दुनिया भर के वैज्ञानिक और शोधकर्ता कोरोना महामारी द्वारा पैदा की गई विभिन्न चुनौतियों के समाधान के खिलाफ लड़ाई में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दौरान उनका जज्बा और कर्मठता शीश काबिलेतारीफ रही है, हमने साक्षात उनके रूप में धरती पर भगवान् को देखा है। जब लाइलाज कोरोना वायरस का खतरा बढ़ा है तो एक बार फिर दुनिया की नजरें इस जानलेवा बीमारी की दवा खोजने के लिए वैज्ञानिकों पर टिकी हैं। स्वास्थ्य शोध के क्षेत्र में कार्य करने वाले वैज्ञानिकों की सामाजिक जिम्मेदारी से जुड़ा यह एक उदाहरण है जिसमें वैज्ञानिक समुदाय से त्वरित प्रतिक्रिया की उम्मीद की जा रही है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग नई विज्ञान प्रौद्योगिकी व नवाचार नीति पर काम कर रहा है जिसमें वैज्ञानिकों की सामाजिक जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के साथ-साथ देश में शोध एवं विकास का वातावरण तैयार करने पर जोर दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद और प्रधानमंत्री के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर के विजयराघवन से इस बात के संकेत मिल चुके हैं कि सरकार वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा देने लिए प्रतिबद्ध है। भारत सरकार सही समय पर विज्ञान और समाज के बीच की खाई को पाटने के लिए वैज्ञानिक सामाजिक उत्तरदायित्व पर एक नई नीति बनाने की योजना बना रही है।
भारत संभवतः विज्ञान और प्रौद्योगिकी (एस एंड टी) संस्थानों और व्यक्तिगत वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने के लिए कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) की तर्ज पर एक वैज्ञानिक सामाजिक जिम्मेदारी (एसएसआर) नीति को लागू करने वाला दुनिया का पहला देश होने जा रहा है। विज्ञान को समाज से जोड़ने के लिए गतिविधियाँ बढ़ाना इस नीति का प्रमुख उद्देश्य है.
वैज्ञानिक सामाजिक उत्तरदायित्व ड्राफ्ट दस्तावेज़ के अनुसार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं के नैतिक दायित्व है कि वे स्वेच्छा से सेवा और जागरूकता के लिए अपने ज्ञान और संसाधनों का योगदान दें। इस नीति के तहत उन सभी योगदान कर्ताओं को लिया गया है जो मानव, सामाजिक, प्राकृतिक, भौतिक, जैविक, चिकित्सा, गणितीय और कंप्यूटर / डेटा विज्ञान और उनकी संबंधित तकनीकों के क्षेत्र में भाग लेता है।
दूरदर्शी नेतृत्व और सामाजिक विवेक के साथ वैज्ञानिक ज्ञान का संगम करना,वैज्ञानिक समुदाय में सभी हितधारकों के बीच तालमेल का निर्माण करना और विज्ञान और समाज के बीच संबंध विकसित करना समाज-विज्ञान अंतरालों को पार करते हुए, जिससे सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में त्वरित कदम बढ़ाना उत्तरदायित्व के तौर पर तय किये गए इन योगदानकर्ताओं के मुख्य क्षेत्र है. भारत का संविधान (भाग- IV, अनुच्छेद 51A (h)) नागरिक के मौलिक कर्तव्यों के हिस्से के रूप में वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद और जांच की भावना को विकसित करने के लिए अनिवार्य करता है। इस विचार को भारत की पूर्ववर्ती विज्ञान नीतियों (वैज्ञानिक नीति संकल्प 1958, प्रौद्योगिकी नीति वक्तव्य 1983, विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति 2003 और विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति 2013) में आगे बढ़ाया गया जो समाज को विज्ञान से संदेश और लाभ लेने के लिए प्रचार करते हैं। दोनों के बीच की खाई को पाटने का कार्य करते है।
नई एसएसआर नीति वैज्ञानिक संस्थानों और व्यक्तिगत वैज्ञानिकों को समाज और अन्य हितधारकों के लिए अधिक जिम्मेदार बनाने का प्रयास है। ड्राफ्ट में कहा गया है कि वैज्ञानिकों का नैतिक दायित्व है कि जब वे विज्ञान के लिए करदाताओं के पैसे का उपयोग करते हैं, तो वे समाज को 'वापस' देते हैं। इस कार्यक्रम के तहत, जो वैज्ञानिक केंद्र सरकार के तहत किसी भी मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित विज्ञान परियोजना पर काम कर रहे हैं, उन्हें समाज में वैज्ञानिक ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए प्रति वर्ष कम से कम 10 व्यक्ति-दिन एसएसआर समर्पित करने के लिए गतिविधियां करनी होंगी। यह आवश्यक बजटीय समर्थन के साथ आउटरीच गतिविधियों के लिए प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता को भी पहचानता है। अपने वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन और मूल्यांकन में व्यक्तिगत SSR गतिविधियों के लिए ज्ञान कार्यकर्ताओं / वैज्ञानिकों को श्रेय देने का भी प्रस्ताव किया गया है। किसी भी संस्थान को अपने SSR गतिविधियों और परियोजनाओं को आउटसोर्स या उप-अनुबंध करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
केंद्र उन गतिविधियों की एक सूची तैयार करेगा, जिन्हें वैज्ञानिक सामाजिक उत्तरदायित्व कार्यक्रम के अंतर्गत लिया जा सकता है, जो कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के समान होगा। यह गतिविधियाँ कॉलेजों में जाने से लेकर व्याख्यान देने, किसी पत्रिका में एक लेख लिखने या पाठ्यक्रम से परे कुछ करने तक हो सकती हैं। नीति के कार्यान्वयन के लिए, एक राष्ट्रीय पोर्टल विकसित किया जाएगा जो सामाजिक हस्तक्षेप की आवश्यकता पर कब्जा करने के लिए वैज्ञानिक हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी और कार्यान्वयनकर्ताओं के लिए एक मंच के रूप में और एसएसआर गतिविधियों की रिपोर्टिंग करेगा।
विज्ञान को लोकप्रिय बनाना और इसे जनता के लिए अधिक सुलभ बनाना इस नीति का प्राथमिक उद्देश्य है, समाज पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी (एस एंड टी) के निवेश और प्रभावों के बारे में संसाधनों और ज्ञान तक आसान पहुंच की सुविधा देना इन वैज्ञानिक समुदायों का उत्तरदायित्व बनाया गया है ,वैज्ञानिक समुदाय सामाजिक उद्यमिता और एस एंड टी पारिस्थितिकी तंत्र और समाज को प्रभावित करने वाले स्टार्ट-अप हो सकते हैं। इस कदम से न केवल अनुसंधान संस्थानों और नागरिकों के बीच की खाई को पाटा जाएगा, बल्कि वैज्ञानिकों को अपने संचार कौशल को सुधारने में भी मदद मिलेगी।विज्ञान और समाज के बीच की खाई को पाटने के लिए वैज्ञानिक सामाजिक उत्तरदायित्व पर एक नई नीति के साथ आने की योजना बना रहा है।इस साल के शुरुवाती माह में राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने अपने वैज्ञानिक उद्यम की गुणवत्ता और प्रासंगिकता बढ़ाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हमारे विज्ञान को देश के लोगों के विकास और भलाई में योगदान देकर जनता के लिए काम करना चाहिए।
विश्वविद्यालय और प्रयोगशाला में सभी उपकरणों, ज्ञान, मानव शक्ति और बुनियादी ढांचे के साथ विज्ञान और वास्तव में समाज के सभी हितधारकों तक पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी की तर्ज पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग भी वैज्ञानिक सामाजिक जिम्मेदारी की अवधारणा को भारत विकसित कर रहा है और इसे नीति में शामिल कर रहा है। इस नीति में वैज्ञानिक बुनियादी ढांचा साझा करने कॉलेज के संकाय को परामर्श देना, अनुसंधान संस्कृति को बढ़ावा देना और शीर्ष प्रयोगशालाओं में युवा छात्रों की यात्राओं का आयोजन करना शामिल हैं। साइंटिफिक सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (एसएसआर) शब्द वैज्ञानिक समुदाय की सामाजिक जिम्मेदारी को दर्शाता है। यह युवा वैज्ञानिकों को अनुसंधान और विकास में सहायता प्रदान करने में उपयोगी हो सकता है। वैज्ञानिक प्रकाशनों में भारत की बढ़ती उपस्थिति सराहना का है, 'बदलते भारत में प्रौद्योगिकी के साथ तार्किक सोच की भी आवश्यकता है ताकि हमारे सामाजिक और आर्थिक जीवन के विकास को नई दिशा मिल सके।'
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से ही हम पर्यावरण, स्वास्थ्य देखभाल, उचित आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा, भोजन एवं जल सुरक्षा तथा संचार आदि की चुनौतियों का प्रभावी रूप से समाधान कर सकते हैं। आज हमारे सामने अनेक प्रकार की जटिल समस्याएं हैं। विभिन्न संसाधनों की मांग और आपूर्ति के बढ़ते हुए असंतुलन से भविष्य में टकराव की संभावना है। हम सभी को इन चुनौतियों के स्थायी समाधान की अपनी तलाश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर निर्भर रहना होगा। वास्तव में कोरोना ने हमे विज्ञान को समाज से जोड़ने का सही समय दिया है।
डॉ. सत्यवान सौरभ
Dr. Satywan Saurabh
kavitaniketan333@gmail.com
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी
कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार
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