अजय कुमार,लखनऊ
लखनऊ। देश के विभिन्न राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश में भी बिजली उत्पादन के लिए कोयले का संकट गहराता जा रहा है।उत्तर प्रदेश में सरकारी स्वामित्व वाली विद्युत इकाइयों में कोयले की जबर्दस्त किल्लत के कारण बिजली उत्पादन कम हो गया है। यूपी में मांग के मुकाबले तीन हजार मेगावॉट कम बिजली का उत्पादन हो रहा है। जिसके कारण गांवों तथा कस्बों में बिजली की अत्यधिक कटौती की जा रही है।
राज्य विद्युत उत्पादन निगम के पावर प्लांटों में सिर्फ दो दिनों का कोयला बचा है। ऊर्जा विभाग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक गांव-कस्बो में साढ़े तीन से सवा छह घंटे तक की बिजली कटौती की जा रही है। सूत्र बताते हैं कि कोयला खदानों में पानी भर जाने के कारण कई पावर प्लांटों को कोयला सप्लाई में कमी आई है। ईस्टर्न कोलफील्ड और सेंट्रल कोलफील्ड में सितंबर के अंत में बहुत ज्यादा बारिश होने के कारण कोयला खदानों में पानी भर गया है। इसी वजह से इन कोयला खदानों से प्रतिदिन 25 लाख मीट्रिक टन की आवश्यकता की तुलना में मात्र 16 लाख 50 हजार मीट्रिक टन कोयले की आपूर्ति हो रही है।
सूत्र बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में सरकार के स्वामित्व वाले चार बड़े पन-बिजली संयंत्रों में से पारीछा और हरदुआगंज में तो कुछ ही घंटों के लिए कोयला बाकी रह गया है। ओबरा और अनपरा में भी मात्र दो दिन का कोयला ही बाकी रह गया है,जबकि नियमानुसार कोयला खदान के आसपास के बिजली संयंत्रों में कम से कम सात दिन का तथा दूर स्थित संयंत्रों में कम से कम 15 दिन का कोयले का भंडार रखना जरूरी होता है। उधर, कोयला मंत्रालय का कहना है कि देश में बिजली प्लाटों की मांग को पूरा करने के लिए प्रर्याप्त कोयला है। बिजली में रूकावट की बातें निराधार हैं।
दुबे ने बताया कि एनटीपीसी के विभिन्न बिजली संयंत्रों में भी कोयले की जबर्दस्त किल्लत उत्पन्न हो गई है। देश में कुल 135 पन बिजली संयंत्र है जिनमें से लगभग आधे में कोयला खत्म हो चुका है। उत्पादन निगम के ताजा आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश की हरदुआगंज इकाई में बिजली उत्पादन 610 के बजाय महज 230 मेगावाट जबकि पारीछा में 920 मेगावाट क्षमता के बजाय मात्र 320 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है।
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