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12.6.20

बड़े स्कूलों में यदि 25 प्रतिशत स्थान गरीब बच्चों के लिए है तो ये वास्तविकता में नज़र क्यों नहीं आता?


दाखिले से बेदखल :  अभी कुछ ही दिनों पहले की बात है | एक महिला रोते हुए हमारे कार्यालय पर आई | वो लगातार रोए जा रही थी | हमने समझा-बुझाकर उसे शांत कराया | तब जाकर महिला ने अपना दुखड़ा हमें सुनाया | महिला बताए जा रही थी और रोए जा रही थी |

उसके दुख की वजह उसकी बेटी थी | ये दुख बेटी पैदा होने का नहीं था बल्कि बेटी के बड़े स्कूल में दाखिला ना हो पाने का था | हमने थोड़ी समझदारी दिखाते हुए महिला को समझाया | सबसे अच्छे स्कूल में एडमिशन नहीं हुआ तो क्या हुआ | यमुनानगर में और भी बड़े स्कूल हैं जिसमें आप बेटी को एडमिशन दिला सकती हैं |

उसने यमुनानगर के नामी गिरामी स्कूल की रजिस्ट्रेशन स्लिप हमें दिखाई | वो रजिस्ट्रेशन नंबर के सहारे केवल इतना जानना चाहती थी कि उसकी बेटी के बड़े स्कूल में दाखिला ना हो पाने की क्या वजह रही होगी | हमने स्कूल में उपयुक्त सीट ना होने की एक वजह उसे बताई | पर महिला के पास स्कूल की सीट की जानकारी हमसे अधिक थी | महिला खुद एम. ए. इकोनॉमिक्स थी | इस मामले में ज्यादा जानकारी ना होने की वजह से हम उसके सवाल का जवाब देने में असमर्थ थे| हमने उसे स्कूल के सूचना विभाग से पता करने की सलाह दी | मगर वो चाहती थी हम किसी जानकार से पूछकर उसे दाखिला ना हो पाने की वजह वा उसी बड़े स्कूल में दाखिले का कोई अन्य उपाय बताएं |

हम सोच रहे थे कि माना बड़े स्कूल का शहर में बड़ा स्थान होता है | मगर ऐसा भी क्या कि ये महिला अपनी सारी जमा पूंजी देकर भी उसी स्कूल में बेटी का दाखिला चाहती है | हमने उससे ये सवाल पूछ ही डाला तो उसके दुख का एक और कारण हमे पता चला |

वो कारण ये था कि शादी के कई सालों बाद उन्हें एक औलाद का सुख मिला | ससुराल में जेठानियों के पास भी बेटियां ही थी तो इस नई बेटी के लिए कुछ खास उत्साह नहीं था |पर इस महिला व उसके पति के लिए तो यही उनकी सबसे बड़ी खुशी थी | दोनों पति-पत्नी बेटी की हर इच्छा को सर-आँखों पर रखते हैं | पर उसके बड़े स्कूल में दाखिले का सपना जब सपना ही रह गया तो ये महिला अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाई | और कहीं से भी बेटी का एडमिशन बड़े स्कूल में हो जाए, ये उम्मीद लिए हमारे पास आ गई |

हमारे पास उसकी समस्या का समाधान नहीं था फिर भी वो हमसे मदद की उम्मीद लगा बैठी थी | नतीजन हम केवल सांत्वना के शब्द ही कह पाए और महिला को बड़े स्कूल का लोभ छोड़ने की सलाह दे डाली | महिला फिर भी बोले जा रही थी कि अगर बड़े स्कूल में सिफारिश चलती है तो वो भी करवाने के लिए वह तैयार थी | हमने असमर्थता जताते हुए उसे विदा कर दिया |

वो महिला तो चली गई पर हमें सोच में डाल गई | ना जाने कितने मध्यवर्गीय माता पिता अपने बच्चों को बड़े स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं | पर ये सपना ना सिर्फ उनकी जमा पूँजी हड़प लेता है बल्कि बड़े स्कूल के सपने देखने का हक भी छीन लेता है |क्योंकि ना तो उनकी जेब इस बात की इजाजत देती है और ना ही स्कूल की दाखिले संबंधित शर्तें |

तो क्या बड़े स्कूल बड़े लोगों के बच्चों के लिए ही है?

बड़े स्कूल में यदि 25 प्रतिशत स्थान गरीब या मध्यमवर्गीय बच्चों के लिए भी है तो वास्तविकता में नज़र क्यों नहीं आता?

प्राइवेट स्कूलों में एक सर्वेक्षण किया जाना चाहिए कि इनमें गरीब या मध्यम वर्गीय परिवार के 25 प्रतिशत बच्चे वास्तव में है | या ये केवल सरकार की नीति मात्र है |

Nandani Kumari

Yamunanagar, Haryana

nandanikmr0@gmail.com

4 comments:

Anonymous said...

True
Ye servay Hona Chahiye
Balki education ko non profitable Hona Chahiye or sabhi private schools Ka early odit Hona Chahiye or Jo profit wo kamate hai uska ek bada hissa education system ko thik Karne mai lagana Chahiye

Bang struggler said...

Right ✌✌✌✌

Nandani Kumari said...

Thanks for understanding

Nandani Kumari said...

🙏