। कितने आंदोलन की तो मैंने अगुआई भी की। लगभग 2 साल तक मैंने जंंतर-मंतर पर विभिन्न आंदोलन में सक्रिय रहा। यह वजह थी कि जंतर-मंतर पर रहने वाले पुलिस अधिकारियों के साथ ही आईबी और सीबीआई के लोग मुझे अच्छी तरह से पहचानते थे। इस बीच मुझे स्वामी अग्निवेश को भी जांचने और परखने का पूरा मौका मिला।
मैं स्वामी अग्निवेश को बड़े दिलवाला और वास्तव में जरूरतमंद लोगों की लड़ाई लड़ने वाला समझता था। जैसे कि वह बताते हैं कि भजनलाल सरकार में उन्होंने सरकार से ही बगावत कर दी थी। विभिन्न मंचों से न्यूनतम वेतनमान 21000 रुपये प्रतिमाह की बात करते हैं। मुझे व्यवहारिक रूप से मुझे उनकी कथनी और करनी में बहुत अंतर दिखाई दिया। जैसे कि जो लोग उनके कार्यालय में काम करते हैं उनसे काम तो एक कर्मचारी की तरह लेते हैं और वेतनमान के नाम पर एक कार्यकर्ता के रूप में मानदेय देते हैं। वह भी यदि कोई छुट्टी हो तो उसका पैसा काट लेते हैं। हिन्दू धर्म को लेकर बड़े-बड़े कटाक्ष वह प्रसिद्धि पानी के लिए करते हैं। वह रोजे पर लोगों की दावत करने में तो विश्वास रखते हैं पर नवरात्र को ठखोसला समझते हैं।
हां स्वामी अग्निवेश की एक बात में प्रशंसा की जा सकती है कि मीडिया के खिलाफ बोलने का साहस उन्होंने दिखाया। जहां वह जागरण के खिलाफ खड़े हुए वहीं सहारा में होने वाले कर्मचारियों के आंदोलन में भी उन्होंने मोबाइल से भाषण देकर उनका हौसला बढ़ाया। वह अपने किसी करीबी को आगे बढ़ता नहीं देख सकते हैं। आप विभिन्न टीवी चैनलों, समाचार पत्रों में देख लें, उनके जितने भी भाषण हैं, जितने भी बयान हंै, जितनी भी डिबेट हैं, किसी में भी आप उनके समीप उनके किसी करीबी को नहीं देख सकते हैं। यह मैंने खुद भी महसूस किया, अपनी उपस्थिति में वह मेरा भाषण भी नहीं पचा पाते थे। कई कार्यक्रम ऐसे हुए जिनमें मुझे उन्होंने नहीं बोलने दिया। या फिर मेरे भाषण देते वक्त वह उठकर चल दिये। बिहार चंपारण में मिल मजदूरों के आत्मदाह करने के बाद जंतर-मंतर पर चल रहे मजदूरों के आंदोलन में उन्होंने फाइट फॉर राइट का हमारा बैनर यह कहकर हटवा दिया था कि फिर दूसरे संगठन भी यहां पर बैनर लगाने लगेंगे।
राष्ट्रीय सहारा में आंदोलन करने पर जब हम लोग टर्मिनेट कर दिये गये तो नोएडा स्थित राष्ट्रीय सहारा के गेट पर हक की लड़ाई लड़ रहे थे तो मेरे मित्र महंत तिवारी का फोन आया। उन्होंने मुझसे कहा कि सोशल एक्टिविस्ट और बंधुआ मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी अग्निवेश को लेख और बयान लिखने के लिए राजनीतिक सोच रखने वाले व्यक्ति की जरूरत है। इसके लिए वह मानदेय भी देने को तैयार हैं। राजनीति में दिलचस्पी होने की वजह से मेरे अंदर राजनीतिक सोच भी है और लेख लिखने का शौक भी।
यह मेरे लिए एक अच्छा अवसर था। हां मुझे तब पता चला कि जितने भी बड़े-बड़े लोगों के लेख विभिन्न समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित होते हैं उनमें से अधिकतर किसी और के लिखे होते हैं। यानी कि वह सोच किसी और व्यक्ति की होती है। मैंने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इसके पीछे वजह यह भी थी कि स्वामी अग्निवेश का नाम मैंने बहुत सुना था। मुझे लगता था कि उनके साथ काम करने पर मुझे सुखने को बहुत मिलेगा। निश्चित रूप से स्वामी अग्निवेश को बहुत जानकारी है। किसी भी मुद्दे पर उनसे चर्चा की जा सकती है। चर्चा में करने में वह दिलचस्पी भी लेते हैं।
मैंने नई दिल्ली जंतर-मंतर स्थित बंधुआ मुक्ति मोर्चा कार्यालय पर लगातार स्वामी अग्निवेश के लेख और बयान लिखे। काफी लेख और बयान प्रकाशित भी हुए। तब मैंने देखा यदि वह लेख मैं अपने नाम से लिखता तो कोई समाचार पत्र नहीं छापता। स्वामी अग्निवेश के नाम से जनसत्ता, अमर उजाला समेत कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों में लेख और बयान प्रकाशित हुए। स्वामी अग्निवेश को मेरी लेखनी और भाषाशैली दोनों पसंद थी। हां वह यह चाहते थे कि लिखने के साथ ही मैं उनके लेख और बयान छपवाऊं भी।
दरअसल राष्ट्रीय सहारा से टर्मिनेट होने से पहले ही मैंने मीडिया में व्याप्त शोषण और दमन के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी थी तो विभिन्न प्रिंट मीडिया हाउस में अधिकतर पत्रकार मुझसे बात करने से कटते थे, उन्हें अंदेशा था कि मुझसे बात करने पर उनकी नौकरी पर संकट आ सकता है। यही वजह थी कि मैंने स्वामी अग्निवेश से लेख और बयान प्रकाशित करवाने में अनभिज्ञता जाहिर की। हां इसी बीच मुझे जंतर-मंतर पर होने वाले विभिन्न आंदोलन में भागीदारी करने का भरपूर मौका मिला। कितने आंदोलन की तो मैंने अगुआई भी की। लगभग 2 साल तक मैंने जंंतर-मंतर पर विभिन्न आंदोलन में सक्रिय रहा। यह वजह थी कि जंतर-मंतर पर रहने वाले पुलिस अधिकारियों के साथ ही आईबी और सीबीआई के लोग मुझे अच्छी तरह से पहचानते थे। इस बीच मुझे स्वामी अग्निवेश को भी जांचने और परखने का पूरा मौका मिला।
मैं स्वामी अग्निवेश को बड़े दिलवाला और वास्तव में जरूरतमंद लोगों की लड़ाई लड़ने वाला समझता था। जैसे कि वह बताते हैं कि भजनलाल सरकार में उन्होंने सरकार से ही बगावत कर दी थी। विभिन्न मंचों से न्यूनतम वेतनमान 21000 रुपये प्रतिमाह की बात करते हैं। मुझे व्यवहारिक रूप से मुझे उनकी कथनी और करनी में बहुत अंतर दिखाई दिया। जैसे कि जो लोग उनके कार्यालय में काम करते हैं उनसे काम तो एक कर्मचारी की तरह लेते हैं और वेतनमान के नाम पर एक कार्यकर्ता के रूप में मानदेय देते हैं। वह भी यदि कोई छुट्टी हो तो उसका पैसा काट लेते हैं। हिन्दू धर्म को लेकर बड़े-बड़े कटाक्ष वह प्रसिद्धि पानी के लिए करते हैं। वह रोजे पर लोगों की दावत करने में तो विश्वास रखते हैं पर नवरात्र को ठखोसला समझते हैं।
हां स्वामी अग्निवेश की एक बात में प्रशंसा की जा सकती है कि मीडिया के खिलाफ बोलने का साहस उन्होंने दिखाया। जहां वह जागरण के खिलाफ खड़े हुए वहीं सहारा में होने वाले कर्मचारियों के आंदोलन में भी उन्होंने मोबाइल से भाषण देकर उनका हौसला बढ़ाया। वह अपने किसी करीबी को आगे बढ़ता नहीं देख सकते हैं। आप विभिन्न टीवी चैनलों, समाचार पत्रों में देख लें, उनके जितने भी भाषण हैं, जितने भी बयान हंै, जितनी भी डिबेट हैं, किसी में भी आप उनके समीप उनके किसी करीबी को नहीं देख सकते हैं। यह मैंने खुद भी महसूस किया, अपनी उपस्थिति में वह मेरा भाषण भी नहीं पचा पाते थे। कई कार्यक्रम ऐसे हुए जिनमें मुझे उन्होंने नहीं बोलने दिया। या फिर मेरे भाषण देते वक्त वह उठकर चल दिये। बिहार चंपारण में मिल मजदूरों के आत्मदाह करने के बाद जंतर-मंतर पर चल रहे मजदूरों के आंदोलन में उन्होंने फाइट फॉर राइट का हमारा बैनर यह कहकर हटवा दिया था कि फिर दूसरे संगठन भी यहां पर बैनर लगाने लगेंगे।
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