जय मच्छर बलवान उजागर, जय अगणित रोगों के सागर ।
नगर दूत अतुलित बलधामा, तुमको जीत न पाए रामा ।
गुप्त रूप घर तुम आ जाते, भीम रूप घर तुम खा जाते ।
मधुर मधुर खुजलाहट लाते, सबकी देह लाल कर जाते ।
वैद्य हकीम के तुम रखवाले, हर घर में हो रहने वाले ।
हो मलेरिया के तुम दाता, तुम खटमल के छोटे भ्राता ।
नाम तुम्हारे बाजे डंका ,तुमको नहीं काल की शंका ।
मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारा, हर घर में हो परचम तुम्हारा ।
सभी जगह तुम आदर पाते, बिना इजाजत के घुस जाते ।
कोई जगह न ऐसी छोड़ी, जहां न रिश्तेदारी जोड़ी ।
जनता तुम्हे खूब पहचाने, नगर पालिका लोहा माने ।
डरकर तुमको यह वर दीना, जब तक जी चाहे सो जीना ।
भेदभाव तुमको नही भावें, प्रेम तुम्हारा सब कोई पावे ।
रूप कुरूप न तुमने जाना, छोटा बडा न तुमने माना ।
खावन-पढन न सोवन देते, दुख देते सब सुख हर लेते ।
भिन्न भिन्न जब राग सुनाते, ढोलक पेटी तक शर्माते ।
बाद में रोग मिले बहु पीड़ा, जगत निरन्तर मच्छर क्रीड़ा ।
जो मच्छर चालीसा गाये, सब दुख मिले रोग सब पाये ।
बहुत पहले मैंने भी एक मच्छरिया ग़ज़ल (व्यंज़ल) लिखा था. यह मच्छरिया ग़ज़ल कोई पंद्रह साल पुरानी
है, जब मलेरिया ने मुझे अच्छा खासा जकड़ा था, और, तब उस बीमारी के दर्द से यह व्यंज़ल उपजा
था---
मच्छरिया ग़ज़ल 10
मच्छरों ने हमको काटकर चूसा है इस तरह
आदमकद आइना भी अब जरा छोटा चाहिए ।
घर हो या दालान मच्छर भरे हैं हर तरफ
इनसे बचने सोने का कमरा छोटा चाहिए ।
डीडीटी, ओडोमॉस, अगरबत्ती, और आलआउट
अब तो मसहरी का हर छेद छोटा चाहिए ।
एक चादर सरोपा बदन ढंकने नाकाफी है
इस आफत से बचने क़द भी छोटा चाहिए ।
सुहानी यादों का वक्त हो या ग़म पीने का
मच्छरों से बचने अब शाम छोटा चाहिए ।
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गर्मी बढ़ रही है, और नतीजतन मच्छरों की संख्या भी. मेरा घर, मेरा शहर मच्छरों से अंटा-पटा पड़ा
है. इंटरनेट पर कितने मच्छर हैं? मैंने जरा मच्छरों को इंटरनेट पर ढूंढने की कोशिश की- परिणाम ये
रहे-
गूगल पर 4500
और याहू! पर 12000 से ऊपर!
अब समझ में आया, माइक्रोसॉफ़्ट, याहू पर क्यों निगाहें डाले बैठा है! और, हम याहू! से क्यों दूर रहते
हैं? मच्छरों की भरमार जो है!
1.3.08
मच्छर चालीसा
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1 comment:
ये गज़ल तो रवि रतलामी जी की लगती है बल्कि पूरी पोस्ट वहीं से उठाई है. कम से कम नाम तो ले लेते.
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