अवधेश बजाज
त्वरित टिप्पणी
सच कहते हैं तो बुरा मानते हैं लोग
और रो-रो कहने की आदत नहीं हमारी
इस अशआर से प्रेरित होकर राज एक्सप्रेस के अपराध संवाददाता ने राज एक्सप्रेस में गुरुवार को एक खबर लिखी। खबर का शीर्षक था ‘अधीक्षक के सामने आईएसओ जेल में कैदियों से क्रूरता’। इस खबर से भोपाल के जेल अधीक्षक पीडी सोमकुंवर इतने बौखलाए कि उन्होंने जुबैर कुरैशी पर प्रतिबंधित संगठन सिमी से ताल्लुकात का आरोप मढ़ दिया। इस तारतम्य में सोमकुंवर ने राज एक्सप्रेस के मैनेजमेंट को एक पत्र भी लिखा है।
दरअसल इसमें सोमकुंवर की गलती नहीं है। यह हमारी राजनीतिक व्यवस्था के अर्थतंत्र की गलती है। सत्ता के साकेत में बैठे दल्ले ऐसे सोमकुंवर पैदा करते हैं, जिनकी प्रेस वालों पर उंगली उठाने की हिम्मत होती है। सत्ताई अर्थतंत्र के आंगन की सदा सुहागन सोमकुंवर क्या है, उनका चरित्र और उनकी आर्थिक सेहत किसी से छुपी नहीं है। उमा भारती के मुख्यमंत्रित्व काल में उनके स्थानांतरण को रूकवाने के लिए दो सांसद, पांच मंत्री और भाजपा के दो राष्ट्रीय महामंत्रियों ने लाबिंग की थी। इसका मैं प्रत्यक्ष गवाह हूं। सोमकुंवर सत्ताई दल्लों के संरक्षण में गदरा रहे हैं। वे राजनीतिज्ञों को खरीद सकते हैं, लेकिन मीडियाकर्मियों को नहीं।
जुबेर कुरैशी मुस्लिम है। लिहाजा उस पर सिमी से संबंध का आरोप लगाने का उपक्रम सोमकुंवर जैसे मानसहीन लोग ही कर सकते हैं। सवाल यह उठता है कि हमारी तंत्र व्यवस्था में सोमकुंवरों का जन्म कैसे होता है, एक ही पद पर ये नौ-नौ साल कैसे जमे रहते हैं? दरअसल ये हमारी अफसरशाही के नव सामंत हैं, जो राजनीतिज्ञों के संरक्षण में बेलगाम हो रहे हैं। मीडियाकर्मियों को एकजुटता के साथ ऐसे बेलगाम मानसहीन सोमकुंवर को करारा जवाब देना चाहिए। आज एक जुबैर कुरैशी के खिलाफ एक अफसर बेबुनियाद, मिथ्या आरोप लगा रहा है। कल आपकी बारी आ सकती है।
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(लेखक अवधेश बजाज मध्य प्रदेश केंद्रित लोकप्रिय मीडिया पोर्टल बिच्छू डाट काम के प्रधान संपादक होने के साथ-साथ प्रदेश के प्रतिष्ठित वरिष्ठ पत्रकार हैं)
1.8.08
बारिश में पतंग मत उड़ाओ सोमकुंवर (संदर्भ: पत्रकार जुबैर कुरैशी पर बेबुनियाद आरोप)
Posted by यशवंत सिंह yashwant singh
Labels: अवधेश बजाज, आरोप, टिप्पणी, पत्रकार, भ्रष्टाचार, साजिश
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4 comments:
अवधेश जी, आपकी यह त्वरित टिप्पणी आंख खोलने वाली है। किस तरह एक भ्रष्ट अफसर अपनी खाल बचाने के लिए एक पत्रकार को उसके मजहब के आधार पर उसे आतंकवादी बताने पर तुला है। इससे न सिर्फ अफसरों की कार्यप्रणाली पता चलती है बल्कि यह भी पता चलता है कि वो किस तरह इस देश का शासन चला रहे हैं। यह वाकया मीडिया के लोगों के लिए एक सबक होना चाहिए अगर वो अब भी चाटुकारिता व दलाली छोड़कर कलम की ताकत के आधार पर एकजुट न हुए तो वो दिन दूर नहीं जब उन्हें कोई भी अदना सा भ्रष्ट अफसर कटघरे में खड़ा कर इज्जत सरेआम नीलाम करा देगा।
यशवंत सिंह
दादा काश अगर मीडिया ने खुद को इतना लतिहड़ न बना लिया होता और अपनी नैतिकता पर कायम रह पाता तो भला किसी का इतना साहस हो पाता??? इस स्थिति के लिये स्वयं काफ़ी हद तक मीडिया खुद ही जिम्मेदार है... वैसे अभी भी इतने बुरे दिन नहीं आ गए कि एक सुअर को सबक न सिखा सकें...
जय जय भड़ास
अवधेश बजाज साहब ने सही लिखा है ...
हमने तो बजाज साहब के साथ काम किया है जुबेर भाई और हम लोग बजाज साहब से सीखते रहे है ...
''जुबेर कुरैशी मुस्लिम है। लिहाजा उस पर सिमी से संबंध का आरोप लगाने का उपक्रम सोमकुंवर जैसे मानसहीन लोग ही कर सकते हैं।'' बजाज जी ने यह भी ठीक लिखा है .
सोमकुंवर जैसे लोग यह कभी नहीं समाज सकते की ... धर्म से आप किसी को अपराधी नहीं मान सकते ...
जुबेर भाई हम आपके साथ है ....
ramkrishna डोंगरे
दद्दा,
पत्रकार (चुने हुए ही रह गए हैं बाक़ी दल्ले ही हैं) कि इसे दुर्गती के लिए सच कहें तो अपने जाति के लोग ही सबसे बड़े दुश्मन हैं. पत्रकारिता को रांड का धंधा बना देने वालों ने पत्रकारिता से लेकर सत्ता तक के गलियारों में एसा कोठा बना रखा है जहाँ पत्रकार नामक दलाल अपनी अपनी रांड के लिए दलाली करते नजर आते हैं और इसका खामियाजा वास्तविक पत्रकारों को भुगतना पड़ता है.
जागो रे जागो रे.
चेतो रे चेतो रे.
जय जय भड़ास
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