यूँ भी कह सकते हैं कि अब यह भूत ना रहकर चाबुक बन चुका है. ये चाबुक कभी ग़ैरमुसलमानों के हाथ में होता है तो कभी मुल्ला मौलवियों के हाथ में.
देवबंद में वंदे मातरम नहीं गाने वाला प्रस्ताव पारित करने की शायद ज़रूरत या कोई प्रासंगिकता नहीं थी और क्या ऐसे किसी प्रस्ताव पर इतनी हाय-तौबा मचाने की ज़रूरत भी थी. मेरे ख़याल से मीडिया ने बिना वजह राई को पहाड़ बना दिया.
लेकिन मैं सोच रहा था कि भारत के मुसलमान अगर वंदे मातरम गा भी दें तो क्या उन पर 'ग़द्दार' होने का शक हट जाएगा, क्या उनकी ग़रीबी, पिछड़ापन, अशिक्षा, सिस्टम में भागीदारी जैसी समस्याएँ दूर हो जाएंगी.
सिर्फ़ मुसलमानों की बात क्यों की जाए, भारत में पाँच साल से कम उम्र के छह करोड़ बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, लगभग चालीस करोड़ लोगों को शिक्षा और प्रगति के अवसर मिलना तो दूर की बात है, उन्हें भरपेट खाना नसीब नहीं होता. भारत की पूरी आबादी अगर वंदे मातरम गाकर समस्याओं से छुटकारा पा सकती है तो इससे आसान रास्ता और क्या हो सकता है, लेकिन इसकी गारंटी कौन देगा ?
मुद्दा ये है कि जो लोग वंदे मातरम गाते हैं क्या वे सचमुच देश के लिए वफ़ादार हैं. ये कहना ज़रूरी नहीं है कि ये वफ़ादारी सिर्फ़ सीमा पर दुश्मन के ख़िलाफ़ बिगुल बजाने से ही साबित नहीं होती, देश के भीतर या बाहर रहते हुए भी देश की भलाई के बारे में सोचना और करना ज़रूरी है.ऐसे लोग आपसे छुपे नहीं हैं जो बेईमानी, भ्रष्टाचार, लोगों के अधिकारों का हनन करके देश को दीमक की तरह चाटकर खोखला कर रहे हैं. ऐसे लोग लोकतंत्र को बदनाम करते हैं. भारत में इतना भ्रष्टाचार फैला है कि इससे छुटकारा पाने के लिए उसे पूरी दुनिया में कम से कम 83 देशों से मुक़ाबला करना है. भारत के निकटतम प्रतिद्वंद्वी चीन में भी कम भ्रष्टाचार है.
यदि धर्म को एक तरफ़ रख दें तो भी किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के ख़िलाफ़ कोई काम करने के लिए मजबूर करना सीधे-सीधे उसके व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन करना है, जिसकी गारंटी उसे संविधान या अंतरराष्ट्रीय संधियों में दी गई है. मैं अगर सिगरेट नहीं पीना चाहता या गोश्त नहीं खाना चाहता या... तो क्या कोई मुझे मजबूर कर सकता है. यहाँ इंग्लैंड के सरकारी स्कूलों में तो किसी धर्म का कोई तराना नहीं गाया जाता यहाँ तक कि महारानी की प्रशंसा वाला राष्ट्रगान भी नहीं क्योंकि बच्चे कहते हैं कि अगर किसी एक धर्म का गीत गाया जाए तो अन्य धर्मों के बच्चों की भावनाओं को ठेस पहुँचेगी.
तो वंदे मातरम् गाया जाए या नहीं, इसका बहिष्कार किया जाए या नहीं और इसे अनिवार्य बनाया जाए या नहीं, इस बहस को छोड़ कर कुछ और रचनात्मक बात पर बहस-मुबाहिसा हो तो क्या सबके हित में नहीं होगा.(थैंक्स महबूब खान )
देवबंद में वंदे मातरम नहीं गाने वाला प्रस्ताव पारित करने की शायद ज़रूरत या कोई प्रासंगिकता नहीं थी और क्या ऐसे किसी प्रस्ताव पर इतनी हाय-तौबा मचाने की ज़रूरत भी थी. मेरे ख़याल से मीडिया ने बिना वजह राई को पहाड़ बना दिया.
लेकिन मैं सोच रहा था कि भारत के मुसलमान अगर वंदे मातरम गा भी दें तो क्या उन पर 'ग़द्दार' होने का शक हट जाएगा, क्या उनकी ग़रीबी, पिछड़ापन, अशिक्षा, सिस्टम में भागीदारी जैसी समस्याएँ दूर हो जाएंगी.
सिर्फ़ मुसलमानों की बात क्यों की जाए, भारत में पाँच साल से कम उम्र के छह करोड़ बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, लगभग चालीस करोड़ लोगों को शिक्षा और प्रगति के अवसर मिलना तो दूर की बात है, उन्हें भरपेट खाना नसीब नहीं होता. भारत की पूरी आबादी अगर वंदे मातरम गाकर समस्याओं से छुटकारा पा सकती है तो इससे आसान रास्ता और क्या हो सकता है, लेकिन इसकी गारंटी कौन देगा ?
मुद्दा ये है कि जो लोग वंदे मातरम गाते हैं क्या वे सचमुच देश के लिए वफ़ादार हैं. ये कहना ज़रूरी नहीं है कि ये वफ़ादारी सिर्फ़ सीमा पर दुश्मन के ख़िलाफ़ बिगुल बजाने से ही साबित नहीं होती, देश के भीतर या बाहर रहते हुए भी देश की भलाई के बारे में सोचना और करना ज़रूरी है.ऐसे लोग आपसे छुपे नहीं हैं जो बेईमानी, भ्रष्टाचार, लोगों के अधिकारों का हनन करके देश को दीमक की तरह चाटकर खोखला कर रहे हैं. ऐसे लोग लोकतंत्र को बदनाम करते हैं. भारत में इतना भ्रष्टाचार फैला है कि इससे छुटकारा पाने के लिए उसे पूरी दुनिया में कम से कम 83 देशों से मुक़ाबला करना है. भारत के निकटतम प्रतिद्वंद्वी चीन में भी कम भ्रष्टाचार है.
यदि धर्म को एक तरफ़ रख दें तो भी किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के ख़िलाफ़ कोई काम करने के लिए मजबूर करना सीधे-सीधे उसके व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन करना है, जिसकी गारंटी उसे संविधान या अंतरराष्ट्रीय संधियों में दी गई है. मैं अगर सिगरेट नहीं पीना चाहता या गोश्त नहीं खाना चाहता या... तो क्या कोई मुझे मजबूर कर सकता है. यहाँ इंग्लैंड के सरकारी स्कूलों में तो किसी धर्म का कोई तराना नहीं गाया जाता यहाँ तक कि महारानी की प्रशंसा वाला राष्ट्रगान भी नहीं क्योंकि बच्चे कहते हैं कि अगर किसी एक धर्म का गीत गाया जाए तो अन्य धर्मों के बच्चों की भावनाओं को ठेस पहुँचेगी.
तो वंदे मातरम् गाया जाए या नहीं, इसका बहिष्कार किया जाए या नहीं और इसे अनिवार्य बनाया जाए या नहीं, इस बहस को छोड़ कर कुछ और रचनात्मक बात पर बहस-मुबाहिसा हो तो क्या सबके हित में नहीं होगा.(थैंक्स महबूब खान )
1 comment:
आपकी बात से पुरी तरह सहमत बिल्कुल सही कहा है आपने.....
वन्दे मातरम देशभक्ति का सर्टिफ़िकेट नही है....
इसी मुद्दे पर मेरे लेख पढे...
http://qur-aninhindi.blogspot.com/2009/11/no-indian-muslim-is-patriostic.html
http://qur-aninhindi.blogspot.com/2009/11/if-you-worship-this-country-this-soil.html
http://qur-aninhindi.blogspot.com/2009/11/as-in-hindu-sanatan-religion-to-make.html
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