29.2.08
आप आहत हुए, मैं क्षमा प्रार्थी हूं--अविनाश
अगर आप चाहते हैं कि जंग हो तो मैं तैयार हो
सारी....हूं....
Avinash: माफ कीजिएगा, दिन में मैं बजट में उलझा हुआ था।
अभी अभी घर लौटा हूं।
me: पर मैं एक बार चाहता हूं कि आपसे बात हो जाए
अगर ऐसी तैसी पर उतारू हो तो बताओ
बहुत हुआ सम्मान, इस चैट को आनलाइन कर देना पर मैं आपको बड़ा भाई मानता हूं तो अंतिम अनुरोध कर रहा हूं
कि मान जाओ.....
मान जाओ....
जो अनाम कमेंट मेरे खिलाफ मोहल्ले पे लगा रखे हो अगले 12 घंटे में हटा लो, इसे धमकी समझो या छोटे भाई का अनुरोध
Avinash: जो मुझे नागवार गुज़रा, मैंने लिखा।
me: ये निजी मामला है, सिर्फ आप से कह रहा हूं इस वक्त, घर से चैट कर रहा हूं
Avinash: मैंने तो अभी कमेंट देखे भी नहीं हैं सारे। देखता हूं। आपत्तिजनक हुआ तो ज़रूर हटाऊंगा।
Sent at 23:28 on Friday
Avinash: भड़ास देखा। आपने पर्याप्त लानत मलामत की है। आपका बहुत शुक्रिया।
me: नाटक बंद करो भाई.......समझ लो, बहुत हुआ, अभी तो पहल तुमने की है, अंत क्या होगा, किसी को नहीं पात....ये मैं आपसे छोटे भाई के नाते अनुरोध कर रहा हूं.....इसे आप सार्वजनिक कर सकते हो
Avinash: इस अंदाज़ में बातें शोभनीय नहीं।
me: मुझे पता है तुम यही हरकत करते रहे हो जीवन में...तुमने शोभनीय अशोभनीय की सीमाएं तोड़ दी हैं, तभी तुम अनाम कमेंट के नाम से खुद लिख रहे हो
Avinash: आपने पी रखी है। सुबह बात करेंगे।
me: कमेंट बिलो द बेल्ट लिख रहो हो, खुद तुम...
Avinash: मोहल्ले की पोस्ट से आप आहत हुए, क्षमाप्रार्थी हूं।
me: क्योंकि तुम्हारी ये परंपरा है लिखने की, तुम जिसे पसंद नहीं करते हो, उसे खत्म कर देते हो, पर मैं खत्म हो के जी लेता हूं...
Avinash: मैं प्रतिबंध के पक्ष में नहीं हूं।
me: तुम नाटक कर रहो हो
Avinash: मेरी पूरी पोस्ट में असहमति मुखर है, प्रतिबंध की बात नहीं।
me: ताकि तुम इस चैट को डाल सको
तुम्हें मैं अच्छी तरह समझता हूं
तुम दरअसल जो हो वो बहुत कम लोग समझते हैं
Avinash: मैं जानता हूं किस चैट को सार्वजनिक करना है, किसे नहीं।
me: तुमने पंगा लिया है बौद्धिक, तो मैं भी बौद्धिक जवाब दिया है
Avinash: आप इत्मीनान रहें। इस चैट में प्रयोग की जा रही भाषा के लिए मोहल्ले में कोई जगह नहीं है।
आपके बौद्धिक जवाब का स्वागत है।
me: पर मैं अगले 12 घंटे में वो अनाम कमेंट हटना देखना चाहता हूं मोहल्ले से जिसमें मेरे बिलो द बेल्ट प्रहार किया गया है
Avinash: उसके लिए शुक्रिया अदा करता हूं।
me: मेरे पास भी कई सारी चीजें हैं जिसे मैं अनाम डाल सकता हूं
लोग मुझे उकसा रहे हैं
मुझे तुम्हारे चरित्र से लेकर सार्वजनिक लाइफ तक के ढेर सारे सामाग्री दे रहे हैं
Avinash: शायद मैं ऐसा नहीं कर पाऊंगा, क्योंकि धमकियां मुझे विचलित नहीं करतीं। अनुरोध करते, तो ज़रूर हटा लेता।
me: लेकिन ये जानते हुए कि तुम इस चैट को सार्वजनिक कर सकते हो
Avinash: क्या आपने हिज हाइनेस मनीषा की पोस्ट हटायी?
me: मैं यह अंतिम बार कह रहा हूं
भाई मान जाओ....
मैं अब शुक्रिया, खुदा हाफिज बोल रहा हूं....
मैं सुबह 8 बजे फिर देखू्ंगा
क्या माजरा है
Avinash: शुभ रात्रि
me: बाय....शुभ रात्रि
अनुरोध
सस्ती शोहरत कमाने के टोटके और मनीषा पांडेय
यशवंत भाईसाहब मेहरबानी करके मेरा नंबर न हटाएं ।
भड़ास ज़िन्दाबाद
सभी भड़ासियों को गोली मार दो
बहुत हो गया। नाक के ऊपर से पानी बहने लगा है। अब बस। अभी नही तो कभी नही। सभी भड़ासियों के ब्लाग को प्रतिबंधित कर दो। न रहेगी बांस न बजेगी बांसुरी। और हाँ, हो सके तो उनके मां-बहन को गलियां दो। मन न भरे तो जहाँ मिले भड़ासियों को गोली मार दो।
इसके लिए यशवंत जी को सभी भड़ासियों के नाम सार्वजनिक करने चाहिए। दो लोगों के लड़ाई में पूरा जमात शामिल है। समस्या का समाधान मत खोजो। सभी हनुमान के वंशज हैं। बूटी तो ला नही सकते पहाड़ ही उठा लायेंगे। ये बही लोग हैं, जो बातचीत से समस्या का समाधान नही करेंगे बल्कि गाँव से अपने भाइयों को खदेड़ कर ही मानेंगे।
मन की पिछले कुछ दिनों से मनीषा जी को लेकर जो लिखा गया, उसमे ग़लत था। इस का मतलब यह नही की मैं भड़ास या मनीषा जी का वकालत कर रहा हौं। मुझे इस मामले से कोई लेना देना नही है। लेकिन जब विभीषण घर में पैदा हो को रावन को मरने से कौन बचा सकता है। यही बात भड़ास को लेकर है।
बताते चलूं मोहल्ला हो, टूटी- बिखरी हो या भड़ास सभी को मोडरेट करने वाले एक अच्छे दोस्त हैं, बेवकूफ बन रही है तो मनीषा और पूरी ब्लागर दुनिया।
"With Malice Towards None & All"
"हिन्दी में ना जाने क्यों विचारों का वो प्रवाह नही मिल पा रहा था, जिससे कि मै अपनी बात को सही से अभिव्यक्त कर पाता, इसी लिये काफ़ी अर्से बाद आज अंग्रेजी में पोस्ट कर रहा हूं।"
From the past one month or so I have been a silent spectator of the cold war which is happening in the hindi blogosphere? People are fighting it out hard with a volley of words with each other. One thing is for sure, no one is concerned about what he or she wants to achieve as an objective out of Independent blogging, rather they are concerned about what other people are doing or saying in their space?
I dont understand one thing, instead of staying focussed on what one wants to do, why are people getting distracted by things which should hardly matter to any one? Its a free world, any one is free to write anything? Usage of foul language is certainly something which one cant be appreciative of, but still there might be certain times where without venting out your ire in the form of abusive language you might not get the kind of satisfction that you want to achieve. I am not trying to be the devils advocate and start a new controversy but I am also not in complete favour of use of abuses. In the past there have been certain debates which are going no where? I have not been able to understand why this cold war is going on? On popularity charts if Bhadas supercedes any other personal or a group blog it shouldnt bother any one. We as people should rather concentrate on achieving the objectives of our own satisfaction out of blogging? These baseless or I should say needless controversies will not lead any of us any where? At the end of the day if one blog is closed there are loads of other ways? It might take people to get over with the jolt but sooner or later they might come back and this time may be with more vengeance. Who knows? Lately I have been my self very disappointed, and it kind of demotivated me to write anything.This is an illusionistic space why are we spoiling our own self by getting involved in these things. Are there lesser things to focus on? NO.Guys its time to grow up and think constructively. Dont get distracted by what ppl have to say about anyone. I certainly dont want to be a part of any controversy, it was just some thoughts which suddenly sparked off and i posted it "With Malice towards None and All"
Just do it? And be cool.
Thanks
Ankit Mathur
दूसरों के घर में गंदगी देखने वाले इरफान ने भड़ास के कहने पर अपने घर की गंदगी साफ की, विवादित कार्टून हटाया
काहें निकल लिए पतली गली से? आपने अपने ब्लाग पर जो कार्टून लगा रखा था, जिसमें एक नंगी स्त्री एक नंगे पुरुष का लिंग खींचे चली जा रही थी, भड़ास की आपत्ति के बाद क्यों हटा लिया? आप तो गंदगी के खिलाफ भड़ास को टारगेट कर मुहिम छेड़े हुए था पर मुझे नहीं पता था कि आप भी इस कदर की नीच गंदगी अपने ब्लाग पर फैलाए हैं। अब जबकि मैंने भड़ासियों से कह दिया है कि वो इरफान के ब्लाग को आपत्तिजनक कार्टून के चलते प्रतिबंधित कराने के लिए मुहिम छेड़ें तो आपको तब पता चला कि गंदगी तो आपके घर में टूटी हुई बिखरी हुई पड़ी है। अरे भइया, दूसरों के घर को सुधारने के पहले अपने घर में पहले ही झाड़ू वगैरह लगा लिये होते।
आपके ब्लाग के पोस्ट शील, अश्लील, कुछ टिप्स में जो गंदा कार्टून आपने लगाया था, वो अब नहीं है।
चलिए, भड़ास के चलते सदबुद्धि तो आई।
भड़ासियों भाई, कुछ दिनों तक धैर्य से...
एक बात भड़ासियों से, भई, थोड़ा माहौल गरम है, तब तक संयत भाषा का प्रयोग करें, कभी भी किसी को टारगेट लेते हुए न लिखें। आपको पता ही है कि बाहर की दुनिया कितनी चालबाज और रणनीतिक होती है, ये कर गुजरेंगे और हम लोग बाद में नुकसान का आंकड़ा ही लगाते रहेंगे। इसलिए इन दिनों जब माहौल गर्म है, संयम और संयत रहें। अपनी बात लिखें पर गालियों को जहां जरूरी हो, वहीं इस्तेमाल करें। हालांकि आप लोगों का यह कहना सही है कि जिसे ये ब्लाग न पढ़ना हो न पढ़े, अपने ब्लाग में मगन रहे, क्यों यहां आकर गुह में मुंह मारते हैं, बावजूद इसके, हम हिंदी वालों का दिमाग अब भी फ्यूडल है और हम कतई लोकतांत्रिक नहीं हुए है इसलिए कई बार मठाधीशों को यह बात सालती रहती है कि आखिर भड़ास इतना लोकप्रिय और इतने सदस्यों वाला क्यों है। भड़ास उनकी आंख की किरकिरी बना हुआ है। इसलिए हम लोगों को अभी रणनीतिक तौर पर कुछ दिनों तक जब तक यह विवाद शांत न हो जाए, अपना काम चुपचाप करते रहना है।
अगर मान भी लो कि भड़ास पर पाबंदी लग गई तो कोई बात नहीं। यह भी हम लोगों के लिए अच्छा होगा। भड़ास फिर ब्लागस्पाट की वजाय खुद के डाट काम नाम से आएगा जिससे कोई किसी से शिकायत करे, हम लोगों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा। इसीलिए तो गीता में कहा गया है कि जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है, जो होगा अच्छा होगा....खुश रहिए, मस्त रहिए।
जय भड़ास
यशवंत सिंह
भड़ास पर मैंने खुद ही एडल्ट कंटेंट की पाबंदी लगाई थी, लीजिए अब हटा रहा हूं....
कई ब्लागर इसी की खबर दे रहे हैं कि भड़ास पर पाबंदी लगा दी गई है। अरे भइया, सुबह सुबह आनलाइन होते ही तमाशा देखकर पहला काम यही किया मैंने एडल्ट कंटेंट वाला टैग लगा दिया, सेटिंग में जाकर ताकि तुम मूर्खों को यह लग सके तुम्हारी मूर्खता सफल हुई। अब जबकि तुम सभी को भरोसा हो चुका है कि भड़ास पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, तो लो, मैं इस प्रतिबंध को खुद हटा देता हूं। अब तुम भड़ास खोलोगे तो देखोगे कि कोई वार्निंग नहीं दिखेगी, सीधे भड़ास खुलेगा और तुम्हारे चेहरे पर एक झापड़ लगेगा.....चटाक से, भड़ास के इतने सरल व सहज तरीके से खुलने को लेकर।
कल हमारा क्या होगा, तुम्हारा क्या होगा, ये तो किसी को नहीं पता पर आज की जंग तो हम भड़ासियों ने जीत ली है। तुम लोगों की खुशफहमी पर पानी फेरकर कि भड़ास प्रतिबंधित हो गया।
लगे रहो भाइयों...भड़ास पर पाबंदी लगवाने में, हम भी लगे हैं तुम्हें नंगा कराने में.....
जय भड़ास
यशवंत
''भडास'' को प्रतिबन्ध करने के विरोध में बेगुसराय के युवाओं ने थामा मोर्चा.
इधर बेगुसराय में मैंने अपने स्तर से युवाओं को सामने आने का अनुरोध किया है,उनको बताया है की इस पिछ्रे जिले में भडास जिस तेजी से लोकप्रिय हुआ है और आम आदमी जो भड़ास को किसी भी रूप में चाहते हैं वे सामने आयें और दिन भर साइबर कैफे में बैठ कर ''मोहल्ला'' और इरफान एवं अन्य के ब्लॉग को तब तक फेलेग करते रहे जब तक उन्हें बैन न कर दे।
तो भडासी साथिओं घबराएं नही ...हिन्दुस्तान की यह खूबी रही है की इस भूमि पर क्रांति की आग थोरी देर से सुलगती जरुर है लेकिन मंजिल को प्राप्त कर के ही दम लेती है। तुम एक भडास बंद करो...हम हर आवाम के दिल में भडास की मशाल जलाएँगे ...हमारी आन्दोलन और गालियों का अनवरत दौर तब तक चलता रहेगा जब तक हम देश वासिओं को ये न बता दें की तुम मठाधीशों के कारण ही भारत अपने मंजिल से महरूम है....
जय यशवंत...जय आम अवाम
मनीष राज बेगुसराय
मुझे तो कई बार फ़ांसी की सजा होनी चाहिए
अब तो जय भड़ास लिखने में भी डर लग रहा है पर डरते-डरते ही सही लिख रहा हूं । चलो भाई-भैन लोग गुड बाय नर्क के ग्राऊंड फ़्लोर पर सारे भड़ासी मिलेंगे मैं सबसे पहले वहां पहुंचने वाला हूं आप सब की अगवानी का इंतजाम करके रखूंगा.....
अविनाश की भाषा हिटलर वाली है-- हरेप्रकाश उपाध्याय
हरे प्रकाश उपाध्याय has left a new comment on your post "भड़ास विरोधी मोर्चाः ये तो होना ही था.....ये तो हो...":
avinash ki bhasha hitler vali hai yshvant bhai. baki koi hrj nhi hai mujhe furst mili to likhunga ki mohalla pr kyo prtibndh lga diya jay...vaise aavaj bnd krne-krane me mera koi bharosa hai nhi...hm har likh-bole ka jvab likh bol ke hi de skte hai...asahmati ka arth kisi ki aavaj shant kr dena nhi hota...aur jhan tk galiyon ki bat hai to hr kisan-mjur, dlit, gramin ki aavaj, unke bole-kahe ko prtibandhit kr diya jay...lgta avinash ko black literature se bhari aprichy ya droh hai...ve mrathi dlit sahity bhi nhi dekh paye hain...hindi dlit sahity bhi nhi...ve vhan ki bhasha...swarn aurton ke bare me njariya aadi dekhen aur sbko pratibandhit kra den...jai ho ...jai ho...
yh bhadas ki sarthakta hai ki vh jis chutiyape ke virudh uth khada hua hai...unki ab ftne lgi hai...
is tilmilhat se hi shayad kuchh nye prtik samne aayen...
nhi to tu meri sahla mai teri to chal hi rha hai...jai..jai..
ek hinjara ki kya aukat ki vh blog pr aakr bole...in ptrkron aur bhudhi-jiviyon ko lg gya n bura...jai..jai...jai ho...
Posted by हरे प्रकाश उपाध्याय to भड़ास at 29/2/08 12:45 PM
मनीषा दीदी का अस्तित्त्व का खौफ़ सता रहा है शीर्षस्थ ब्लागरों को
जय जय भड़ास
इनकी नंगई प्रगतिशील है, हमारी प्रतिबंधित करने लायक!!!
अविनाश जी के मोहल्ले में जब महिलाओं की दशा दिशा पर बात की जाती है तो ऐसी नंगी नंगी तस्वीरों का कोलाज का रूप में इस्तेमाल किया जाता है जिसे देखते हुए कोई यह नहीं कह सकता कि ये सभ्य तस्वीरें हैं। क्या इस आधार पर मोहल्ले को प्रतिबंधित नहीं करा देना चाहिए?
नहीं, इनकी नंगई जायज है, क्योंकि ये कथित रूप से प्रगतिशील नंगई है, हिप्पोक्रेटिक नंगई है.....। इन्हें भड़ासी नंगई खराब लगती है क्योंकि हम खुलकर कहते हैं कि हम उल्टी कर रहे हैं, गंदी गंदी बातें कर रहे हैं, हम बुरे लोग हैं, हम खराब लोग हैं, हम कुंठित लोग हैं, हम सहज होना चाहते हैं, हम हलका होना चाहते हैं....
लेकिन दरअसल भड़ास इन हिप्पोक्रेटों, मठाधीशों और कथित प्रगतिशीलों के काकस में फिट नहीं बैठ रहा है, सो इन्हें गुस्सा आना लाजिमी है। दरअसल ये ब्लागिंग को पुरानों के चंगुल से निकालकर अपने चंगुल में ले आये हैं सो इन्हें यह सहन नहीं होता कि कोई ऐसा ब्लाग भी सबकी चर्चा में रहे जो इनकी जी हुजूरी नहीं करता, इनके ब्लाग के झंडे के नीचे नहीं आता, इनकी कथित प्रगतिशीलता के पैमानों पर खरा नहीं उतरता।
प्रमोद सिंह की बात इसलिए नहीं करूंगा क्योंकि मुझे वे शामिल बाजा लगने लगे हैं, जिधर ज्यादा धुन बजने लगे, उधर वो भी अपनी बांस कि पिपहरी लेकर बजाने लगते हैं, पें पें पें...हें हें हें...उन पर भगवान रहम करे।
तो भइया....आप लोग अपनी नंगई को शाब्दिक आवरणों के ढांक कर बौद्धिक बने रहो, हमें प्रतिबंधित करते रहो।
जय भड़ास
यशवंत
भड़ास विरोधी मोर्चाः ब्लागवाणी अपने यहां से हटा दे, गूगल बैन लगा दे...पर मैं एक भी पोस्ट एडिट नहीं करूंगा
तो ऐसी स्थिति में मेरा साफ कहना है कि मैं इस विवाद के शुरू होने के बाद अब एक भी गाली भरी पोस्ट को एडिट करने या रिमूव करने नहीं जा रहा हूं। मेरा ब्लागवाणी से निजी अनुरोध है कि वो भड़ास को अपने यहां से हटा दें ताकि शरीफ लोगों को गंदी गंदी बातें सुनने पढ़ने को न मिले। गूगल से अनुरोध है जिन लोगों ने शिकायतें की हैं, उनकी शिकायतों को संज्ञान में लेते हुए भड़ास पर बैन लगा दे ताकि उनके दिल को शांति मिले और उनकी मठाधीशी चलती रहे।
हमें कोई दिक्कत नहीं, हम अपना नया उगालदान बना लेंगे। ये वाला लगता है पुराना हो गया। डस्टबिन भी नई बनाते रहनी चाहिए, सो भाई लोगों ....लगे रहो......जुटे रहे....डटे रहो.....देखता हूं कितना है गूदा.....।
भड़ास की सबसे कमजोर कड़ी आशीष महर्षि ने थोड़ी सी हवा क्या बही, सूखे पत्ते की तरह भड़ास रूपी पेड़ से झर गए। चलो आशीष, आप को ढेरों शुभकामनाएं, वैसे भी आपने भड़ास का इस्तेमाल हमेशा अपने ब्लाग बोलहल्ला के प्रमोशन के लिए किया था। आपको जब मैंने एक बार इस काम के लिए रोका और ऐसा करने से मना किया तो आपने आगे से न करने की बात कही। उसके बाद से भड़ास पर आप शायद ही कभी कुछ लिख पाये हो। कमेंट भी किया है तो वो पोस्ट को बिना पढ़े किया, सो आप जैसे सूखे पत्तों को हम भड़ासी दिल से चाहते हैं कि इस पेड़ से झर जाएं।
और अभी तो हवा बहनी शुरू हुई है, जब ये आंधी का रूप लेगी तो तब तक ढेर सारे लोग भड़ास रूपी पेड़ से झर झर कर नीचे गिरेंगे। ये अच्छा है, ताकि भड़ास रूपी पेड़ पर फिर नये और ताजे कोंपलें अवतिरत होंगी।
जय भड़ास
यशवंत
भड़ास विरोधी मोर्चाः ये तो होना ही था.....ये तो होता ही है...ये तो होकर ही रहेगा...!!!
तीनों पोस्टों को पढ़ने के बाद मुझे क्या महसूस हुआ? सच्ची बताऊं....केवल एक लाइन में....वो ये कि....ये तो होना ही था, ये तो होता ही है, ये तो होकर ही रहेगा...
इसलिए क्योंकि इतिहास और सदियां गवाह हैं, जो भी बने बनाये रस्ते से अलग हटकर चला, उसे ढेर सारे फर्जी आरोपों में कैद कर तुरत फुरत सूली पर चढ़ा दिया जाता है ताकि वो क्रांति की मसाल जो जलनी शुरू हुई है लावा बनने से पहले ही दफन हो जाये।
और उपरोक्त तीनों साथियों अविनाश जी, इरफान जी, प्रमोद जी के आरोप क्या हैं....जो मैं लब्बोलुवाब के तौर पर लिख रहा हूं और जो इन्होंने अपनी अपनी पोस्टों में लगाये हैं....
1- मनीषा हिज हाइनेस नामक जो भड़ासी हैं वो फर्जी हैं और उनके जरिये मनीषा पांडेय को प्रताड़ित किया जा रहा है
2- भड़ास पर गालियों और अश्लीलता की भरमार है, इसलिए इसे तुरत फुरत प्रतिबंधित किया जाए, खासकर मनीष राज ने जो कुछ पीस लिखे हैं, उसका खास उल्लेख किया गया है
और भी कुछ आरोप होंगे, पर मुझे ये ही दो प्रमुख दिखे....
मेरा इस बारे में कहना है....
1- मनीषा हिज हाइनेस नामक भड़ासी वाकई एक मनीषा हिजड़ा हैं जो मुंबई में हैं और डा. रूपेश श्रीवास्तव उनसे जुड़े हैं, उन्हें ब्लागिंग सिखा रहे हैं। मनीषा नामक जिस हिजड़ा साथी को लेकर मनीषा पांडेय को यह भय है कि उन्हें परेशान करने के लिए यह चरित्र गढ़ा गया है तो मैं सभी ब्लागरों (खासकर मुंबई वालों) से अनुरोध करता हूं कि वो मुंबई में डा. रूपेश से संपर्क कर मनीषा हिजड़ा से मुलाकात कर लें और उनकी ठीक तरह से जांच कर पता कर लें कि मनीषा हिजड़ा नामक जो साथी भड़ासी है और जिसने अभी हिजड़ों का एक ब्लाग डा. रूपेश की मदद से शुरू किया है, वो वाकई में है या नहीं है।
मतलब, मनीषा हिजड़ा की शख्सीयत है, इनका उल्लेख डा. रूपेश श्रीवास्तव अपने पोस्टों में पहले से करते रहे हैं जिस समय मनीषा पांडेय से कोई वैचारिक बहस या मतभेद भी न हुआ था।
2- रही बात गालियों की, तो अगर इस आधार पर भड़ास को अश्लील माना जा रहा है और इसे प्रतिबंधित करने की बात कही जा रही है तो आप शौक से प्रतिबंध लगवा लीजिए। आपही की तरह लोगों ने डा. सुभाष भदौरिया का एक ब्लाग प्रतिबंधित करा दिया था पर उससे डा. सुभाष भदौरिया ब्लागिंग से तो नहीं चले गए। वे आज भी हैं। आप भड़ास को प्रतिबंधित कराओगे तो भड़ास दूसरे नाम से बेहद लोकप्रिय होकर आ जाएगा।
तो मैंने दो बातें कहीं, एक तो मनीषा हिजड़ा की आईडेंटिटी को लेकर जो बवाल मचा हुआ है, उसकी निष्पक्ष जांच करा ली जाए और दूसरी बात गालियों के चलते भड़ास पर प्रतिबंध लगवाना चाहते हैं तो शौक से लगवा लीजिए।
आप लोगों के कदमों से हम लोगों का तो जो कुछ बिगड़ेगा सो बिगड़ेगा, लेकिन आप लोगों की असली सूरत दुनिया के सामने आ रही है, और आएगी.....इस बात की पूरी व्यवस्था आप लोगों ने खुद ही कर ली है।
चूंकि आप लोगों के प्रति मेरे मन में आज भी सम्मान है, इसलिए मैं अपना धैर्य नहीं खोउंगा, पूरी विनम्रता से आप लोगों से लड़ूंगा.......
भड़ासियों से अनुरोध है कि वे भी इस मामले में संयम से काम लें। किसी के प्रति अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल न करें। अविनश जी, इराफन जी, प्रमोद जी...ये सभी लोग किसी न किसी रूप में मेरे प्रिय रहे हैं, हैं और रहेंगे। इसलिए इनके प्रति मेरे मन में जो श्रद्धा और आदर है, वो है तो आगे भी रहेगी, ऐसे छोटे मोटे विषयों से इन रिश्तों व संबंधों के खत्म होने का कोई मतलब नहीं होता। ब्लागिंग जीवन का एक पार्ट है, पूरी ज़िंदगी नहीं है। इसलिए आप सभी भड़ासी भाई, अपनी भड़ास निकालते रहें.....फागुन गाते रहें, बाते बतातें रहें.....भड़ास बंद करा दिया जाएगा तो क्या हुआ, फिर एक नया ब्लाग बना लिया जाएगा....और मुझे पता है कि मैं एक आवाज दूंगा तो आप सभी फिर वहां दौड़े दौड़े चले आओगे....
मैं थोड़ा इमोशनलिया रहा हूं, जैसे अर्जुन कौरवों से लड़ने से पहले हुए थे, लेकिन उन्हें तो कृष्ण ने समझाबुझाकर लड़वा दिया था, पर मैं नहीं चाहता कि मैं किसी हालत में अपने दिल के करीब भाइयों से लड़ूं। कोई कृष्ण समझावें तो भी नहीं। इसलिए आप सभी वरिष्ठ कनिष्ठ भड़ासियों सो अनुरोध करता हूं कि इस मामले में पूरी तरह संयम और धैर्य का परिचय दें। ये दिन भी कट जाएगा, हजार मुश्किलों से पहले ही गुजर चुके हैं।
जय भड़ास
यशवंत
28.2.08
अपराधी तो कोई भी हो सकता है क्या स्त्री ,क्या पुरुष और क्या हिजड़ा ......
जय जय भड़ास
लड़की का नाम रुचिका, लड़के का नाम नासिर....संदर्भ वो पतिता फिर भाग गई ...पार्ट टू
साथी राकेश जुयाल का दिल से आभार जो उन्होंने यह महत्वपूर्ण तथ्य मेल के जरिए मुझे भेजा। मैं उनके पत्र को यहां हू ब हू प्रकाशित कर रहा हूं ताकि जिन लोगों ने उस स्टोरी को पढ़ी होगी, वे ये तथ्य भी जान लें। जिन लोगों ने वो स्टोरी नहीं पढ़ी होगी वो.....वो पतिता फिर भाग गई...पार्ट टू....शीर्षक से पिछले दिनों भड़ास में प्रकाशित पोस्ट जरूर पढ़ें।
जय भड़ास
यशवंत
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RJuyal to me
show details 23 Feb (5 days ago)
यशवंत जी वो लड़की रुचिका जिसे आपने क्फ्.फ्.भ् को पहले पेज पर बाई लाइन अपने नाम से छापा था ,दुविधा के दोराहे पर खड़ी हुई जिंदगानी , शीर्षक से प्रकाशित किया था । ख्फ् मई को रुचिका फिर नासिर के साथ भाग गई
ख्� मई को इलाहाबाद हाईकोर्ट की हां के बाद चले महानगर के प्रेम दीवाने
जाति-धर्म से ऊपर प्रेम की जीत हुई जिसे कोर्ट ने भी स्वीकार किया ।
राकेश जुयाल
Dainik Jagran - Largest Read Daily of India with 53.61 Millions Readers (Source: Indian Readership Survey 2007 R2)
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राधे राधे, जय गोविंदा, जय श्रीकृष्णा, हरिओम, नमो नारायण....
इनके यहां जो सबसे अच्छा अनुभव होता है वो प्रसाद खाना। इतना सादा व सात्विक खाना मिलता है कि पंगत में बैठकर खाने पर मन खुश हो जाता है। पिछले दिनों हरिद्वार तो फिर इन दिनों वृंदावन में इन अनुभवों से दो चार हो रहा हूं। चूंकि अभी अनुभव प्रक्रिया लगातार जारी है सो इस पर ज्यादा लिखना उचित नहीं लेकिन मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूं कि अपने इस कार्यकाल में मैं मार्केटिंग व बिजनेस के लिए काम करते हुए हिंदू धर्म गुरुओं, बाबाओ, आश्रमों, संगठनों को काफी करीब से जान पा रहा हूं। इनमें से ढेर सारे शीर्ष बाबाओं से तो अब लगभग दोस्ती हो चुकी है। उनके साथ उनके जीवन के अनुभवों, उनकी सांगठनिक क्षमता, उनके आध्यात्मिक अनुभवों को सुनना, सहेजना मजेदार अनुभव है।
इस पर फिर कभी विस्तार से लिखूंगा। फिलहाल तो इतना ही कहना चाहूंगा कि जैसे हम सभी भड़ासियों की पंच लाइन व अभिवादन लाइन जय भड़ास है, उसी तरह से पूरे दिन के दौरान अलग अलग बाबा लोगों से मुझे अलग अलग तरीके से अभिवादन करना पड़ता है। कई बार तो गड़बड़ा भी जाता हूं। जिनसे राधे राधे कहना होता है उनसे हरिओम कह देता हूं। पर अनुभव बढ़ने के साथ ही लोगों को अलग अलग समझने बूझने व डील करने में पक्का होता जा रहा हूं। इसी को तो कहते हैं एक ही जीवन में ढेर सारे अनुभव पा जाना .....
तो हे मन, चलो अब गंगा तीर....
आप सभी लोगों को कहता हूं....राधे राधे, हरिओम, नमो नारायण, जय श्रीकृष्णा, जय गोविंदा, राम राम....
जय भड़ास
यशवंत
मैं हूं गंदी लड़की
gandiladki.blogspot.com
गंदी
हिजड़े प्रेस में हैं या प्रेस वाले हिजड़े हैं ???
आज जब दिल्ली पहुंचे तो घऱ पहुंचने से पहले इसी अड्डे पर रुका। पराठे खाया। पान खाया। पार्क में थोड़ी देर के लिए बैठ लिया। गपियाने बतियाने के बाद जब चलने को हुए तो फिर पान खाने के लिए दुकान पर रुके। बगल में हिजड़े साथियों की हलचल दिखाई दी। कोई आ रहा है तो कोई जा रहा है। मेरी उत्सुकता बढ़ी। दाएं बाएं नजर दौड़ाने पर पता चला कि दो गाड़ियां फुल हैं इन साथियों से। दोनों गाड़ियों में एक एक ढोलक। साड़ी और सलवार सूट पहने इन हिजड़ा साथियों को देखते हुए पहले तो डा. रूपेश श्रीवास्तव की शिष्या मनीषा याद आईं जिन्हें आजकल डाक्टर साहब ब्लागिंग सिखा रहे हैं। फिर मुझे वो शब्द याद आया जिसे डा. रूपेश इन लोगों के लिए यूज करते हैं, लैंगिक विकलांग। यह शब्द वाकई सही शब्द है जो इनकी स्थिति को हू ब हू अभिव्यक्त करता है।
पर यह क्या? इन दोनों गाड़ियों पर तो प्रेस लिखा है !! कहीं ये हिजड़े प्रेस वाले तो नहीं....?? या कहीं प्रेस वाले हिजड़े तो नहीं हो गए ?? माजरा क्या है ?? मैंने अपनी उत्सुकता अपने साथी को बताई तो उन्होंने मेरी बात पर हंस दिया। बोले, बड़ा जोरदार है यह वाक्य....कहीं प्रेस वाले हिजड़े तो नहीं, कहीं हिजड़े प्रेस वाले तो नहीं ??
कुछ यूं भी कहा जा सकता है....प्रेस की जो हालत है भइया, उसमें तो अब हिजड़े भी प्रेस वाले बन गए हैं...या प्रेस की हालत ये है कि प्रेस के काम के लिए हिजड़े भर्ती किए जा रहे हैं....या प्रेस इतना आसान है कि अब हिजड़े भी प्रेस में घुस जा रहे हैं....
ढेर सारे कुतर्क गढ़े जा सकते हैं लेकिन एक बात तो सच है कि प्रेस शब्द का गाड़ियों पर जिस कदर गैर प्रेस वाले लोग इस्तेमाल करते हैं, वो सरासर गलत है। सिर्फ इसलिए कि पुलिस वाले रोकेंगे नहीं, ट्रैफिक वाले टोकेंगे नहीं, चोर-उचक्के झांकेंगे नहीं, इस कारण हर कोई प्रेस लिखा लेता है गाड़ी पर।
मेरे साथ थोड़ा उलटा रहा है। 12 वर्ष के पत्रकारीय जीवन में कभी अपनी गाड़ी पर प्रेस नहीं लिखवाया। कभी एकाध बार स्टीकर चिपकवा लिया हो, चुनाव या दंगे के समय तो अलग बात है वरना पता नहीं क्यों प्रेस लिखवाना कभी पसंद नहीं आया। इसके पीछे एकमात्र वजह शायद यही है कि असली प्रेस कर्मी को कभी अपनी पहचान बताने के लिए प्रेस कार्ड नहीं दिखाना पड़ता और प्रेस शब्द नहीं लिखाना पड़ता। पत्रकारिता अगर आपकी आत्मा और देह में हैं तो वो आपके चेहरे व शब्दों व बोली से भी टपकती है, दिखती है।
खैर, माफ करना, अगर किसी को हिजड़े व प्रेस में तुलना करने पर बुरा लगा हो क्योंकि ये तुलना करने का मामला नहीं बल्कि प्रेस शब्द के दुरुपयोग का मामला है।
वैसे मेरे दिल से पूछेगे तो यही कहूंगा कि हिजड़े जितने इमानदार व साहसी होते हैं, प्रेस में 90 फीसदी से ज्यादा लोग उस लेवल के नहीं होंगे। बोले तो अगर प्रेस वाले हिजड़ों जितना मिशनरी, साहसी व इमानदार व दमदार हो जाएं तो प्रेस का कल्याण हो जाए। पर यहां तो तेलुओं, चमचों, क्लर्कों, चारणों, भाटों, बलात्कारियों, व्यभिचारियों, बौद्धिक दिवालियों, दलालों, अशिक्षितों, छिछोरों, बेवकूफों... का ही जमावड़ा है जो प्रेस के नाम पर हर वो गलत काम कर रहे हैं जो प्रेस वाले को न करने के लिए कहा गया है, बताया गया है, समझाया गया है।
लगे रहो .....
जय भड़ास
यशवंत
क्रान्ति शब्द से ही मलेरिया क्यों हो जाता है ???????
पहली गोली : जस्टिस आनंद सिंह के मुद्दे पर आपने क्या किया जो पिछले बारह सालों से सुप्रीम जुडीशियरी के भ्रष्टाचार के खिला लड़ रहे हैं ? लड़ाई आज भी उसी स्थिति में जारी है बस जस्टिस आनंद सिंह की आर्थिक स्थिति दयनीय हो चली है ,फ़ाकाकशी में दिन गुजर रहे हैं ।
दूसरी गोली : जी न्यूज वाले श्री विजयशेखर ने स्ट्रिंग आपरेशन करके यह सिद्ध किया कि जुडीशियरी में कितना भ्रष्टाचार है । इस वीर ने अपनी कमाई के मात्र चालीस हजार रुपए खर्च करे और तत्कालीन राष्ट्रपति कलाम साहब और सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस वी.एन.खरे व दो अन्य सम्मानित लोगों के वारंट निकलवा लिये । इस बहादुर को कोर्ट ने आदेश दिया है कि तुम खुद माफ़ीनामा लिख कर दो वरना सजा भुगतो ।
तीसरी गोली : न्याय प्रक्रिया तो एकदम पारदर्शी होनी चाहिए और सबके सामने न्याय होना चाहिए फिर दूरदर्शन पर जिस तरह संसद की कर्यवाही व सांसदॊं का जूतमपैजार ,गाली गलौंच का सीधा प्रसारण आ सकता है उसी तरह से सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही का प्रसारण क्यों जनता को दिखाया जाता जबकि निजी चैनलो पर जनता की अदालत टाइप के कार्यक्रम धड़ल्ले से आते हैं ?
अगर कुछ करना है तो अपनी पत्रकारिता की तुतुहरी इन मुद्दों पर बजा कर इन्हें प्रकाश में लाओं ताकि आमजन न्यूज पेपर पढ़ लेने के बाद सहेज कर रख सके न कि उस पर बच्चे को टट्टी करा कर पिछवाड़ा पोंछ कर फेंक दे ,है दम????????
जय जय भड़ास
गाली का संगीत
27.2.08
शांति-व्यवस्था भंग होने का अंदेशा
इस ध्वज की क़सम आप इस बात की सूचना मिलनी ज़रूरी कि आपके लोग कितनों की मातृ-भगनी अलंकरण में व्यस्त हैं...!!
भाई-साहब आपके दिल में जो भय है वो उसे " वोट-व्यवस्था-भंग" होने का भय कहा जा सकता है ।
"वन्दे-मातरम !!"
दोस्ती में दूरी माने नहीं रखती....
पर लोग चुराने की कोशिश करते है।
सूरज की रोशनी को छुपाया नही जाता
पर छुपाने की कोशिश कर लेते है।
दोस्ती में दूरी माने नहीं रखती है
पर लोग कान भर कर दूरी बढ़ा देते है।
कान के कच्चे दोस्ती को भुला देता है।
मांगी जिसने चांदनी उसे चांदनी मिली
रोशनी मांगने वाले को रोशनी मिली
मैं भगवान से दोस्ती मांगी
मुझे आप जैसे पक्के कान दोस्त मिले।
अजीत
मेरा दावा है
दोनों छद्म ब्लाग.जो साहब भी यह बलाग चला रहे हों उनसे मेरा आग्रह है कि समाज की लडाई वह अपने नाम से भी लड सकते हैं. उन्हें यह ढाल नहीं अपनाना चाहिए. समाज की बुराइयों के प्रति सजग होना काबिलेतारिफ है. पर उसके लिए सामने आने का जिगर चाहिएण
इन सूअरों को आईना मत दिखाइए ये गूंह खाना नही छोरेंगे
नमस्कार
जय भडास
26.2.08
डाक्टर साहब, मैं दारू छोड़ना चाहता हूं....
वो सवाल ये है.....
शराब छोड़ना चाहता हूं .....
डाक्टर साहब, मेरा एक सवाल है। शराब छोड़ना चाहता हूं पर छोड़ नहीं पाता। सुबह कसम खा लेता हूं रोज कि नहीं पीनी। शाम होते ही सिर भारी होने लगता है और तलब महसूस होने लगती है। कोई ऐसी दवा या तरकीब बतायें ताकि शराब की तलब महसूस न हो।दूसरा सवाल है कि अगर मैं पिछले 15 साल से लगभग रोजाना पांच पैग दारू पी रहा हूं तो मेरा लीवर इस वक्त किस स्थिति में होगा। इसे ठीक रखने के क्या क्या देसी उपाय हो सकते हैं। मैं बहुत झिझकते हुए ये सवाल पूछ रहा हूं। कृपया उत्तर विस्तार से देने की कृपा करें। आपका आभारी रहूंगा। विनय, नई दिल्ली
इस सवाल का जो उत्तर दिया है डाक्टर रूपेश ने, जिन्हें आयुर्वेद में महारत हासिल है, वो काफी डराने चौकाने वाला है। मैं तो पढ़कर घबरा गया। बाप रे, दारू पीने के इत्ते गंभीर नतीजे। विश्वास न हो तो आप इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ लीजिए.....
दारू पीने के कितने नुकसान हैं, जान लो
इसके बाद आप पढ़िए....
लीवर तुझसे बदला लेगा बेटा, सुन बे...बड़ा आसान है शराब छोड़ना बोले तो बिलकुल शहद माफिक मीठा
और अंतिम पीस पढ़िए....
शराब छोड़ने के साधुओं के आजमाए नुस्खे
यकीन मानिए, आप अगर अव्वल दर्जे के दारूबाज हैं (मेरे जैसे) तो निश्चित ही ये तीनों पोस्टें पढ़कर पहले तो आपकी पूरी की पूरी फट जाएगी, भड़ाम हो जाएगी, पुर्जे पुर्जे बिखर जाएंगे, उसके बाद में थोड़ा साहस व ऊर्जा का संचार होगा, आखिर में आपके अंदर एक ऐसा जज्बा पैदा होगा कि आप तय कर लेंगे, अमां यार, इतना आसान है तो चलो एक बार देख ही लेते हैं डाक्टर साहब के इस चूतियापे के सुझाव को। और भाई जान, हो सकता है ये चूतियापे के सुझाव मेरे व आप जैसों की जिंदगी में किसी चमत्कार की तरह लौट आए।
आपको मालूम है, किन चीजों के सहारे दारू छोड़ सकते हैं हम, वो ये हैं....
शहद की एक शीशी,
शिमला मिर्च,
सल्फ्यूरिक एसिड,
शिवाम्बु बोले तो स्वमूत्र,
गुलकंद,
SPIRTAS GLANDIUM QUERCUS नामक चर्चित होम्योपैथी दवा जिसको बेचकर कई लोगों ने करोड़ों रुपये कमाए हैं,
पूजा अर्चना,
परिजनों के साथ शाम बिताने की तमन्ना....
जैसी चीजों के जरिए आप शराब को टाटा बायबाय कह सकते हैं। उपरोक्त चीजौं को कैसे करना है, कब लेना है, क्यूं लेना है, इसके बारे में पहले आप पढ़ें फिर तय करें। और पढ़ने के लिए उपर दिये गये तीनों लिंक पर क्लिक करें।
मैंने तो इन नियमों को आजमाने की ठान ली है क्योंकि आदमी से कभी बड़ी शराब नहीं होती और इच्छा शक्ति से कभी बड़ी चीज कोई बुराई नहीं होती। हां, ये सही है कि मैं दारू को प्यार करता हूं लेकिन पिछले कई महीनों से हर सुबह दारू से घृणा करने लगता हूं और शाम होते होते दारू तलाशने लगता हूं। मतलब एक अच्छे खासे शराबी और नशेबाज जैसा हो चुका हूं। इससे पिंड छुड़ाने के लिए अपने दिल्ली वाले किसी विनय नामक साथी के सवाल पूछने पर डाक्टर रूपेश ने जी कीमती सलाह दी है, वो वाकई काबिलेतारीफ है। अगर डाक्टर साहब अनुमति देंगे तो मैं उपरोक्त तीनों पोस्टों को भड़ास पर अलग अलग हेडलाइन के साथ डालना चाहता हूं।
और हां, भाई भड़ासियों, देखा भड़ास का कमाल, डाक्टर रूपेश जैसा जो साथी भड़ास को मिला है, उसी की बदौलत हम ये नेक काम कर पा रहे हैं जिसमें अपन जैसे दरूहल साथियों को दारू छुड़ाने के लिए इतने अच्छे सलाह मिलने लगे हैं। तो जोर से बोलो...
जय भड़ास,
जय डा. रूपेश,
जय मनुष्यता....
अगर भड़ास के फेमिली डाक्टर ब्लाग आय़ुषवेद पर अपने व अपने परिजनों व मित्रों की किसी चिकित्सा समस्या का हल चाहते हैं तो आप डाक्टर साहब से सीधे सवाल कर सकते हैं, उनकी मेल आईडी पर भेजकर, वो उसका जवाब आयुषवेद पर प्रकाशित कर देंगे। डाक्टर साहब की मेल आईडी है...
rudrakshanathshrivastava7@gmail.com
यशवंत
भड़ासी डिक्शनरी
एकदम थक गयी हूं पर आप लोग का प्यार देख कर फिर हिम्मत कर रही हूं । मैं आप लोग को बताना चाहती हूं कि मुझे डा.भाई ने एक दस लाइन का डिक्शनरी दिया था ताकि मैं गंदा गंदा न लिख दूं गलती से । हम लोग तो बात करने में जो भाषा वापरते हैं अब पता चला कि वो अच्छे लोग नहीं वापरते । जब मेरे बारे में बह्स हो गयी तो मन किया कि जम कर गाली दूं पर भाई ने रोक दिया कि दो दिन बाद लिखना पहले बाकी लोग का भी बात देखो ,अब सब ठीक है । अभी डा.भाई ने मुझे इजाजत दे दिया है कि मैं जैसा मन में आये वो लिखूं। अगर लिखना जरूरी हो तो क्या लिखना होगा ताकि गंदा न लगे । सच में तो आज तक किसी ने बताया ही नहीं कि क्या अच्छा क्या गंदा है
अब मैं जान गयी हूं कि भाई ने मुझे क्यों यह कहा था कि मैं कुछ पुरानी पोस्ट्स पढ़ूं लेकिन आप लोग भी गाली लिखते हैं जब मैंने भाई से पूंछा कि मैं गाली क्यों न दूं तो उन्होंने ताकीद किया कि जिसे जो लिखना है लिखने दो ,आप वही भाषा लिखना जो मैंने कहा है । लेकिन अब भाई ने मुझे फ़्री कर दिया है कि मैं जो चाहूं लिख सकती हूं ।
अभी आप लोग से एक सवाल कि क्या आप एक लैंगिक विकलांग को बेबीसिटर ,ट्यूटर,वाचमैन,घरेलू नौकर या अपने आफ़िस में कलीग के तौर पर आसानी से सहन कर सकते हैं ? जबाब जरूर दीजिए
धन्य हो लोकतंत्र, धन्य हो बाजार
...यहां शराब पीने के लिए हाल में बैठने की व्यवस्था है
(शराब की दुकान के ठीक सामने काफी मोटे मोटे अक्षरों में लिखा हुआ)
...पापा, शराब पीना छोड़े दो, बच्चों से नाता जोड़ लो
(मद्यनिषेध विभाग द्वारा जनहित में प्रसारित)
---अपन का तो यही कहना है कि भइया पहले बिठाकर पिलाते हो, फिर बच्चों की दुहाई देकर, इमोशनली ब्लैकमेल करके छुड़वाते हो...धन्य हो अपन देश का लोकतंत्र...
-----------
दिल्ली-मथुरा रोड पर ही दो और विज्ञापनों के मजमून
....खूब बातें करें, बातें खत्म कर देती है फासलों की दीवार, जीभर करें बातें
....अनचाही काल को रोक दें, बस कुछ रुपये महीने में यह सविधा उपलब्ध है
----अपन का तो कहना है भइया पहले तो खूब बातें करवाकर पैसे बटोरे, और जब इस दौरान फासलों की दीवार टूटने पर लड़ाई हो जाए तो पैसे लेकर उसकी काल रोक दो...धन्य हो इस लोकतंत्र का बाजार...
जय भड़ास
यशवंत
राजस्थान में स्त्रियां
राजस्थान में स्त्रियां
पी एच डी ईन राजनितिक शास्त्र्
अपने आप को मराठी मानस कहने वाले भुमि पुत्र आज तो उन्होने सारे महाराष्ट्रा का सर उचा कर दिया| जो काम दाउद के गुर्गे, चीनी और पाकिस्तानी नही कर पाये वो काम आपने राज ठाकरे से एक झटके मे करवा डाला, आपके रहते तो हमे तो पाकिस्तानीयो को खोजने की जरुरत ही नही बस इन्तजार है तो सिर्फ आप जैसे महान विभुतियो की जो दो-चार राज ठाकरे की मानसिकता वाले लोगो को प्रोत्साहित करे, फिर ना कोइ व्य्वसायिक राजधानी और ना कोई राजनितिक सारे देश मे समानता की लहर और आप उस लहर पर सवार हो कर दुनिया को दिखा दे की देखो इसे कहते है भारतीय राजनीति जहा ना कोई राजनितिक मुल्य और ना कोई नैतिक मुल्य, बस गन्दी राजनीति के उपर सवार हो कर कोई भी पुरे देश को गन्दा कर सकता है| जी हा अगर आप सभी को दोगली राजनिती सीखनी हो तो हमारे देश के तथाकथित सबसे पुरानी राजनितिक दल कान्ग्रेस से शिक्षा ले सकते है उनके पास पी एच डी की डिग्री है | वैसे अभी उनके मुख्यमन्त्री जी शादी मे व्यस्त है फुर्सत मिलते ही कान्ग्रेस उनको चलता करेगी और फिर बडे ही उचे शब्दो मे बोलेगी हमने ऊचित कारवाई कर दी फिर ईति श्री | भाड मे जाये देश और देशवासी............जय हिन्द्
ये वो शहर है जो
ये वो शहर है जो हर रोज उजड जाता है.
हर रोज बिकती हैं यहां कई जिंदा लाशें।
पर अफसोस हर कोई तमाशबीन बन देखता रह जाता है.
अपना खून गिरा तो खून दूसरे का गिरा तो पानी।
या खुदा क्या ऐसे ही इंसां का जमीर मर जाता है.
ख्वाब न देख ऐसे जो आंखों में न समाएं।
हकीकत का आइना हर रंग उडा देता है.
उस चांद को देखा है कभी पूरी अकीदत से।
किसी रोज वह भी एक चलनी में उतर जाता है.
क्या आपको यह मूर्खता नहीं लगती?
किसी राशि विशेष का दिन आज कैसा जाएगा अच्छा या खराब इस बारे में भी बताया नहीं जा सकता। क्योंकि यह मण्डेन का हिस्सा है और हर व्यक्ति की निजी कुण्डली होती है न कि वह मण्डेन पर चलता है। यानि मण्डेन के अनुसार यदि आज बारिश आनी है तो सबका दिन खराब नहीं होगा। कुछ लोग इसका आनन्द लेंगे तो कुछ लोग जुकाम के डर से अपने कमरे से ही बाहर नहीं निकलेंगे। कुछ लोगों को सुनहरी धूप अच्छी लगती है तो कुछ लोगों के लिए इसे सहन करना ही मुश्किल होता है। इसके अलावा व्यक्तिगत कुण्डलियों में दशाएं भी चल रही होती हैं किसी अच्छी दशा में आपका दिन हर हाल में अच्छा ही जाएगा और खराब दशा में हर हाल में खराब।
कुछ दिन से भडास पर जी नहीं लगता
हो सकता है कुछ लोगों को इससे मजा आता हो लेकिन खुलकर दिल की बात कहने और दिमाग की कुंठाओं को इस तरह घोटने में कि वे दिमाग में ही महिषासुर की तरह फैलने लगे एक अन्तर है। हमारे यहां इसे गू निचोना कहते हैं। यानि दो आदमी आमने सामने बैठ जाते हें और गंदी से गंदी घटिया से घटिया बाते करते हैं इससे दिमाग की कुंठा को आंशिक राहत मिलती है। कुछ लोगों में गू निचाने की आदत सनक की हद तक होती है। पिछले कुछ दिन से भडास पर क्रिएटिव विचारों की बजाय उलूल जुलूल बातें आ रही हैं। मैं यह नहीं कहता कि दूसरे लोगों को अपनी बात कहने का हक नहीं है लेकिन यार कुछ तो रहम करो। हमारे साथी बने हो हम तुम्हारे साथी बने हैं कुछ तो ऐसा हो जिसे देने और लेने में मजा आए।
बुद्धिजीवियों का मुगालता लिए दो सौ से अधिक लोग इस ऊट पटांग बहसों में घुसे कैसे यही सोचने का विषय है। यह भी हो सकता है कि कुछ लोगों ने जबरदस्ती यहां प्रवेश लिया हो इस कम्युनिटी ब्लॉग को नष्ट होने की कगार तक पहुंचाने के लिए। कुछ भी हो सकता है लेकिन जो हो रहा है वह ऐसा नहीं है जैसा पहले चल रहा था। चुगली हो लेकिन मीठी, गाली हो तो चुभने वाली न कि छुरे की तरह भोंक देने वाली। कुछ मिर्च हो कुछ मसाला हो यहां कुछ ऐसी बहस की जरूरत है जो हमें सोचने का नाश्ता दे न कि दिमाग खा जाए। बहस करने के लिए बहुत मुद्दे हैं यह लिंग असमानता और अनुपस्थिति ही क्यों ?
25.2.08
डा.रूपेश के लिये फ़तवा कि वे मर्द हैं इस बात का प्रमाण दें वरना........
पहली बात ,मसिजीवी जी को अगर शंका हुई तो उन्होंने उसे भड़ास पर निकाल दिया और इसके लिए आप सब लोगों ने उन्हें एक अत्यंत सरलचित्त आदमी मान कर फ़ट से माफ़ कर दिया लेकिन मैं हरगिज नहीं करूंगी तब तक जब तक पूरी भड़ास न निकल जाये । अबरार भाईजान कहते हैं कि यह शंका थी तो निवारण करना चाहिए मैं कहती हूं शंका नहीं लघुशंका थी जो उन्होंने भड़ास के मंच पर आकर हमारे सामने पतलून खोल कर करी थी ताकि मेरे जैसी औरतें शायद उनकी मर्दानगी की लम्बाई महसूस करके प्रभावित हो जायें ।
दूसरी बात ,अगर अबरार भाईजान को लगता है तो मैं मुनव्वर सुल्ताना भी भड़ास पर मौजूद सभी स्वयंभू मर्दों की सैक्जुअल आइडेंटिटी की सूचना का अधिकार रखती हूं । सब लोग अपने बच्चों का डी.एन.ए. टैस्ट करा कर शहर के कलेक्टर से प्रमाणित करवा कर फोटो के साथ भड़ास पर भेज दें ।
तीसरी बात ,क्या मरदानगी का प्रमाण इंसान के जिस्म पर लटकता एक अंग होता है या उसे उसकी पत्नी या प्रेमिका प्रमाणित करती है ? या उसकी रुकावट का समय क्या है ? या फिर किसी इंसान के काम बताते हैं कि वह कितना बड़ा मर्द है ?
चौथी बात कि अब भड़ास निकल गयी है, मसिजीवी जी के कान मैंने बड़ी बहन के नाते से मरोड़े हैं और यह खूबसूरत सा नाता मुझे भड़ास के मंच से मिला है ,मुझे उम्मीद है कि आप लोग इस नाते का बुरा नहीं मानेंगे ।
आखिरी बात ,जिनके पास अच्छा वकी़ल करने का पैसा हो वो एक P.I.L. दर्ज कराएं जो कि लैंगिकता प्रमाणित करवाने के अधिकार के संबंध में हो ताकि मनीषा दीदी जैसे बच्चों के लिए समाज में इज्जत की नौकरी वगैरह का आसानी से इंतजाम हो सके ।
भड़ास जिन्दाबाद
डा साहब क्षमा चाहूंगा, पर बात वहीं है...
कौन सी जिम्मेदारी निभा रहे हैं हिंदी ब्लागर ?
अब ताजा हालात को ही ले लीजिए। देश का कौन ऐसा नागरिक या क्षेत्र होगा जो बजट से प्रभावित नहीं होता है, मगर बजट पेश होने से पहले ब्लागरों ने ऐसी कोई मुहिम नहीं चलाई जिससे बजटपूर्व आम आदमी की समझ के लायक बहस या गंभीर चर्चा सामने आई हो। मतलब महज छिटपुट टिप्पणी से संतोष कर लेने से काम नहीं चलेगा। अगर समानान्तर सूचना माध्यम बनना है तो ब्लागिंग को ऐसे मुकाम पर ले जाना होगा जहां से ब्लागर्स की राय भी देश के बारे में लिए जाने वाले किसी भी फैसले में सार्थक योगदान कर सके।
अगर ब्लागर्स बंधु बुरा न मानें तो यह भी कहना चाहूंगा कि सिर्फ ब्लाग की रेटिंग के लिए ही काम नहीं करना चाहिए। यह अच्छी व्यक्तिगत उपलब्धि तो हो सकती है या फिर किसी ब्लाग को बहुचर्चित बना सकती है मगर प्रकारान्तर से ब्लागिंग की दुनिया को खोखला ही करेगी। कुछ समूह ब्लाग कई विषयों पर जनमत लेने की कोशिश कर रहे हैं मगर यह अधूरा प्रयास है। क्या किसी विषय पर किसी एक ब्लाग पर राय मंगवा लेने से वह उद्देश्य पूरा हो जाएगा जो आप जैसे बुद्धिजीवी तबके से उम्मीद की जाती है। फिर सारे ब्लागर या पाठक जरूरी नहीं कि उसी ब्लाग पर टिप्पणी डालने पहुंचे। तो क्या यह जनमत संग्रह सारे ब्लागरों का समझा जाएगा ? अगर नहीं तो फिर यह भी होगा कि आपकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह जाएगी। अतः विचारक और बुद्धिजीवी होने के नाते आपकी ऐसे ब्लागर की जिम्मेदारी बनती है जो स्वविवेक से ज्वलंत सामयिक मुद्दे (जैसे फिलहाल बजट का मौसम को ले लीजिए ) पर अपनी बेबाक राय जाहिर करनी चाहिए कि देश को कैसा बजट चाहिए। यकीन करिए ब्लागरों की राय भी नियामको को सुननी पड़ेगी।
इसकी ताजा मिसाल तो यही है कि भारत में हिंदी ब्लागरों की पहचान बननी शुरू हो गई है और अखबारों ने भी इनकी नोटिस लेनी शुरू कर दी है। और दूसरी मिसाल पाकिस्तान के ब्लागरो कीं हैं। पाकिस्तानी ब्लागरों ने मुशर्रफ के न होने की स्थिति में संभावित नहीं बल्कि उचित भावी राष्ट्रपति पर अपनी बेबाक राय दी है। जिसमें ज्यादातर इमरान खान को बेहतर राछ्ट्रपति के रूप में देख रहे हैं। कई ने अल्पसंख्यक समुदाय के भगवानदास को इस पद के लिए बेहतर बताया है। सबसे बड़ी बात यह है कि दुनिया की अग्रणी समाचार संस्था प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया ने पाकिस्तानी ब्लागरों की इस अहम राय पर खबर भी जारी कर दी है। पीटीआई की यह पूरी खबर भी इसी पोस्ट में आप देख सकते हैं। ज्वलंत राष्ट्रीय मुद्दे पर ज्यादातर ब्लागरों की आई सार्थक राय ने इस समाचार एजंसी को भी इसे जारी करने को प्रेरित किया है। क्या भारत के हिंदी ब्लागर अपनी इस भूमिका के लिए तैयार हैं ? या फिर वे अपने ब्लाग की रेटिंग के अलावा कुछ सोचते ही नहीं। रेटिंग से आपको ढेर सारे विज्ञापन तो मिल जाएंगे मगर ब्लागिंग की एक अच्छी विरासत नहीं खड़ी कर पाएंगे जिस पर आने वाली पीढ़ी गर्व कर सके। सच मानिए यह भूमिका भी आपको ही निभानी है। अन्यथा तटस्थ होकर सिर्फ कमाई करने वालों ब्लागरों को इतिहास भी नहीं बख्शेगा।
यह है पाकिस्तानी ब्लागरों पर बनी पीटीआई की खबर।----------------
PAK-BLOGGERS
Bloggers want Imran or Bhagwandas as President
Islamabad, Feb 25 (PTI) If Pakistani bloggers could have
their way, they would have cricketer-turned-politician Imran
Khan or former judge Rana Bhagwandas as their next president,
though there are some die-hard fans of incumbent Pervez
Musharraf who would prefer him to "stay on forever".
Though several names were thrown up in response to a
post titled "Who should be the next President?" on
pakistaniat.com, Khan and Bhagwandas, the lone Hindu judge to
reach the highest echelons of Pakistan's judiciary, emerged as
clear favourites.
Khan, who has a "clean image", was preferred by many
bloggers though some thought he was too "politically naive" to
be the president.
Kamran, who blogs at pakistaniat.com, batted for Khan:
"If (President Pervez) Musharraf has to go, then definitely
Imran Khan." Another blogger Zakoota wrote, "Musharaf will
never go. However, I think Imran Khan is the best choice."
Bhagwandas was a favourite in the discussion initiated by
a blogger named Temporal.
"If India can have a Muslim president, why can't
Pakistan have a Hindu or Christian (president)? I know our
constitution may not allow this -- why not first amend that?"
wrote a blogger who logs in as Poalee.
Dakar seconded Poalee's suggestion and said Bhagwandas
would make a good president. "He would be an excellent choice
not because he is from a minority but because he has proved
his democratic credentials and stands for principles."
Other front-runners for the post in the virtual world are
deposed Supreme Court Chief Justice Iktikhar Mohammed
Chaudhry, top lawyer Aitzaz Ahsan, former premier and PML-N
chief Nawaz Sharif and PPP co-chairman Asif Ali Zardari.
Even though names of presidential hopefuls came up for
discussion on the website, there was no dearth of Musharraf
fans. (More) PTI RHL SDG
SDG
02251732 DEL
PAK-BLOGGERS 2 LAST
Abana Samuel wrote, "Minorities should be given a
chance. But at the moment I think President Pervez Musharaff
is doing an excellent job. He is the man. President Musharaff
is the best."
Another fan of the military ruler said: "I hope Musharraf
stays on forever. I trust this man 100 per cent."
Temporal suggested Chaudhry's name for the top job:
"Zardari has reservations about restoring him to the bench and
Sharif has made his restoration the cornerstone of his
campaign. So the best compromise would be to ease him into
presidency --'vakil bhee khush, quam bhee khush'."
However, a blogger named Malique disagreed. "Iftikhar as
president will not be a good choice because we want an
independent judiciary more than we want a gift-for-all
president."
Usman Khan wrote that rules should be amended to allow a
non-Muslim to be elected as president of Pakistan. So did
Adnan Ahmad.
"I have thought of this man (Bhagwandas) for this post.
He is honest, has a clean track record and has shown real
character in the face of serious adversity," Ahmad wrote.
"In a land where we can still hope for a true change,
Justice Bhagwandas would be an excellent choice." PTI RHL
SDG
02251734 DEL
यशवंत जी डाक्टर जी के नाम एक खत
आप के आमंत्रण से अस्वीकृति कैसी ,ज्याइन कर ली भडास । अभी समझ नहीं पा रहा हूँ क....क...क्या....चल रही है मनीषा पर बहस क्यों
कीजिए खुलासा इधर ::> किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी !! गौर किया तब पता चला फाकिर साहब नहीं रहे...
यहाँ आनंद आ गया
एक अदद खूंटा चाहिए
मनीषा पर बहस क्यों
मसिजीवी जी को एक शंका थी और उन्होंने उसका समाधान चाहा था. मैं नहीं मानता कि वह गलत थे. सूचना का अधिकार सबको है और उनकी भी शंका का समाधान होना ही चाहिए. भडास पर अपनी भडास निकालने का हक सबको है. चाहे वह लडकी हो या समाज से वंचित कोई हिजडा. मैं पूरी तरह इसके हक में हूं. लेकिन बेवजह किसी को भडास के माध्यम से बदनाम किया जाए यह वाकई गंभीर और चिंताजनक है. हालांकि मुझे पूरा विश्वास है कि कोई भी भडासी साथी ऐसी हरकत नहीं कर सकता. साथ ही मैं डा रूपेश से यह गुजारिश करना चाहूंगा कि वह मनीषा हिजडा को सामने आने के लिए प्रेरित करें या उनसे कहें कि वह अपना नंबर अपनी पोस्ट में डालें ताकि भडास पर लगे इस बदनुमे दाग को धोया जा सके. भडास में मनीषा हिजडा का मैं तहे दिल से इस्तकबाल करता हूं और निश्चय रूप से उनसे हम सब इस दुनिया का एक नया पहलू सीख सकेंगे. वह यहां लिखें और खूब लिखें.
मसिजीवी जी माफ करें !!!
और, अगर किसी को भी इस दुर्योग के कारण शक होता है तो उसे सवाल पूछना ही चाहिए। मसिजीवी जी ने वही किया। मैं उनकी तारीफ करता हूं जो उन्होंने अपने मन में पैदा हुए भ्रम को भड़ास पर आकर खुद अपने नाम से एक टिप्पणी करके पूछ लिया। मैंने उसी क्रम में ये अनुरोध किया कि भई, मसिजीवी जी को अपनी भड़ासी साथी मनीषा हिजड़ा की वास्तविकता सत्यापित करा दीजिये।
साथी मनीषा हिजड़ा ने अपनी पोस्ट लिखकर जो बात कही है उससे उनकी सत्यता स्थापित होती है या नहीं, ये तो मसिजीवी जी बतायेंगे। जहां तक मुझे पता है, आदरणीय डा. रूपेश जी का जो बहुआयामी कार्यक्षेत्र व सामाजिक सरोकार हैं, उसमें कई ऐसे हिजड़े साथी भी उनके दोस्त हैं, शिष्य हैं जिनकी दिक्कतों के लिए डा. रूपेश लड़ते रहते हैं। इन साथियों की दिक्कतों को समझ सकने वाले डा. रूपेश ने मनीषा हिजड़ा को सजेस्ट किया कि वो ब्लाग के जरिए अपने समुदाय की दिक्कतों, दुविधाओं, सुख-दुख को बाकी दुनिया तक पहुंचाये। इसके लिए मनीषा राजी हुईं तो डाक्टर साहब ने ब्लाग बनवाने में उनकी बखूबी मदद की और मुझे सूचित भी किया। उनकी शुरुवाती पोस्टें इस बात का प्रमाण हैं कि मनीषा का जिक्र वे उस समय से भड़ास पर करते रहे हैं जब मनीषा पांडेय विवाद शुरू भी नहीं हुआ था। मसिजीवी जी को थोड़ी गलफहमी हुई थी, पर उन्होंने साफ दिल से पूछ लिया, इसके लिए मैं उन्हें वाकई बहादुर और नेक दिल इंसान मानूंगा।
सोचिए, मसिजीवी जी अपना सवाल अनाम बनकर भी कर सकते थे, जैसा कि ढेर सारे कायर लोग ब्लागिंग में करते हैं। वे किसी और अनाम आईडी से अपना सवाल उठा सकते थे। वे अपने ब्लाग पर ही भड़ास व मुझे गरियाते हुए इस मनीषा नाम से हुई दुविधा को सच मानते हुए लिख सकते थे। पर उन्होंने शराफत का परचिय दिया। भड़ास पर आकर अपने नाम से ही उन्होंने अपनी शंका का इजहार कर दिया।
पर उन्हें भड़ासी साथियों ने जिस तरह उत्तर दिया है, उससे मुझे दुख पहुंचा है। भई, हम भड़ासी वाकई लंठ लोग हैं जो किसी को भी किसी बात पर गरिया देते हैं, उसकी ऐसी तैसी कर देते हैं? कहीं हम लोगों की छवि ब्लागिंग के बाहुबल वाले लोगों की जो बन रही है, उसके पीछे यही वजह तो नहीं है? क्या हम सवाल करने वाले को दुश्मन मानने लगते हैं? क्या हम लोकतांत्रिक देश में रहते हुए अपने सामंती व्यक्तित्व को नहीं बदल पाये हैं (जो कि मेरे अंदर भी है) और किसी के सवाल करने को अपना अपमान मान लेते हैं (ऐसा मेरे अंदर भी है)? हम अपने दिमाग का डेमोक्रेटाइजेशन करने में अक्षम रहे हैं लेकिन क्या हम हिंदी वाले इसके लिए कोशिश नहीं कर सकते? अगर कोई आलोचना करता है या उंगली उठाता है तो उसे पराया या दुश्मन मानने के बजाय निंदक नियरे राखिए वाली लाइन को याद करते हुए सम्मान नहीं दे सकते हैं?
इन सवालों का जवाब मैं खुद से तलाश रहा हूं। इसके पीछे वजह सिर्फ इतना भर है कि मसिजीवी जी के बारे में मैं जितना जानता हूं उतना उन्हें एक अच्छा व नेक इंसान कहने के लिए पर्याप्त है। वे अपनी सोच, अपने व्यक्तित्व व अपने रहन सहन में वाकई एक सहज सरल व लोकतांत्रिक शख्सीयत हैं। उन्होंने हमेशा गलत चीजों का खुलकर विरोध किया है, और इसी तेवर के चलते उन्होंने जो भी चीज महसूस किया, उसे आकर भड़ास पर कहा। यह बहस अलग है कि उन्होंने जो समझा वह उचित था या अनुचित।
मैं अपने भड़ासी साथियों के तरफ से मसिजीवी जी से इस बात के लिए माफी मांगता हूं कि अगर उन्हें मनीषा हिजड़ा व मनीषा पांडेय नाम के साम्य के कारण उठाए गए उनके सवाल के बाद भड़ास पर अगर साथियों के लेखों-टिप्पणियों से किसी प्रकार का दुख पहुंचा हो तो वे हमें नासमझ मानकर माफ कर दें।
दरअसल भड़ासी साथी दिल के सच्चे हैं इसलिए वे अक्सर भावुक हो जाया करते हैं। यह भावुकता ही है जो हमें जिलाए और बचाए हुए है वरना बौद्धिकता का रास्ता कहां लेकर इस देश व समाज को गया है, यह हम सब देख रहे हैं। हम बौद्धिकता के विरोधी नहीं हैं पर हम सहज बौद्धिकता चाहते हैं, हम व्यावहारिक बौद्धिकता चाहते हैं, हम वैज्ञानिक बौद्धिकता चाहते हैं। हम कतई हिप्पोक्रेसी नहीं चाहते। हम ट्रांसपैरेंसी चाहते हैं और ट्रांसपैरेंसी जीते भी हैं।
उम्मीद है, इस पोस्ट के बाद सभी भड़ासी मसिजीवी जी को सवाल उठाने के लिए थैंक्यू कहते हुए उनसे भड़ास के प्रति अपने स्नेह के यथावत कायम रखने का अनुरोध करेंगे।
डा. रुपेश जी से अनुरोध करूंगा कि डाक्टर साहब अपने जो कुछ लिखा है, कहा है, मैं उसके पीछे के दर्द व भावना को समझ सकता हूं। आप भड़ास के माडरेटर हैं, इसलिए आप जो भी कहेंगे, लिखेंगे, उस हम भड़ासी सिर माथे रखेंगे पर हम लोग भी अपनी राय इसी मंच पर रखते रहेंगे। जाहिर सी बात है, हमारे आप में लोगों को असहमतियां दिखेंगी पर रास्ते अलग अलग होने के बावजूद हम नदियों की मंजिल तो वही सागर ही है ना, जहां वो पहुंचती हैं और जहां हमें भी पहुंचना है।
और आखिर में साथी मनीषा हिजड़ा से, आप बिलकुल हतोत्साहित न हों। ये जो शुरुवाती मुश्किलें होती हैं, वो हमें अंदर से मजबूत करती हैं और लंबे सफर के लायक बनाती हैं सो आप अपना काम जारी रखें। मसिजीवी जी सदा आपके साथ हैं, भड़ास सदा आपके साथ है। प्लीज, आप लिखना जारी रखें।
जय भड़ास
यशवंत
खराब दिन: चोखेरबालियों ने धक्के देकर भगा दिया, पिल्ले के कारण पत्नी ने गरिया दिया
आज जो दिन खराब चल रहा है उसके पीछे वजह सिर्फ और सिर्फ स्त्रियां हैं।
सुबह से मेरी पत्नी मेरा भेजा खा रही हैं, पानी पी पी कर गरियाते हुए। हुआ यूं कि कल आधी रात को जब पान खाने चौराहे पर निकला तो एक मरिया सा बच्चा सा देसी पिल्ली कुनकुनाता हुआ मेरे पैरों के पास आ पहुंचा और लगा मेरा पैंट फाड़ने, अपने प्यारे से छोटे से नुकीले दांतों से। फिर लगा पैर की अंगुलियां सूंघने, चूमने। उसके बदन की हड्डियां दिख रही थीं। मैंने उसे गौर से देखा और उसकी हरकत पर मुझे प्यार आ गया। मैंने उसे गोद में उठा लिया और मुंह में पान दबाने के बाद अपने घर पहुंचा। सकल परिवार निद्रा में था, सो उसे एक खाली कमरे में, जहां अतिथि लोगों के रुकने की व्यवस्था है, एक जगह प्यार से बिठा दिया। उसे मुर्गे की टंगड़ी दी जिसे एक बार मैं खुद साफ करके डस्टबीन में रखे हुए था। वो प्यारा पिल्ला यूं पूंछ हिलाते हुए कूं कूं करके खा रहा था कि मेरा रोम रोम पुलकित हो गया। मैंने मन ही मन तय कर लिया कि मुझे अब इस पिल्ले को एक अच्छी जिंदगी प्रदान करनी है।
मैंने अपने एक सीनियर मित्र को फोन किया चंडीगढ़, जिनके छोटे भाई पशुओं के डाक्टर हैं, डाक्टर साहब का नंबर लेने के लिए कि अगर सड़क पर खेला खाया देसी पिल्ला घर ले आया हूं तो उसे कौन कौन सी सुई लगवा दूं ताकि मेरे जैसे शहरी को कोई रोग न हो सके। असल में मेरे अंदर का हेल्थ वाला जिन्न जाग गया था कि कहीं ऐसा न हो जाए, साला जिसे मैं प्यार कर रहा हूं वो पिल्ली मुझे कोई गंभीर रोग दे जाये, दिमागी बुखार, मियादी बुखार, प्लेग टाइप का। सो, मैंने उनसे नंबर लिया पर डाक्टर साहब का फोन लगातार बिजी जा रहा था। खैर, पिल्ले को खिला पिलाकर बढ़िया से एक स्टूल के नीचे बिछौन बिछाकर सुला दिया और मैं भी खुशी खुशी दूसरे कमरे में सो गया। सुबह मेरी नींद तब खुली जब श्रीमती जी चिल्ला रहीं थीं, कि ये आदमी तो सुधरेगा नहीं। रोज कोई न कोई बवाल। पता नहीं कहां से यह सड़ा पिल्ला लाकर रख दिया घर में, पूरा हग मूत के गंदा कर दिया। बाप रे....रात का नशा वैसे ही सुबह होने के कारण हिरन हो चुका था, रही सही ऊर्जा श्रीमती जी की चिल्लाहट के चलते खत्म हो गई। सो, सुबह के वक्त इतनी बुरी बुरी बातें कान तक न पहुंचने देने के लिए मैंने रजाई को चारों तरफ से खींचकर भींचकर उसके भीतर मुंह छिपा लिया। और गंभीर नींद में होने, सोने का नाटक करने लगा।
पर....बच न पया।
खुद मुझे उस कमरे की सफाई करनी पड़ी ताकि मणिमाला दीदी (श्रीमती जी का नाम है भइया) का गुस्सा कम हो सके। सच्ची बताऊं, जब मैं पिल्ले का गुह साफ कर रहा था तो उसकी बदबू से मुझे उबकाई आते आते रह गई, लगा आज असली में उलटी कर दूंगा (भड़ास पर तो शाब्दिक उलटी करते हैं)। पर जय भगवान जी, सांस रोकककर, करेजा मजबूत कर साफ सूफ किया। इस दरम्यान मैं यह तक पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाया कि मेरा प्यारा पिल्ला है कहां। मुझे खुद समय़ में आ चुका था कि प्यारे पिल्ले के मुझ जैसे मालिक की इस कदर घिग्घी बंधी हुई है तो पिल्ला महोदय को जाने कब गांड़ पर दो लात मारकर सड़क का रास्ता दिखा दिया गया होगा।
सबसे दुखद यह रहा कि सोचकर पिल्ला यह लाया था कि बच्चे खुश होंगे। पर बच्चे सुबह से ही मेरे खिलाफ हो चुके थे और माला दीदी के सुर में सुर मिला रहे थे। उस साले पिल्ले ने बच्चों की किताबों पर सू सू कर दी थी सो बच्चों का नाराज होना लाजिमी था।
भइया....किसी तरह जान छुड़ाकर आफिस पहुंचा तो यहां चोखेरबाली को अपने से गायब पाया। हे भगवान, कहीं किसी ने तंत्र मंत्र तो नहीं कर दिया कि इस फागुन में तुझे स्त्रियों का बैर झेलना होगा। अगर कोई भड़ासी ज्योतिषी या तांत्रिक हो तो कृपया मेरी कुंडली वुंडली देखकर बताये कि कौन सा ग्रह किस ग्रह की गांड़ में घुसा है जिससे ये सारी दिक्कतें आ रही हैं।
जय भड़ास
यशवंत
मैं शरीर से हिजड़ा और आप आत्मा से हिजड़े हैं
नमस्ते
डा.रूपेश श्रीवास्तव और मुनव्वर सुल्ताना भी काल्पनिक है
स्याही पर जीवित रहने वाले भाईसाहब अंत में लिखते हैं:-
"एक सवाल यशवंत से भी, मित्र इस तरह एक नए भड़ासी आईडी को और जोड़ दिया गया..आप दो सौ पचास से इक्यावन गिने जाएंगे :)) क्या सच की संख्या कैसे पता चले ? :)) "स्याही पर जीवित रहने वाले भाईसाहब सामान्य ज्ञान कैसा है मुझे नहीं पता पर इतना जरूर मालुम पड़ गया है कि उन्हें भड़ास के बारे में तनिक भी जानकारी नहीं है वरना उन्होंने इस सवाल को मुझसे भी किया होता क्योंकि स्याही पर जीवित रहने वाले भाईसाहब को इतना भी नहीं पता कि भड़ास का एक मोडरेटर मैं भी हूं । चूंकि मेरी मैत्रिण मनीषा को आप एक नहीं मान सकते इसलिए अब बताता हूं कि भड़ासी उनके जुड़ने से दो सौ पचास नहीं बल्कि उन जैसे बुद्धिजीवी लोगों की गिनती मे दो सौ साढ़े पचास होने चाहिए । मैं मानता हूं कि ऐसे ही स्वयंभू बुद्धिजीवी लोगों ने मेरी मैत्रिण मनीषा जैसे विकलांग लोगों को हाशिए पर धकेला हुआ है और सीधे ही उनके दोषी हैं । मैं परमात्मा से प्रार्थना करता हूं कि उनके परिवार में कोई ऐसा बच्चा पैदा न हो लेकिन अब छटपटा कर ये न कहने लगिएगा कि अरे अब तो डा.रूपेश श्रीवास्तव भी हिजड़ों की तरह कोसने लगे ।
http://bhadas.blogspot.com/2008/01/blog-post_30.html
उनकी जानकारी के लिए इस पोस्ट की जानकारी दे रहा हूं जब मैंने मेरी मैत्रिण मनीषा का जिक्र करा था ,अगर कल को इन्हें यह संदेह होने लगे कि डा.रूपेश श्रीवास्तव और मुनव्वर सुल्ताना भी काल्पनिक है तो क्या किया जाएगा ? वैसे मैंने ऐसे लोगों की अगर परवाह करी होती या इनकी सोच से दुनिया देख रहा होता तो आज मैं भी बौद्धिक षंढत्व का चलता फिरता आइना होता । लगता है कि मैंने इस बात को यशवंत दादा की वजह से ज्यादा ही भाव दे दिया वरना तो इस बात के लिये खामोशी ही मेरा उत्तर है ।
जय जय भड़ास
24.2.08
मसिजीवी को ऐसा लगता है...
मसिजीवी ने ये आरोप भड़ास पे मनीषा हिजडे की पोस्ट पे कमेन्ट के रूप में लिखकर लगाए हैं...
(मूल पोस्ट को आप यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं ...."हम हिजड़ों की तो सुनो")
masijeevi has left a new comment on your post "हम हिजड़ों की तो सुनो":
मित्रवर/मित्रगण
भड़ास पर कम टिप्पणियॉं करता हूँ इसलिए नहीं कि शुचितावादी हूँ (नारद के शुचिताकाल में ही जब भड़ास बच्चा था तब ही इसकी संभावनाओं को इंगित कर पूरी पोस्ट लिखी थी) पर कहना होगा कि ये पोस्ट बदमजा है- पोस्ट के इतिहास से अपरिचय नहीं है, मनीषा की राय भी पढ़ी थी आपकी उससे असहमति हो सकती है इसमें भी कोई दिक्कत नहीं है पर असहमति के लिए इस तरीके के इस्तेमाल में केवल हिंसा है विचार नहीं है...व्यंग्य भी नहीं हे बस मुझे लगता है केवल विद्रूपता है। फिर आप बाकायदा भड़ासी हैं तब क्यों मनीषा (जिस भी लैंगिकता के साथ) नई आईडी बनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी। बेनाम होने के अधिकार का हम सम्मान करते हैं पर इस तरह अपमानित करने के प्रयास के लिए इसका प्रयोग हो इसके हामी नहीं।
एक सवाल यशवंत से भी, मित्र इस तरह एक नए भड़ासी आईडी को और जोड़ दिया गया..आप दो सौ पचास से इक्यावन गिने जाएंगे :)) क्या सच की संख्या कैसे पता चले ? :))
Posted by masijeevi to भड़ास at 23/2/08 7:26 PM
पत्रकारिता की दास्तान.... इसका आदमी, उसका आदमी, आख़िर किसका आदमी
धन्यवाद सर
चंदन))
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पत्रकारिता में ये बीमारी तो पहले से थी लेकिन अब इसने महामारी का रूप ले लिया है। कस्बों और गांवों में औरतों के आदमी हुआ करते हैं लेकिन यहां आदमीयों के आदमी हैं। अन्दर आने के लिए किसी का आदमी, बने रहने के लिए किसी का आदमी और आगे बढ़ने के लिए भी किसी का आदमी होना बेहद जरूरी है। घर बैठ किसी के साथ सुरापान तो कर सकते हैं लेकिन दफ्तर के आहाते में किसी के साथ चाय की चुस्की भी ली तो उसके आदमी। नतीजा... आपका साथ देने वाला शख्स अगर दफ्तर में हावी है तो चौका वरना आप तत्काल प्रभाव से टीम के सोलहवें खिलाड़ी की मानिंद। चौके लगाने का दमखम रखते होंगे अपनी बला से लेकिन फिलहाल तो किस्मत पर ग्रहण लगता जान पड़ता है। मानो पेप्सी की बोतल लेकर ब्रेक का इंतजार करना ही भाग्य में बदा है।
शायद वो समय कुछ और रहा होगा जब दादा परदादा कहा करते थे कि सबसे मिलकर रहो लेकिन अब तो हालात ये है कि इधर के रहो या उधर के रहो। पत्रकारिता में नये हैं या युं कहें कि नौसिखये हैं तो किसी का आदमी होना और भी जरूरी है। चुंकि से इस बेलौसपन से बीमारी को पोषण मिलता है। इसलिए बचना थोड़ा मुश्किल है। डर तो है लेकिन अर्थशास्त्र की परिभाषा के अनुसार जोखिम उठाने वाले ही उद्यमी कहलाते हैं। इसलिए आप अगर इस बीमारी को जीना सीख गये तो रिलांयस मोबाइल की तरह दुनिया आपकी मुट्ठी में।
मेरे एक सहयोगी वसीम बरेलवी का एक शेर गाहे बगाहे गुनगुनाते हैं -------
मेरा अहले सफर कब किधर का हो जाए
ये वो नहीं जो हर रहगुजर का हो जाए
जीने का हक सिर्फ उसी को है दुनिया में
जो इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए
पर सातवीं में तो मेरे मौलवी साहब ने बताया था कि आदमी तो वही है जो इसका भी रहे और उसका भी हो। पर छोटे से अनुभव और कइ अपरिचित कहानियों के बाद मौलवी साहब भी अब झूठे लगने लगे हैं ।
--चंदन
एक अदद खूंटा चाहिए
हम भारत वासी टांग अडाने में तो माहिर ही हैं और हम बराबर फटा हुआ ढुढते रहते हैं ताकि उसमें अपनी टांग फंसाकर मजा लेते रहें.विवाद से तो हमारा गहरा लगाव है.इसके बिना तो हम रह ही नहीं सकते. जरूरत है तो बस चिंगारी उडाने की बाकी आग कैसे लगानी है उसकी चिंता आप छोड दीजिए. अब जनता को कौन समझाए कि अब अकबर कया कब्र से यह बताने आएंगे कि उनकी बीवी का नाम जोधा था या हीरा कुमारी. अभी जितने लोग जोधा के पीछे पडे हैं उनमें से 99 फीसदी लोगों को अपने परदादा, परदादी के नाम तक याद नहीं होंगे. मैं कहता हूं अकबर की बीवी का नाम जोधा था या जो भी था आपकी सेहत कहां से घट गई. लेकिन नहीं हम जबतक अकबर की बीवी का नाम नहीं पता लगाएंगे हमारी रोटी हजम कैसे होगी. और सबसे बडी बात कि मजा कैसे आएगा.
जोधा अकबर के मामले से पहले राज ठाकरे के मामले का विवाद हमारे सामने था. उससे पहले परमाणु करार को हम घसीट रहे थे. उससे पहले मंगल पांडे, भगत सिंह और न जाने कितने विवादों में हम अपनी टांग अडा चुके हैं. और तो और कुछ पारटियों ने तो बाकायदा इसके लिए अपनी छोटी शाखाएं बना रखी हैं. जो इन मुददों को हाइप देते हैं और इनके पास भी पुतलों के थोक भंडार होता है. बस उनपर नए विवाद का नाम चिपकाना होता है. चार लोग चौराहे पर जमा हुए और दे दिया विवाद को तूल. दूर कहां जाते हैं अभी कुछ दिन पहले ही भंडास पर एक मोहतरमा ने फटा टांग दिया तो लगे सभी भडासी उसमें अपनी टांग अडाने और खामखाह मामले को तूल देने. खैर हम तो ठहरे आदमी और वह भी देशी हिंदुसतानी और हम अपनी फितरत रहे छोडने से. अब जोधा अकबर का मामला भी पुराना पडता जा रहा है लिहाजा देश का एक नए विवाद की तलाश है. अब देखिए यह विवाद आपको और हमको कब मिलता है.
अबरार अहमद
23.2.08
समाचार का बलात्कार !!
चैनल को काहे अनाथालय बनाए हो ?
कपड़े ही
उतारने हैं
तो गरीब किसान मत दिखाओ
जाओ
कोई राखी और मल्लिका लाओ !!
लेकिन सर न्यूज़ .....
अबे न्यूज़ की ऐसी की तैसी
टी आर पी जैसी
ख़बर वैसी
क्यों कहीं कोई दंगा हुआ ?
सरेराह कोई नंगा हुआ
अरे साला
किसी ऐक्टर का अफेयर ढूंढो
कुछ तो अन्फयेर ढूंढो
क्यों आज कोई बड़ा क्राइम हुआ ?
नही तो होने की करो दुआ !
अबे कुछ
अलग चाहिए साला
ख़बर ही क्या जिसमे ना हो मसाला
अबे कुछ ग़लत ना हो रहा हो
तो करवाओ
मूतो कम
ज्यादा हिलाओ
वो anchor
कब तक ऐसे ही दांत
भीन्चेगा
एक ही खबर
कब तक खींचेगा ?
क्या कहा
आज कोई भड़काऊ
बयान नही आया
किसी आईटम गर्ल ने
देह दर्शन भी नही कराया
किसी क्रिकेटर के अफेयर की
कोई न्यूज़ नही
और ऐश की शादी पर
विशेषज्ञ के वयूज़ नही
ऐसे तो यार
टी आर पी बैठ जाएगी
स्पोंसरो की टोली भी
ऐंठ जाएगी
अबे वो पीछे वाला चैनल
साँप बिच्छू दिखा रहा है
बगल वाला रियलिटी शो से
टी आर पी बना रहा है
सामने वाले के पास
आत्मदाह का लाइव फुटेज है
और नीचे वाला टी आर पी में ऊपर आ रहा है
कुछ तो सेंसेशनल लाओ
साली कोई झूटी ही ब्रेकिंग न्यूज़
लगाओ
लूट हत्या
फिजूल की सनसनी
अपराध
घटिया राजनेता
मक्कार सितारे
चालू अपराधी
अत्याचार अनाचार
हर बुलेटिन में
कम से कम एक का
प्रस्तुत हैं आज के समाचार !!!!!!!
जय भड़ास !!
मयंक सक्सेना
कानून के पिछवाड़े उंगली नही डालनी चाहिए वहां दांत होते हैं
अबे कितनी बार बोला कि कानून के पिछवाड़े में उंगली नहीं करने का ,अबी भुगत साला ; जैसे एक शाणा वो है जस्टिस आनंद सिंह जिसने जुडीशियरी में व्याप्त भ्रष्टाचार की तरफ उंगली उठाई तो आज तक भोग रहा है पूरे परिवार समेत .....
लेकिन भड़ासी लोग अपना एक सल्ला है कि तुम लोग बस होली-बीली का पोस्ट लिखने का ,रंग गुलाल वगैरे का ;जास्ती शाणा बन कर पत्रकारिता करके ऐसा प्रोबलेम में उंगली डाला तो मालुम क्या तेरे कूं ,उंगली इच गायब हो जाएंगी बाप । ये कानून वाला लोग के पिच्छू बी दांत होता है साला उंगली करने वाले की उंगली चबा लेते हैं । अबी सीरियसली होली मनाने का कांयकूं फुकट का टेन्चन लेने का जब अपनी फटेगी तबी चिल्लाने का नईं तो गपचिप बैठ कर औरत लोग का मुक्ति-बिक्ति पर बात करने का ऐसा भंकस में क्या रखेला है भिड़ू, अपन को तो अक्खा लाइफ़ उदर मूं इच नईं करने का । ठी है ना भाई लोग ? चल अबी होली मनाने का........
जय जय भड़ास
हिजड़े होने का दरद...
उमा खुराना के कपड़े फाड़े और इज्जत भी मगर चुप हैं सब
लीजिए आपके पवित्र पाँव पकड़ लिए हम : लेकिन एक शर्त है...
मोर्निंग टेम ..फेरेश टेम..बेड टी ...डेली वाकिंग ...मोर्निंग वाकिंग....अपुन भीडू लोग दौरींग बोलता ..गांड फारिंग रनिंगकहता इस क्रिया को... वो गार्डेन में...अप्पन बालू पर....फस कल्लास ..मूड चक दे इंडिया.....बाथ..सिन्थोल...भीडू लोग..कैरकी माएट..... सब फेरेश..हम फेरेश...वो फेरेश...तू ..फेरेश...पंछी फेरेश.....सब फेरेश.... फेरेश.... फेरेश ......जब इ सब ...इत्ता फेरेश ...त मोर्निंग टेम में किससे मरवा के आ रिया है ...जो गरिआए जा रहा है मेरे को.....?
पत्ता चल्ला..वो अपना वेल विषर है...इंटरनेट पर किसी ने गांड में उंगली कर दी होगी...सो इधर भुत नाथ से हुडीआहीलेने आ पहुंचा है..तो सोचा चलें आते हैं हम भी ..सो..बस...ही..ही..ही आ गए...धाम पर...
तुम चट्टानों से कितनी बार बोलूं..कैसे बोलूं..क्यों बोलूं...और कहाँ बोलूं...कब तक बोलूं...तुम अवेध किलों के लिए अपन को ध्वनि विस्तारक लाना पडेगा तो सुन तू काएं ..कीच कै कु करता है इतना...अप्पन भडुआ है...इति भडुआ..अति भडुआ..अंत भडुआ..निति भडुआ..नियति भडुआ..वो तो अपना डिक्सनारी.भी आ गया है..दद्दा संस्करण पिछले दिनों....चाल भडुआ..चरित्र भडुआ...तो काहे को होरी के टेम में मोहर्रम मना रिया है बापू लोग॥?
तू सर लोग..काहे को श्राद्ध मना रिया है तू सर्र्र .....गूढ़मोर्निंग सर...गूढ़ मोर्निंग...हाय..नाइस बेबी...फूल टाईट...संग तेरे फूल नाईट...एगेन मोर्निंग ''ब्रेकिंग न्यूज़ '' ''क्यूट बाईट''......अब्बे टाईट ..पंगा लिया तो सुन बे सर जी ,सभ्यता के गुरु जी ....मास्टर साहब....परनाम ...गे रधिया..चाय बनवे...ऐलखुन...hएन मास्सई साहेब...हैं...हैं..टीचर फुल ....बाप दालान पर...मास्टर साहेब ढलान पर .......टयूसन चालू..''हाँ अकबर ने किस धरम को शुरू किया था...राधे....'' स्साले तेरे जैसे लोगों ने नहीं दिया रहने धरम को ड्रम पुन्य को पुन्य ....पाप को पाप....कितने अकबर..बीरबल..टैगोर..दिनकर..कितनों की पुजाई कर चुके हो तुम...तुम्हारी परम्परा... पूजनीय सभ्यता का सील तोड़ कर रख दिए हो तुम लोग...बक चुद्दी करता है...गुरु देव का शान्ति निकेतन....दिनकर की सिमरिया,चकिया...तेरा छोकरा तेरे परम्पराओं की पैदाइश...सभ्यता का टॉप ....छोडा ......मन बमका घुस गया शांति निकेतन...धंक्रा मैगते ....हूइल गया...तमंचा बाएँ और...छोकरी दाहिने...लाभ..तेरा टेरेनिंग...दाग दी ....माँर लिया गांड तेरी सभ्यता की....लगा दी आग शान्ति में...स्साला ...खिछ-खिछ का वाएरस फैला रहा तेरा परम्परा ,तेरा आदर्श.....स्साल्ले...साहित्य ..रे दैया सेवा..धरोहर...गुरुदेव....मंच पर आँख से मूत के दिखाता है साला लोग.....और तेरी पैदाइश उड़ा ले जाती है तेरी धरोहर........''
''जी सर..चाय''..बस चाय...हाय...तू बहोत नाइस .....आई को लभ हो गया तुझ से... मास्टर बोल रहा है.....अब लड़की..टी वी पर तेरा परम्परा टैप पोरोग्राम ...इरिअल..सिरिअल ....सस्पेंस....देख-पढ़ के टंच...ऐस्सा...सर....जी सर आप मुझे अच्छे लगने लगे...आई..आल्सो..लभ यू सर....अब वो मास्टर दिन में तीन बार बल्हों गली का परिकर्मा चालू...सर जी आप इधर...वो अपने मौसी की चाची की बेटी का नाती पी एच डी ......लडकी खिड़की से हुल्लुक-बुल्लुक चालू...''मन मीत आयो रे-मोरा गीत आयो रे''.....बाप आफिस में.....मातारी nayaa hathiyaar khojne पड़ोस में .....बेटी..सर जी मिल के गांड मार रहे हैं...तेरी आदरणीय परम्परा को.....एगेन मोर्निंग ..पेपर आउट ...''गुरु संग शिष्या फरार''......गुरु कौन रे....अन्तरिक्ष का बुत्रुक...........तेरे से पूछता मैं....वो रधिया सुक्कर ग्रह से इधर आईला क्या रे....क्या रिजल्ट दिया तेरी सभ्यता...तेरी संस्कृति....बोडिंग इस्कूल का बकरा तेरा छोकरा एन सेबंटी टू में तेरी सभ्यता...तेरी तहजीब डाउन लोड ....करता है....रात में..दिन में...हगने घड़ी...मूतने घड़ी...गांड मारते रहता है तेरे ट्रेदिसन की चुदाई करता रहता है.....डब्लू डब्लू पिंक वर्ल्ड डॉट कोम.....दूध्वाली डॉट कोम....देवी देवताओं के चित्र एस एम् एस कर के भेजता है ..अपनी पुजारिनो को...इधर भी आया था...पटना में जुली मटुकनाथ ...ये किधर से आया एकाएक टपक कर आ गया भीडू....
बाप...बाप्पा...पप्पा जी...बाबु जी...हेल्लो डैड ....मदर ...सेरोगेट मदर...माँ...मैं...मईयो...'''स्सल्ला...जुआन खस्सी हो गया है..दिन भर रोटी तोड़ता है....कमीना'' बेटा गया धीप....निकाली कुल्हाड़ी..तेरे आदरणीय भोंपू टेरेदिसन को काट डाला...जी नही भरा...मईयो दुआरी पर ''गे..गे..बुधिया पोलोथिन...बीस टका..तेरा पुत्तर''फिफ्टी थौजेंट ..मामा पिलिज...क्वेस्चन ऑफ़ माई रेपुतेसन....मोम?नो मणी...न इधर...न उधर...उधर कुल्हाड़ी.इधर तुम्हारा लंगूर हाथ में पिस्तौल ....दी एक फाएर....खल्लास...स्सल्ला...तेरा फैथ..तेरा बिलिफ...''
इधरaa kar बोलता भडासी लोग...गाली...कोढ़ से भभाकाने वाला दुर्गन्ध.........रे गुडा के घाव.....तनी नाक लगाओ...आओ ....एन्ने आओ....हर घर ..हर दीवार पर नाक रगड़.....देख अपनी सभ्यता संस्कृति के फूलों की डाली पर लगे रंग..विरंगे..रंडी से श्रृंगार किए फूलों के दुर्गन्ध ने कर दिया है नाक बंद....
ये गाली..भीडू लोग,कुकुर मुत्ते की क्रांति कथा है..और इ लोग जैसे हड़प्पा बना रहे हैं... मॉडर्न मोहन्जोदारो ....पितारिया फेरेम से मालदह हिब्ते हैं ....चेयर का गद्दा बोला अपन से तुम भीडू लोगों की कथा .....अपुन कोई कट पीसशो नही कर रिया मैं..तुने जो सभ्यता की डाली पर फूल उगाया है न ....परम्पराओं के उर्वर भूमि में जो फसल लह्लाहाए हैं न.....उनकी करतूतों को सामने लाता मैं.....तेरे अग्गे ताल ठोंक कर तेरी सभ्यता दिखाता हुं तों झांट झाड़क रहा तेरी ...........१९४७ से बक्चुद्दी किए जा रहे हो...आज स्सल्ला ये ब्लॉग इधर आया तों इस पर भी मुंह फाड़े जा रहे हो...जैसे अपुन अंग्रेजी पाद रहा है इधर...तेरे को दिखा रिया है इधर....त आओ न खेलें रंडा-रंडी का खेल....तेरी परम्परा से सिखा है यह खेल...तेरी सभ्यता अप्पन को टयूशन पढाती है ..ऐसे...जैसे बाप चालीस का बेटी बीस की कच गर ...देख भडुए दिखाता हुं तेरे परम्पराओं की लोगों का जलता सच्चा सच.....
हेड लाइन ''मानवता को किया शर्मसार ...बाप ने अपनी बीस बरस की बेटी....धत...सहोदर जोड़...एडिटर बुझता है...के साथ किया बलात्कार...ग़दर..तू ख़ुद देख..थाना जाम..तेरे टाईप के लोगों की दुर्गन्ध....बेटी हाजत में....अप्पन भाई लोग...मसाला.....कैमरा चालू...हाय राम..हाय दैया..दुहार्र...जैसे इधर दे रहा है तू ...भाषा गंदी कर डाली तोड़ ड़ाल गाली की डाली....
कहे का तोडें अपनी गाली की डाली ...तू दिन दहाड़े चौक चौराहे नेढिया लगाते घुर रहा है तों अपन को भीडू बुझता है रे तू...अपन जानता है क्या करने का है अपन अन्सिभिल सोसाइटी को ....इंटरनेट की भाषा में चोदना मत सीखा हम भीडू लोगों को....वर्षों से सीखते पढ़ते आ रहे हैं तेरी परम्परा....तेरी सभ्यता का होम टयूसन करते आ रहे हैं हम....डेस्क टॉप से उतर कर इधर आ........फेरेम पॉइंट फैब माइनस...उतार कर ...नेचुरल लाईट से देख......वो ड्रामा तू इधर भी चालू किए है...विमर्श....बहस तेरा मंथन ....तेरे विमर्श की चुदाई हो रही है जमीन पर.....तू काहे आकाश की सैर कर रिया है....बाप बेटी पर...माये बेटा पर...ससुर पतोहू पर......फागुन छाई रे......फेर तुरंत...हे रे शोभना के बेटी के कुम्हरा के बेटा गांड में उन्ग्री कैल कई रे..........
मेरे को बोत मालूम...डीप पता....भैया गाली नही बन सकता अच्छा रास्ता.....तों बनाओ न तू ही गूड वे ....सिभिलियन रास्ता..जिस पर चढ़ कर हम दोग्लों को सुंघा रहे हो .....माहवारी की चार्ली ....मेरे को भी मालूम डाक्टर साहब की तरह मैंने भी लिया स्वीकार ...नही मिलेगी ..मंजिल मुझे....तुझ से कहीं ज्यादा पता अप्पन को.....लेकिन अपन लोग न तेरे परम्परा के वाइरस को कम कर रहा है...चिकर भोकर कर बता रहा है तेरी सच्चाई...तेरा हकीकत....विमर्श बहस नही खोज रिया है हम भीडू लोग.....हम ए भी जी ,साइमन्तेक,नोर्टन की तरह लड़ रहा तेरे वाइरस से.......
जपते रहो....मंतारिया रहे हो अबिनव प्रयोग करते रहो...नित नविन चोदन विधि इजाद करते रहो......अब हम ..थोरा उगालदान में .....ठुक दान में...बस्बिट्टी में तेरे परम्पराओं की दुर्गन्ध से बचने आए हैं..तों इधर भी आ गया ''जाओ जाओ विद्वानों,अब तुम्हे नही पढेंगे''....तों जाओ न ..पधाओ न...अपने सपूतों को टेरेनिंग दो न....उस टाइम ऊपर निचे का खेल....अब इस टाइम कहो....खेलो डार्लिंग''बाप्पा-बेटी का खेल''
चोदन सिखाते हो,विमर्श का आधार खोजते हो...खोजो न इधर विमर्श ,मंथन का आधार ...बिस्तर पर दो मिनट बीबी लेट...चोट्ती से लेकर हर गाली...एच डब्लू सी डब्लू सहित पुरी भडासी शब्द कोष खाली.....
और इधर फ़िर आते हो गूड मोर्निंग...जी..मोर्निंग..वो थोड़ा वार्शिप ....अगरबत्ती...ॐ..नमो..नमाए....चंदन...साथ में अरवा चावल...एकदम झक्कास...नाश्ता..सूप..बेरेड...हाय डार्लिंग ...लेट मी गो ..कम ओं...बच्चा बाजू में हिब रहा है....देख रहा है तेरे परम्परा का प्राक्तिकल.....तू चिपू चिपू...चिप चिप...ठोर में ठोर ...आहो रामा...आहो दैया...फ़िर बच्चा की वाही पेलाई.......होरी वाली.....''दे दा कडुआ तेल की होरी आई रे भौजी''
जपो मंतर परम्परा का...सभ्यता का...तुने ख़ुद गांड मारी है बेचारे परम्परा की.......मैं तों बस दिखा रहा था तेरे को .....तेरी करतूत और तुझे मिल गया फ़िर गंभीर विमर्श.....मिल गया एक प्रायोजित मंच......अब सब मिल कर फारो मेरा गांड.....कडुआ तेल लगा kar ....उई...स्सल्ला...इ कडुआ तेल का राज खुल ही गया....कोई बात नही ..अभी से मैं रंडी का चूत तू sab मेरा भतार......एओ मोरे राज्जा.... कहानिया सुना जा...वही अपने निर्माण की कहानी....विमर्श और मंथन की पुरानी कहानी......वही परिणाम की कहानी.....तेरा परिणाम...रिजल्ट...संस्कार फास्ट डिभिजन......univarsiti टॉप रिजल्ट...हिस्ट्री क्रिएसन.....फास्ट टाइम इन द वर्ल्ड....टाइम्स मेग्जिन....गौतम अपना बेतवा.....खा गया बाढ़ पीड़ित का हक़....गिल गया..तेरी परम्परा......रंजित दोन...पन्द्रह लाख में मैं बाप बेटी दामाद समेत सब डाक्टर.....फेमस ....रेपुतेसन....मोर्निंग सर...वेरी नाइस मोर्निंग बेबी.....तेरा परम्परा का उपज डाक्टर अमित...गांड में आला खोंस कर फुल केयर...मेडिकल साइंस.....अपने चेयर के पीछे गांधी बब्बा लगा कर...किडनी निकल ली तेरी .....तों पधाओ न बुतारुक को पैसा बनाओ ..गांड मराओ....किडनी बेचो...सॉलिड मुनाफे का धंधा....अपना लौरा ..जिधर मन उधर बजरेंगे...तों बाजारों न थोरी इधर....थोरी उधर...
तू एक एक कर सामने आ...बहस कर .....अपुन भडुआ काफी है तेरे को दिखाने,बताने...तेरी सड़ चुकी सभ्यता का सच हम बताएंगे.....लेकिन एक शर्त है मेरी तेरे से....तुम सब रेप्रेजेन्तेतिभ से ...फुल फमिली सोचना.....तेरे को अच्छा लगता है यह सब...क्या दिया तेरे विमर्श ने......तेरे को लगेगा की यह परिणाम....तेरा रिजल्ट गुडी गुडी है तों भडास के इमान की कसम....अप्पन भीडू लोग कभी नही आएगा तेरे परम्परा...तेरी सभ्यता के दालान पर.......
लेकिन अगर नही तों चल मेरे साथ...मैं देता हुं तुम्हे बक्चुद्दी के लिए ठोस...विमर्श भूमि....जहाँ करते रहना अनवरत बक्चुदाई...वैसे बक्चुदाई मेरा धर्म...बक थोथान मेरी क्रिया.......
जय भडास
जय यशवंत
मनीष राज बेगुसराय