मंजुल भारद्वाज
(रंगचिंतक)
एक योग दिखावा कार्यक्रम में देश के शीर्ष पर बैठे राजनैतिक व्यक्ति को योग " जीरो बजट " स्वास्थ्य इन्शुरन्स लगा.... उसने कहा योग हमारा जीरो बजट स्वास्थ्य बीमा है... बात सही है.. हमारे ऋषि मुनियों और भारतीय संस्कृति के सूत्रधारों ने वित्त को संस्कृति , स्वास्थ्य और प्रकृति से दूर रख, आत्मशोध के लिए "ध्यान" और ध्यान में " ज्ञान " अर्जित किया और अनोखे नायाब आविष्कार किए और दुनिया में मानवता को अपने कल्याण के लिए मार्ग दिखाया !
" योग " ऐसी ही एक अनूठी खोज है... यह सात्विक जीवन पद्धति है अर्थात इस पद्धति का सूत्र है “आत्मध्यान में सभी कष्टों का निवारण है” .... " योग " मुलभुत या मौलिक स्वरुप में वैचारिक प्रक्रिया को संचालित, नियंत्रित और शुद्धिकरण के लिए उत्प्रेरित करता है... क्योंकि विचार नकारात्मक और सकारात्मक होते हैं .... लालच, लोभ और आत्मकेंद्रित हो स्वार्थी होते मनुष्य को " योग " की " ध्यान " प्रक्रिया से आत्मविश्लेषण कर “उसके स्वार्थी, आत्मकेंद्रित ध्येय को समग्र प्रक्रिया से जोड़कर उसे आत्मकेंद्रित और सर्वहित के आईने में व्यक्ति को दिखाता है , जिससे नकारात्मकता सकारात्मकता में बदलती है ।
मस्तिष्क शरीर को संचालित करता है और मस्तिष्क " ज्ञान " का स्त्रोत है, खजाना है, या यूँ कहें मनुष्य की प्रकृति का अनोखा वरदान है । इस लिए मस्तिष्क का संवेदन शरीर की हर कोशिका से जुड़ा है... हर कोशिका को ध्यान के माध्यम से एक सूत्र में जोड़कर उनकी क्रियाशीलता का मूल्यांकन किया जाता है । कहीं कोई बाधा हो तो उसका शुद्धिकरण... यह है योग का सूत्र... शरीर के अंगो , प्रत्यंगों को ध्यान अवस्था में क्रियाशील किया जाता है और बहुत शांत चित में उनको जोड़ा जाता है... यानि किसी हड़बड़ी में नहीं !
शरीर में " प्राण " उसका जीवन है.... प्राण यानि सांस...सांसो का अलग अलग प्रकार से नियंत्रित और संचालित करने की योग में अनेक पद्धति और प्रक्रियाएं हैं, जिससे सांस हर अंग, प्रत्यंग को जोड़कर और उनकी कोशिकाओं के स्नायुओं को समृद्ध और शक्तिशाली बनाता है और मनुष्य को शांत चित, विवेक बुद्धि, ज्ञान, सकारात्मकता और प्रेम भाव से लबालब भरता है...
वाह !!! अद्भुत आविष्कार किया है मानवता के लिए, विश्व कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति के निर्माताओं और ऋषि मुनियों ने या ऋषि पतंजलि ने। चूँकि मनुष्य की ९० % बीमारियों का समाधान वैचारिक प्रक्रियाओं में हैं, नकारात्मकता पाचन प्रक्रियाओं को बाधित करती है और शरीर बीमारियों से घिर जाता है .... भारतीय संस्कृति का और एक अहम सूत्र है की इलाज से परहेज़ अच्छा या सावधानी में ही बचाव है .... इसलिए योग एक निरोगी रहने की चिकित्सा पद्धति है.... रोग प्रतिरोधक शैली है यानि आप बीमार पड़ो ही नहीं इसलिए ये प्रिवेंटिव प्रतिरोधात्मक जीवन शैली है .... बीमार पड़ोगे ही नहीं तो इलाज की जरुरत नहीं... इसलिए भारतीय जीवन पद्धति में " आहार " एक औषधि माना गया है, संतुलित और पौष्टिक आहार !
यह है भारतीय धरोहर जो विश्व और मानव कल्याण के लिए आदि काल से प्रतिबद्ध है और विश्व "योग" को सदियों से जानता हैं, पहचानता है और उसका अपने अपने ढंग से अपने जीवन में उपयोग करता है... दक्षिणपंथी ताकतों ने लगभग २० वर्ष पहले इस भारतीय धरोहर का राजनैतिक उपयोग करने की रणनीति अपनाई, भगवान राम के नाम पर राजनीति के रथ से सत्ता पर पहुंचे दक्षिण पंथियों ने नई " आर्थिक नीति " से बहुराष्ट्रीय दवा कम्पनियों की लूट को भुनाया और " जीरो " बजट " योग" का राजनैतिक फायदे के लिए "दोहन " शुरू किया । आजाद मीडिया नीति के तहत लायसेंस लेकर अपनी टीवी प्रचार दुकाने खोली, उसमे बाबाओं को बिठाया और राजनैतिक धन्धा शुरू किया इस धंदे का एक मोहरा बना "योग "।
भारतीय जनमानस के मानस में बसता है योग । दक्षिणपंथी संघ ने एक भगवा बाबा को महान "पतंजलि" के नाम का दोहन करने के लिए, योग और योग का व्यापार करने के लिए,राजनैतिक मैदान में उतारा ।
भोली भाली जनता " स्वास्थ्य सेवा " समझकर जुड़ गई इस भगवा व्यापारी से जिसने धीरे धीरे अपना रंग दिखाया और आज " योग " के दोहन से पांच हजार करोड़ का सालाना कारोबार किया और अब दस हजार करोड़ प्रतिवर्ष करने का ऐलान किया है .....इस संदर्भ के बाद हम वापस लौटते हैं देश के शीर्ष पर बैठे राजनैतिक व्यक्ति की " योग " दिवस पर “जीरो बजट योग” के भाषण पर, योग जीरो बजट है तो यह भगवा व्यापारी पांच हजार करोड़ का व्यापार कैसे और किसका कर रहा है ? इस पांच हजार करोड़ के व्यापार के कुचक्र को भोली भाली " भावुक " जनता को समझने की जरुरत है । यह देश के शीर्ष पर बैठे राजनैतिक व्यक्ति, यह योग व्यापारी और उनका संगठन धार्मिक जनभावनाओं के, संस्कृति के भावुक मुद्दे उठाते हैं और भावुकता की चाशनी में भारतीय जनता को डुबा डूबा कर उसका आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक शोषण कर रहे हैं ।
भारतीय जनता से अपने देश वासियो से मेरी अपील है की अपनी " जीरो बजट " धरोहर को बचाएं और उसके लिए सबसे पहले भावनात्मक चश्मे को उतारें । योग के असली और मौलिक तत्वों को पहचाने । अपनी विवेक बुद्धि का उपयोग कर "फेंकू , ढोंगी और दक्षिणपंथी संगठन " के चक्रव्यूह से निकलें और देश की सांस्कृतिक धरोहर को बेचने के खेल का पर्दा फाश करें !
आप अपनी विवेक बुद्धि से यह भी हिसाब लगाए लगायें की दो सालाना योग पाखण्ड दिवस में हमारे आपके टैक्स के कितने करोड़ रूपये अपनी श्रेष्ठ दिखने की लालसा में फुंक दिए देश के शीर्ष पर बैठे राजनैतिक व्यक्ति ने ? भारतीय राजपथ से अंतर्राष्ट्रीय योग व्यापार के लिए भीड़ इकट्ठा की गयी, इसके लिए भारत सरकार के "आयुष "मंत्रालय ने कितनी बस भेजीं और इसका कितना खर्च आया ? भगवा बाबा के विभिन्न जगह हुए कार्यक्रमों में भीड़ किसने जुटाई? और सरकार ने कितना धन खर्च किया ?
यह सवाल जरुरी हैं जब हम सब जीरो बजट योग के नाम पर, टैक्स पर टैक्स से बढ़ती महंगाई की चक्की में पिस रहे हैं । प्रिय भारत वासियों आप देखते हैं , एक मौका और दो ,थोड़े दिन और सही के मनोभाव से बहार आओ , देश के प्रति अपनी निष्ठा और कर्तव्य का निर्वहन करो और " फेंकू और ढोंगी " की जोड़ी को उसकी जगह दिखाओ ।
Manjul Bhardwaj
Founder - The Experimental Theatre Foundation www.etfindia.org
etftor@gmail.com
9.7.16
जीरो बजट योग और 10,000 करोड़ का व्यापार संकल्प
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