सौरभ सिंह सोमवंशी
लखनऊ।
प्रयागराज में जन्मे और देश के सातवें प्रधानमंत्री रहे राजा मांडा विश्वनाथ प्रताप सिंह की आदमकद मूर्ति तमिलनाडु के चेन्नई में लगाने का फैसला वहां के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने लिया है। विश्वनाथ प्रताप सिंह के जन्म स्थली प्रयागराज से करीब 2100 किलोमीटर दूर उनकी मूर्ति दक्षिण भारत में लगाने का फैसला आश्चर्यचकित कर देने वाला फैसला है। वह भी तब जब उत्तर भारत के राजनीतिक दल उनका नाम लेने से डरते हैं।
राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह की गिनती देश के उन प्रधानमंत्रियों में होती है जिन्होंने देश को यू-टर्न दिया। अर्थात सर्वाधिक प्रभावित किया उन्हीं के कार्यकाल में 1970 से धूल फांक रही मंडल कमीशन की फाइल को झाड़ पोंछकर निकाला गया और उसमें जो 27% की सिफारिश पिछड़ा वर्ग को आरक्षण में देने की बात कही गई थी उसे लागू किया गया। इसके अलावा देश में संविधान निर्माता के तौर पर जाने जाने वाले देश के कानून मंत्री रह चुके डॉ भीमराव अंबेडकर को भारत रत्न देने का फैसला विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने लिया। उनकी सरकार के इन दोनों फैसलों ने यह दिखाया कि वह निचले तबके के लोगों की फिक्र करते हैं ।
परंतु पिछड़ा वर्ग को 27 फ़ीसदी आरक्षण देने के फैसले के चलते देश दो भागों में बट गया।एक तरफ वो लोग थे जो विश्वनाथ प्रताप सिंह को खलनायक बता रहे थे तो दूसरी तरफ वे लोग थे जो लोग विश्वनाथ प्रताप सिंह के फैसले का समर्थन कर रहे थे। लेकिन आज स्थिति यह है देश का एक वर्ग जिसका नुकसान हुआ वह तो विश्वनाथ प्रताप सिंह को खलनायक मानता है। लेकिन जिस पिछड़ा वर्ग को विश्वनाथ प्रताप सिंह के फैसले का लाभ मिला वह भी उनको नायक मानने को तैयार नहीं है। उसके अपने तमाम नेता है। इसके अलावा एक धारणा यह भी है कि पिछड़ा वर्ग के कुछ नेताओं के द्वारा दबाव डालकर विश्वनाथ प्रताप सिंह से यह फैसला करवाया गया इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि उन्होंने सत्ता के मोंह में फंस कर इस तरह का फैसला लिया क्योंकि वह लंबे समय तक सत्ता में बने रहना चाहते थे।
यह वह दौर था कांग्रेस सत्ता में नहीं थी और भारतीय जनता पार्टी कमंडल की राजनीति शुरू कर चुकी थी पॉलिटिकल पंडितों के अनुसार भाजपा के कमंडल की राजनीति का जवाब विश्वनाथ प्रताप सिंह मंडल से दिया परंतु वह कामयाब ना हो सके।
जनता के बीच में धारणा चाहे जो हो लेकिन इतना तो सत्य है की विश्वनाथ प्रताप सिंह के ही कारण से पिछड़ा वर्ग के तमाम सारे लोग सरकारी नौकरियों में आए और ना केवल सरकारी नौकरियों में आये बल्कि वे राजनीति और नौकरशाही में भी बड़े-बड़े पदों तक पहुंचे। इसका कारण सिर्फ और सिर्फ विश्वनाथ प्रताप सिंह ही थे।
बड़ा प्रश्न यह है कि जिस विश्वनाथ प्रताप सिंह को देश में कोई राजनेता याद नहीं करता, नाम लेने से डरता है, उनके पक्ष या विपक्ष में बोलना नहीं चाहता उनकी आदम कद मूर्ति तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन लगाकर जनता में क्या संदेश देना चाहते हैं? स्टालिन ने घोषणा की है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह का सम्मान करने और तमिल समाज की ओर से आभार व्यक्त करने के लिए उनकी मूर्ति लगाई जाएगी। उन्होंने कहा कि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू किया जिसका फायदा पिछड़ा वर्ग के लोगों को हुआ। इसके अलावा तमिलनाडु के लोगों के लिए जिस कावेरी नदी को जीवन रेखा कहा जाता है उस कावेरी न्यायाधिकरण के गठन में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने काफी मदद की थी।
जब देश के लोकतांत्रिक इतिहास में अब तक के सर्वाधिक बहुमत वाली सरकार जिस के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे उसके खिलाफ एक शब्द कोई बोलने को तैयार नहीं था उस दौर में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने राजीव गांधी के ऊपर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर उनकी मिस्टर क्लीन की छवि को मटियामेट कर दिया। राजीव गांधी आज के नरेंद्र मोदी की तुलना में बहुत मजबूत थे उसका कारण यह था कि 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की शहादत के बाद जब देश में लोकसभा के चुनाव हुए तो सहानुभूति का फायदा कांग्रेस को मिला और राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने थे।
जैसे आज भाजपा के खिलाफ विपक्ष एकजुट होकर लड़ाई लड़ने की बात कर रहा है उसी तरह से उस दौर में भी विपक्ष ने एकजुट होकर कांग्रेस का मुकाबला किया था जिसका नेतृत्व विश्वनाथ प्रताप सिंह कर रहे थे।
यहां इस बात का उल्लेख करना अति आवश्यक है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जिस राष्ट्रीय मोर्चे का गठन कांग्रेस के खिलाफ किया था उस मोर्चे में स्टालिन के पिता करुणानिधि की बहुत बड़ी भूमिका थी। विश्वनाथ प्रताप सिंह तमिलनाडु को अपना मानते थे और तर्क वादी और समाज सुधारक पेरियार को अपना नेता भी मानते थे।
स्टालिन के अनुसार विश्वनाथ प्रताप सिंह उनके पिता करुणानिधि को अपने भाई की तरह सम्मान देते थे दोनों के बीच में सौहार्द पूर्ण रिश्ते थे और पूर्व प्रधानमंत्री हर मौके पर तमिल समाज के कल्याण के लिए खड़े रहते थे।
2024 लोकसभा चुनाव में करीब एक साल बचे हैं। अभी कुछ दिनों पहले ही स्टालिन ने तमिलनाडु में एक सामाजिक न्याय सम्मेलन किया था जिसमें देश के कुछ प्रमुख विपक्षी दल शामिल हुए थे। स्टालिन की इच्छा है कि आगे चलकर विपक्षी पार्टियां राष्ट्रीय गठबंधन का आकार लें। 2024 में भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व को चुनौती देने के लिए एक विचारधारा पैदा करना अति आवश्यक है यह विचारधारा ऐसी हो जो उत्तर भारत को भी प्रभावित करें। देश में पिछड़ा वर्ग के वोट बैंक की बहुत बड़ी भूमिका है और वह सर्वाधिक मात्रा में है। लेकिन देश के किसी भी भाग में पिछड़ा वर्ग को लाभ देने वाले सबसे बड़े फैसले को लागू करने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह को कोई याद नहीं करना चाहता ।
जहां भारतीय जनता पार्टी को अपने सवर्ण वोट बैंक को खोने का डर रहता है वहीं पर देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस विश्वनाथ प्रताप सिंह को अपना दुश्मन इसलिए मानती है क्योंकि विश्वनाथ प्रताप सिंह के द्वारा बगावत करने के बाद देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में कभी कांग्रेस की सरकार नहीं बन पाई, और देश में कभी भी कांग्रेस अपने दम पर सरकार नहीं बना पाई। सबके अपने अपने कारण हैं।
विश्वनाथ प्रताप ने मंडल कमीशन की सिफारिश को लागू करने के बाद कहा था कि "मैं रहूं या ना रहूं लोग हमारे रास्ते पर ही चलेंगे।" यह वास्तविकता है। आज लगभग समस्त राजनीतिक दल उनके ही रास्ते पर चल रहे हैं, या कहा जाए कि उनके भी आगे जाना चाहते हैं पिछड़ा वर्ग व दलित वोट बैंक के लिए राजनीतिक दल कुछ भी करने को तैयार है। लेकिन उनको याद कोई नहीं करना चाहता ।
बड़े शातिराना अंदाज में उनको इस देश का खलनायक बनाया गया लेकिन उनके ही पद चिन्हों पर चलना शायद देश के राजनीतिक दलों की मजबूरी है।
देर से ही सही लेकिन लोग अब विश्वनाथ प्रताप सिंह को याद करने लगे हैं जहां भारतीय जनता पार्टी का कोई नेता कभी उनका जिक्र नहीं करता था वहीं पर अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विश्वनाथ प्रताप सिंह के जयंती और पुण्यतिथि पर उनको याद करते हैं। दक्षिण भारत से ही सही लेकिन विश्वनाथ प्रताप सिंह को और उनके कार्यों को याद करने की परंपरा की शुरुआत हो चुकी हैं।
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