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19.9.20

सच्चे पत्रकार और साहित्यकार होते हैं वास्तविक जनप्रतिनिधि

डॉ. सन्तोष कुमार मिश्र

 
साहित्य और पत्रकारिता का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है।यदि पत्रकारिता तथ्यों एवं विचारों को उदघाटित करती है तो साहित्य अमूर्त भावों और विचारों को अभिव्यक्ति देता है।दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।पत्रकारिता को साहित्य की एक विधा कहना गलत नहीं होगा।खुशवंत सिंह,कुलदीप नैयर,विद्यानिवास मिश्र,अज्ञेय, मनोहर श्याम जोशी और वर्तमान में हृदयनारायण दीक्षित ,वेदप्रताप वैदिक जैसे लोगों की लंबी परम्परा है जिन्होंने लेखक और पत्रकार के श्रेष्ठ दायित्वों का समान रूप से निर्वहन किया है।कुछ समय पूर्व तक पत्रकारिता में प्रवेश के लिए यह जरूरी था कि व्यक्ति का लगाव साहित्य की तरफ हो लेकिन आज ऐसा नहीं है।तकनीक के प्रयोग और पैसे की चमक ने पत्रकारिता को तुलनात्मक रूप से साहित्य से ज्यादा लोकप्रियता का माध्यम बना दिया।फलतःसाहित्य और पत्रकारिता के बीच पहले जैसा रिश्ता नहीं रहा।आज दोनों पर एक दूसरे की उपेक्षा का आरोप लगता है।


   प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के पूर्व से लेकर आजादी के बहत्तर साल बाद तक तमाम उतार चढ़ाव से गुजरते हुए हिंदी पत्रकारिता  194 वर्ष की हो गयी।लगभग इन दो सौ वर्षों में पत्रकारिता की दुनियां में बहुत कुछ घटित हुआ और समाज की बेहतरी के लिए बहुत कुछ करने की सम्भावना भी बाकी है।लोकतांत्रिक व्यवस्था का चौथा और महत्वपूर्ण स्तम्भ पत्रकारिता है।आजादी से पूर्व हिंदी पत्रकारिता के तीन लक्ष्य थे।पहला लक्ष्य था कलम को हथियार बनाकर आजादी हासिल करना,दूसरा साहित्यिक उत्थान और तीसरा समाज सुधार करना।पण्डित युगल किशोर शुक्ल द्वारा सम्पादित उदन्त मार्तण्ड को पहला अख़बार होने का श्रेय जाता है।

कलकत्ता (कोलकाता)से 30 मई 1826 को इसका प्रकाशन शुरू हुआ।
    आजादी से पूर्व पत्रकारिता कर्म एक व्रत था और आजादी के बाद यह वृति में बदल गया।आज अर्थ के इस युग में देश और समाज के हित से पहले पत्रकारों के लिए निजी हित याअपने प्रतिष्ठान का हित सर्वोपरि है।यद्यपि कुछ निडर और निर्भीक पत्रकार आज भी खड़े हैं लेकिन जुनून के साथ जूझने के आलावा उनके पास कुछ भी नहीं।यहाँ तक कि परिवार के पालन पोषण का भी संकट है।पत्रकार या सम्पादक को इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि समाचारों  या लेख की आड़ में किसी का प्रचार नहीं होना चाहिए साथ ही यह भी सुनिश्चित हो कि सरकार के प्रति नकारात्मकता फैलाने का यह माध्यम भी न बने।यह काम तलवार की धार पर चलने जैसा है। (We don't go into journalism to be popular.It is our job to seek the truth and put constant pressure on our leaders until we get answer- Helen Thomas)अर्थात पत्रकारिता का उद्देश्य लोकप्रियता बटोरना नहीं है।पत्रकार का काम है सत्य को तलाशना और जवाब पाने के लिए शासकों के ऊपर दबाव डालना।

आज के प्रतिष्ठित अख़बारों से जुड़े कुछ नामचीन पत्रकारों ने अपनी निष्ठा को गिरवी रख दिया हैऔर सत्ता- सिंहासन के इर्द गिर्द डोलने बोलने को लक्ष्य बना आर्थिक हित साधने में लगे हैं।पत्रकारिता प्रसिद्धि का माध्यम बन गई है और इसका लक्ष्य सत्य तलाशने की जगह सत्ता में भागीदारी बन गया है।तिलक,गाँधी,डॉ राममनोहर लोहिया,बाबू बनारसीदास ,बद्री विशाल पित्ती,आचार्य नरेंद्र देव,पं.दीनदयाल उपाध्याय ,अटल बिहारी वाजपेयी सरीखे राजनीतिज्ञों ने अपने जीवनकाल में पत्रकारिता के मूल चरित्र को अक्षुण्य बनाये रखा। आज के दौर की पत्रकारिता रास्ते से भटक गयी है।

    समाज में जागरूकता लाना पत्रकार का पहला दायित्व है और इसका निर्वाह करने वाला ही सच्चा पत्रकार है।सच कहें तो हमारे तथाकथित जनप्रतिनिधि दलों की दलदल में फंसे होते हैं लेकिन सच्चे पत्रकार और साहित्यकार वास्तविक जनप्रतिनिधि होते हैं।आज के दौर की पत्रकारिता ने उद्योग का रूप ले लिया है।बड़े बड़े मीडिया हाऊस अस्तित्व में आ गए हैं।आंकड़ों पर गौर करें तो अनुमानतः सवा लाख करोड़ से अधिक का यह उद्योग बन चुका है।राष्ट्रीय एजेंडा निर्धारण में मीडिया की भूमिका भी बढ़ी है लेकिन आधुनिक दौर में संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों से समाज की अपेक्षा है कि पत्रकारिता रूपी संस्था को कारोबारी नजरिये से हटकर ताकत मिलती रहे जिससे एक सौ तीस करोड़ का देश पूरी पारदर्शिता से प्रगति के पथ पर बढ़ता रहे।पत्रकारिता ही वह माध्यम था जिसने आजादी में जनचेतना का मार्ग प्रशस्त किया  और आजादी के बहत्तर साल बाद पुनःराष्ट्रीय व सामाजिक दायित्वों की पूर्ति के लिये  व्रती पत्रकारिता की आवश्यकता महसूस हो रही है।यदि समाज के ज्वलन्त मुद्दों पर पत्रकार की लेखनी छैनी का काम करेगी तभी भारतीय समाज को सुंदर आकार देने में सफल होगी।एक कहावत प्रचलित है कि पत्रकारिता सरकार की मां नहीं है जो पीछे से सहारा दे,वह सरकार का बच्चा भी नहीं है जिसे गोंद में बिठा के खिलाया जाए बल्कि पत्रकारिता तो सरकार का बाप है जो कान खींच के उसे रास्ता दिखाए।अगर आज पत्रकारिता यह कर पाने में समर्थ है तो उसे सार्थक माना जायेगा। चुनौतियों से जूझते हुए सत्य के साथ पत्रकार का खड़ा होनाऔर विमर्श को जिन्दा रखना समाज को समाधान देगा।हिंदी पत्रकारिता दिवस  की सुधी पाठकों और पत्रकार बन्धुओं को बधाई।

डॉ. सन्तोष कुमार मिश्र
श्री म. रा. दा.पी.जी.कालेज
भुड़कुड़ा, गाजीपुर।
pradeep.mrfc@gmail.com
   

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