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6.6.10

मुझे आगे भी जाना है

सुबह का सूरज
तुम्हारे भाल पर
उगा रहता है अक्सर
मेरे ह्रदय तक 

उजास किये हुए

मेरी सबसे सुन्दर
रचना भी कमजोर
लगने लगती  है
जब देखता हूँ
तुम्हें सम्पूर्णता में

दिए की तरह जलते
तुम्हारे रक्ताभ नाख़ून
दो पंखडियों जैसे अधर
काले आसमान  पर लाल
नदी बहती देखता हूँ मैं

सचमुच  एक पूरा
आकाश है तुम्हारे होने में
जिसमें बिना पंख के
भी उड़ना  संभव है
जिसमें उड़कर भी
उड़ान होती ही नहीं
क्योंकि चाहे जितनी दूर
चला जाऊं किसी भी ओर
पर होता वहीँ हूँ
जहाँ से भरी थी उड़ान


तुम नहीं होती तो
अपने भीतर की चिंगारी से
जलकर नष्ट हो गया होता
बह गया होता दहक कर
तुम चट्टान के बंद
कटोरे में संभाल कर
रखती हो मुझे
खुद सहती हुई
मेरा अनहद उत्ताप
जलकर भी शांत
रहती हो निरंतर


जो बंधता नहीं
कभी भी, कहीं भी
वह जाने कैसे बंध गया
कोमल कमल-नाल से
जो अनंत बाधाओं के आगे भी
रुकता नहीं, झुकता नहीं
कहीं भी ठहरता नहीं
वह फूलों की घाटी में
आकर भूल गया चलना
भूल गया कि कोई  और भी

मंजिल है मधु के अलावा

सुन रही हो तुम

या सो गयी सुनते-सुनते
पहले तुम कहती थी
मैं सो जाता था
अब मैं कह रहा हूँ
पर तुम सो चुकी हो

उठो, जागो और सुनो
मुझे आगे भी जाना  है. 

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