वित्त मंत्रालय का आर्थिक सर्वे बताता है कि किस तरह आज का तेल (पेट्रोल-डीजल) बाजार कुछ साल पहले के तेल बाजार से बिल्कुल अलग है । इसके मुताबिक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें काफी नीचे आई हैं और सरकार इससे बहुत राहत महसूस कर रही है । लेकिन इस सर्वे को पढ़ने वाले आम भारतीय हैरान हो सकते हैं कि तेल बाजार में इतने बड़े बदलाव के बाद भी राहत जैसी कोई चीज उन्हें महसूस क्यों नहीं हो रही । नरेंद्र मोदी सरकार ने जब से सत्ता संभाली हैं, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें आधी हो चुकी हैं, लेकिन इसका आम उपभोक्ताओं की जिंदगी पर कोई असर नहीं पड़ा ।
यह एक बड़ी विचित्र सी स्थिति है और इसके लिए वह ऊट-पटांग कर नीति जिम्मेदार है जिसने तेल क्षेत्र को सरकार के लिए दुधारू गाय बना दिया है । पेट्रोल-डीजल की कीमतों का असर कई जरियों से तकरीबन हर भारतीय परिवार के बजट पर पड़ता है । फिर भी इसकी मांग में कोई कमी नहीं होती और इस वजह से केंद्र व राज्य सरकारें पिछले तीन साल से पेट्रोल-डीजल पर जमकर राजस्व कमा रही हैं । पिछले तीन साल के दौरान तेल पर उत्पादन शुल्क के जरिए केंद्र सरकार को मिलने वाला राजस्व दोगुना हो चुका है । यह कोई नहीं कह रहा कि सरकार को पेट्रोलियम उत्पादों पर कोई कर नहीं लगाना चाहिए । लेकिन भारत की तेल नीति, जिसे आर्थिक सुधार कहा जाता है, बड़ी ही रहस्यमय किस्म की है । रहस्यमय इस लिहाज से कि घरेलू स्तर की तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों से सीधे जुड़ी हुई हैं, लेकिन वहां कीमतों में गिरावट का फायदा शायद ही कभी यहां के उपभोक्ताओं को मिलता हो. इस तरह उपभोक्ताओं की जेब को लगने वाली चपत की कीमत पर फायदा सरकार उठाती है और यही तौर-तरीके आर्थिक सुधारों को बदनाम करते हैं ।
अशोक भाटिया
अ /001 वैंचर अपार्टमेंट, वसंत नगरी,
वसई पूर्व -401208 (जिला– पालघर)
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16.9.17
पेट्रोल-डीजल बाजार आसमान पर
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