10.10.18

निजीकरण के समर्थक आरक्षण विरोधी हैं- अनिल चमड़िया.

नये दौर में नये सिरे से सामाजिक न्याय आंदोलन को आगे बढ़ाने हेतु 7 अक्टूबर को बिहार की राजधानी पटना में राज्य के दर्जनों जिले के सामाजिक न्याय के लिए संघर्षशील संगठनों के प्रतिनिधियों व बुद्धिजीवियों का राज्यस्तरीय सम्मेलन हुआ. सामाजिक न्याय के नाम पर चल रही समर्पणकारी राजनीति से इतर पहलकदमी की जरूरत महसूस करने वाले कार्यकर्ताओं- बुद्धिजीवियों व छात्र-नौजवानों के सम्मेलन चर्चित वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया मुख्य वक्ता के बतौर मौजूद थे.

8.10.18

उत्तर भारतीयों के प्रति घृणा का भाव... वजह कई हैं!

संजय सक्सेना, लखनऊ

यह समझ से परे है कि कई गैर हिन्दी भाषी राज्यों में उत्तर भारतीयों के प्रति इतनी नफरत का भाव क्यों घर कर गया है। भारत के संविधान ने जब किसी भी व्यक्ति को, कहीं भी बसने और रोजी-रोटी कमाने की छूट दे रखी हो तो उस पर विवाद क्यों खड़ा किया जाता है। महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों के साथ अक्सर ही मारपीट और उनके सम्पति या फिर वाहनों के साथ अक्सर ही तोड़फोड़ की खबरें आती रहती थीं,लेकिन गुजरात तो ऐसा नहीं था।

5.10.18

बाबा रामदेव कहते हैं- 'बहुत से चैनल पतंजलि के कारण दिवालिया होने से बचे हुए हैं'

पी. के. खुराना

विपक्ष को चाहिए वैकल्पिक नैरेटिव...  बाबा रामदेव कहते हैं- "बहुत से चैनल पतंजलि के कारण दीवालिया होने से बचे हुए हैं।" बाबा रामदेव के इस कथन से कोई असहमति नहीं हो सकती। उन्होंने बिलकुल सच कहा। पतंजलि का व्यवसाय हर रोज़ बढ़ रहा है, कंपनी नये-नये उत्पाद बाजार में ला रही है और पतंजलि सचमुच बहुत बड़ा विज्ञापनदाता है। दूसरी तरफ चैनलों के खर्च में बेतहाशा वृद्धि हो रही है, ऐसे में चैनलों का अस्तित्व ही विज्ञापन और स्पांसरशिप से होने वाली आय पर निर्भर करता है। अब इसी कथन के दूसरे पहलू का विश्लेषण करें तो बहुत से नये और विचारणीय तथ्य सामने आते हैं।

गांधी को संपूर्णता में देखने की जरूरत

उदयपुर : महात्मा गांधी के विचारो को समझने के लिए गांधी को संपूर्णता मे देखने की जरूरत है। गांधी की सर्वकालीन प्रासंगिकता को किसी भी तरह से नकारा नहीं जा सकता । उक्त विचार राजनीति शास्त्री प्रो अरुण चतुर्वेदी ने गांधी मानव कल्याण सोसायटी व महावीर समता संदेश के सयुंक्त तत्वाधान मे महात्मा गांधी की एक सो पचासवी जयंती के अवसर पर जीएमकेएस सभागार मे आयोजित वर्तमान परिपेक्ष मे गांधी मार्ग विषयक संवाद मे व्यक्त किए । प्रो चतुर्वेदी ने कहा कि स्वतन्त्रता आंदोलन के दौरान गांधीवादी संस्थाओ ने आंदोलन को शहर से गावों कि और व बुद्धिजीवियो से आम नागरिक तक ले जाने का महत्व पूर्ण कार्य किया । वर्तमान मे जब राज्य के कार्य  संदेहो, शंकाओ के घेरे मे है ऐसे समय मे गांधी कि प्रासंगिकता बढ़ जाती है ।

21.9.18

मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई लड़ने वाले साथी देश के सबसे बड़े पत्रकार कहलाने लायक हैं, इन्हें सलाम

यह माना जाता है कि देश में सुप्रीम कोर्ट सर्वोच्च संस्था है। देश की सुप्रीम पॉवर है। पर जिस तरह से राजनीतिक दलों ने सुप्रीम कोर्ट के एससीएसटी कानून में किये संसोधन को विधेयक लाकर बदल दिया। जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद प्रिंट मीडिया में मजीठिया वेज बोर्ड लागू नहीं हो पा रहा है। उल्टे जिन साथियों ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर मजीठिया वेज बोर्ड़ मांगा, उनको टर्मिनेट कर दिया गया। ऐसे में यदि किसी संस्था की प्रतिष्ठा कम हुई है तो वह सुप्रीम कोर्ट ही है।

नकली केसर की खेती से रहें सावधान

डा. राजेन्द्र कुकसाल

केसर Saffron की खेती कर अधिक आर्थिक लाभ का प्रलोभन देकर राज्य में विशेष रूप से पहाडी क्षेत्रौ में ठगी की जा रही है। न्यूज़ पेपर, व्हाट्स ऐप ग्रुप, फेसबुक,यूट्यूब आदि के माध्यम से केसर उत्पादन की खबर / सफलता की कहानी देखने को मिल रही है। कई कृषकों ने तो केसर की सफल खेती के video भी वनाये है। ऐसा ही एक video कोटद्वार से श्री अनिल बिष्ट जी का मैंने देखा जिसमें उनके द्वारा बताया जा रहा है कि कोटद्वार में उनके द्वारा सफलता पूर्वक केसर का उत्पादन किया गया है। इसी प्रकार की सफलता की कहानियां पिथौरागढ़, टेहरी जनपद के चम्बा,कीर्तीनगर, रुद्रप्रयाग जनपद के भीरी चन्द्रापुरी आदि क्षेत्रों से मिली हैं।

15.9.18

आतंकवाद और दहशतगर्दी के खिलाफ दुनिया की पहली जंग थी जंग-ए-कर्बला-डॉ. हुदा


आतंकवाद और दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ पहली जंग थी जंग-ए-कर्बला-डॉ. हुदा.....
"वज़ीर-ए-आज़म आली जनाब नरेंद्र मोदी जी ने इमाम
 हुसैन की अज़ीम शहादत को याद कर पूरी दुनिया मे-
 अमन-ओ-शांति और भाईचारे का पैग़ाम दिया है"

आज दिनांक 15/09/2018 को हुदैबिया कमेटी(एक राष्ट्रवादी मिशन) के पुराने शहर स्थित मुख्य कार्यालय पर इमाम हुसैन और उनकी आल की कर्बला में इंसानियत के लिये दी गयी अज़ीम कुर्बानी पर  खिराजे अक़ीदत पेश की गई और हक़-ओ-बातिल की इस इबरतनाक जंग से अवाम को शनासा किया गया। आवाम को ख़िताब करते हुए हुदैबिया कमेटी के नेशनल कन्वेनर डॉ.एस.ई.हुदा ने कहा कि


  • ख़ुदा की अव्वल मखलूक इंसान ने धीरे-धीरे तरक़्क़ी की और आख़िरकार दानिश्वर हज़रात ने ये कहा कि इंसान में तहज़ीब और तरक़्क़ी के सारे पैमाने हासिल कर लिये हैं।बहुत सी इंसानी ख़ुसूसियात ने उसके इंसान हो जाने के साथ उसके तेहज़ीबयाफ्ता हो जाने पर भी मोहर लगा दी।

ये तो तारीखी बात हो गयी लेकिन इससे साथ-साथ अगर हम इंसान की तवारीख़ और तहज़ीब का मुताला करने और समझने की कोशिश करें तो तेहज़ीबयाफ्ता कहलाने वाले इंसानी मोअशरे ने कई ऐसे ग़ैर-तेहज़ीबयाफ्ता "कारनामे"अंजाम दिए हैं जो शायद कोई हैवान और वहशी दरिंदा भी नही कर सकता था।उनमें बहुत सी ऐसी जंगो का शुमार होता है जिसमे शैतानियत की हदें पार कर दी गईं।उन्ही जंगो में सफ़े अव्वल पर जिस जंग का नाम है वो है जंग-ए-कर्बला,जो इंसान को ज़ुल्म और तशद्दुत का अलंबरदार होने का तमगा अता करती है और उसके तेहज़ीबयाफ्ता होने का ख़िताब नोच लेती है।
जंग-ए-कर्बला वो जंग है जिसमे एक तरफ मुट्ठी भर लोग थे जिनमें मासूम और छः महीने के बच्चे से लेकर अस्सी बरस के बुजुर्ग तक को बेदर्दी से भूखा-प्यासा शहीद किया गया।डॉ. हुदा ने कहा ये दरअसल जंग नही बल्कि दुनिया मे आतंकवाद और दहशतगर्दी गर्दी की पहली और ज़ुलमाना वारदात थी जिसे आज भी दहशतगर्दी के पुजारी आज़माते रहते हैं इसी से हक़ और बातिल की पहचान भी हो जाती है।इस्लाम की तवारीख़ पर अगर हम नज़र डालें तो  कर्बला के तपते सेहरा में आख़िर-उज़्ज़मा पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो आलेही वसल्लम के नवासे हज़रत इमाम हुसैन(अ0स0) और उनकी आल के साथ जो मारका-ए-आरायी हुई थी उसने इंसानियत और शैतानियत की पहचान के लिए रहती दुनिया तक एक पैमाना ज़रूर दे दिया।एही वजह है कि आज भी दुनिया मे ज़ुल्म के ख़िलाफ़ उठने वाली हक़ की सदा का ज़िक्र होता है तो सब से पहले सदा-ए-कर्बला का ज़िक्र होता है।कर्बला की सबसे बड़ी तालीम भी यही है कि हक़ की आवाज़ बुलंद करने के लिये तायदाद,उम्र,जगह मायने नही रखती।इसलिये जैसा पहले ज़िक्र किया कर्बला जी जंग में छह माह के हज़रत अली असगर से लेकर 80 बरस के गाज़ी हज़रते हबीब इब्ने मज़ाहिर तक ने अपने-अपने हालात और उम्र के हिसाब से ये हक़ की सदायें बुलंद की हैं।
जहां हज़रते अली असगर ने गले पर तीर खा कर एक हल्की से मुस्कुराहट से ज़ालिम फ़ौज के हौसले पस्त कर दिए वहीँ 80 बरस के बुज़ुर्ग गाज़ी हज़रते मज़ाहिर ने अपनी क़ुव्वते बाज़ू से दुश्मन फ़ौज के दांत खट्टे किये।मारका-ए-कर्बला में हर एक मर्दे मुजाहिद को शहादत शहद से मीठी मालूम होती है।येही नही हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के बाद जिस तरह आपकी बहन बीबी- ज़ैनब ने हक़ के पैग़ाम को कर्बला से लेकर कूफ़ा तक आम किया वो मुस्लिम मोअशरे में ख़वातीन की एहमियत को तो बयाँ करता ही है साथ-साथ इस बात को ज़ाहिर करता है कि जिस हालात में भी हो ज़ुल्म के खिलाफ हक़ बोलो।इसलिये आज भी हक़ और बातिल की पहचान के लिये जंग-ए-कर्बला हमारी सच्ची रहनुमाई करती है।कर्बला की जंग ने दुनिया के कई बड़े रहनुमाओं की रहनुमाई का भी फ़र्ज़ अदा किया है जिस की वजह से दुनिया के बेशुमार मसाइल का हल निकल पाया है।दुनिया को अदम-तशद्दुत(अहिंसा) का पैग़ाम देने वाले गांधी जी को भी अदम-तशद्दुत तक ले जाने वाली दर्सगाह का नाम भी कर्बला ही है ये बात गांधी जी ने अपनी स्वनेउमरी(जीवनी) में लिखी है।कल इंदौर की सैफ़ी मस्जिद में इमाम हुसैन की शान और पैग़ाम-ए-कर्बला मौज़ू पर मुनक़्क़ीद आलमी पैग़ाम-ए-इंसानियत इजलास में शिरकत कर वज़ीर-ए-आज़म आली जनाब नरेंद्र मोदी जी ने भी इस बात की ताईद कर दी "इंसानियत के हर पैरोकार को इमाम हुसैन अज़ीम कुर्बानी से सबक लेते हुए उसे अपनी ज़ाती ज़िन्दगी में उतारना चाहिए,हक़ और बातिल की जंग में इमाम हुसैन ने जिस तरह अपना कुनबा का कुनबा इंसानियत के लिये कुर्बान कर दिया इमाम का ये अमल हमे ये पैग़ाम देता है कि ज़ुल्म-ओ-सितम,ताशद्दुत की ताक़त चाहे कितनी भी वसी क्यों न हो हक़ के सामने उसे एक न एक दिन सर खम करना पड़ता है"! अब ये सवाल भी उभरता है कि जब हमारे सामने इतनी बड़ी दर्सगाह कर्बला मौजूद है तो फिर आज भी हम क्यों इंतेशार का शिकार हैं?अगर कर्बला का वाक्या हम सब के लिये दर्सगाह है तो फिर दुनिया मे इतना जंगी ख़ून और फ़साद, बेगुनाहों की चीख़ें और इंसानी कत्ल-ओ-गारत का सिलसिला क्यों दराज़ होता जा रहा है?और अफ़सोस की बात ये है कि मज़लूमो की चीखें सब से ज़्यादा उन मुमालिक से आरही हैं जहां इस्लाम पर चलने का नामनेहाद दावा बड़े ज़ोरो शोर से किया जा रहा है।सब कुछ दीन की हिफाज़त का नाम दे कर किया जा रहा है लेकिन न दीन ही नज़र आरहा है और न ही दुनिया!इस्लामी मुल्क़ों के तशद्दुत ने पूरी दुनिया मे अमन पसंद इंसानियत के अलंबरदार मुसलमान को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है।इस महीने में भी कोई दिन शायद ही ऐसा गुज़ारता हो कि ख़ुदा का नाम लेने वाले मुल्क़ों से मज़लूमो के ख़ून से लाल तस्वीरें अख़बरात में देखने को न मिलती हों।ये दिन कर्बला में मज़लूमो को याद करने के साथ-साथ हज़रत इमाम हुसैन के पैग़ाम को भी याद करने के हैं मगर अफसोस!
डॉ. हुदा ने अपनी तक़रीर में मज़ीद इज़ाफ़ा करते हुए कहा कि मोहर्रम का महीना इंसानियत की ज़ुल्म के ख़िलाफ़ उठी सबसे बड़ी आवाज़ की याद दिलाता है।इमाम की कुर्बानी को याद करने का असल मक़सद तो इमाम के किरदार को ज़ेहन में रखना है।कर्बला के वाक़ये पर कोई आंसू बहाता है और ज़िक्र और फिक्र की मजलिस सजाता है,कोई कर्बला के शहीदों की बेबसी पर मातम करता है तो कोई उनकी प्यास को याद कर सबीले लगाता है।कहीं अलम उठाये जाते हैं तो कहीं ताज़िये,तो कहीं कर्बला में शहीदों की बे-कफ़न लाशों को याद करते हुए शहीदाने कर्बला के ताबूत उठा कर ये एहसास कराया जाता है कि जिन ज़ालिम दहशतगर्दों ने शोहदा-ए-कर्बला को बे-क़फ़न छोड़ा था हम उनको आज भी अपने कांधे पर उठाने का जज़्बा रखते हैं। गर्ज़ ये के तरीक़ा चाहे कोई भी हो मगर सब का मक़सद एक ही है कि इंसानियत की बक़ा के लिये रसूल के नवासे ने जो अज़ीम कुर्बानी दी उसको याद करके अपना मोहासबा किया जाए कि हम हक़ के साथ खड़े हैं या नहीं???
मोहर्रम में रसूल के नवासे और उनको आल को ज़ुल्म-ओ-सितम का शिकार बनाया गया था उनको तीन दिन का भूखा प्यासा शहीद कर दिया गया था इसलिये इस्लामी नए साल के नाम पर जब कुछ लोग नए साल की मुबारकबाद देने लगते हैं तो हैरत होती है कि क्या ये लोग अपनी तवारीख़ से वाकिफ नही हैं या फिर सोशल मीडिया यूनिवर्सिटी ने इनकी तालीम बिगाड़ दी है।ये  अनोखा चलन शुरू हुया है कुछ लोगो ने मोहर्रम के महीने की शुरुआत में नए साल की मुबारकबाद देने का सिलसिला शुरू किया है।जो महीना सदियों से सब्र, सच्चाई और हक़ के लिए जाना जाता है उसे अब नए साल की मुबारकबाद देने के नाम पर मशहूर करने की साज़िश हो रही है।मगर ये पैग़ाम-ए-कर्बला ही है कि इस तरह की कोशिश को बढ़ावा नही मिल पा रहा है।कर्बला आज भी हमे हर तरह की मुसीबतों और मुश्किलों में सच्चाई पर कामज़न रहने का सबक़ देती है।कर्बला मज़लूम प्यासों की कुर्बानी की ऐसी हक़ीक़त है जो इस दुनिया की हर उस यूनिवर्सिटी के निसाब में शामिल होनी चाहिए जहां तशद्दुत के ख़िलाफ़ डट कर खड़े होने की बात की जाती हो।
इजलास में प्रमुख रूप से सयैद राशिद अली,शहरोज़ खान,क़ाज़ी हसन,सयैद शहरोज़ बुखारी,हसीन क़ुरैशी,इमरान पठान,सयैद शाहनवाज़,दिलशाद सिद्दीकी आदि शामिल रहे।

"झुकता ही नही सर,किसी ज़ालिम के सामने
हिम्मत ही ऐसी दे गया सजदा हुसैन का!"

"देखा है जिस उम्मीद से भारत को हुसैन(अ0स0) ने,
आज फिर वहीं से मोहब्बत की खुश्बू सी आगयी!
समझा है जिस क़द्र हक़ और शहीदाने कर्बला को,
वज़ीर-ए-आज़म तेरी एही अदा दुनिया पे छा गयी!

डॉ. सयैद एहतेशाम उल हुदा
नेशनल कन्वेनर, हुदैबिया कमेटी(एक राष्ट्रवादी मिशन)
9837357723

13.9.18

हिंदी बिना हिन्दुस्तान अधूरा (14 सितंबर 2018 हिंदी दिवस पर विशेष आलेख)

हिंदी शब्द है हमारी आवाज का हमारे बोलने का जो कि हिन्दुस्तान में बोली जाती है। आज देश में जितनी भी क्षेत्रीय भाषाएँ हैं, उन सबकी जननी हिंदी है। और हिंदी को जन्म देने वाली भाषा का नाम संस्कृत है। जो कि आज देश में सिर्फ प्रतीकात्मक रूप से हिंदी माध्यम के स्कूलों में एक विषय के रूप में पढाई जाती है। आज देश के लिए इससे बडी विडम्बना क्या हो सकती है कि जिस भाषा को हम अपनी राष्ट्रीय भाषा कहते हैं, आज उसका हाल भी संस्कृत की तरह हो गया है। जिस तरफ देखो उस तरफ अंग्रेजी से हिंदी और समस्त भारतीय भाषाओं को दबाया जा रहा है।

6.9.18

बज चुका आरक्षण के खिलाफ पाञ्चजन्य, संकट में भाजपा

डॉ अर्पण जैन 'अविचल'

समाज के सुधार के पहले क्रम में जातिवाद के समूल नाश के आगे एक राष्ट्र -एक कानून और एक तरह के लाभ की बात रखी जाती थी, राजनीति की सदैव से मंशा तो तरफदारी की रही परन्तु इस बार अनुसूचित जाति,जनजाति की सबलता के लिए बनाये गए अधिकार और संरक्षण की संवैधानिक कवायदों के हो रहे दुरूपयोग के चलते देश का सवर्ण समाज अब की बार नाराज-सा नजर आ रहा है। इस नाराजगी का एक कारण तो आरक्षण का भी समर्थन करना और दूसरा एट्रोसिटी एक्ट के हो रहे दुरूपयोग के बावजूद भी सुधार न करके सवर्ण समाज को कटघरे में खड़ा करना, जिसके कारण सवर्ण समाज खासा नाराज भी है और प्रताड़ित भी।

शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण देश के समक्ष बड़ी चुनौती

05 सितंबर 2018 शिक्षक दिवस पर विशेष

ब्रह्मानंद राजपूत

शिक्षक समाज में उच्च आदर्श स्थापित करने वाला व्यक्तित्व होता है। किसी भी देश या समाज के निर्माण में शिक्षा की अहम् भूमिका होती है, कहा जाए तो शिक्षक समाज का आइना होता है। हिन्दू धर्म में शिक्षक के लिए कहा गया है कि आचार्य देवो भवः यानी कि शिक्षक या आचार्य ईश्वर के समान होता है। यह दर्जा एक शिक्षक को उसके द्वारा समाज में दिए गए योगदानों के बदले स्वरुप दिया जाता है। शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूज्यनीय रहा है। कोई उसे गुरु कहता है, कोई शिक्षक कहता है, कोई आचार्य कहता है, तो कोई अध्यापक या टीचर कहता है ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को चित्रित करते हैं, जो सभी को ज्ञान देता है, सिखाता है और जिसका योगदान किसी भी देश या राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करना है। सही मायनो में कहा जाये तो एक शिक्षक ही अपने विद्यार्थी का जीवन गढता है। और शिक्षक ही समाज की आधारशिला है। एक शिक्षक अपने जीवन के अन्त तक मार्गदर्शक की भूमिका अदा करता है और समाज को राह दिखाता रहता है, तभी शिक्षक को समाज में उच्च दर्जा दिया जाता है।

गाड़ियों के अतिक्रमण से कब मिलेगी सड़कों को मुक्ति?

बरुण कुमार सिंह

हम बात सुव्यवस्थित शासन प्रणाली की बात करते हैं तो उसमें बहुत सारी बातें देखने को आती हैं जिसमें केवल सुधार शासन के स्तर पर नहीं की जा सकती, उनमें जनभागीदारी का बहुत बड़ा योगदान है। लेकिन सारी कुछ नियम कानून होने के बावजूद भी उसका परिणाम सतह पर नहीं दिखाई देता। चाहे हम कोई-सा भी क्षेत्र ले लें। हम यहां बात कर रहे हैं सड़कों के अतिक्रमण की। जिसकी जैसी क्षमता है वह अपने हिसाब से सड़क को अतिक्रमित किये हुए हैं। दिल्ली के कुछ इलाकों को छोड़ दिया जाए तो लगभग पूरी दिल्ली का यही हाल है। लोगों के पास गाड़ी खड़ी करने के लिए जगह नहीं है लेकिन वे टू-व्हीलर एवं कार रखे हुए हैं। और ये गाड़ी कहां खड़ी होगी, स्वाभाविक ही है कि कहीं-न-कहीं सड़क पर ही खड़ी होगी, जहां टू-व्हीलर एवं कार खड़ी होगी वहां की सड़कें भी अतिक्रमित होगी।

1.9.18

मुख्यमंत्री न बन पाने की क़सक से बना 'समाजवादी सेक्युलर मोर्चा'!

इन से उम्मीद न रख हैं ये सियासत वाले
ये किसी से भी मोहब्बत नहीं करने वाले

जैसे-जैसे 2019 के लोकसभा चुनाव नज़दीक आते जायेंगे, वैसे-वैसे 'राजनीति के तालाब' में पार्टियों की गहमा-गहमी शरू होने लगेगी. कांग्रेस और भाजपा अपनी-अपनी "डगन" से बड़ी मछली पकड़ने को छटपटाते दिखाई देंगे.

30.8.18

सुनहरी जीत!शुक्रिया मनजीत

जकार्ता में चमका बरेली का सितारा मंजीत सिंह, अपना गोल्ड मेडल बरेली वासियों को किया समर्पित https://hindi.oneindia.com/news/uttar-pradesh/manjit-singh-from-bareilly-win-gold-medal-asian-games-2018-jakarta-470380.html For more updates Download Oneindia App. For Android click http://bit.ly/1indianewsapp . For iOS click http://bit.ly/iosoneindia

24.8.18

फेसबुक का दर्द...डॉ. हुदा की क़लम से

"फेसबुक का दर्द"
यूं अगर मेरे नाम की हिंदी तर्जुमानी की जाए तो "चेहरे की किताब" या "चेहरा एक किताब" या "चेहरा ही किताब" की जा सकती है।अपना दर्द सुनाने से पहले मैं ये बात वाज़े कर दूं मुझे "स्त्रीलिंग" समझा जाये...गोया कुछ बदबख़्त मुझे "पुर्लिंग" समझ कर इस्तेमाल करते हैं।
ख़ैर... सबकी अपनी-अपनी सोच!
जैसा कि आप सब जानते हैं मेरे अब्बा का नाम मार्क जुकरबर्ग है और मेरी पैदाइश 2004 में अमेरिका में हुई।हांलकि मेरे वालिद-ए-मोहतरम ने अपने तीन और हरदिल अज़ीज़ दोस्तों के साथ मुझे पैदा किया मगर इस इंटरनेट की आभासी दुनिया में लोग मुझे मार्क जुकरबर्ग की क़ाबिल और होनहार बेटी के नाम से ही जानते हैं।मेरा शुमार अपने
अब्बा की उस होनहार बेटी के तौर पर है जिसने अपने हुनर और क़ाबलियत के दम पर अभी तक 84.524 बिलियन डॉलर की जायदाद पैदा की है।अभी सिर्फ 14 साल की मेरी कमसिन उम्र है और जवानी की देहलीज़ पर मेरा पहला क़दम है,मगर पूरी दुनिया मे मेरे चाहने वालो की तायदाद 2.2 बिलियन है...आपको जानकर हैरत होगी कि अपने रुक्के और love लेटर्स को रोज़ संजोने के लिए मेरे पास 30275 लोगो का पूरी दुनिया मे स्टाफ़ है।
14 साल की बाली उम्र में जहां एक लड़की के ख़्वाब कुछ और होते हैं मैं रोज़ अपने अब्बा की उम्मीदों के पहाड़ तले दबती जा रही हूं...आख़िर मेरा दर्द भी तो दर्द है...करोड़ो दिलो के दर्द को बांटने वाली के दर्द को आज तक आप लोगो ने महसूस ही नही किया...आदम ज़ात इतनी खुदगर्ज़ होगी इसका अंदाज़ा अगर मुझे हो जाता तो शायद मैं पैदा होने से पहले ही मना कर देती! पैदा होते वक़्त मेरे अब्बा ने मुझसे कहा था कि दुनिया भर के बिछड़ो को मिलाना, टूटे दिलो को जोड़ना और इंसानियत के लिए काम करना,मज़हबी नफरतों को मिटाना और इत्तेहाद का परचम बुलंद करना तुम्हारा पहला काम होगा...मगर ये क्या हो गया...???
अब मेरा इस्तेमाल नफ़रतों के लिये किया जाने लगा...इत्तेहाद और इंसानियत तो जैसे मेरी प्रोफाईल से ख़त्म ही कर दी गयी...मज़हबी नइत्तेफाकियाँ और ऊंच-नीच के संघर्ष ने मेरे 14 साल के नाज़ुक जिस्म को झलनी कर दिया...इसकी शिक़ायत लेकर जब मैं अपने अब्बा मार्क जुकरबर्ग के पास गई तो उन्होंने सिर्फ़ इतना बोला..."ये मानव जाति है बेटी,आदम-हव्वा की औलाद हैं,गलतियां इनके ख़ून में शामिल हैं,तुम सिर्फ़ धंदा करो बस...बाक़ी चीज़ों पर ध्यान न लगाओ"...अब आप लोग ही बतायें क्या करती मैँ...
रोज़ करोड़ो नफ़रत भरी पोस्ट,एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़,कमेंट दर कमेंट...और यहां तक कि जनाज़े के साथ भी सेल्फ़ी लेकर मेरे ऊपर पोस्ट की जाने लगी...अए इंसान आख़िर कितना गिरेगा तू...आक थू
विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी मैंने ज़रूर दी थी मगर इस बिना पर की किसी का दिल न दुखने पाए...मग़र मुझे तमाम पोस्ट पर कमेंट पढ़ कर ऐसा लगता है की दुनिया जब से तशकील में आई सारे सहाफी,दार्शनिक,आलिम, मुफ़्ती पंडित सब मेरे दौर में ही पैदा हो गए...आख़िर किन-किन नामों से पुकारोगे मुझे...ग़ालिब भी मैं,अरस्तू भी मैं,मीर भी मैं,सौदा भी मैं,वैश्या भी मैं,दलाल भी मैं,हिटलर भी मैं,शेक्सपियर भी मैं,फिदा हुसैन भी मैं, बोना पार्ट भी मैं,मार्क्स भी मैं,लेलिन भी मैं...ऐसे बेशुमार क़ाबिल तरीन लोग सब इस 14 साल की नाबालिग लड़की पर ही हुनर दिखा रहे हैं...ये तो बेहतर हुया मेरी पैदाइश हिंदुस्तान की आज़ादी की लड़ाई के दौरान नही हुई...वरना तो गांधी,सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह का क्रेडिट भी मैं अपने नाम ले जाती...
अए ख़ुदा की मखलूक आदम ज़ात...मेरे दर्द को भी समझो...क्यों नफ़रतों की खेती कर रहे हो इस 14 साल के मासूम जिस्म पर...अरे कुछ तो रहम करो मेरे ऊपर...शर्म करो तुम इंसान खुद को "धार्मिक" कहते हो...मगर तुम्हारी पोस्ट जब मेरे नाज़ुक जिस्म से होकर गुज़रती हैं तो मुझे एहसास होता है तुमसे अच्छी तो एक वेश्या है जिसका अपना कोई तो ईमान है...तुम तो पल-पल में ईमान और रिश्तों की धज्जियाँ उड़ा देते हो...पारा-पारा कर देते हो रोज़ मुझे तुम...
रही सही कसर मेरे अब्बा ने व्हाट्सऐप को टेकओवर कर पूरी कर दी...जहां स्वम्भू ज्ञान का अताह समन्द्र है...
जैसे कि क़ुदरत की नियति है जो पैदा हुया उसको फ़ानी तो होना ही है...मगर वक़्त से पहले ख़ुदा रा मुझे क्यों रोज़ मारते हो...मेरे दर्द की ये एक एक बहुत छोटी सी बानगी है...मुझे उम्मीद है मेरे रुख़सत होने से पहले जिस मक़सद के लिये मेरे अब्बा ने मुझे पैदा किया वो शायद कामयाब हो जाये और मेरी दर्द भरी दास्तां सुन कर तुम आदम ज़ात कुछ इबरत हासिल कर लो...ख़ुदा हाफ़िज़

20.8.18

खरी-खरी पत्रकारिता पसंद करने वालों की यादों में हमेशा रहेंगे आलोक तोमर

चंबल की माटी के लिक्खड़ पत्रकार आलोक तोमर पर प्रसंगवश... तारीख ध्यान नहीं। साल वो भी पक्का नहीं मगर आठ दस साल पहले शायद। स्थान होटल सैन्ट्रल पार्क, मंजिल दूसरी या तीसरा कमरा नंबर जो भी हो यार। ''विवेक तुम्हारे पोहे और जलेबी अच्छे लगे। कचौड़ी अच्छा बनाता है बहादुरा वाला। और हमारी सिगरेट का क्या हुआ। ले आए न। लौटकर दुबारा जाना न पड़ जाए तुम्हें।''

अटलजी को यह कैसी श्रद्धांजलि?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

पिछले तीन दिनों में तीन ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के नेताओं को गंभीरता से विचार करना चाहिए। ये तीनों घटनाएं ऐसी हैं, जो अटलजी के स्वभाव के विपरीत हैं। यदि अटलजी आज हमारे बीच होते और स्वस्थ होते तो वे चुप नहीं रहते। बोलते और अपनी शैली में ऐसा बोलते कि संघ और भाजपा की प्रतिष्ठा बच जाती बल्कि बढ़ जाती। पहली घटना। स्वामी अग्निवेश जब अटलजी के पार्थिव शरीर पर श्रद्धांजलि अर्पित करने भाजपा कार्यालय गए तो उन्हें कुछ कार्यकर्ताओं ने मारा-पीटा। धक्का-मुक्की की। कुछ बहनों और बेटियों ने उन पर चप्पलें भी तानीं।

हारी बाजी पलट देंगे अटल जी?

पार लगाएंगे शिवराज, रमन और वसुंधरा की नैया?

सबसे पहले अटलजी के चरणों में नमन। कांग्रेस की राह पर चल रही है बीजेपी ? ये इसलिए कहना पड़ रहा है क्यों कि हाल के दिनों में जो फैसले लिए गए वो बिल्कुल इन्ही बातों की ओर इशारा करते हैं । पहले जरा करीब 1 हफ्ते पीछे चलिए, एक निजी चैनल का सर्वे आया था । जिसमें इस बात का दावा किया गया था कि मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बल्ले बल्ले होने वाली है, पीएम मोदी देश की आवाम की पहली पंसद हैं लेकिन शिवराज, रमन सिंह और वसुंधरा की सरकार जाने वाली है और वहां कांग्रेस की सरकार बन सकती है।

19.8.18

भेड़-बकरी की तरह हमें मत हकालिये साहब...

बात हक़ के मुतालबे की है...

अवाम को भी अब हक़ है सवाल पूछने का...

भेड़-बकरी की तरह हमें मत हकालिये साहब...

17.8.18

शूद्र


मैं पैदा इंसान अवश्य हुआ
पर
शूद्र होना ही मेरी नियति थी
सवर्ण समाज से मेरी व्यथित विसंगति थी
इतिहास दर इतिहास
काल-कलुषित सर्वथा मेरी तिथि थी
एकलव्य,कर्ण, चंद्रगुप्त के विजयध्वजों पे भी
अपमान की कई सदियों बीती थी

"अटल" मरा नही करते...ये अच्छी बात नई है!

ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
ठन गई!मौत से ठन गई....
           
 ("अटल" मरा नही करते)
अटल जी!ये अच्छी बात नई है!
----------------------------------------
यक़ीनन अटल बिहारी बाजपेयी जैसी शख्सियतें मरा नही करतीं बल्कि दुनिया-ए-फानी से रुख़सत होने के बात अवाम के दिलो में,रूह की गहराइयों में बस कर सदा के लिये लिए "अटल-अमर-अजर" हो जाया करती हैं।अटल जी का इस दुनिया से रुख़सत होना हिंदुस्तान की सियासत में वो खला पैदा कर गया है कि जिसकी भरपाई नामुमकिन है।भारत रत्न से सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने सियासत की  बुलंदियों को तो छुआ ही बल्कि एक सच्चे सूफ़ी-दार्शनिक के तौर पर बहनुल अक़्वामी सतह पर अपनी पहचान बनाई।पार्लियामेंट में अटल की तक़रीर यू ट्यूब पर सुन कर बड़ी हो रही इस पीढ़ी को  शायद ये एहसास नही होगा कि उसने सिर्फ़ एक कुशल वक्ता ही नही खोया बल्कि अपनी हाज़िर जवाबी,हँसमुख अंदाज़, बेबाक पन,व्यंग और बढ़ती उम्र के साथ एक बचपन जो सदैव उनके साथ जिया उसको भी खो दिया।
अटल जी को ऐसे ही सर्वमान्य नेता नही कहा जाता...ये उनका बेबाक पन ही था कि पार्लियामेंट में खड़े हो कर पूरे देश के सामने उस दौर से प्रधनमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के लिये बोल दिया कि अगर आज में जिंदा हूँ तो राजीव जी की वजह से ही ज़िंदा हूँ।दरअसल भारत सरकार की और से एक वफद अमेरिका जाना था राजीव जी ने अटल जी का नाम उस वफद में शामिल कर लिया ताकि अमरीका जा का अटल जी अपना इलाज करा लें।लौट कर आने पर अटल जी ने मन्ज़रे आम पर इस बात को स्वीकार कर ये संदेश देने की कोशिश की पक्ष-विपक्ष एक जमुहरियत का हिस्सा है लेकिन मोहब्बत का कोई पक्ष या विपक्ष नही होता।ये पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान के साबिक वज़ीर-ए-आज़म नवाज़ शरीफ़ के साथ उनके रिश्तों की बुनियाद पर ही भारत-पाकिस्तान बस सेवा शुरू हो सकी...उनकी वाक पटुता के क़ायल नवाज़ साहब पाकिस्तान जा कर अपने एक बयान में कह गए कि "अटल जी जैसे वज़ीर-ए-आज़म की पाकिस्तान को भी ज़रूरत है,काश पाकिस्तान उनसे कुछ सीख पाता"...नवाज़ साहब का ये बयान पाकिस्तान के आर्मी चीफ मुशर्रफ साहब को बहुत नागवार गुजरा और इस बयान की प्रतिक्रिया में कारगिल युद्ध दोनों मुल्कों को झेलना पड़ा... द्रणनिश्चय और साहसिक फ़ैसले लेने के अदम्य साहस के नतीजे में  पोखरण-परिक्षण ने पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया और हम भारतीयों का सार फ़क्र से ऊंचा हो गया।

मुझे ख़ूब याद है कि देहरादून मेडिकल कॉलेज में मेरा फाइनल ईयर का ग्रैंड प्रैक्टिकल वाइवा था और एक्सटर्नल एग्जामनर बन कर एम्स से डॉ. शिर्के और डॉ बलसरे आ रहे थे...जब हमारे प्रोफेसर डॉ सक्सेना साहब ने ये बताया कि ये वोही डॉ हैं जो अटल जी का घुटना-प्रतिरोपण के बाद रिहैबिलिटेशन कर रहे हैं तो हमारे बैच के सभी स्टुडेंट में एक कौतूहल से पैदा हो गया।दोनों डॉ एग्जाम से एक दिन पहले दून वैली होटल में आकर रुके थे।हमारे बैच के हम जैसे कुछ खुराफ़ाती शाम को उनसे मिलने बल्कि सिर्फ उनको देखने पहुँच गये...मैंने सीधा सवाल किया डॉ बलसरे से..."सर अटल जी अब कैसे हैं और आपको कैसा लगता है उनका इलाज करके"...उन्होंने भी सीधा जवाब दिया मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी मे ऐसा व्यक्तित्व नही देखा...अटल जी ने तो एम्स में अपने कमरे को मिनी प्रधानमंत्री कार्यालय बना रखा है जब बार-बार उनसे मैं आग्रह करता हूँ कि सर अब बस करें रिहैबिलिटेशन का टाइम हो गया तो अटल जी कहते हैं..."डॉ साब मेरे खड़े होने होने से ज़्यादा महत्वपूर्ण देश का खड़ा होना होना है"....बार-बार मुझे न टोका करें..."ये अच्छी बात नई है"...
विश्व गुरु का सपना हमारे दिलों-दिमाग़ को देने वाले अटल जी जिस्मानी तौर से हमसे आज रुख़सत ज़रूर हो गए मग़र अटल जी के "अटल-सिंद्धान्त" पर पर चल कर हमें उनका देश को विश्व गुरु बनाने का सपना चरितार्थ करना ही होगा तभी इस "अटल-शख्सियत" को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

जय-हिंद
डॉ.इस.ई.हुदा
नेशनल कन्वेनर,हुदैबिया कमेटी
बरैल्ली
9837357723

16.8.18

आरएसएस का ख़ौफ़ दिखा कर सियासी जमातों ने अभी तक ठगा है मुस्लिम मोअशरे को....मुल्क़ और मिल्लत की फलाह के लिए एक हाथ मे कुरान दूसरे हाथ मे कंप्यूटर ज़रूरी---डॉ. हुदा

बरेली
सुन्नी मुस्लिम समाज ने मनाया अखण्ड भारत दिवस जश्न ए आज़ादी को धूमधाम से मनाने का लिया संकल्प
आज दिनांक 14 अगस्त 2018 को वर्षों से कौमी इत्तेहाद और आपसी भाईचारे के लिए काविशें अंजाम दे रहे देशव्यापी स्तर पर विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. एस.ई.हुदा एवं भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा की प्रदेश मंत्री डॉ नाज़िया आलम के नेतृत्व में सैकड़ों मुस्लिम महिलाओं एवं पुरुषों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) द्वारा बरेली के शहीद चौक पर आयोजित अखण्ड भारत कार्यक्रम में भारत माँ के जयकारे एवं वंदेमातरम की आवाज़ बुलंद करते हुए भारत माता की आरती में भाग लिया।
संभवता देश मे पहली बार इतनी भारी तायदाद में सुन्नी मसलक के मानने वालों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ज़ेरे सरपरस्ती हुए इजलास में अज़ीम ओ शान अंदाज़ में शिरकत की।
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा की प्रदेश मंत्री डॉ नाज़िया आलम ने बताया कि सुन्नी मुस्लिम मोआशरा अब खुल कर भारतीय जनता पार्टी से जुड़ने का मन बना चुका है और आज का इजलास इस बात की दलील है। कुछ सियासी जमातों ने अभी तक मुस्लिम मोअशरे में ख़ौफ़ बना रखा था लेकिन अब सुन्नी मुस्लिम मोअशरे ने भी ताहिया कर लिया है कि मुस्लिम मोअशरे को मुख्य धारा में आने के लिए सबका साथ सबका विकास के नारे को कोई अमली जामा पहना सकता है तो वो भारतीय जनता पार्टी ही कर सकती हैं । इसी के साथ 15 अगस्त को मुस्लिम समाज के युवा नौजवानों द्वारा जश्न ए आजादी को बड़ी शान ओ शौकत के साथ मनाने एवं स्वस्थ वातावरण के लिए अधिक से अधिक संख्या में वृक्षारोपण करने का संकल्प लिया गया।
राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता एवम हुदैबिया कमेटी के कौमी सदर डॉ एस .ई.हुदा ने अपनी तक़रीर में सुन्नी मोअशरे को ख़िताब करते हुए कहा देश और मिल्लत का मुस्तक़बिल गयूर नोवजवां साथियों के हाथ मे हैं अगर अपने मुल्क़ को विश्व-गुरु बनाना है तो एक हाथ मे कुरान और दूसरे हाथ मे कंप्यूटर लेना होगा।मज़ीद डॉ हुदा ने कहा कि अभी तक दूसरी सियासी जमातों ने आरएसएस का ख़ौफ दिखा कर सिर्फ़ सुन्नी मुस्लिम वोटो की दलाली की है जिसके नतीजे में आज अवाम की सामाजिक हैसियत सिफर पर पहुँच चुकी है।
डॉ. हुदा ने प्रणव मुखर्जी का उदाहरण देते हुए कहा कि संवाद ही हर मुश्किल का हल है और इस कार्य को आरएसएस और बीजेपी ने बहुत खूबसूरत अंदाज़ में क़ायम करने की कोशिश की है जिसकी बिना पर आज सैकड़ो की तायदाद में सुन्नी मुसलमान ने इस इजलास में शिरकत की है।
डॉ हुदा ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के समाज को जोड़ने की दिशा में की जा रही कविशो कि भी भरपूर प्रशंसा की। डॉ. हुदा ने बताया कि कल 15 अगस्त को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिलने पर इस दिन को बड़े हर्ष उल्लास के साथ तमाम मुस्लिम नौजवान साथी मदरसों में तिरंगा फहराकर अपने घरों में अपनी कॉलोनी में 11-11पौधे मिलकर लगायेंगे और हमारे देश की आन बान शान तिरंगे को मदरसों में लहराकर आजादी को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाएगा।
 डॉ.एस.ई.हुदा
नेशनल कन्वेनर,हुदैबिया कमेटी
09837357723

14.8.18

वे पन्द्रह दिन - १४ अगस्त, १९४७

प्रशांत पोळ

 कलकत्ता.... गुरुवार. १४ अगस्त

सुबह की ठण्डी हवा भले ही खुशनुमा और प्रसन्न करने वाली हो, परन्तु बेलियाघाट इलाके में ऐसा बिलकुल नहीं है. चारों तरफ फैले कीचड़ के कारण यहां निरंतर एक विशिष्ट प्रकार की बदबू वातावरण में भरी पड़ी है.

गांधीजी प्रातःभ्रमण के लिए बाहर निकले हैं. बिलकुल पड़ोस में ही उन्हें टूटी – फूटी और जली हुई अवस्था में कुछ मकान दिखाई देते हैं. साथ चल रहे कार्यकर्ता उन्हें बताते हैं कि परसों हुए दंगों में मुस्लिम गुण्डों ने इन हिंदुओं के मकान जला दिए हैं. गांधीजी ठिठकते हैं, विषण्ण निगाहों से उन मकानों की तरफ देखते हैं और पुनः चलने लगते हैं. आज सुबह की सैर में शहीद सुहरावर्दी उनके साथ नहीं हैं, क्योंकि उस हैदरी मंज़िल में रात को सोने की उसकी हिम्मत ही नहीं हुई. आज सुबह ११ बजे वह आने वाला है.

13.8.18

बेहतर पत्रकार बनना है तो बड़े पत्रकारों को पढ़ो और सुनो

सर,

उम्मीद करता हूँ, आप अपना कीमती वक्त निकाल कर इस मैसेज को ज़रूर पूरा पढ़ेंगे और मेरा मार्ग-दर्शन भी ज़रूर करेंगे| वैसे तो मैं आपकी खबरों को देख और सुन कर भी बहुत कुछ सीखता रहता हूँ | क्योंकि पत्रकारिता जगत में मेरे पहले गुरु रहे राज कौशिक जी कहते हैं, बेहतर पत्रकार बनना है तो बड़े पत्रकारों को पढ़ो और सुनो| इस लिंक पर क्लिक कर चैनल को एक बार ज़रूर देखिएगा प्लीज़ |

https://www.youtube.com/watch?v=FY5p_-RZVEs

धाकड़ खबर के नाम से यू-ट्यूब पर एक न्यूज़ चैनल चल रहा है, डेढ़ साल पहले इस चैनल की शुरुआत हुई थी, शुरू में यह चैनल लोकल एरिया की समस्याएँ उठाता रहा, पर अब देश और प्रदेश के मुद्दों पर काम कर रहा है | आज इस चैनल के करीब सवा 3 लाख सबस्क्राइबर्स हैं, इस चैनल पर 3 से 4 खबरें रोजाना डाली जाती हैं और 70-80 हज़ार दर्शक रोजाना इन खबरों को देख भी लेते हैं |

10.8.18

पुण्य प्रसून बाजपेयी के बहाने

हाल ही में एबीपी न्यूज़ से पुण्य प्रसून बाजपेयी सहित कई अन्य पत्रकार निकाले गए या निकलने के लिए मजबूर कर दिये गए। वैसे यह कोई नयी बात नहीं है। वो दिन लद गए जब पत्रकार की बाकायदे बिदाई होती थी। अर्सा हो गया अखबार में माला पहने हुए पत्रकार की फोटो सेवानिवृत्त की खबर के साथ देखे हुए। कुछ वर्ष पहले तक मशीन में काम करने वाले अखबारकर्मी की माला पहने हुए फोटो देखे हुए। क्या अखबार में काम करने वाले लोग रिटायर नहीं होते।

डीपीआर ने मिमियाना सिखा दिया

सत्ता से लोहा लेकर मीडिया सच को परोसेगा यह सोचना मात्र भी मूर्खता ही होगी । सोचने... समझने...समझाने... देखने.... दिखाने की जगह मीडिया ने मिमियाना शुरू कर दिया है... राग वो ही बजता है जो सरकार सुनना पसंद करें... राग वो ही बचता है जो TRP दे.. राग वो ही बचता है जो DPR लाने मे मदद करें.. ओर इस P और R से बाहर निकलकर कोई कुछ कहने की जुर्रत करता है तो वो सरकार विरोधी नहीं देश विरोधी हो चलता है.... ऐसे में सत्ता की डपली बजाते हुए उसे सिर पर बैठाने की गलत परंपरा मीडिया के लिए ही घातक हो गई है या यूं कहें कि DPR का दांव गले फांस बन गई है जो कुछ ज्यादा ही दर्द कर रही है और समय के साथ-साथ इसका दर्द और भी तेज होता रहेगा जैसा अभी हो भी रहा है । शायद हलाली लेकर सोए मीडिया पर यह संकट समय से कुछ पहले ही आ गया...

उसने कहा- हमारे रिश्ते सीधे जार्ज बुश से हैं!

मैंने कहा- अदना इंसान हूँ चढ़ा देना सूली पर

पढ़िए बात दिल की है... पर थोड़ी लम्बी है...  बात उस समय की है जब जार्ज बुश अमेरिका के राष्ट्रपति हुआ करते थे नीमच में एक नामचीन स्कूल संचालक पर आरोप लगा की यह मालवा में जबरिया धर्म परिवर्तन का रैकेट ऑपरेट कर रहा है इनका एक सेंटर गुरुद्वारे के समीप गली में था, पुराना समय था पत्रकारिता के लिए औजार सिमित थे मैने एक पॉकेट रिकॉर्डर जेब में रखा और उस सेंटर पर गया वहा मेरा जमकर सत्कार हुआ और मुझे इस बात पर राज़ी किया जाने लगा की में "बपतिस्मा" ले लू फिर उन्होंने मुझे अपनी मिशनरी की पूरी कहानी सुनाई और बताया की नीमच और मालवा में अब तक कितने लोग धर्म बदल चुके है

साम्प्रदायिक सद्भाव की कहानियों का अनूठा संकलन लोकार्पित


जयपुर। धर्म के प्रति निष्ठा होने और साम्प्रदायिक होने में बहुत अंतर है। किसी भी धर्म को मानने वाला अपने धार्मिक विश्वासों पर अडिग रहते हुए जनहित में काम कर सकता है। लेकिन साम्प्रदायिक व्यक्ति या समूहों जो धर्म के नाम पर राजनीति करते हैं वे जनविरोधी काम करते हैं। सुप्रसिद्ध कथाकार असग़र वजाहत ने अपनी नयी पुस्तक 'हिन्दू पानी - मुस्लिम पानी' के लोकार्पण समारोह में कहा कि राजनीति ने जिस प्रकार से धर्म को इस्तेमाल किया है उससे साम्प्रदायिकता बढी है। दूसरी ओर शिक्षा और जागरूकता के प्रति देश के नेताओं को जो चिन्ता होनी चाहिये थी वो रही नहीं। क्योंकि उन्हें धर्मांधता को फैलाना ही हितकर लगा।

हर साल मिलेगा एक साहित्यकार को महाकवि डॉ. कुँअर बेचैन साहित्य शिखर सम्मान


गाजियाबाद। अखिल भारतीय साहित्य परिषद् गाजियाबाद एवं बार एसोसिएशन गाजियाबाद के संयुक्त तत्वावधान में महाकवि डॉ. कुँअर बेचैन के ७७वें जन्मोत्सव पर ‘एक शाम डॉ. कुँअर बेचैन के नाम’ से विराट साहित्यिक अनुष्ठान का आयोजन किया गया। इस मौके पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद् गाजियाबाद ने महाकवि डॉ कुँअर बेचैन साहित्य शिखर सम्मान की घोषणा करते हुए डॉ बेचैन को 11 हजार रुपये, शाल, स्मृति चिह्न, बांसुरी, सम्मान पत्र, गुलदस्ते आदि भेंट किये।

हरिवंश की जीत से विपक्ष को झटका

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

राज्यसभा के उप-सभापति पद के लिए हरिवंश नारायण सिंह की विजय मेरे लिए व्यक्तिगत प्रसन्नता का विषय तो है ही, क्योंकि पिछले दो-तीन दशक से एक अच्छे पत्रकार की तरह उन्होंने ऊंचा नाम कमाया है। जब चंद्रशेखरजी प्रधानमंत्री थे तो उनके पत्रकार-संपर्क का काम उन्होंने बखूबी निभाया। वे राज्यसभा के सदस्य पहली बार बने और पहली ही बार में उसके उपसभापति बन गए। पत्रकारिता के क्षेत्र में आने के पहले एक प्रबुद्ध नवयुवक की तरह वे जयप्रकाशजी के आंदोलन में हमारे साथ रहे हैं। उनको हार्दिक बधाई!

सैफ़ुद्दीन सोज़ की किताब के बहाने कश्मीर समस्या की जड़ की खोज

- डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

जून के अंतिम दिनों में सोनिया कांग्रेस के एक बड़े नेता सैफ़ुद्दीन सोज़ की जम्मू कश्मीर को लेकर लिखी गई एक नई किताब Kashmir- Glimpses of History and the story of struggle  की चर्चा अख़बारों और टैलीविजन में शुरु हो गई थी । चर्चा को हवा देने के लिए सोज़ ने एक बयान जारी कर दिया था कि कश्मीरी भारत से आज़ादी चाहते हैं । इस बयान के बाद किताब की चर्चा और गहराती । तब इस चर्चा में एक नया आयाम जोड़ा गया कि क्या किताब के विमोचन कार्यक्रम में मनमोहन सिंह आएँगे या नहीं ? ज़ाहिर है हल्ला और पड़ता और सोज़ साहब ने अपनी किताब में क्या लिखा है ,इसे जानने की जिज्ञासा बढ़ती । आजकल यह किसी साधारण सी किताब की मार्केटिंग करने का व्यवसायिक तरीक़ा है ।

9.8.18

विपक्ष में कौन होगा पीएम पद का दावेदार?

संजय सक्सेना, लखनऊ 

‘बिन दूल्हे की बारात’ की तरह आम चुनाव के लिये यूपी में भाजपा के खिलाफ गठबंधन की कवायद गुजरते समय के साथ तेज होती जा रही है। गठबंधन के लिये न तो कोई नीति बनी है, न ही इस बात का खुलासा हुआ है कि गठबंधन की तरफ से प्रधानमंत्री पद का दावेदार कौन होगा। कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी कह रहे हैं कि जो सबसे बड़ा ज्यादा सीटें जीत कर आयेगा,वह ही पीएम बनेगा। ऐसा कहते समय राहुल की सोच यही कहती होगी कि कांगे्रस राष्ट्रीय पार्टी है। अगर उससे सभी राज्यों से औसतन तीन-तीन सीटें भी मिल गईं तो कांगे्रस का आंकड़ा सहजता से सौ सांसदों तक पहुंच जायेगा, जबकि क्षेत्रीय दल अपने राज्यों में बेहतर से बेहतर प्रदर्शन करके के बाद भी इस संख्या के आसपास तक नहीं पहुंच पायेंगे, तब राहुल गांधी सबसे बड़ा दल होने के नाते अपनी दावेदारी ठोंक देंगे।

NAJ-DUJ CASTIGATE ATTACKS ON FREEDOM OF THE PRESS

The National alliance of Journalists(NAJ)and the Delhi Union of journalists (DUJ), have called for a halt to the increasing attacks on the media, both physical attacks, attempts to browbeat the media into government tom-tomming and other attempts to muzzle the media during the past few years.

देवरिया, हरदोई संरक्षण गृह रेप मामले की जाँच कोर्ट की निगरानी में सीबीआई से कराएं


वाराणसी। देवरिया, हरदोई संरक्षण गृहों के रेप मामले की न्यायालय की निगरानी में सीबीआई जाँच कराने, चंद्रशेखर रावण को तुरंत रिहा करने, दबंगों से सरकारी जमीनें मुक्त कर भूमिहीनों में बाँटने की मांग पर बुधवार को भाकपा (माले), खेग्रामस, ऐपवा, इंसाफ मंच के संयुक्त तले शास्त्रीघाट कचहरी से जिला मुख्यालय तक मार्च निकाला गया और ज्ञापन सौंपा गया। मार्च के माध्यम से किसानों को कर्जे से मुक्त करने व स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू करने की मांग भी उठाई गई।

एनआरसी : तब भारतीय नागरिक कौन ?

कोलकाता : असम में विदेशी नागरिकों के प्रश्न पर छात्र आंदोलन हुए । छात्र आंदोलन का एक गुट अगप बनकर सत्ता में आ गई। दूसरा गुट अल्फा के नाम पद पाकिस्तानियों के सहयोग से भारत में आतंक का साम्राज्य फैला दिया । एक लंबा भय और आतंक का सृजन पूरे असम में फैला दिया गया । अगप के तात्कालिक गृह मंत्री भृगु फूकन ने अल्फा के साम्राज्य के लिये खुलकर तात्कालिक मुख्यमंत्री प्रफ्फुला कुमार महंत पर आरोप लगाये। अगप की सरकार गई । कांग्रेस की सरकार आ गई । आज वही प्रफ्फुला कुमार महंत भाजपा की सरकार में शामिल है। जिसके कार्यकाल में असम में सैकड़ों हिन्दी भाषी जनता को मौत के घाट सुला दिया गया था। हजारों हिन्दी भाषी व बँगला भाषियों को असम छोड़कर पलायन करना पड़ा था।

31.7.18

यहां अच्छाइयों के एवज में नोट कमा लेते हैं लोग...

-सागर शर्मा-

मौजूदा समय में देश के हालात और सामाजिक मूल्यों में आ रही कमी एवम संवैधानिक संस्थाओं से कम हो रहे जनता के विश्वास को ध्यान में रखते हुए कुछ पंक्तियां... 

काटकर अपनों की टाँगें यहाँ ख़ुद को लगा लेते हैं लोग ।
इस शहर में  कुछ इस कदर भी कद  बढ़ा लेते हैं लोग।।

'परसनल इज पोलिटिकल' मुहावरे ने चीज़ों को साफ़ देखने का रास्ता बताया है


दिल्ली। 'स्त्री मुखर हुई है, उसकी शक्ति ज्यादा धारदार हुई है, तो उसके संघर्ष भी गहन और लंबे होंगे। आज भी उसका संघर्ष थमा नहीं है। वह संघर्ष कर रही है, पुरुषों के मोर्चे पर पुरुषों के साथ और अपने मोर्चे पर पुरुषवादी स्त्रियों के साथ भी। वक्त के बदलने के साथ संघर्ष का स्वरूप भी बहुत कुछ बदल गया है। बस नहीं बदला तो स्‍त्री के संघर्ष की प्रकृति।' उक्त विचार सुप्रसिद्ध कथाकार सुधा अरोड़ा ने हिन्दू कालेज में हिंदी साहित्य सभा के एक कार्यक्रम में व्यक्त किये।

‘पीसमेकर’ ने 11 जांबाज आईपीएस अधिकारियों को सम्मानित किया

अंग्रेजों के जमाने की पुलिसिंग को बदलने की है जरूरत : जनरल वी के सिंह

भारतीय पुलिस एवं अर्द्धसैन्य बलों पर केन्द्रित मासिक हिन्दी पत्रिका ‘पीसमेकर’ ने अपने 15वें स्थापना दिवस पर पहली बार देश भर के 11 जांबाज आईपीएस अधिकारियों को सम्मानित किया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जनरल डॉ. वी. के. सिंह (पूर्व सेनाध्यक्ष), विदेश राज्यमंत्री, भारत सरकार थे। उन्होंने सभी 11 आईपीएस अधिकारियों को पीसमेकर वीरता ट्रॉफी व मेडल देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर पूर्व आईपीएस अधिकारी व उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह भी उपस्थित थे। मुख्य अतिथि ने उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी सम्मानित भी किया।

प्रेमचंद समाज की गतिविधियों को शब्द और संवाद ही नहीं देते बल्कि उसमें दखल भी देते हैं


दिल्ली। प्रेमचंद समाज की गतिविधियों को शब्द और संवाद ही नहीं देते बल्कि उसमें दखल भी देते हैं। सेवासदन में भारतीय विवाह संस्था का क्रिटिक भी प्रेमचंद बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत करते हैं जो सामाजिक कुप्रथाओं के कारण दाम्पत्य में बेड़ी का काम करता है। सेवासदन की नायिका सुमन के द्वारा विद्रोह की कोशिश विवाह संस्था के रूढ़िवादी स्वरूप का नकार है। उक्त विचार सुप्रसिद्ध आलोचक और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिंदी की आचार्य गरिमा श्रीवास्तव ने हिन्दू कालेज में हिंदी साहित्य सभा के एक कार्यक्रम में व्यक्त किये। 'प्रेमचंद का महत्त्व : संदर्भ सेवासदन'  शीर्षक से हुए इस आयोजन में श्रीवास्तव ने कहा कि जब व्यक्तित्व के स्वतंत्र विकास के अवसर अनुपलब्ध हों तो अनमेल विवाह के शिकार स्त्री पुरुष स्वस्थ समाज के निर्माण में योगदान नहीं कर सकते।

मुस्लिम समाज से दैनिक जागरण के बहिष्कार की अपील

दैनिक जागरण मुस्लिम्स समाज से जुड़ी खबरों को लेकर दोहरा रवैया अपनाता है.  ज़िला रामपुर ही नहीं बल्कि पूरा देश जानता है कि दैनिक जागरण अपने घटिया लेख से मुस्लिम्स की आस्था को ठेस पहुंचा कर उनके ईमान पर उंगली ही नही उठाता बल्कि तरह तरह के आरोप लगाता है. चाहे वो मासूम आसिफा के रेप केस का मामला हुआ हो, या मुसलमानों के नबी के लिए आपत्तिजनक टिप्पणी का लेख, या फिर अपने ही विभाग में मुसलमानों से काम करवा कर उनकी मज़दूरी तक नहीं देना..  नमाज़ी, परहज़गारों, मेहनती मुस्लिम कर्मियों का शोषण करना भी दैनिक जागरण का काम है...

समाचार प्लस चैनल ने 18 दिन पुराने समाचार को ताज़ा बताकर चला दिया



हरदोई में पत्रकारों द्वारा किस तरह प्रशासनिक अधिकारीयों की चाटुकारिता की जा रही है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है की 18 दिन पहले यानी 12 जुलाई को जिस खबर को सारे ही दैनिक अख़बार प्रकाशित कर चुके हैं उस ख़बर को 30 जुलाई को उत्तर प्रदेश की टीआरपी की कतार में मौजूद समाचार प्लस नामक चैनल चलाता है.

मैं बिकाऊ मीडिया हूं...

-मयंक जोगी- 

आज मैं जिस जगह हूं वो वेश्याओं का कोठा तो नहीं है पर उस से कम भी नहीं है। मैं वेश्या तो नहीं पर उस से कम भी नहीं। मेरे प्यारे भाईयों,बहनों माताओं और पिता समान बुजुगों सभी को मेरा प्रणाम और प्यारे बच्चों को प्यार,.....मेरी आप से गुजारिश है.... आज तक मैंने आपसे कुछ नहीं मांगा....आज मैं आप सब से कुछ मांगना चाहती हूं .......मैं हर सुबह आपके घर आती हूं ....आपकी हर सुबह मुझी से शुरु होती है......हर सुबह मेरी सरहाना करते हो ....सुबह का नाश्ता करने के बाद आप जब ऑफिस जाते हैं....और दोपहर का खाना खाते समय जब आप अपने सहकर्मियों के साथ होते हो उस समय भी आप मेरे बारे में बातें करते हैं....अपने विचारों में मेरी प्रशंसा करते हैं.......तर्क –वितर्क करते हो और ऑफिस के काम से थक हार कर जब अपने घर आते हो....तो वहां भी मैं आपका इंतजार कर रही होती हूं......

भिवानी में गुप्तचर विभाग के कर्मचारी मीडियाकर्मियों के माध्यम से जानकारी जुटाते हैं

भिवानी : किसी भी प्रदेश के गुप्तचर विभाग को उस प्रदेश की सरकार का आंख, कान व नाक माना जाता है। प्रदेश के विभिन्न जिलों में होने वाली हर गतिविधि पर गुप्तचर विभाग के कर्मचारियों की पैनी नजर होती है और दिन भर घटने वाली हर महत्वपूर्ण गतिविधियों को अपने स्तर पर जुटाकर अपने विभाग के प्रमुख के पास भेजते हैं। लेकिन भिवानी में गुप्तचर विभाग के कर्मचारी अपने स्तर पर नहीं बल्कि मीडियाकर्मियों के माध्यम से ही हर जानकारी जुटाते हैं और विभिन्न पत्रकार वार्ताओं में भी मीडियाकर्मियों की बजाए प्रथम पंक्ति में बैठे नजर आते हैं।

30.7.18

"बॉल टेम्परिंग" सियासत की पिच पर नहीं चलती खान साहब...


-डॉ.एस.ई.हुदा-

गुज़िश्ता रोज़ पाकिस्तान में मुकम्मल हुए आम इंतेखबात में क्रिकटर से सियासत की पिच पर बोलिंग करने आए इमरान खान साहब की तेहरीक़-ए-इंसाफ़ नाम की सियासी जमात सबसे ज़्यदा सीट्स जीत कर पुरानी सियासी जामतो को काफ़ी पीछे छोड़ते हुए सबसे बड़ी सियासी जमात के तौर पर पाकिस्तान अवाम की पहली पसंद बनी...ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से तालीमयाफ्ता इमरान खान साहब का अपनी प्ले बॉय इमेज से लेकर वज़ीर-ए-आज़म तक का सफ़र काफी दिलचस्प रहा इसमें कोई शक़-ओ-शुबा नही...बेहद अमीर खानदान से ताल्लुक़ रखने वाले खान साहब के दिल मे पाकिस्तान की ग़रीब आवाम के लिये क्या हमदर्दी होगी अल्लाह बेहतर जाने...

29.7.18

राफेल बोफोर्स न बने इसलिए इसकी पारदर्शिता साबित करे सरकार

कृष्णमोहन झा

लोकसभा में मोदी सरकार के विरुद्ध पेश अविश्वास प्रस्ताव भारी बहुमत से गिर गया।  इस प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस सदस्य राहुल गांधी ने फ़्रांस से हुए राफेल सौदे को लेकर सरकार पर तीखा हमला किया था। राहुल ने रक्षा मंत्री पर प्रधानमंत्री के दबाव में आकर सदन को गुमराह करने तक के आरोप लगाए। इसके जवाब में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने भाषण में सारी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा था कि फ़्रांस के साथ संधि की शर्तों के कारण इस सौदे की ज्यादा जानकारी वह नहीं दे सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि यह संधि 2008 में तत्कालीन यूपीए सरकार के समय की गई थी, इसलिए कांग्रेस को सरकार पर  आरोप लगाने का नैतिक अधिकार ही नहीं है। राहुल गांधी के आरोपों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गंभीरता से लेते हुए तीखे लहजे में कहा कि देश की सुरक्षा के मुद्दों पर ऐसा खेल ठीक नहीं है तथा बिना सबूत चिल्लाने की राजनीति देशहित में नहीं है।

28.7.18

फिल्म देखने के बाद मैं गोपालदास नीरज के गीतों का फैन हो गया....


-विनय श्रीकर-

1966 में एक फिल्म आयी थी, जिसका नाम था-- ‘नई उमर की नई फसल’ ! यह फिल्म लखनऊ के नॉवेल्टी टाकीज में लगी थी। उस समय मैं किशोर वय का था और ग्यारहवीं में पढ़ता था। मेरे पिता फिल्म देखने के सख्त खिलाफ थे। फिर भी, क्लास कट कर मैं अपने सहपाठियों या मुहल्ले के दोस्तों के साथ पिक्चर देख लिया करता था। आठवीं में पढ़ते समय मैंने पिता के कहने पर जो पहली फिल्म देखी थी, वह विवेकानन्द के जीवन पर आधारित थी।

27.7.18

विलम्ब से विवाह वरदान या अभिशाप?

विवाह की अवधारणा:  वि+वाह; यानी विशेष उत्तरदायित्व का निर्वहन करना. सनातन धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में से एक अहम् संस्कार माना गया है. पाणिग्रहण संस्कार को ही हम आम बोलचाल की भाषा में विवाह संस्कार के नाम से जानते हैं. वैदिक मान्यताओं के अनुसार, व्यक्ति के समस्त कालखंडों को चार भागों में विभाजित किया गया है – ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, संन्यास आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम. गृहस्थ आश्रम के लिए पाणिग्रहण संस्कार अर्थात विवाह नितांत आवश्यक है. एक ओर जहाँ दुनियां के अन्य सारे धर्म विवाह को महज दो पक्षों का करार मानते हैं, जिसे विशेष परिस्थिति में तोड़ा जा सकता है, वहीं दूसरी ओर हिन्दू धर्म में विवाह अग्नि एवं ध्रुवतारा को साक्षी मानकर जन्म जन्मान्तरों के लिए आत्मिक सम्बन्ध को स्वीकार करना होता है जिसे किसी भी परिस्थिति में तोड़ा नहीं जा सकता है.

जिलाधिकारी रितू माहेश्वरी के आदेशों को ठेंगा दिखाते एमएमजी हॉस्पिटल के डॉक्टर

मामूली बुखार आने पर बाहर के लिए लिखी 211 रूपये की दवाई... मात्र 6 साल की बच्ची के सिरप और टैबलेटों की भरमार

गाजियाबाद। महानगर स्थित एमएमजी हास्पिटल में कार्यप्रणाली सुधरने का नाम नहीं ले रही है। गाजियाबाद की डीएम रितू माहेश्वरी कार्य के प्रति लापरवाही बरतने पर चेतावनी भले दे रही हों लेकिन उसका कोई असर नहीं है। जिला अस्पताल के डॉक्टर अपने पुराने ढर्रे पर ही कार्य कर रहे हैं।

एक पत्रकार का दर्द

क्षमा चाहता हूँ, आज़ इस ग्रुप में अपनो के मध्य कुछ लिख रहा हूँ। लिखना स्वाभाविक भी लगा, आए दिन खब़रनवीशों के साथ हो रही धटनाएं प्रदेश में अपने तरह की कोई पहली और अंतिम धटना नहीं है। पूरे देश एवं प्रदेश के कलमकारों के साथ ऐसी धटनाएं आम हो गयी है। जो कर्तव्यनिष्ठा एवं ईमानदारी से कार्य करना चाहते है उन्हे हमारा समाज़ एवं हमारा तंत्र कार्य नहीं करने देना चाहते है।

लोकसभा चुनाव-2019 : गठबंधन के लिए नफा-नुकसान तलाशती बीजेपी

अजय कुमार, लखनऊ

लोकसभा चुनाव के लिये गठबंधन को लेकर बसपा सुप्रीमों मायावती बार-बार नया ‘सस्पेंस’ खड़ा कर देती हैं। कांगे्रस द्वारा राहुल को पीएम का चेहरा घोषित किये जाने के बाद माया ने एक बार फिर दोहराया है कि वह गठबंधन का हिस्सा तभी बन सकती हैं जब यह सम्मानजनक होगा। उनका यह बयान राहुल को पीएम का चेहरा घोषित करने की वजह से आया जरूर है,लेकिन लगता है कि वह सपा प्रमुख  अखिलेश यादव को भी कुछ संकेत देना चाह रही थीं।

26.7.18

पीढियों की सोच में अंतर क्यों...


कुछ अजीब सा विषय है ना...पर ये जेनरेशन गैप हर पीढ़ी मे होता है...बस हमारा देखने का नजरिया अलग होता है...आख़िर ये जेनरेशन गैप है क्या बला...? आम तौर पर माना जाये तो ये दो पीढ़ी के बीच मे आने वाला फर्क है...या यूं कहें की हर बात मे, सोच मे ,आचार -विचार मे ,बातचीत के तरीके मे ,व्यवहार मे अंतर होने को जेनरेशन गैप कह सकते है...हमेशा नयी पीढ़ी पुरानी पीढ़ी को और पुरानी पीढ़ी नयी पीढ़ी को यही कहकर चुप करा देती है कि जेनरेशन गैप है...वो चाहे हम लोगों का जमाना रहा हो या फिर आज हमारे बच्चों का जमाना ही क्यों ना हो...ऐसा हम अपने अनुभव के आधार पर कह रहे हैं...

23.7.18

नीरज की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा : किसी की पलकें भीगीं तो कोई फफक-फफक कर रोया


गाजियाबाद। गीतऋषि गोपाल दास नीरज को याद करके किसी की आंखें, नम हुईं, किसी की पलकें भीगीं तो कोई फफक कर रो दिया। अखिल भारतीय साहित्य परिषद गाजियाबाद और सम्प्रेषण साहित्यिक संस्था ने मिलकर गीतऋषि पद्मभूषण स्वर्गीय श्री गोपाल दास नीरज जी की स्मृति में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन सिग्नेचर होम्स, राजनगर एक्सटेंशन के क्लब हाउस में किया। अपनी भावांजलि अर्पित करते हुए महाकवि डाॅ. कुंअर बेचैन ने उन्हें मन का कवि बताया।

20.7.18

एक शाम डॉ कुंवर बेचैन के नाम- ''चाँदनी चार क‍़दम, धूप चली मीलों तक''


गाजियाबाद। अखिल भारतीय साहित्य परिषद संस्था की ओर से रविवार को जिला मुख्यालय के बार सभागार में एक शाम देश के वरिष्ठ कवि डॉ कुंवर बेचैन के नाम से काव्य संध्या का आयोजन किया गया।  इस कार्यक्रम में सौकड़ों की संख्या में शहर के साहित्य प्रेमियों ने हिस्सा लिया।

10.7.18

सुनो सुशासन बाबू,आपके सुशासन वाले बिहार में पत्रकार और पत्रकारिता सुरक्षित नही

इन दिनों एक बार फिर लगता है कि बिहार में वही 90 के दशक वाला जंगलराज शुरू हो चुका है। बिहार में पहली बार जब नीतीश कुमार की सरकार बनी तो काफी बदलाव हुआ। सबसे ज्यादा लचर कानून प्रणाली में सुधार हुआ। लेकिन जैसे-जैसे नीतीश कुमार की सरकार दूसरी और तीसरी बार सत्ता में आई।वैसे वैसे कानून प्रणाली लचर होती जा रही। बिहार में हालात इन दिनों ऐसी है कि  मीडिया जो समाज को सच से रूबरू कराता है उन पत्रकारों को भी अपनी जान गवानी पर रही। एक दो नही कई नाम हैं जो नीतीश कुमार के कार्यकाल में पत्रकारिता करते हुए पत्रकार की मौत हुई।

लिहाजा असल माफिया हम हैं तुम नही..

तुम्हारी एक गोली या फिर 10 गोली से सिर्फ एक मरता है हमारी एक कलम से हजारों दहशत में आ जाते हैं। तुम क्या डराओगे जितना हम डराते हैं। तुम जान मारते हो हम जान को हलक में फंसा देते हैं। हम नही तो तुम्हारा कोई वजूद नही। तुम कभी डर के तो कभी डराने को गोली चलाते हो ।तुम्हे तो हम डॉन और माफिया बनाते हैं। तुम्हारी एक गोली की गूंज हम सैकड़ों के घर सैकड़ों बार पहुंचाते हैं। जितने लोग तुम्हारी गोलियों से नही डरते उससे ज्यादा हमारी कलम से डरते हैं। गर हम नही तो तुम नही। लिहाजा असल माफिया हम हैं तुम नहीं। हम मीडिया है..

अपना दल में मची खलबली, रमेश वर्मा को वाराणसी जिला अध्यक्ष पद से हटाने' से कार्यकर्ता हुए नाराज


सत्ता की सूली पर कार्यकर्ता और विचार "कार्यकर्ताओं में आक्रोश"

वाराणसी के रमेश वर्मा को विगत छः माह पहले अपना दल (कृष्णा गुट) जिला अध्यक्ष के रूप में बड़ी जिम्मेदारी मिलने से जहां कार्यकर्ताओं में उत्साह था, वहीं अब उन्हीं कार्यकर्ताओं में आक्रोश पनप रहा है। अपना दल के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया की जिले मे भले ही जिला अध्यक्ष अपना दल का कुनबा बढा रहे हो वही विगत 2 जुलाई को अपना दल संस्थापक डा. सोनेलाल पटेल की जयंती को सफलता पूर्वक आयोजन करने के बावजूद अपना दल हाईकमान बिना किसी कारण नोटिस स्पष्टीकरण दिए दल के जिलाध्यक्ष रमेश वर्मा को हटाकर उनके साथ नाइंसाफी किया जिस बाबत स्थानीय कार्यकर्ता नाराज चल रहे है। नाराज़ कार्यकर्ताओ ने कहा की हमारी विचारधारा और हमें गाली देने वाले नेताओं का हमारे दल मे स्वागत हो रहा है। उनको प्रमोशन दिया जा रहा है। अपना दल में पहले ऐसा नही होता था।

30.6.18

अहंकारी और असंवेदनशील सत्ता का परफेक्ट उदाहरण है ये वीडियो, देखें

Yashwant Singh : ये वीडियो जनम जनम तक याद रखा जाएगा। सत्ता के अहंकार का सबसे बड़ा नमूना। सत्ता के असंवेदनशील चेहरे का परफेक्ट उदाहरण। वीडियो देखकर एक बारगी लगता है कि ये ओरिजिनल नहीं है, कहीं कोई शूटिंग चल रही हो। वीडियो ज्यादातर ने देखा होगा। जिनने न देखा है, वो ज़रूर देखें।

सब लोग मिलकर इस वीडियो को अपने सारे कॉन्टैक्ट्स तक शेयर / फारवर्ड करें। मुख्यधारा की मीडिया पैसे / विज्ञापन के लालच में जब इन अहंकारी और बददिमाग सत्ताधारियों के तलवे चाटता हो तब ये सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यम ही हैं जो सच्चाई को सहज रूप में प्रचारित-प्रसारित करते हैं।

This video should be made viral so that people know that what kind of cheap leaders are heading the state government’s across country…

वीडियो ये है :

https://youtu.be/f8pFktO-S58

नमो के बाद शाह टटोलेंगे यूपी की नब्ज

अजय कुमार, लखनऊ
आम चुनाव का की दस्तक सुनाई पड़ते ही उत्तर प्रदेश को लेकर संघ (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) और बीजेपी आलाकमान सक्रिय हो गया है. संघ पर्दे के पीछे से रणनीति बना रहा है तो बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और ‘चाणक्य’ अमित शाह ऊपर से नीचे तक पार्टी के पेंच कसने में लगे हैं. देश को सबसे अधिक 80 लोकसभा सीट देने वाले उत्तर प्रदेश को लेकर भारतीय जनता पार्टी बेहद गंभीर है.

26.6.18

संजय जोशी की बीजेपी में दूसरी पारी धमाकेदार तरीके से शुरू होने जा रही है!

अक्सर बीजेपी और संघ परिवार में गाहे -बगाहे यह चर्चा अफवाह उड़ती है कि शायद अब संजय जोशी की वापसी बीजेपी में होने जा रही है ,फिर दूसरे ही पल उनके और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच की मनमुटाव की खबरों को ज्यादा बल मिलता है ,कभी सुनने में आता है कि मोदी शाह की जोड़ी उनकी लोकप्रिय जननेता की छबि से खुद की कुर्सी को खतरा मानते हुए उनकी वापसी नहीं होने दे रही ,तो कभी सुनने में आता है संघ परिवार नहीं चाहता उनकी वापसी।

3.6.18

हिन्दी आखिर क्यों?



हिन्दी आखिर क्यों?
§  डॉ. अर्पण जैन 'अविचल
कविकुल के  गौरव  और पूर्व प्रधानमंत्री प. अटल बिहारी वाजपेयी जी ने लिखा है कि 'भारत केवल एक भूमि का टुकड़ा नहीं बल्कि जीता जागता राष्ट्रपुरुष हैं' मतलब स्पष्ट तौर पर भारत के भारत होने का कारण यहाँ की संस्कृति,यहाँ के संस्कार और यहाँ की विरासत हैं । भारत की ताकत, भारत की सांस्कृतिक अखंडता और लोगो की श्रद्धा हैं। यहाँ जीयो और जीने दो के सिद्धांत के साथ अहिंसा के महत्व को दर्शाने वाले महावीर है तो क्रांति के स्वर भी मुखर कर महाभारत के माध्यम से गलत का प्रतिकार करना भी दिखाया है, एक तरफ बहन के लिए लड़ने वाले भाई देखे तो दूसरी और राम-सा चरित्र दिखाया जिसमें कुशल राजा के साथ-साथ पिता की आज्ञा की पालना के लिए बिना शर्त कार्य करने के संस्कार भी सिखाएं हैं, यहाँ देश के लिए लड़ने वाले गाँधी भी है तो यहाँ समाज के लिए समर्पित बुद्ध को भी समझाया जाता है। इन सब के जिन्दा होने का कारण हमारे दादा-दादी या नाना-नानी के किस्से सुनना और कहानियों से संस्कार सिंचन हैं। और सबसे महत्वपूर्ण बात कि इन संस्कारों की पाठशाला का ककहरा भी स्वभाषा से ही शुरू होता हैं। स्पष्ट है कि हमें जो संस्कार मिले है उनका कारण घर के वटवृक्ष घर के बुजुर्ग ही होते है, किन्तु आज़ादी के बाद से लगता भारत के संस्कार सिंचन का बरगद कमजोर होता जा रहा है। भारत के संस्कार और मानवता कमजोर पौधे की तरह होते जा रहे हैं। इन सबकी जड़ में स्वभाषा की अवहेलना छुपी हुई है।
         भाषा किसी भी राष्ट्र का नैतिक और अघोषित प्रतिनिधित्व करती हैं, किसी भी राष्ट्र के बारे में जानना हैं, समझना हैं, वहां के संस्कारों को समझना वह की संस्कृति को पहचानना हैं तो वहां की भाषा का गहरा प्रभाव होता हैं।  बिना संस्कार के संस्कृति का जन्म संभव नहीं होता, संस्कारों से ही संस्कृति बनती है, संस्कार सिंचन के लिए सबसे सशक्त माध्यम भाषा ही है, उसी तरह भाषा उस संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती हैं। यदि इंग्लैंड में अंग्रेजी, अरब में अरबी वैसे ही हिंदुस्तान में हिन्दी को राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाली भाषा माना जाता है। अब यदि हिन्दी की अवधारणा को समझे तो हिन्दू ग्रंथों की एक कथा से इसे समझते हैं, उस पौराणिक कथा के अनुसार जब देवी महादुर्गा का जन्म महिषासुर का वध करने के लिए हुआ तब सृष्टि के समस्त देवताओं ने अपनी शक्तियों के रूप में अपने शस्त्र महादुर्गा को दिए उसके बाद सर्वशक्तिशाली महादुर्गा का जन्म हुआ।  और उसके बाद शक्तिशाली असुर महिषासुर के आतंक को महादुर्गा समाप्त किया, इसी तरह हिन्दी भाषा भी है, इस भाषा ने भारत में प्रचलित लगभग सभी बोलियों से शब्द और शक्ति लेकर सर्वोत्कृष्ट सृजन दिया हैं। वैसे तो हिन्दी का उद्भव संस्कृत के साथ प्राकृत और खड़ी बोली के उत्कृष्ट परिणाम से हुआ हैं। और इसी के साथ हिन्दी भारत के अधिकांश भू भाग पर प्रचलित और कामकाजी भाषा बन गई। 
वस्तुत हमारी भाषा का नाम हिन्दी ईरानियों की देन है। संस्कृत की स ध्वनि फ़ारसी में ह बोली जाती है; जैसे सप्ताह को हप्ताह सिंधु को हिन्दू {सिंधु नदी के कारण ही हिन्दू शब्द की उत्पत्ति हुई}। कालांतर में सिंधु नदी के पार का सम्पूर्ण भाग हिन्द कहा जाने लगा तथा हिन्द की भाषा हिंदी कहलायी।हिन्दी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है। सामान्यतः प्राकृत की अन्तिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है। मतलब पहले हम भारतीयों के संस्कारों के सिंचन की भाषा संस्कृत होती थी, कालान्तर में हिन्दी बनने लगी।
भाषा का अपना एक अपना महत्व है जिसके कारण संवाद का प्रारम्भ होता है और संवाद का पहला कायदा है कि जिन दो व्यक्तियों के बीच संवाद होना हैं उनकी भाषा का एक होना भी आवश्यक हैं। जैसे यदि आदमी और कौवे की भाषा अलग अलग नहीं होती तो शायद भारत के कौवे भी गीता और कुरान पढ़ रहे होते।  इसलिए संवाद स्थापित करने की पहली शर्त दोनों की भाषा का एक होना है। भाषा से संस्कार जिन्दा होते है, संस्कारो का परिष्कृत स्वरूप ही संस्कृति का परिचय है, रहन-सहन के अतिरिक्त संवाद आवश्यक तत्व है। देश में एक भाषा की आवश्यकता क्यों हैं इसका महत्वपूर्ण तर्क इस बात से साबित होता है कि जैसे यदि आप पंजाबी भाषी है और आप भारत के एक हिस्से दक्षिण में जाते है, और वहां की भाषा तमिल, तेलगु, मलयाली या कन्नड़ हैं, और आप न तो द्रविड़ भाषाओँ  को जानते हैं न ही वे पंजाबी।  ऐसी स्थिति में न आप संवाद कर पाएंगे न ही वो।  और संवाद न होने की दशा में समय और कार्य व्यर्थ हो जाएगा। अब ऐसी ही स्थिति में देश के आंतरिक भू भागों पर भी अलग-अलग भाषाओँ के होने से समरूपता दृष्टिगोचर नहीं होती।  इसलिए कम से कम भारत की  एक प्रतिनिधित्व भाषा होना  देश की अन्य भाषाओँ के साथ समन्वय भी हो और वो सम्पूर्ण राष्ट्र में अनिवार्य हो।  अब दूसरी महत्वपूर्ण बात कि अब इस एक भाषा का चुनाव कैसे हो ? इसके लिए इस तर्क को समझना होगा कि किस भाषा का प्रभुत्व जनसंख्याबल के अनुसार अधिक हैं। 
देश की एक ऐसी भाषा जो सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बाँध सकें, जिसे देश में भाषा कार्यों में (जैसे लिखना, पढ़ना और वार्तालाप) के लिए प्रमुखता से प्रयोग में लाया जाता है। वह भाषा जो राष्ट्र के कामकाज या सरकारी व्यवहार के लिये स्वीकृत हो, जिस भाषा में जनमानस अपने व्यवहार, कार्यकलाप संचालित करें, जो संपूर्ण राष्ट्र को परिभाषित कर, संपूर्णता का प्रतिनिधित्व करे उस भाषा को राष्ट्र की राष्ट्रभाषा कहा जाता हैं । राष्ट्रभाषा एक देश की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। 
किसी भी देश की प्रगति और उसकी प्रगति एक राष्ट्रभाषा के अभाव में संभव नहीं है,इस बात को सबसे पहले स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महसूस किया गया। जहां एक ओर विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के साथ विदेशी दास्ताँ की परिचायक अंग्रेजी भाषा को समाप्त करने की आवश्यकता महसूस हुई, जो भारत में विभिन्न भागों के लोगों द्वारा विचार बन सके। भारत की जनता के बीच समन्वय स्थापित करने वाली संपर्क भाषा के तौर पर हिन्दी की स्वीकार्यता हैं, और आज जब हिन्दी भाषी लोगों की जनगणना होगी है तो लगभग ४२ करोड़ से अधिक लोग हिन्दी को प्रथम भाषा मानते हैं जो देश की कुल आबादी का लगभग ४० प्रतिशत से अधिक हैं।  और लगभग १४ करोड़ लोग हिन्दी को द्वितीय भाषा के तौर पर स्वीकारते हैं , इसका मतलब स्पष्ट हैं कि हिन्दी भाषा को देश की आबादी का लगभग ५५ प्रतिशत से अधिक हिस्सा स्वीकारता हैं। ऐसी स्थिति में हिन्दी के अतिरिक्त कोई भी हिन्दुस्तानी भाषा नहीं हैं जो सम्पूर्ण राष्ट्र के निवासियों का प्रतिनिधित्व कर सकती है । भारत की प्रत्येक भाषाओँ में जो शब्द हैं वो अधिकांशत: हिन्दी या संस्कृत भाषा से लिए गए शब्द हैं । या यूँ कहें कि हिन्दी के विशाल शब्दकोश में अन्य भारतीय भाषाओँ के शब्दों का समावेश हैं । जब भाषाएँ आपस में जुड़ी हुई हैं, तो लोगों में भी आपस में प्रेम होगा ही । राजनैतिक षड्यंत्रों को अस्वीकार करते हुए जनभाषा का राष्ट्रभाषा के तौर पर अधिकारिक होना ही राष्ट्रीय समन्वयता और अखंडता के लिए आवश्यक हैं ।
वैसे भी हिंदुस्तान की तासीर में हिन्दी इतनी बसी जा चुकी है कि हमारे यहाँ यह भाषा नहीं वरन संस्कार सिंचन का माध्यम  है, पुरातन काल में देश में संस्कार गुरुकुल में दिए जाते थे, ब्रह्मचर्य आश्रम में बच्चों को गुरुकुल में रखा जाता था, संस्कार वही मिलते थे, परन्तु समय बीतता गया और गुरुकुल से विद्यालय तक के दौर में संस्कार घरों में मिलने लगे और शिक्षा विद्यालयों में।  भारत में संस्कार सिंचन दादा-दादी के किस्से कहानीयों से नैतिक शिक्षा की किताबों से मिलने लग गए, तो इसलिए दादा-दादी और बच्चों की भाषा एक होना भी आवश्यक है। यदि दोनों की भाषा का अलग होना वो सांस्कृतिक पुल को तोड़ता है, संस्कार न केवल हिन्दी बल्कि मातृभाषा या कहें स्वभाषा में मिलते है । अब बात करें भाषा को अपनाने से संस्कारों के बीज भारत में पुन: अंकुरित इसलिए हो सकते है क्योंकि 72 प्रतिशत हिन्दुस्तान हिन्दी को मातृभाषा मानता है, और 26 प्रतिशत लोग अन्य क्षेत्रीय हिन्दुस्तानी भाषा को, जबकि महज 2 प्रतिशत लोगो की अधिकारिक मातृभाषा अंग्रेजी है, तो संख्याबल के अनुसार हिन्दुस्तान में संस्कार तो हिन्दुस्तानी भाषा से ही सिंचित होते है।
अंग्रेजी भारत में लगभग 16 वीं शताब्दी में अंग्रेजो के आने के बाद आई, उसके पहले तो मूल में हिन्दुस्तानी भाषाएं ही थी, और अंग्रेजी का फैलाव भी बीते 80 सालों में ही हुआ है, सबसे ज्यादा बीते 7 दशक में, मतलब हम हमारे संस्कारों की वाहिनी के तौर पर भाषा को स्वीकारते हैं।  किन्तु विडंबना यह भी है कि इसके बाजार अधिग्रहण के बाद ही विकृत रुप भी सामने आया, जिस तरह से मैकाले ने पेश किया। दूसरा तर्क हिन्दुस्तान एक भावना प्रधान देश है, यह विश्व का एकमात्र देश है जहाँ की भूमि को माँ माना जाता है और आराध्य मान कर वंदेमातरम् या मादर-ए-वतन हिन्दुस्तान कह कर अभिनंदन किया जाता है, इसलिए भाषा को भी माँ कहा गया है, जो हिन्दुस्तानी भाषा से प्रेम करता है वह राष्ट्र से भी प्रेम करता है।  एक और महत्वपूर्ण बात कि वृद्धाश्रम की अवधारणा हिन्दुस्तान में कब से आई, पहले तो हमारे ही देश में पिता द्वारा तीसरी पत्नी को दिए वचन को पूर्ण करने के लिए पहली पत्नी का बेटा वन भोगने चला जाया करता था, संयुक्त परिवारों का विखण्ड तो अब होने लगा।  पहले तो यह था ही नहीं, आप ही बताईए कि आखिर ये सब अंग्रेजी के प्रभाव के बाद ही क्यों बढ़ा? पहले एकल परिवार का वजुद ही नहीं था, हमारे यहाँ तो पड़ोसी के बच्चे पर भी अपने बच्चें की तरह अधिकार जता कर गलती होने पर सजा दिए जाने की प्रथा रही है।  पाश्चात्य के स्वर के मुखर होने से हमारे संस्कार प्रभावित हुए है। जिस तरह बिजली वाले तीन माह की गणना करके औसत जोड़कर बिल थमाते है वैसे ही अंग्रेजी का औसत हिन्दुस्तान में हिन्दी से कमजोर रहा है, इसलिए संस्कारों का ककहरा हिन्दी को माना जाता है। अत: हिन्दी संस्कारों के सिंचन की पुन व्यवस्था है।
इन तथ्यों के बाद भी एक और भावनात्मक कारण का जवाब मैं उस घटना से देना चाहता हूँ जिसने हिला कर रख दिया था। 
एक बार अनायास ही शहर के प्रतिष्ठित व्यवसायी शर्मा जी के घर जाना हुआ, शर्मा जी और उनकी अर्धांगिनी के साथ बैठक कक्ष में बात कर ही रहे थे उसी दौरान शर्मा जी की छोटी बच्ची मिशा आई और श्रीमती शर्मा से कहने लगी,
मम्मी! व्हाट इस धीस?
आई एम् नॉट कम्फर्टेबले विथ ग्रेंड मदर,
शी इज नॉट  डुइंग गुड बिहेव विथ माय फ्रेंड्स?
ऑलवेज शी स्पीक्स हिन्दी विथ डेम,
माय फ्रेंड सेइंग डेट शी इज इल्लिट्रेट एंड वी आर पुअर
 दो मिनिट के लिए सन्नाटा पसर गया, फिर सफाई देती हुई श्रीमती शर्मा कहने लगी कि भाई साहब अब मम्मी को क्या समझाए कि बच्चों के दोस्तों के सामने जाया करे, फिर भी जाने क्यों मानती ही नहीं...  और जब अंग्रेजी नहीं आती तो फिर कमरे में ही बैठना चाहिए था..  पर नहीं मानती, और फिर पलट कर शर्मा जी से कहने लगी कि क्यों मम्मी को वृद्धाश्रम छोड़ आएं ?
शर्मा जी भी चुपचाप मौन समर्थन दे रहे थे, और मेरा काल मेरे सर पर सवार हो रहा था, मैंने जैसे- तैसे अपने आप पर काबू में किया और बस विदा ले कर घर गया, पूरी रात सो नहीं पाया, सुबह पांच बजे घर पर मेरी धर्मपत्नी मुझसे पूछने लगी अँधेरे कमरे में क्यों रातभर जगे हो, आँखों की सूजन बता रही है, आप पूरी रात रोएं है? आखिर क्यों?  क्या हुआ ऐसा? मेरा जवाब केवल इतना सा निकल पाया कि यदि हिन्दी ही भारत की भाषा होती तो ये वृद्धाश्रम ही नहीं बनते।  हाँ ये कड़वा सच है कि भारत की सांस्कृतिक विरासत को तोड़ने का माद्दा एक विदेशी भाषा में जरूर हो गया था, उस दिन के बाद सो पाया और लग गया हिन्दी को भारत की जनभाषा बनाने में, ताकि मेरा राष्ट्र कभी टूटे ही कमजोर हो। 
सनातन से राष्ट्र का गौरव और उसका अभिमान उसकी 'निज भाषा' होती हैं जो उस राष्ट्र की पहचान के साथ-साथ संवाद का सशक्त माध्यम भी होती हैं।
 संस्कार संस्कृति और समन्वय का सशक्त माध्यम भाषा ही हैं। हम कह सकते है कि बिना राष्ट्रभाषा के राष्ट्र के सर्वागीण विकास संभव नहीं है। या कहें बिना राष्ट्रभाषा के राष्ट्र गूंगा माना जाएगा। क्योंकि परस्पर विचार विनिमय, संवाद पत्राचार, आपसी समझ में भाषा ही हमारी मदद करती है। स्वभाषा के महत्व इतना है कि जीवन में इसके बिना राष्ट्र की वही स्थिति हो जाती है जैसे जल बिन मीन। किसी भी राष्ट्र के लिए राष्ट्रभाषा तथा मातृभाषा का होना गौरव की बात होने के साथ ही अत्यधिक सम्मान देने वाला भी होता है। भारत वर्ष पूरे विश्व में अकेला ऐसा देश है, जिसके आलोक में विश्व की कई संस्कृतियों को जन्म लिया। यही कारण है कि हमारे देश में अनेक भाषाएं पुष्पित एवं पल्लवित हुई। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हमारा देश सदैव विचारों एवं भावनाओं से आंदोलित होता रहा है। इसी भावनाओं एवं विचारों के लिए हमें राष्ट्रभाषा की जरूरत महसूस हुई। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा भी है कि ‘अपनी राष्ट्र भाषा के बिना राष्ट्र गूंगा ही होता है।'  हमारे देश में प्रचलित और पल बढ़ रही सारी भाषाएं हमारी संस्कृति की अलग अलग धाराएं है। सभी मिलकर भारतीय चिंतन और परंपरा को पूर्णता प्रदान करती है। हिन्दी देश के विशाल भू क्षेत्र में बोली और समझी जाने वाली भाषा है। अतः इसे राष्ट्रभाषा स्वीकार करने में किसी को परहेज नहीं होना चाहिए। हमारे देश के स्वप्नकारों ने हिन्दी को जनसंपर्क के रूप में अपनाकर उसे राष्ट्र की अस्मिता से जोड़ा और देश को एकता के सूत्र में बांधने की श्रृंखला माना।
अंग्रेजियत ने हमेशा से हिंदुस्तान को पराजित कर इस पर अधिकार करना चाहा हैं, किन्तु इसे युद्ध का नियम कहें यह सत्य कि जिससे हम युद्ध लड़ते है और हम जब यह जान जाते है कि हमारा प्रतिद्वंदी हमसे अधिक बलशाली और ऊर्जावान है तो समर्पण करना रणछोड़ बना देता है, अंग्रेजियत भी जानती है कि हिन्दुस्तान को झुकना इतना आसान नहीं है जब तक उसकी सांस्कृतिक विरासत उसके साथ है। अंग्रेजियत की नीति आदर्श युद्धनीति की तरह नहीं बल्कि फुट डालो और राज करो की रही है, उसी की तर्ज पर उन्होंने हमारी सांस्कृतिक अखंडता को तोड़ने के प्रयत्न करना शुरू कर दिया, इसी सन्दर्भ में उन्होंने अध्ययन किया कि हमारे संस्कार कहाँ से आते हैं, साफ तौर पर पाया कि बुजुर्गो की कहानियों और सनातन से लिखे जा चुके साहित्य से ही हमारा संस्कार तत्व जिन्दा हैं।  इसी को तोड़ने की जद्दोहद में पाया कि यदि भाषा जो उन किताबों की है वही समूल नष्ट कर दी जाए तो पचास या सौ बरस में तो हम  इस संस्कृति को ही नष्ट करके भारत पर  पुन: कब्ज़ा कर सकते हैं, क्योंकि भाषा नहीं रहेंगी, तो बच्चों और बुजुर्गो के बीच दूरियां आएंगी जिसे आप 'जनरेशन गेप' कहते है और वही सांस्कृतिक पतन का प्रथम अध्याय होगा। सबसे पहले हमारे राष्ट्र में संवाद की भाषा संस्कृत रही, जिसमें हमारे यहाँ सृजन हुआ, लेखन और काव्य भी संस्कार बने, उसके बाद क्षेत्रीय बोलियों के साथ हिन्दी आई पर अंग्रेजीयन ने जो हाल संस्कृत का किया, उसे पांडित्य की भाषा  प्रचारित किया अंग्रेजियत अब वही हाल हिन्दी का करने पर आतुर है।
यदि किसी शरीर से बदला लेना हो तो उसके पेट (उदर) को खराब कर दो, पेट खराब होगा तो शरीर बीमारियों से ग्रस्त हो जाएगा। और पेट को खराब करना हो तो जीभ बिगाड़ दो, जीभ के मार्ग से दूषित खाना पेट में जाएगा और पेट खराब हो जाएगा। उसी तरह शरीर मतलब एक राष्ट्र को माने तो पेट उसकी संस्कृति है और संस्कृति को खराब करना है तो जीभ यानी उसकी भाषा को खराब कर दो तो राष्ट्र के पतन के लिए भाषा उत्तरदायी हो गई। इसी अँग्रेजियत ने हिन्दुस्तान की गौरवमयी ने संस्कृति को नष्ट करने के लाइ भाषा का मार्ग चुना। ताकि भारत का भविष्य उसकी नाभि में छुपी मृगनयनी कस्तूरी के लिए भटकता रहे और अपनी सांस्कृतिक विरासत से दूर हो कर उसी के लिए लालायित रहें, जैसा की आयुर्वेद और एलोपेथी के मामले में हुआ।
संवैधानिक पक्ष
भारतीय संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष डॉ॰ भीमराव अंबेडकर चाहते थे कि संस्कृत इस देश की राष्ट्र भाषा बने, लेकिन अभी तक किसी भी भाषा को राष्ट्र भाषा के रूप में नहीं माना गया है। सरकार ने 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषा के रूप में जगह दी है। जिसमें केन्द्र सरकार या राज्य सरकार अपने जगह के अनुसार किसी भी भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में चुन सकती है। केन्द्र सरकार ने अपने कार्यों के लिए हिन्दी और अंग्रेजी भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में जगह दी है। इसके अलावा अलग अलग राज्यों में स्थानीय भाषा के अनुसार भी अलग अलग आधिकारिक भाषाओं को चुना गया है। फिलहाल 22 आधिकारिक भाषाओं में असमी, उर्दू, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संतली, सिंधी, तमिल, तेलुगू, बोड़ो, डोगरी, बंगाली और गुजराती है। वर्तमान में सभी 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है। 2010 में गुजरात उच्च न्यायालय ने भी सभी भाषाओं को समान अधिकार के साथ रखने की बात की थी, हालांकि न्यायालयों और कई स्थानों में केवल अंग्रेजी भाषा को ही जगह दिया गया है।
समग्र के रोष के बाद, सत्य की समालोचना के बाद, दक्षिण के विरोध के बाद, समस्त की सापेक्षता के बाद, स्वर के मुखर होने के बाद, क्रांति के सजग होने के बाद, दिनकर,भास्कर, चतुर्वेदी के त्याग के बाद, पंत,सुमन, मंगल,महादेवी के समर्पण के बाद भी कोई भाषा यदि राष्ट्रभाषा के गौरव का वरण नहीं कर पाई तो इसके पीछे राजनैतिक धृष्टता के सिवा कोई कारक तत्व दृष्टिगत नहीं होता।
हाँ! जब एक भाषा संपूर्ण राष्ट्र के आभामण्डल में उस पीले रंग की भांति सुशोभित है जो चक्र की पूर्णता को शोभायमान कर रहा है, उसके बाद भी 'राजभाषा' की संज्ञा देना न्यायसंगत नहीं लगता।
बहरहाल हम पहले ये तो जाने कि क्यों आवश्कता है राष्ट्रभाषा की? जिस तरह एक राष्ट्र के निर्माण के साथ ही ध्वज को, पक्षी को, खेल को, पिता को, गीत को, गान को, चिन्ह तक को राष्ट्र के स्वाभिमान से जोड़कर संविधान सम्मत बनाने और संविधान की परिधि में लाने का कार्य किया गया है तो फिर भाषा क्योंकर नहीं?
किसी भी राष्ट्र में जिस तरह राष्ट्रचिन्ह, राष्ट्रगान, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत, राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय पशु की अवहेलना होने पर देशद्रोह का दोष लगता है परन्तु भारत में हिन्दी के प्रति इस तरह का प्रेम राजनैतिक स्वार्थ के चलते राजनीति प्रेरित लोग नहीं दर्शा पाए, उसके पीछे मूल कारण में सत्तासीन राजनीतिक दल का दक्षिण का पारंपरिक वोट बैंक टूटना भी है।
हाशिए पर आ चुकी बोलियाँ जब केन्द्रीय तौर पर एकिकृत होना चाहती है तो उनकी आशा का रुख सदैव हिन्दी की ओर होता है, हिन्दी सभी बोलियों को स्व में समाहित करने का दंभ भी भरती है साथ ही उन बोलियों के मूल में संरक्षित भी होती है। इसी कारण समग्र राष्ट्र के चिन्तन और संवाद की केंद्रीय भाषा हिन्दी ही रही है।
विश्व के 178 देशों की अपनी एक राष्ट्रभाषा है, जबकि इनमे से 101 देश में एक से ज्यादा भाषाओं पर निर्भरता है और सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि एक छोटा-सा राष्ट्र है 'फिजी गणराज्य' जिसकी आबादी का कुल 37 प्रतिशत हिस्सा ही हिन्दी बोलता है, पर उन्होनें अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी को घोषित कर रखा है। जबकि हिन्दुस्तान में 50 प्रतिशत से ज्यादा लोग हिन्दीभाषी होने के बावजूद भी केवल राजभाषा के तौर पर हिन्दी स्वीकारी गई है।
राजभाषा का मतलब साफ है कि केवल राजकार्यों की भाषा।
आखिर राजभाषा को संवैधानिक आलोक में देखें तो पता चलता है कि 'राजभाषा' नामक भ्रम के सहारे सत्तासीन राजनैतिक दल ने अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली। उन्होनें दक्षिण के बागी स्वर को भी समेट लिया और देश को भी झुनझुना पकड़ा दिया ।
राजभाषा बनाने के पीछे सन 1967 में बापू के तर्क का हवाला दिया गया जिसमें बापू नें संवाद शैली में राष्ट्रभाषा को राजभाषा कहा था । शायद बापू का अभिप्राय राजकीय कार्यों के साथ राष्ट्र के स्वर से रहा हो परन्तु तात्कालिन एकत्रित राजनैतिक ताकतों ने स्वयं के स्वार्थ के चलते बापू की लिखावट को ढाल बनाकर हिन्दी को ही हाशिए पर ला दिया ।
देश के लगभग १० से अधिक राज्यों में बहुतायत में हिन्दी भाषी लोग रहते हैं, अनुमानित रुप से भारत में ४० फीसदी से ज़्यादा लोग हिन्दी भाषा बोलते है । किंतु दुर्भाग्य है क़ि हिन्दी को जो स्थान शासकीय तंत्र से भारत में मिलना चाहिए वो कृपापूर्वक दी जा रही खैरात है बल्कि हिन्दी का स्थान राष्ट्र भाषा का होना चाहिए न क़ि राजभाषा का । हिन्दी का अधिकार राष्ट्रभाषा का है। हिन्दी के सम्मान की संवैधानिक लड़ाई देशभर में विगत ५ दशक से ज़्यादा समय से जारी है, हर भाषाप्रेमी अपने-अपने स्तर पर भाषा के सम्मान की लड़ाई लड़ रहा है ।
हाँ! हम भारतवंशियों को कभी आवश्यकता महसूस नहीं हुई राष्ट्रभाषा की, परन्तु जब देश के अन्दर ही देश की राजभाषा या हिन्दी भाषा का अपमान हो तब मन का उत्तेजित होना स्वाभाविक है। जैसे राष्ट्र के सर्वोच्च न्याय मंदिर ने एक आदेश पारित दिया है कि न्यायालय में निकलने वाले समस्त न्यायदृष्टान्त व न्यायिक फैसलों की प्रथम प्रति हिन्दी में होगी, परन्तु 90 प्रतिशत इसी आदेश की अवहेलना न्यायमंदिर में होकर सभी निर्णय की प्रतियाँ अंग्रेजी में दी जाती है और यदि प्रति हिन्दी में मांगी जाए तो अतिरिक्त शुल्क जमा करवाया जाता है । और जब फैसला अंग्रेजी में मिलता है तो आमजनसमान्य उसे सहज रूप से  नहीं समझ सकता,  इसका भी कतिपय लोगों द्वारा फायदा उठाया जाता हैं। 
वैसे ही देश के कुछ राज्यों में हिन्दीभाषी होना ही पीढ़ादायक होने लगा है जैसे कर्नाटक सहित तमिलनाडु, महाराष्ट्र आदि । वही हिन्दीभाषियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार भी सार्वभौमिक है । साथ ही कई जगहों पर तो हिन्दी साहित्यकारों को प्रताड़ित भी किया जाता है । ऐसी परिस्थिति में कानून सम्मत भाषा अधिकार होना यानी राष्ट्रभाषा का होना सबसे महत्वपूर्ण है । इन सबके पीछे एक कारण यह भी रहा कि हमारी सरकारों ने हिन्दी को संपर्क भाषा के रूप में स्थापित करने की मंशा ही नहीं जताई, अन्यथा अन्य भारतीय भाषाओँ और हिन्दी के बीच सबसे पहले समन्वय स्थापित किया जाता और हिन्दी को थोपा नहीं जाता बल्कि उन स्वभाषाओं के साथ स्थापित किया जाता।
कमोबेश हिन्दी की वर्तमान स्थिति को देखकर सत्ता से आशा ही की जा सकती है कि वे देश की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने के लिए, संस्कार सिंचन के तारतम्य में हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित कर इसे अनिवार्य शिक्षा में शामिल करें । इन्हीं सब तर्कों के संप्रेषण व आरोहण के बाद ही हिन्दी को राष्ट्रभाषा का सूर्य मिलेगा और देश की सबसे बड़ी ताकत उसकी वैदिक संस्कृति व पुरातात्विक महत्व के साथ-साथ राष्ट्रप्रेम जीवित रहेगा।
विविधताओं में एकता की परिभाषा से अलंकृत राष्ट्र यदि कोई हैं तो भारत के सिवा दूसरा नहीं।। यक़ीनन इस बात में उतना ही दम हैं जितना भारत के विश्वगुरु होने के तथ्य को स्वीकार करने में हैं। भारत संस्कृतिप्रधान और विभिन्न जाति, धर्मों, भाषाओं, परिवेश व बोलियों को साथ लेकर एक पूर्ण गणतांत्रिक राष्ट्र बना। इसकी परिकल्पना में ही सभी धर्म, पंथ, जाति और भाषाओं का समावेश हैं। जिस राष्ट्र के पास अपनी २२ संवैधानिक व अधिकारिक भाषाएँ हों, जहां पर कोस-कोस पर पानी और चार कोस पर बानी बदलने की बात कही जाती है, जहां लगभग १७९ भाषाओं ५४४ बोलिया हैं बावजूद इसके राष्ट्र का राजकाज एक विदेशी भाषा के अधिकनस्थ और गुलामी की मानसिकता के साथ हो रहा हो यह तो ताज्जुब का विषय हैं। स्वभाषाओं के उत्थान हेतु न कोई दिशा हैं न ही संकल्पशक्ति। भारतीय भाषाएं अभी भी विदेशी भाषाओं के वर्चस्व के कारण दम तोड़ रही रही हैं।  एक समय आएगा जब देश की एक भाषा हिन्दी तो दूर बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं की भी हत्या हो चुकी होगी, इसलिए राष्ट्र के तमाम भाषा हितैषियों को भारतीय भाषाओं में समन्वय बना कर हिन्दी भाषा को राष्ट्र भाषा बनाना होगा और अंतर्राज्यीय कार्यों को स्थानीय भाषाओं में करना होगा। अँग्रेजियत की गुलाम मानसिकता से जब तक किनारा नहीं किया जाता भारतीय भाषाओं की मृत्यु तय हैं। और हिन्दी को इसके वास्तविक स्थान पर स्थापित करने के लिए सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि इसकी स्वीकार्यता जनभाषा के रूप में हो । यह स्वीकार्यता आंदोलनों या क्रांतियों से नही आने वाली है। इसके लिए हिन्दी को रोजगारपरक भाषा के रूप में विकसित करना होगा क्योंकि भारत विश्व का दूसरा बड़ा बाजार हैं और बाजारमूलक भाषा की स्वीकार्यता सभी जगह आसानी से हो सकती हैं। साथ ही अनुवादों और मानकीकरण के जरिए इसे और समृद्धता और परिपुष्टता की ओर ले जाना होगा।
हमारे राष्ट्र को सृजन की ऐसी आधारशिला की आवश्यकता हैं जिससे हिन्दी व क्षेत्रीय भाषाओँ के उत्थान के लिए एक ऐसा सृजनात्मक द्दष्टिकोण विकसित हो जो न सिर्फ हिन्दी व क्षेत्रीय भाषाओँ को पुष्ट करेगा बल्कि उन भाषाओ को एक दूसरे का पूरक भी बनाएगा। इससे भाषा की गुणवता तो बढ़ेगी ही उसकी गरिमा फिर से स्थापित होगी। आज के दौर में हिन्दी को लेकर जो नकारात्मकता चल रही है उसे सकारात्मक मूल्यों के साथ संवर्धन हेतु प्रयास करना होगा।
भारतीय राज्यों में समन्वय होने के साथ-साथ प्रत्येक भाषा को बोलने वाले लोगो के मन में दूसरी भाषा के प्रति भरे हुए गुस्से को समाप्त करना होगा। जैसे द्रविड़ भाषाओं का आर्यभाषा,नाग और कोल भाषाओं से समन्वय स्थापित नहीं हो पाया,उसका कारण भी राजनीति की कलुषित चाल रही, अपने वोटबैंक को सहेजने के चक्कर में नेताओं ने भाषाओं और बोलियों के साथ-साथ लोगो को भी आपस में मिलने नहीं दिया। इतना बैर दिमाग़ में भर दिया कि एक भाषाई दूसरे भाषाई को अपना निजी शत्रु मानने लग गया, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए था। हर भारतवंशीय को स्वभाषा का महत्व समझा कर देश की एक केंद्रीय संपर्क भाषा के लिए तैयार करना होगा. क्योंकि विश्व पटल पर भारत की कोई भी राष्ट्रभाषा नहीं हैं, विविधताओं के बावजूद भी भारत की साख में केवल राष्ट्रभाषा न होना भी एक रोड़ा हैं। हर भारतीय को चाहना होगा एक संपर्क भाषा वरना दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर रोटी खा जाएगा, मतलब साफ है कि यदि हमारी भारतीय भाषाओं के बीच हो लड़ाई चलती रही तो स्वभाविक तौर पर अँग्रेज़ी उस स्थान को भरेगी और आनेवाले समय में एक अदने से देश में बोली जाने वाली भाषा जिसे विश्व में भी कुल ७ प्रतिशत से ज़्यादा लोग नहीं बोलते भारत की राष्ट्रभाषा बन जाएगी।
भारत का भाल और इसका अभिमान इसकी भाषा के साथ इसकी संस्कृति से है, बिना भाषा के राष्ट्र का अस्तित्व खतरे में है। हमारा संकल्प होना चाहिए कि हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने के साथ ही अनिवार्य शिक्षा में शामिल करवाना होगा तब ही संस्कार और भारत बन सकता है बच सकता हैं।
डॉ. अर्पण जैन 'अविचल'
पत्रकार एवं स्तंभकार
संपर्क: ०७०६७४५५४५५
अणुडाक: arpan455@gmail.com
अंतरताना:www.arpanjain.com
[लेखक डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं]