' परिवर्तन संसार का नियम है। इसी नियम के तहत आज सब कुछ बदल रहा है। पहले जहाँ औरतें अपने अन्डर-गारमेंट्स खुले धुप में सुखाने में भी शर्माती थी, वहीँ आज ये बाज़ार में खुलेआम नज़र आते हैं....... मुस्लिम समाज भी अब परदे से बाहर निकल रही है....... तुम्हारे यहाँ तो मौल्वियो का दबदबा है.......... बात बात पर फतवे जारी कर दिए जाते हैं............. हर काम पर पर रोक लगा दी जाती है.......... यहाँ मत जाओ , वहां मत जाओ ...... यह मत करो, वो मत करो........जहाँ एक तरफ़ मुसलमान आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट हो कर उसके समाप्ति की बातें कर रहे हैं, वहीँ बाल ठाकरे साहब की ओर से हिंदू आतंकवाद के बढावा देने की भी बातें हो रही हैं, ....... आदि-अनादी। '
हमलोग इन्ही बातों को लेकर पिछले दिनों चम्पारण की पवित्र धरती 'बेतिया' (जहाँ से गाँधी जी ने सत्याग्रह आन्दोलन की शुरुआत की थी, और आज राजनितिक गतिविधियों एवं अपने कारनामों के कारण पुरे भारत में प्रसिद्द है।) अपने एक मित्र के घर बहस कर रहे थे । दरअसल, हम सब को एक पार्टी में जाना था, इसी कारण एक जगह एकत्रित हुए थे। अभी हमारी बहस जारी थी ही थी कि कानो में पटाखों कि गूंज साहब सुनाई दी, ऐसा लगा ठाकरे कि की फिदाईन दस्ते ने हमारे घरों पर हमले बोल दिए हैं। घबराहट में हम छत की तरफ भागे. अब बैंड बाजों की धुन हमारी कानो को आनंदित कर रही थी. मेरे एक मित्र ने कहा "लगता है, बारात है...." पर हम सब इस सोच में डुबे थे कि बिन लगन यह शहनाई कैसी....? हिन्दू धर्म के लिए तो अभी लगन तो है ही नहीं. हो सकता है किसी मुस्लिम कि शादी होगी. उनके यहाँ तो कोई नेम-टेम होता ही नहीं. बाप भी मर जाये तो भी शादी हो जाती है. लेकिन जैसे ही बारात और नजदीक आई, हमने रथ को देखा जो आमतौर पर हिन्दू धर्म कि शादी में ही देखा जाता है. मुस्लमान दुल्हे तो घोडे या फिर गाडी में बैठना मुनासिब समझते हैं. इस तरह हम सब कन्फर्म हो गए कि कोई हिन्दू शादी ही है.मेरे दोस्त ने चुटकी लेते हुए कहा "देखो हमारे यहाँ भी सब कुछ बदल रहा है, अब तो तुम लोग भी सुधर जाओ." पर यह क्या सिर्फ सौगोलिया ही नज़र आ रहे है. दूल्हा तो कही है ही नहीं. सचमुच दूल्हा था ही नहीं. सिर्फ चार छोटे-छोटे बच्चे दूल्हा बने दिखे. कहीं यह बाल विवाह तो नहीं. पर बाद में मालूम चला कि इन बच्चो की कल मुसलमानी होने वाली है और अज उनका अकीका है,और उसी अकीका की पार्टी में हमें जाना है. फिर वहां जाकर मेरे मित्रो ने जो कुछ देखा,उनकी आँखें खुली की खुली रह गयी. और उनके मुंह से बरबस ही निकला "मुस्लिम समाज में इतना परिवर्तन...?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा "जी दोस्त! सब कुछ बदल चूका है,और ये परिवर्तन हमें स्वीकार करना पडेगा."
17.8.08
मुस्लिम समाज में परिवर्तन....
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3 comments:
मित्र,
आपने परिवर्तन की बात कही, सच है बदल रहा है जमाना और बीत रहा है मुल्ले, मौलवी, धर्मगुरु और फतवा का जमाना. लोग इनके चुतियापे से आजिज आ चुके हैं और अपने विचार से अपने दिमाग से अपने अकाल से सामाजिक सरोकार और समरसता को देखते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं, सच कहूं तो ये भावना ही हमारे विकाश की नींव होगी मगर एक बात और हमें भी किसी के लिए वैर या वैमनस्यता नही रखना होगा, चाहे वो मुल्ले मौलाना हों या ठाकरे.
जय जय भड़ास
ये अकीका क्या होता है?
wasim akram said.........
samajh me ye baat nahi aati ke ye log pashim ki sanskirti ko kyo apnate jaa rahe he ? kya nanga ho jana hi vikaas ka model he
kya shadi me fizool kharhi kar ke hi hum vikas ki dor me shamil honhe?
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