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30.6.23

ये है बस्ती का शशि शेखर, गिरा दिया एक और ब्यूरो चीफ का विकेट

 हिन्दुस्तान अखबार के गोरखपुर यूनिट अंतर्गत बस्ती जिला भी आता है। जागरण, उजाला, सहारा समेत अन्य प्रमुख अखबारों ने दशकों से यहां अपना ब्यूरो कार्यालय खोल रखा है। हिन्दुस्तान ने भी अपना ब्यूरो कार्यालय जिला मुख्यायल पर गांधीनगर पक्के बाजार पर अरबन कोआपरेटिव बैंक बिल्डिंग में खोल रखा है। इस जिले और ब्यूरो कार्यालय का इतिहास जितना पुराना है उतना ही रोचक यहां तैनात होने वाले ब्यूरो चीफ साहबों का कार्यकाल भी रहा है। कहने को तो यहां गोरखपुर यूनिट के सम्पादक महोदय की कृपा से अनुभव और कार्य में ज्यादा तर्जुबा रखने वाले रिपोर्टर को तैनात किया जाता है लेकिन इस कार्यालय में तैनात एक अदना सा स्ट्रिंगर/ संवाददाता सुरेंद्र पांडेय इतना ‘ताकतवर’ है कि लोग उससे पनाह मांगते हैं। मजाल है कि कोई उसके सामने पनप पाए या उसका विरोध कर टिक पाए। साम, दाम और दंड भेद का ऐसा मर्मज्ञ कि पूर्व में कार्यरत रहे ब्यूरो चीफ मारे दहशत के सुरेंद्र पांडेय को  बस्ती ब्यूरो का शशि शेखर कहते हैं। अभी हाल ही में उसने यहां तैनात रहे एक और ब्यूरो चीफ का विकेट गिराकर अपनी यह पदवी/ नाम चरितार्थ कर दिया है। 

अतीत पर नजर डाले तो लखनऊ यूनिट के अधीन संचालित बस्ती ब्यूरो कार्यालय के प्रभारी सन 2003-04 में दिनेश दूबे जो अभी मौजूदा समय सुल्तानपुर के प्रभारी हैं ने अपने एक करीबी दूर के रिश्तेदार सड़क पर अवारागर्दी करने वाले सुरेंद्र पांडेय निवासी महादेवा बाजार को पहले विज्ञापन एजेंट और बाद में रिपोर्टर बना दिया। चंद दिनों में ही बमुश्किल 1000 रुपए प्रति माह पाने वाले सुरेंद ने अपनी कार्यकुशलता साबित करते हुए कमाई 6 अंकों में कर ली। दिनेश दूबे ने विरोध करने की कोशिश की तो भस्मासुर निकले सुरेंद्र ने उस समय साथ में कार्यरत सभी साथियों को ‘इकट्ठा’ किया और अपनी गाड़ी से सभी को लेकर हिन्दुस्तान के तत्कालीन संपादक श्री नवीन जोशी के लखनऊ स्थित घर ही पहुंच गया। तमाम शिकायतें दर्ज कराईं लेकिन अपनी एक भी करास्तानी नहीं बताई। अतत: श्री नवीन जोशी ने जांच बैठाई और बमुश्किल एक महीने के अंदर ही दिनेश दूबे को बस्ती से हटाकर अयोध्या ब्यूरो कार्यालय से अटैच कर दिया गया। जान बची लाखों उपाय के तर्ज पर अपने ही भस्मासुर सुरेंद्र दूबे से जान बचाते हुए दिनेश भाग खड़े हुए। 
 
दूसरा दौर शुरू होता है सन 2005 के करीब। दिनेश दूबे के हटने के बाद लखनऊ से वरिष्ठ पत्रकार श्री राजेश पांडेय को बस्ती का ब्यूरो चीफ बनाकर भेजा गया। कहा जाता है कि राजेश पांडेय का व्यक्तित्व और व्यवहार गाय जैसा है। लिहाजा भस्मासुर सुरेंद्र पांडेय ने उनके इस व्यक्तित्व का भरपूर फायदा उठाया। प्रभारी को डरा-धमकार उन्हें मौन कराकर सारी कमान अपने हाथ में ले लिया। अभी तक पर्दे के पीछे रहकर खेल खेलने वाला सुरेंद्र पांडेय अब खुलकर सामने आ गया। पूरे विज्ञापन के साथ ही उसने संपादकीय कमान भी खुद ही संभाल लिया। वही तय करने लगा कि कौन कितना ‘देगा’ तो उसकी खबर छपेगी या फिर घर पर क्या ‘उपहार’ पहुंचाएगा। हजारों की मासिक कमाई लाखों में पहुंच गई। प्रभारी राजेश पांडेय की मौन सहमति का ऐसा फायदा उठाया कि 10 हजार रुपए महीना मानदेय पाने वाले सुरेंद्र ने बस्ती शहर के बेलवाडाड़ी मोहल्ले में 25 लाख रुपए का आवासीय प्लाट ले लिया। 
 
तीसरा दौर शुरू हुआ 2010 में गोरखपुर में हिन्दुस्तान अखबार के लांचिंग के साथ। श्री नागेंद्र जी के बाद दिनेश पाठक गोरखपुर यूनिट के संपादक बने तो उन्होंने श्री राजेश पांडेय को बस्ती से हटाकर संतकबीरनगर/ खलीलाबाद का ब्यूरो चीफ बना दिया। गोरखपुर में कार्यरत तेज तर्रार सीनियर रिपोर्टर श्री कमलेश पांडेय को बस्ती का ब्यूरो चीफ बनाकर भेजा गया। चूंकि श्री कमलेश पांडेय बस्ती जिले के ही रहने वाले थे लिहाजा बस्ती के भस्मासुर सुरेंद्र पांडेय के बारे उन्हें पहले से ही सब कुछ पता था। अपने तेवर के अनुरुप उन्होंने सख्ती बरतनी शुरू की। इसी बीच सम्पादक दिनेश पाठक की जगह श्री सुनील द्विवेदी गोरखपुर के सम्पादक बने। इधर कमाई पर अंकुश लगने से परेशान भस्मासुर सुरेंद्र ने आखिरकार श्री कमलेश पांडेय को निपटाने के लिए अपने अनुरुप एक साथी खोज लिया। गोरखपुर मुख्यालय में तैनात बस्ती के ही रहने वाले चीफ रिपोर्टर राकेश पाल को उसने मैनेज किया। और दोनों ने मिलकर ऐसा चक्रव्यूह रचा कि श्री कमेलश पांडेय पर काम में लापरवाही और नेतृत्व क्षमता में कमी का गंभीर आरोप लगा। मजे की बात है कि श्री राकेश पाल ही तत्कालीन सम्पादक के साथ जांच करने बस्ती आए। श्री कमलेश पांडेय को बर्खास्त करने की पूरी भूमिका बना ली गई। लेकिन उससे पहले ही श्री कमलेश पांडेय ने खुद ही हिन्दुस्तान छोड़ दिया वह दैनिक जागरण हल्द्वानी पहुंच गए। जिस भस्मासुर सुरेंद्र पांडेय और राकेश पाल ने आपसी मिलीभगत से श्री कमलेश पांडेय को निकम्मा साबित कर उनकी नौकरी खाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी वही श्री कमलेश पांडेय आज नई दुनिया इंदौर के संपादक हैं। सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस कदर साजिश की गई थी और निकम्मा कौन था?
 
दिनेश दूबे, राजेश पांडेय और फिर कमलेश पांडेय को निपटाने के बाद बेखौफ हो चुके भस्मासुर सुरेंद्र पांडेय को गोरखपुर में कार्यरत राकेश पाल का साथ मिला तो उसने जमकर मलाई काटी। राकेश पाल को उपकृत करते हुए उसने अमर उजाला फैजाबाद से आर्थिक गबन के आरोप में बाहर निकाले गए अपने भाई धर्मेन्द्र पांडेय को संतकबीरनगर ब्यूरो कार्यालय में स्ट्रिंगर/ संवाददाता बनवा दिया। अब एक भाई संतकबीरनगर तो दूसरा बस्ती को लूटने में व्यस्त हो गया। 25 लाख रुपए में लिए गए प्लाट पर 30 लाख रुपए का आलीशान मकान भी बन गया। अखबारी रुतबे का इस्तेमाल करते हुए पत्नी को श्रीकृष्ण पांडेय बालिका इंटर कॉलेज बस्ती में बतौर शिक्षिका नियुक्ति करा दी। खुद भी उसी इंटर कॉलेज में संविदा पर क्लर्क बन गया। लेकिन अखबार नहीं छोड़ा। क्योंकि सारी कमाई इसी के नाम पर हो रही है। 
इधर चौथे दौर में कमलेश पांडेय के जाने के बाद बस्ती में व्यवस्था सुधारने के लिए 2017 में गोरखपुर में कार्यरत रिपोर्टर श्री हरि प्रकाश चौहान को भेजा गया। उन्होंने सख्ती बरतनी शुरू की तो भस्मासुर सुरेंद्र पांडेय ने उनके भी खिलाफ प्रायोजित शिकायतें मुख्यालय पहुंचानी शुरू कर दी। जैसे किसी खबर पर खुद ही संबंधित विभाग या व्यक्ति के पास जाकर ब्यूरो चीफ या फिर संस्थान के नाम से नोटिस भिजवा देना। जानबूझ कर अखबार की प्रसार संख्या कम करा देना ताकि उन्हें हटा दिया जाए। जिले के संवाददाताओं को डराना-धमकाना कि यह तो बाहरी हैं आखिरी तक तो मैं ही रहूंगा। इसी बीच सोने पे सुहागा कोरोना काल में ‘आपदा में अवसर’ का लाभ उठाते हुए श्री राकेश पाल हिन्दुस्तान अखबार गोरखपुर के संपादक बना दिए गए तो इधर सुरेंद्र पांडेय की चांदी हो गई। उसने तत्काल पर्दे के पीछे 50-50 के डिलींग (कमाई में आधा हिस्सा राकेश पाल और शेष आधा सुरेंद्र पांडेय) के तहत कंपनी बाग चौराहे पर पराग मिल्क पार्लर की दुकान अपनी पत्नी के नाम ले लिया। इस दुकान से रोजाना करीब 25-30 हजार रुपए की बिक्री होती है। 
 
ब्यूरो चीफ हरि प्रकाश चौहान ने इस मिल्क पार्लर के खोले जाने की जानकारी संपादक श्री राकेश पाल को दी तो इधर भस्मासुर सुरेंद्र पांडेय ने चक्रव्यूह रचना शुरू कर दिया। संपादक श्री राकेश पाल का उसे ऐसा वरदहस्त मिला कि अंतत: एक और ब्यूरो चीफ का उसने विकेट गिरा दिया। जून 2023 में श्री हरि प्रकाश चौहान को बस्ती से गोरखपुर कार्यालय से अटैच कर दिया गया। चर्चा है कि श्री राकेश पाल से कहकर उसने उन्हें डेस्क पर भिजवाने में सक्रिय भूमिका निभाई। 
अब पांचवे दौर में गोरखपुर में कार्यरत श्री हरिशंकर त्रिपाठी को बस्ती का ब्यूरो चीफ बनाकर भेजा गया है। बताया जा रहा है कि संपादक श्री राकेश पाल ने उन्हें स्पष्ट हिदायत दिया है कि आप सिर्फ वहां रबर स्टंप बनकर रहेंगे। सारा काम भस्मासुर सुरेंद्र पांडेय देखेगा। आपके रहने और खाने में महीने में जो भी खर्च होगा उसकी व्यवस्था सुरेंद्र पांडेय कर देगा। बस आपको वहां जाकर चुपचाप बैठना है। ज्यादा तेज बनोगे तो पूर्व के चारों ब्यूरो चीफ जैसा हाल हो जाएगा। बहरहाल संपादक की खुली चेतावनी और भस्मासुर की पहुंच व दबंगई देख श्री हरिशंकर त्रिपाठी ने मौन धारण करने में ही भलाई समझी है। इसलिए भी सन्नाटा खींचे हुए हैं कि कहीं बस्ती का यह शशि शेखर उनका भी काम न लगा दे। 
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संपादक के कहने पर फिर से मिली सरकारी विज्ञापन की एजेंसी
 
करीब चार साल पूर्व आर्थिक गबन की शिकायत पर दिल्ली, लखनऊ और वाराणसी के एचआर डिपार्टमेंट की सख्ती पर भस्मासुर सुरेंद्र पांडेय के ‘आकांक्षा एडवरटाइजमेंट’ पर रोक लगा दी गई थी। वाराणसी के एचआर हेड श्री लोकनाथ सिंह ने स्पष्ट कहा था कि रिपोर्टिंग के साथ ही विज्ञापन एजेंसी चलाना कंपनी के नियमों के खिलाफ है। एचआर की सख्ती के बाद से ही सलाना करीब 20-25 लाख रुपए कमाई करने वाले भस्मासुर सुरेंद्र पांडेय की एड एजेंसी ‘आकांक्षा एडवरटाइजमेंट’ पर रोक लगा दी गई।
 
पर इधर संपादक बनते ही श्री राकेश पाल ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर एक बार फिर उसकी एड एजेंसी ‘आकांक्षा एडवरटाइजमेंट’ को चालू करा दिया है। फिर से लाखों रुपए के वैध-अवैध विज्ञापन के कमीशन का खेल शुरू हो गया है। पता चला है कि भस्मासुर ने इसके एवज में संपादक श्री राकेश पाल के बस्ती शहर स्थित किसान डिग्री कॉलेज के पास स्थित आवासीय प्लाट पर उनके मकान का निर्माण शुरू करा दिया है। चर्चा है कि संपादक के इस नवनिर्मित मकान पर अब तक 15 लाख रुपए भस्मासुर सुरेंद्र कर चुका है। और खर्च करने के लिए अपने करीबियों की मनमाफिक खबरें छापने और विज्ञापन में कमीशन का खेल खेलने के लिए संपादक से छूट मांग रहा है। पता चला है कि संपादक ने उसी की ही तरह अपना भी आलीशान मकान बनाने के लिए उसे खुली छूट दे दी है।

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