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1.6.20

आखिर आपकी किसी से बनती क्यों नहीं?


पी. के. खुराना

एक विशाल काँच के महल में न जाने कहाँ से एक भटका हुआ कुत्ता घुस गया। हजारों काँच के टुकड़ों में अपनी  शक्ल देखकर वह चौंका। उसने जिधर नज़र डाली, उधर ही हज़ारों कुत्ते दिखाई दिये। वह समझा कि ये सब कुत्ते  उस पर टूट पड़ेंगे और उसे  मार डालेंगे। अपनी भी शान दिखाने के लिए वह भौंकने लगा। उसे सभी कुत्ते भौंकते दिखाई पड़े। उसकी ही आवाज  की प्रतिध्वनि उसके कानों में जोर-जोर से आई। उसका दिल धड़कने लगा। वह और जोर से भौंका। सब कुत्ते भी अधिक जोर से भौंकते दिखाई दिये। आखिर  वह उन कुत्तों पर झपटा। वे भी उस पर झपटे। बेचारा जोर-जोर से उछला-कूदा, भौंका और चिल्लाया और अंत में गश खाकर गिर पड़ा।

कुछ देर बाद उसी महल में एक दूसरा कुत्ता आया। उसको भी हज़ारों कुत्ते दिखाई दिये। वह डरा नहीं। प्यार से उसने अपनी दुम हिलाई। सभी कुत्तों की दुम हिलती दिखाई दी। वह खूब खुश हुआ और उन कुत्तों की ओर बढ़ा। सभी कुत्ते उसकी ओर बढ़े। वह प्रसन्नता से  उछला-कूदा। अपनी ही छाया से खेला, खुश हुआ और फिर पूँछ हिलाता हुआ बाहर चला गया।

जब मैं अपने आसपास के लोगों को हमेशा परेशान, नाराज और चिड़चिड़ाते देखता हूँ तब इसी किस्से का स्मरण हो जाता है। मैं उनकी  मिसाल भौंकने वाले कुत्ते से नहीं देना चाहता। यह तो हद दर्जे की बदतमीज़ी होगी। पर इस कहानी से वे चाहें तो कुछ सबक जरूर सीख सकते हैं।

यह दुनिया काँच के एक महल जैसी है। अपने स्वभाव की छाया ही हम पर पड़ती है। “आप भले तो जग भला, आप बुरे  तो जग बुरा।” अगर आप प्रसन्नचित रहते हैं, दूसरों के दोषों को न देखकर उनके  गुणों की ओर ध्यान देते हैं तो दुनिया भी आपसे नम्रता और प्रेम का बर्ताव करेगी। अगर आप हमेशा लोगों के ऐबों की ओर देखते हैं, उन्हें अपना शत्रु मानते हैं और उन पर गुस्सा करते हैं तो फिर वे क्यों न आपकी ओर भौंकते दौड़ेंगे?  अंग्रेज़ी में एक कहावत है कि अगर आप हँसेंगे तो दुनिया भी आपके साथ हँसेगी पर अगर आपको गुस्सा होना और रोना ही है तो दुनिया से दूर किसी जंगल में चले जाना ही हितकर होगा।

अमेरिका के मशहूर राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन  से कि सी ने  उनकी सफलता का सबसे बड़ा कारण जानना चाहा  तो उन्होंने ज़रा देर सोचकर उत्तर दिया, “मैं दूसरों की अनावश्यक नुक्ताचीनी कर उनका दिल नहीं दुखाता।” इसी तरह के प्रश्न का उत्तर देते हुए हेनरी फोर्ड ने कहा था-- “मैं हमेशा दूसरों के दृष्टिकोण को समझने की कोशिश करता हूँ।” ये दो छोटे-छोटे वाक्य शब्दों का संयोजन मात्र नहीं हैं। इनकी गहराई को समझा जाए तो हमारी ज़िंदगी में क्रांन्ति हो जाए।
कुछ लोगों  की यही कमज़ोरी है। वे दूसरों का दृष्टिकोण समझने की कोशिश ही नहीं करते, बल्कि दूसरों के विचारों, काम, भावनाओं आदि की आलोचना करना ही अपना परमधर्म समझते हैं। शायद उनका विचार है कि ईश्वर ने उन्हें लोगों को सुधारने के लिए ही भेजा है, पर वे यह भूल जाते हैं कि शहद की एक बूँद एक सेर ज़हर के बजाए ज्यादा मक्खियों को आकर्षित करती है।

दुनिया में कौन पूर्ण है? हरेक में कुछ न कुछ त्रुटियाँ रहती हैं, फिर दूसरों के दोष ढूंढ़कर उनको सुधारने की कोशिश करना अनुचित ही समझना चाहिए। जैसा कि ईसा ने कहा था कि लोग दूसरों की आँख का तिनका तो देखते हैं पर अपनी आँख का शहतीर भी नहीं देखते। दूसरों को सीख देना बहुत आसान काम है। अपने ही आदर्शों पर स्वयं अमल करना कठिन है।

अगर आप अपने को ही सुधारने का प्रयत्न करें और दूसरों के अवगुणों पर टीका-टिप्पणी करना बंद कर दें तो आप सफलता के ज्य़ादा करीब हो जाएँगे। अगर हमारा जीवन एक चमकती रोशनी की तरह आकर्षक होगा तो सैकड़ों-हज़ारों परवाने बरबस एकत्र होंगे और हमारे ज़रा से इशारे पर बड़ी से बड़ी कुर्बानी करने के लिए तैयार रहेंगे। याद रखिए कि अंधेरे की ओर कोई नहीं खिंचता है, क्योंकि वहाँ तो ठोकर खाकर गिर जाने की ही संभावना अधिक होती है।

इसी सिलसिले में एक बात और। आप तो दूसरों की नुक्ताचीनी नहीं करेंगे, ऐसी उम्मीद है, पर दूसरे ही अगर आपकी नुक्ताचीनी करना न छोड़ें तो? कुछ लोग अपनी बुराई या आलोचना सुनकर आगबबूला हो जाते हैं, भले ही वह दिन भर सारी दुनिया की आलोचना करते रहें। ध्यान से सोचिए, जब कोई आपकी आलोचना करता है तो उसे आप में कोई कमी नज़र आई होगी, तभी तो आलोचना हुई। यदि निंदक ने आपका ध्यान आपके अवगुणों की ओर दिला दिया है तो आत्मविश्लेषण कीजिए और अपने अवगुणों को दूर करने का जी-जान से प्रयत्न कीजिए। यही नहीं, उसका उपकार मानिए कि उसने आपके उन दोषों की ओर ध्यान दिलाया जिनकी ओर  से आपने आंखें मूँद रखी थीं।

एक दिन हमारे एक मित्र के कार्यालय के एक कर्मचारी से कुछ गलती हो गई। हमारे मित्र तुरन्त बिगड़कर बोले -- “देखिये महाशय, यह आपकी सरासर गलती है। आइंदा ऐसा करेंगे तो ठीक नहीं होगा।” बेचारे महाशय जी बड़े दुखी हुए। सबके सामने उनका अपमान हो गया। मन में क्रोध जागृत हुआ और वे बिना कुछ उत्तर दिए ही उठकर चले गये। दूसरे दिन मैंने उन महाशय से एकांत में कहा, “देखिए, गलती तो सभी से होती है। ऐसी गलती मैं भी कर चुका हूँ। इसमें दुखी होने का कोई कारण नहीं है। आप तो बड़े समझदार हैं। कोशिश करें तो यह तो क्या, बड़ी से बड़ी गलती भी सुधारी जा सकती है। ठीक है न ?”

उनकी आँखों में आँसू छलछला आये। बड़े प्रेम से बोले -- “जी हाँ, मैं अपनी गलती मानता हूँ। आगे भला मैं वही गलती क्यों करने लगा? पर कोई मुहब्बत से पेश आए तब न? आदमी प्रेम का भूखा रहता है। केवल रोटी का नहीं।”

थोड़े से मीठे शब्दों ने अपना काम तुरन्त कर दिया। अपने व्यवहार में मिठास लाने के लिए एक कौड़ी भी तो खर्च नहीं होती, पर करोड़ों दिलों  को जीता जा सकता है। सभी के दिल हमारे जैसे ही हैं। किसी व्यक्ति का दिल दुखाने या उसे कड़वा बोलने से हमें कोई लाभ तो होता नहीं, उल्टे हानि की आशंका अवश्य होती है। फिर क्यों न हम मीठा बोलकर अपनी व दूसरों की जिंदगी में मधुर चाँदनी सी बिखेर दें? 

पी. के. खुराना दो दशक तक इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी और दिव्य हिमाचल आदि विभिन्न मीडिया घरानों में वरिष्ठ पदों पर रहे।

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