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1.6.10

उफ! कोई इन्हें भी फांसी दे दे

या तो हमारी सरकार का खून सूख गया है या फिर उसकी नक्सलियों से कोई गुप्त संधि है। वरना इतने बेगुनाहों का खून सड़कों पर, रेल की पटरियों पर और छोटे से घर के बाहर बने नाले में बहते देख सरकार का हृदय पिघलता जरूर। वह सिर्फ बातें नहीं करती, कुछ कड़े कदम भी उठाती। हाल ही की तीन बड़ी घटनाओं ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। और उन निरीह गरीबों की तो जान कलेजे में हैं जहां नक्सलियों की सरकार खुल के चलती है। जिसकी चाहे जान ले लेते हैं, चाहे जिस बच्चे को उठाकर ले जाते हैं उसके निश्छल मन में अपनी ही मिट्टी और अपने ही लोगों के खिलाफ बैर भर देते हैं। पिछले दिनों मामला सामने आया था कि एक लड़की ने नक्सलियों की शैतानी सेना में शामिल होने से इनकार किया तो इन्हीं नक्सलियों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। सात-आठ माह पुरानी घटना है किसी व्यक्ति के समूल परिवार (जिसमें मासूम दूध पीते बच्चे भी शामिल थे) को झौंपड़े के अंदर बंद कर आग से जला दिया। कारण बताया कि उस परिवार के एक व्यक्ति ने उनकी मुखबरी की थी। माना की भी हो तो उन मासूमों का क्या दोष था जो अभी अपनी मां को मां और पिता को बाप भी नहीं कहना सीख पाए थे। और दंतेवाड़ा में ७० जवान की हत्या, उसके बाद बस में विस्फोट कर ३५ लोगों की जान ली और अब रेल को खून से लाल करके करीब सवा सौ लोगों की जिंदगी छीन ली। माफ करना सवा सौ लोगों की जिंदगी नहीं संख्या और अधिक है। उनकी भी मौत हुई है जो इनसे प्रेम करते थे, जो इन पर आश्रित थे।
कौन है नक्सली- 'नक्सलियोंÓ का अर्थ में उन लोगों से लगाता हूं 'जिनकी नस्ल खराब हो गई है।Ó इनका कहना है कि इन्होंने हथियार गरीब और वंचितों के लिए उठाए हैं (शायद उन्हें जान से मारने के लिए)। लेकिन हकीकत यह है कि ये डाकू हैं, लुटेरे हैं, लूट-लूट के खाना पसंद करते हैं। यदि किसी ने इनकी बात नहीं मानी तो वो चाहे गरीब ही क्यों न हो वे उसे मार डालते हैं, इतना ही नहीं उसके परिवार का समूल नाश भी करने से नहीं चूकते। ये नहीं चाहते कि पिछड़े क्षेत्रों में विकास हो। तभी रेल की पटरियां उखाड़ते हैं, सड़कें खोदते हैं, स्कूल भवन को बम से उडाते हैं। इतना ही नहीं कहीं उन गरीबों के बच्चे पढ़-लिख कर समझदार न हो जाएं (हो गए तो इनके खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे) इसलिए ये बच्चों को पढ़ाने आने वाले मास्टर को ही उठवा लेते हैं और क्रूरता से उसकी हत्या कर देते हैं। इन्हें ही कहते हैं हम नक्सली।
इनके पैरोकार- इस देश में सब तरह के लोग हैं। आंतकवादी का सम्मान करने वालों से लेकर इन खूनी दरिंदों के लिए चिल्ला-चिल्लाकर गला और लिख-लिखकर कलम की स्याही सुखाने वाले भी। ये ऐसे इसलिए कर पाते हैं क्योंकि इनके भीतर की भी मानवीय संवेदनाएं मर गईं हैं। साथ ेमें इस देश के प्रति प्यार भी नहीं बचा। और कभी नक्सलियों ने इनके घरों के दुधमुहें बच्चों को गोली नहीं मारी, वरना ये तथाकथित सेक्यूलर ऐसा कभी नहीं कह पाते।
सरकार जाग जाए वरना..... अब हद हो चुकी है। जनता और नहीं सहेगी। जनता खून से भरे गले से रो-रोकर कह रही है कोई है जो इन दुष्टों को भी फांसी देगा, कोई है जो इन्हें भी बुलेट को जबाव बुलेट से देगा। अगर सरकार ने नक्सलियों को खत्म करने के लिए हथियार नहीं उठाए तो मजबूरन भोली जनता को ये कदम उठाना पड़ेगा। और जब जनता उठाएगी तो फिर सरकार को भी नहीं छोड़ेगी। क्योंकि वे भोले मानुष सरकार से भी त्रस्त हैं। पंजाब में उग्रवाद का खात्मा करने के लिए जैसे कठोर निर्णय लेने पड़े थे वैसे ही खूनी हो चुके नक्सलवाद को खत्म करने के लिए लेने होंगे।
पंचू पंच- पंचू से किसी ने कहा कि मप्र में भी नक्सलवादियों की आहट हो गई है। वे तेरे गांव व शहर में भी आ सकते हैं। तब उसने क्या कहा सुन लें..........
'आने तो देओ वाये... ससुर के नाती को मूड़ (सिर) लठिया से फोर-फोर के लाल कर दंगो... मेरे गांम के एकऊ मोड़ा-मोड़ा (लड़का-लड़की) को हाथ लगायो तो सारे के हाथ कुलाई (कुल्हाड़ी) से काट दुंगो। आए तो सही न पनारे (घर से निकली नाली) में उल्टो करके गाप देंगो।

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