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6.5.16

भाँड़ों को मिलती है पत्रकारिता की मानद उपाधि

जरूरी नहीं कि आप लिख-पढ़ कर ही बने बड़े पत्रकार

लखनऊ के पत्रकार बाहुल्य एक वीआईपी इलाके में दीवान नाम के पान वाले ने बहुत पहले मुझसे पूछा था- फलाँ भईया तो बड़े वाले पत्रकार हैं न? मैंने सवाल पर ही सवाल जड़ दिया था- बड़े वाले का क्या मतलब?

उसने जवाब दिया- मतलब ये कि ठाठ से रहते हैं। बड़ी गाड़ी से चलते हैं। सरकारी मकान में रहते हैं। बड़े नेताओं, बड़े अधिकारियों और बड़े पत्रकारों (जो लेखन में भी बड़े हैं) के बेहद करीबी हैं।


अपनी सफाई देने के बाद दीवान ने मुझसे वो सवाल किया जिसे पूछने की ही दलअसल भूमिका बना रहा था वो। भईया, अच्छा ये बताइये कि वो फलाँ भइया किस अखबार में लिखते हैं... या किस चैनल में उनकी खबर चलती है.... कभी उन्हें कहीं पढ़ा नहीं..।

मैंने कहाँ छोड़ो यार... लम्बी कहानी है ... फिर कभी बताऊंगा ..

इस बात को दिन महीने यहाँ तक कि दो साल गुजर गये थे और "फिर कभी" नही आया था।

कल जलती दोपहरिया में जब मैं दीवान की पान की दुकान पर सबसे सस्ती वाली सिगरेट (पाइलेट कैप्सटन) लेने गया तो मैं भी फुर्सत में था और वो भी। ऐसे मे दीवान ने किसी मुफ्तखोर को कोल्ड ड्रिंक का आफर कर के कुछ बड़े पत्रकारों की असलियत जानने की सुपारी दे दी थी। ... और वही हुआ,  वो अपने पुराने सवाल के जवाब का दबाव बनाने लगा।

खुश्क गला जब तर हुआ तो विक्रम को वैताल के एहसान का हक अदा करना ही था- न पाठक न दर्शक, न लिखना न पढ़ना।  फिर भी क्यो कहलाते है ये लोग बड़े पत्रकार?

दीवान पानवाले के सवाल का जवाब देने की एक ईमानदार कोशिश के साथ मैं शुरू हो गया - :- बिना चुनाव लड़े अपनी विशिष्ट सेवाओं के बल पर  लोग सासंद और विधायक बन कर राज्य सभा  और विधान परिषद पहुँच जाते हैं। बिनी पढ़े-लिखे और बिना रिसर्च किये कईयो को मानद उपाधि दे दी जाती है। तो फिर बिना खबर लिखे और बिना  रीडरशिप के भी किसी को बड़के पत्रकार का दर्जा क्यों नही दिया जा सकता ?

ये आज की बात नही है। पुराने जमानो से राजा-महाराजाओं के दरबारों मे भाँडो की आमद-रफ्त का रिवाज किसी से छुपा नही था। दरबारो मे इनकी एहमियत थी.. इज्जत थी..अर्थ था और गरज व जरुरत भी थी।

इन भाँडो को बड़े कलाकार का दर्जा देते थे राजा-महाराजा और उनके ओहदेदार।  राजाओं और उनके नौकरशाहो की दिमागी थकान को रिलैक्स करने के लिये भाँडो की भाँडगीरी का मनोरंजन अहम था। दरबारो मे इनकी गीली-गीली बाते, चुगहलबाजी , तफरीह, ठिठोलबाजी और शेर- ओ- शायरी के जरिये मनोरंजन ही नही होता थी ।

लगायी-बुझाई, मुखबरी, जासूसी,   इधर की उधर- उधर की इधर करना इत्यादि भाँडो के दूसरे अहम काम हुआ करते थे।

राजा-महाराजा और उनके नौकरशाह इधर- उधर की जानकारिया  और अपने दुश्मनो/प्रतिद्वंद्वियों की टोह लेने का काम लेने के लिये मुखबिरो ( जो जाहिरी तौर पर मुखबिर नही थे) से खुलेआम मिल सके इसलिये ही मुखबिर/भाँड को बुद्धिजीवी कलाकार का दर्जा दे दिया जाता था।

जमाना बदला है लेकिन सिस्टम मे कोई खास फर्ख नही हुआ है। सियासतदाओ /हुक्मरानो  और नौकरशाहो को  रिलेक्स भी चाहिये है और हर जगह घुस जाने की आजादी रखने वाले मुखबिरो/दलालो की भी उन्हे जरुरत पड़ती है।

मुखबिर/गुप्तचर/ दलाल/  इधर की उधर करने वाले/चुगहलखोर/लगाई बुझाई करने मे माहिर/ रन्डीबाज/ भड़वे/ ठिठोलबाज/चुटकलेबाज जैसो की जररत तो ज्यादातर बड़े नेताओ/सियासतदाओ और नौकरशाहो को होती ही है। पर  इन ओहदेदारो को इन सब छिछोरे/गंदे और छोटे हुनर के माहिरो को अपने संग बैठाने मे शर्म भी आती है। इसलिये ही इन भाँडो के असली चेहरे को छुपाने के लिये इन्हे पत्रकार का मुखौटा पहना दिया जाता है।

हर सरकार मे आला अफसर अहम  प्रेस वार्ताओ  मे इनसे सरकार के फेवर वाले सवाल करवाते है जबकि सरकार को कटघरे मे खड़ा करने वाले गंभीर  सवालो को इन भाँड पत्रकारों के बेतुके और मजाहिया सवालो के जरिये दबवा दिया जाता है।

लिखने-पढ़ने वाले नामी-गिरामी, बड़े और वरिष्ठ पत्रकार सब कुछ जानते हुए भी इन्हें बतौर पत्रकार स्वीकार करके इनसे रिश्ता कायम रखते है। जिसकी दो वजह है।पहली ये कि ये जहाँ खबरे देते है वहाँ से खबर निकाल भी सकते है। दूसरी सबसे बड़ी वजह ये कि राजनीतिक दल या सरकार बड़े पत्रकारों को मैनेज करने /औबलाइज करने/ लाभ पहुँचाने के लिये इन भाँडो को ही माध्यम बनाती है।

पत्रकार भी बड़े राजनेताओं/बड़े अफसरो से मिलने के लिये इनकी मदद लेते है। इनके जरिये ही गिव एण्ड टेक की बारगेनिँग करते है।

क्योकि इन भाँडो पर बड़े राजनेताओं ,नौकरशाहो  और सचमुच के बड़े पत्रकारों ने पत्रकार होने की मोहर लगायी है। अपने इस धंधे से खूब पैसा कमा कर गाड़ी..बंगला..बैंक बैलेन्स..जमीन जायदाद ..हासिल करके ऐश और ठाठ की जिन्दगी गुजार रहे है ये। तो जाहिर सी बात है इन्हें कामयाब और बड़का पत्रकार क्यों नही कहा जाये !

बताते बताते ... मै काफी जोश मे था ..  ....जब होश आया तो पछताया ....क्योकि कोल्ड ड्रिँक खत्म होने के बाद भी  फ्री का ज्ञान देकर मैं कई बडे-बडो से मुफ्त मे ही दुश्मनी ले चुका था  .......

sorry  बड़के पत्रकार भाईजानो
नवेद शिकोह
वाट्सअप-8090180256  
Navedshikoh84@gmail.com

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