हमारे पूर्वज
झंझावतों से लड़े
भिड़े,
मगर टूटे नहीं,
इसीलिए बूढा बरगद
खड़ा रहता है,
आपनी आन- बान और शान के साथ
हर बार कर देता है
ओनर किलिंग
अपनी मर्यादा की खातिर
मार देता है,
अपने ही बीज को
ताकि पैदा हो
अच्छी और बेहतर नस्ल
एक झटके में तोड़ देता है
बाधाएं,
किसी बान्ध की बाढ़ की तरह लड़ जाता है
पूरी सभ्यता से
अपनी इज्जत के लिए
और एक हम
यू के लिपितिस
उखड जाते हैं
बहते यौवानावेश में
कर देते हैं खून,
अपने ही खून का
चाची, भाभी या बहन
किसी भी रिश्ते का,
क्योंकि हम बरगद नहीं
यू के लिपितिस हैं,
सिर्फ
यू के लिपितिस
27.6.10
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1 comment:
बहुत गहरी रचना..वाह!
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